परीक्षाओं में भयमुक्त हों विद्यार्थी

अभिभावक अपने घर पर एक अच्छा शैक्षिक वातावरण तैयार कर सकते हैं। उन्हें चाहिए कि वे बच्चों की तुलना न करें, उन पर गुस्सा न करें। अपनी आशाओं तथा आकांक्षाओं को बच्चों के ऊपर न थोपें। बच्चों पर अनावश्यक रूप से दबाव भी नहीं डालना चाहिए…

सफलता एक दिन में नहीं मिलती। इसके लिए निरंतर प्रयास करना पड़ता है। लंबा रास्ता तय करने के लिए पहला कदम उठाना ही पड़ता है, तब हम अपनी मंजिल पर पहुंचते हैं। विश्व में जितने भी महान पुरुष हुए हैं, उन्हें जीवन भर परिश्रम, संघर्ष तथा निरंतर तपस्या करने के पश्चात सफलता मिली है। कड़े अनुशासन तथा नियमित रूप से प्रत्येक विषय पर प्रतिदिन पढ़ने, समझने का प्रयास करने, अभ्यास करने, केन्द्रित करने, बार-बार लिखने, दोहराने तथा आत्मसात करने से ही ज्ञान परिपक्व होता है। तभी अपने पर भरोसा तथा आत्मविश्वास पैदा होता है। इस समय विद्यालयों, महाविद्यालयों तथा विश्वविद्यालयों में परीक्षाओं का दौर चल रहा है। वर्ष भर से की गई कड़ी मेहनत, परिश्रम तथा तपस्या से बोई गई फसल काटने का समय नज़दीक आ गया है। परीक्षा किसी की भी हो, आसान नहीं होती, सभी पर परीक्षा का मनोवैज्ञानिक दबाव होता है। विद्यार्थियों को प्रतिदिन अपनी जि़म्मेदारी समझ कर, विषयवार समय सारिणी बना कर अनुशासित रूप से अध्ययन करना चाहिए। नियमित अध्ययन से बच्चों में किसी भी विषय के प्रति समझ पैदा होती है। पूर्व में विद्यार्थी एकाग्र होकर एकांत में ऊंची आवाज़ में उच्चारण करते तथा प्रश्नों को लिख कर बार-बार हल करते थे। इस लिखने-पढ़ने तथा दोहराने की प्रक्रिया से उनमें विश्वास पैदा होता था। वर्तमान में विषयों तथा विषय वस्तु का विस्तारीकरण हो गया है। कम्प्यूटर, संचार माध्यमों तथा तकनीक ने विद्यार्थियों, शिक्षकों तथा शिक्षा की दशा, दिशा और दृष्टि ही बदल दी है। कोरोना वैश्विक महामारी काल में मोबाइल संचार साधनों में शिक्षा का अग्रदूत बन कर सामने आया। एक समय इसी मोबाइल को अपनी जेब में तथा बस्ते में रखने पर पाठशालाओं में अपराध माना जाता था।

 ऐसा करने पर अभिभावकों को प्रबंधन समिति द्वारा पाठशाला बुलाया जाता, जुर्माना किया जाता तथा भविष्य में ऐसा न करने की चेतावनी दी जाती थी। आज मोबाइल ज्ञान संचार का एक सशक्त माध्यम बन चुका है। बेशक वर्तमान में शिक्षण-प्रशिक्षण के तौर-तरीके, साधन तथा संसाधन बदले हैं, लेकिन विद्यार्थियों, शिक्षकों तथा शिक्षण संस्थाओं के मूल उद्देश्य तथा लक्ष्य तो पूर्व निर्धारित ही रहते हैं। विद्यार्थियों का समग्र, सम्पूर्ण तथा सर्वांगीण विकास ही शिक्षा का मुख्य उद्देश्य है। ज्ञान से विद्यार्थियों को परिपूर्ण तथा परिपक्व करना ही शिक्षा है। शिक्षा जगत में यह प्रक्रिया चार उद्देश्यों ज्ञानात्मक, बोधात्मक, प्रयोगात्मक तथा सृजनात्मक रूप से पूर्णता को प्राप्त होती है। सतही ज्ञान  विद्यार्थियों को पूर्ण रूप से परिपक्व नहीं करता। किसी भी विषय वस्तु में धीरे-धीरे समझ और सृजनात्मकता विकसित होती है। मनोवैज्ञानिक रूप से परीक्षा का भय तो सभी को रहता है। विद्यार्थियों को निरंतर शिक्षण, अभ्यास तथा प्रेरणा से भय मुक्त करना ही तो शिक्षकों तथा अभिभावकों का कार्य है। विद्यार्थियों को डर, गुस्से तथा दबाव से नहीं बल्कि प्यार एवं अभिप्रेरित कर उनका मनोबल बढ़ाया जाना चाहिए। पढ़ाई का दबाव बनाना या बल प्रयोग करना तो बिल्कुल वर्जित है। दूसरे बच्चों से तुलना कर दबाव पैदा करना बिल्कुल सही नहीं है। अच्छी पढ़ाई करने के पश्चात जीवन में सफल होने की आशा तो सभी अभिभावकों की होती है, परंतु प्रत्येक विद्यार्थी की अपनी-अपनी क्षमता, योग्यता, प्रतिभा तथा रुचि होती है। विद्यार्थियों को पारिवारिक तथा सामाजिक दबाव से मुक्त रखना चाहिए।

 परीक्षाओं के समक्ष विद्यार्थियों को तनावमुक्त रहना चाहिए। किसी से अपनी तुलना न करें। किसी से प्रतिस्पर्धा करने के बजाय स्वयं से प्रतिस्पर्धा करें। ज्ञान असीमित है। दसवीं तथा बारहवीं तक दुनिया का सम्पूर्ण ज्ञान आत्मसात करना असंभव है। जीवन में प्रतिदिन तथा प्रतिक्षण परीक्षा होती है। ऊंची सोच रखें, ऊंचे सपने लें। अपने आप को बड़ा नहीं बल्कि सफल व्यक्ति के रूप में कल्पना करें। छोटे-छोटे लक्ष्य निर्धारित करें तथा योजनाबद्ध होकर, एवं ईमानदार प्रयासों से लक्ष्यों की प्राप्ति में जुट जाएं। प्रतिदिन अनुशासित होकर प्रत्येक विषय का अध्ययन कर अपनी समझ बढ़ाएं। कोई भी संशय होने पर अपने अध्यापकों से विषय वस्तु पर पूर्ण रूप से जानकारी प्राप्त करें। पूरे पाठ्यक्रम तथा विषय वस्तु को ध्यान से पढ़ें। व्यायाम, ध्यान तथा योग को अपने जीवन का अंग बनाएं। हल्का व्यायाम तथा सुबह-शाम सैर करें। मीठा-मीठा संगीत सुनें, हल्का भोजन लें। अच्छी नींद लें तथा अपने अध्ययन समय को विभिन्न अंतरालों में विभाजित करें। चिंतामुक्त और शांत रहें। नकारात्मकता को दूर रखें तथा सकारात्मक विचारों को मन में लाएं। दूसरों से नहीं बल्कि स्वयं से प्रतिस्पर्धा करें। अपने इष्ट देव या विद्या बुद्धि तथा ज्ञान की देवी का ध्यान करें। दबाव ग्रसित होकर चिंता नहीं बल्कि चिंतन करें। अपने आप को किसी से कमजोर न समझें तथा कोई भी नकारात्मकता तथा हीन-भावना अपने मन में न लाएं।

 याद रखें हम इस दुनिया के महत्त्वपूर्ण व्यक्ति हैं। विद्यार्थी परीक्षा की गरिमा बनाए रखें। नकल के भरोसे न रहें। परीक्षा में नकल ज़हर के समान है। नकल जीवन बर्बाद कर देती है। वर्तमान में परीक्षा केंद्रों पर नकल रोकने के लिए पूर्ण प्रबंध किए जाते हैं। शिक्षकों तथा अभिभावकों को इस दिशा में विद्यार्थियों का सही मार्गदर्शन करना चाहिए। परीक्षा केंद्रों में सीसीटीवी कैमरों की व्यवस्था करना अनिवार्य है। शिक्षकों तथा अभिभावकों को विद्यार्थियों में सकारात्मकता को बढ़ाने के लिए शिक्षित तथा प्रेरित करना चाहिए। परीक्षाओं के समय अभिभावकों को भी अपने बच्चों की पूर्ण रूप तथा समर्पण से पोषित करना पड़ता है। परीक्षाओं में बच्चों के अच्छे परिणाम प्राप्त करने के लिए उन्हें भी समर्पित भाव तथा अनुशासित होकर कार्य करना होता है। परीक्षाओं का समय परीक्षार्थियों तथा अभिभावकों के लिए बहुत संवेदनशील होता है। अभिभावक अपने घर पर एक अच्छा शैक्षिक वातावरण तैयार कर सकते हैं। उन्हें चाहिए कि वे बच्चों की तुलना न करें, उन पर गुस्सा न करें। अपनी आशाओं तथा आकांक्षाओं को बच्चों के ऊपर न थोपें तथा पारिवारिक एवं सामाजिक रूप से बच्चों पर अनावश्यक मनोवैज्ञानिक रूप से दबाव न डालें। इस नाज़ुक समय में बच्चों का साथी बनें, सहयोगी बनें, परीक्षा में अच्छे प्रदर्शन के लिए उन पर विश्वास करें। बच्चों को प्यार और आशीर्वाद देकर उनका मनोबल बढ़ाएं। ऐसा करके ही बेहतरीन परीक्षा परिणाम सामने आएंगे।

प्रो. सुरेश शर्मा

लेखक घुमारवीं से हैं


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