असफलता के बड़े-बड़े गुण

By: Mar 10th, 2022 12:08 am

हम कितनी ही बढि़या योजना बना लें, परिस्थितियां तथा आसपास के लोग हमारे लिए चुनौतियां बन सकते हैं…

मैं हमेशा से मानता आया हूं कि गरीबी अपने आप में कोई गुण नहीं है और अमीरी अपने आप में कोई अवगुण नहीं है। फर्क तब पड़ता है जब कोई गरीब व्यक्ति स्वयं को बेबस मानकर प्रयत्न ही करना छोड़ दे और कोई अमीर व्यक्ति अमीरी के नशे में आगे बढ़ने के प्रयास छोड़ दे। इसके उदाहरण के रूप में हम बचपन से ही एक मनोरंजक कथा सुनते आए हैं। एक बार एक अंग्रेज भारत भ्रमण पर आया। पर्यटन के दौरान जब वह एक छोटे से कस्बे में पहुंचा तो कस्बे के बाजार में उसे एक कुम्हार दिखाई दिया जो अपने बर्तन लगाकर बैठा था, लेकिन बाजार में होने के बावजूद वह ऊंघ रहा था। पश्चिमी संस्कृति में इस व्यवहार को असह्य माना जाता है, इसलिए वह अंग्रेज कुम्हार को ऊंघते देखकर हैरत में पड़ गया और उसने कुम्हार को आवाज़ देकर जगाया। कुम्हार ने जागकर उस अंग्रेज से पूछा, ‘जी बाबूजी, बताइए क्या चाहिए?’ इस पर अंग्रेज ने उसे कहा, ‘भाई मुझे कुछ नहीं चाहिए। मैं तो बस यह कहना चाहता हूं कि तुम अपनी दुकान सजाकर बैठे हो तो चुस्त होकर बैठो, आने-जाने वाले लोगों पर निगाह रखो, उनमें से अगर कोई तुम्हारे बर्तनों की तरफ उत्सुकता से देखे तो उसे आवाज लगाकर बुला लो और अपने बर्तनों की खासियत के बारे में बताओ।’ कुम्हार ने अंग्रेज से पूछा, ‘इससे क्या होगा बाबूजी?’ अंग्रेज ने हैरान होकर कहा, ‘अरे भाई, तुम पूछते हो इससे क्या होगा। भाई, जब ज्यादा लोग तुम्हारे बर्तन देखेंगे, उनके बारे में जानेंगे तो तुम्हारी बिक्री बढ़ेगी।’ कुम्हार ने फिर पूछा, ‘फिर क्या होगा बाबूजी?’ कुम्हार के इस भोले सवाल पर अंग्रेज को गुस्सा भी आया और कुम्हार पर तरस भी, लेकिन उसने खुद को संभाल कर कहा, ‘भाई, जब तुम्हारी बिक्री बढ़ेगी तो तुम ज्यादा बर्तन बनाओगे, तुम्हारे पास ज्यादा पैसे आएंगे और तुम किसी पक्की दुकान पर बैठ कर बर्तन बेच सकोगे।’ कुम्हार शायद किसी और ही दुनिया का बाशिंदा था। उसने अपना वही सवाल फिर दाग दिया, ‘फिर क्या होगा बाबूजी?’ अंग्रेज ने भी सोच ही लिया था कि वह इस भोले कुम्हार को उद्यमिता का पाठ पढ़ा कर ही मानेगा, सो वह बोला, ‘फिर तुम्हारी बिक्री और बढ़ेगी, व्यवसाय और बढ़ेगा, परिवार में खुशहाली आएगी और धीरे-धीरे तुम ज्यादा बड़ी अैर बढि़या दुकान ले सकोगे।’ कुम्हार ने अब भी पूछा, ‘फिर क्या होगा बाबूजी?’ अंग्रेज न झुंझलाया न गुस्सा हुआ। उसने सधे स्वर में कहा, ‘फिर तुम्हारे पास नौकर-चाकर होंगे। सारा काम वो करेंगे और तुम आराम करोगे।’ कुम्हार अब सीधा होकर बैठा और उसने कहा, ‘वाह, वाह, यानी ये सब करने के बाद मैं आराम कर सकूंगा?’ अंग्रेज को लगा कि आखिरकार उसकी बात कुम्हार को समझ में आ गई है।

 वह उत्साह से बोला, ‘हां, हां, बेशक!’ अब कुम्हार ने अपना आखिरी सवाल पूछा, ‘लेकिन बाबूजी, यह तो बताइए कि जब आपने मुझे जगाया था तो मैं क्या कर रहा था?’ यह कहानी सिर्फ एक कहानी है। हम कुम्हार के चतुराईपूर्ण सवालों का आनंद ले सकते हैं, हंस सकते हैं या इस कहानी से एक बड़ी शिक्षा ले सकते हैं, और वह यह है कि आराम और आलस्य में अंतर है। सफलता से पहले का आराम, आराम नहीं है, आलस्य है। सफलता से पहले ही हम आरामपरस्त हो जाएं तो हम सड़क किनारे बैठे रह जाएंगे और यदि उस दौर में हम मेहनत करें तो साधन और सुख-सुविधाएं जुटा सकेंगे और फिर आराम हमारा अधिकार होगा! हाल ही में मुझे थायरोकेयर टैक्नालॉजीज़ के चेयरमैन ए. वेलुमनी को सुनने का मौका मिला और उससे मेरा यह विश्वास एक बार फिर पक्का हो गया कि गरीबी अपने आप में न गुण है न अवगुण, फर्क सिर्फ हमारे नज़रिए का है। कोयंबटूर के पास एक छोटे से गांव में जन्मे वेलुमनी का बचपन और किशोरावस्था अभावों, कठिनाइयों और चुनौतियों से भरे थे। लेकिन आज वे एक सफल उद्यमी हैं। देश भर से आए 500 से भी अधिक सफल जनसंपर्क उद्यमियों एवं युवा जनसंपर्क कर्मियों की एक सभा को संबोधित करते हुए थायरोकेयर टैक्नालॉजीज़ के चेयरमैन ए. वेलुमनी ने जोर देकर कहा कि जब आप गरीब होते हैं तो आपके पास खोने के लिए कुछ नहीं होता। यह एक बहुत बड़ी सुविधा की स्थिति है क्योंकि इससे आप बड़ा से बड़ा जोखिम लेने के  लिए भी तैयार हो सकते हैं।

 इसी तरह जब आप सफल नहीं हैं और मंजि़ल को पाने के प्रयास में हैं तो आप काम से जी चुराने के बजाय ज्य़ादा प्रयत्न करते हैं, लोगों की बातें और ताने भी बर्दाश्त कर लेते हैं, काम में नखरे नहीं करते, गलतियों का विश्लेषण करके अगली बार उनसे बचने की योजना बनाते हैं, जबकि सफलता मिलने पर अक्सर व्यक्ति आरामपसंद हो जाता है, घटनाओं का उथला विश्लेषण करके संतुष्ट हो जाता है और फिर एक ऐसा समय आता है जब कोई और उद्यमी व्यक्ति उससे आगे निकल जाता है। हम अपने चारों ओर देखेंगे तो ऐसे बहुत से उदाहरण पाएंगे जिनसे हम सीख सकते हैं और जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा पा सकते हैं। वेलुमनी की ही तरह इन्फोसिस के चेयरमैन नारायणमूर्ति के पास भी धन नहीं था, लेकिन धन का अभाव उनकी प्रगति में आड़े नहीं आया। स्व. राष्ट्रपति अब्दुल कलाम का बचपन भी गरीबी भरा था। प्रसिद्ध संगीतकार एआर रहमान के पिता का देहांत बचपन में ही हो गया था, प्रसिद्ध गायिका लता मंगेशकर को बचपन से ही परिवार की सारी जि़म्मेदारियां उठानी पड़ी थीं, फोर्ड मोटर के संस्थापक हेनरी फोर्ड को उच्च शिक्षा का अवसर नहीं मिल पाया था, केएफसी के मालिक ने 60 साल की उम्र में पहला रेस्तरां खोला था, प्रसिद्ध क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर लंबे नहीं हैं, अब्राहम लिंकन 15 बार लगातार विभिन्न चुनाव हारने के बाद अमरीका के राष्ट्रपति बने थे, प्रख्यात नृत्यांगना सुधा चंद्रन के पैर नकली हैं, थामस अल्वा एडिसन को बचपन में मंद बुद्धि माना जाता था, विश्व भर के बाजारों में पसरी हुई नामी कंपनी पेप्सी कोला 2 बार दीवालिया हो चुकी है। अमरीका में राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव लड़ रहे डोनाल्ड टं्रप दीवालिया हो चुके हैं। बहुत से अन्य सफल व्यवसायियों का शुरुआती जीवन कठिनाइयों भरा रहा है। धीरू भाई अंबानी का नाम भी ऐसे ही उदाहरणों में शामिल है जिन्होंने अपनी कल्पनाशक्ति से जीवन में वह स्थान बनाया जो उनके प्रतिद्वंद्वियों के लिए ईर्ष्या का कारण बना। इन सब उदाहरणों से स्पष्ट है कि यदि खुद हम ही अपने चारों ओर सीमाएं न बांध लें, खुद को कमजोर और मजबूर न मानने लगें तो जीवन में आगे बढ़ने के अवसर आते रहेंगे और हम उनका लाभ ले सकेंगे, बशर्ते कि हम खुद ही अपने आपको बेसहारा न मानने लगें।

 असफलता के दौर में भी जब हम सफलता की कल्पना करते हुए आशावादी बने रहते हैं तो हमारी सफलता के अवसर बढ़ जाते हैं। हम जानते हैं कि हमारी समस्या अस्थायी है तो हम असफलता से भयभीत हुए बिना जोखिम स्वीकार करते हैं। असफलता के बाद कुछ समय के लिए अपने आप में सीमित हो जाना सामान्य बात है, परंतु योग्य व्यक्ति शीघ्र ही अपने रंग में आ जाता है। गेंद यदि जमीन पर गिरेगा तो फिर से ऊपर उठेगा, लेकिन मिट्टी का ढेला यदि गिरेगा तो जमीन पर ही रह जाएगा। असफलता की मानसिकता और सफलता की मानसिकता वाले व्यक्तियों में बस इतना ही फर्क है। किसी भी व्यक्ति से गलती हो सकती है, गलत फैसला लिया जा सकता है और असफलता हाथ लग सकती है। लेकिन यदि हमारी मानसिकता धनात्मक हो, पाजि़टिव हो, तो असफलता एक छोटा व्यवधान और व्यावहारिकता का आवश्यक पाठ बनकर आती है। असफलता के दौर में अथवा संकट के समय झुक जाना और यह मान कर चलना कि हम कुछ भी करें, कठिनाइयां तो आएंगी ही, हमारी सफलता को सुनिश्चित बनाने में सहायक होता है। हम कितनी ही बढि़या योजना बना लें, परिस्थितियां तथा आसपास के लोग हमारे लिए चुनौतियां बन सकते हैं, कठिनाइयां खड़ी कर सकते हैं। ऐसे में हमारी कुशलता दो बातों से सिद्ध होती है। पहली, कि हम कितनी चुनौतियों का अंदाजा पहले से लगा सके और उनसे निपटने के लिए कितनी बढि़या तैयारी कर सके। दूसरी, यदि हम किसी कठिनाई अथवा चुनौती का पूर्वानुमान न लगा पाए हों तो मौका आने पर हम उस कठिनाई से कितनी कुशलता से निपट पाते हैं। जीवन के ये मंत्र हमारी सफलता सुनिश्चित करते हैं।

पी. के. खुराना

राजनीतिक रणनीतिकार

 ई-मेलः indiatotal.features@gmail.com


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