शिक्षा-संस्कृति पर हावी है पश्चिमी तहजीब

‘वेदों की ओर लौट चलो’ का नारा देने वाले स्वामी दयानंद सरस्वती तथा सन् 1893 में शिकागो की विश्व धर्म महासभा में भारत की महान् संस्कृति का प्रतिनिधित्व करने वाले वेदांत के प्रखर प्रवक्ता व भारतीय दर्शन के अग्रदूत स्वामी विवेकानंद जैसे संन्यासी योद्धाओं के संदेश को समझना होगा…

कोई भी देश अपनी बड़ी अर्थव्यवस्था, एटमी ताकत या भारी लाव लश्कर के दम पर ही शक्तिशाली नहीं कहलाता। किसी भी राष्ट्र के सर्वशक्तिमान होने के प्रमाण व महानता की झलक उसकी समृद्ध संस्कृति, पारंपरिक ज्ञान, ऐतिहासिक विरासतों, गौरवशाली शिक्षा व्यवस्था तथा ज्ञान विज्ञान से परिपूर्ण साहित्य में होती है। राष्ट्र की अस्मिता का मूल तत्व उसकी पुरातन संस्कृति व परंपराआंें में होता है, जिस पर हर देशवासी गर्व करता है। विदेशी आक्रांताओं से लेकर ब्रिटिश सत्ता तक भारत की संस्कृति को ध्वस्त करने की कई कोशिशें हुई। देश के हर जाति, वर्ग के लोगों ने कई रक्तरंजित संघर्षों में बलिदान देकर अंग्रेजों से भारत को आज़ाद कराया। अंग्रेजों ने सन् 1947 में भारत छोड़ दिया, लेकिन हकीकत यह है कि आजादी के 75 वर्षों बाद भी अंग्रेजी जुबान व तहजीब भारत पर हुकूमत कर रही है। शिक्षण संस्थानों से लेकर लोगों के दिलो-दिमाग पर अंग्रेजियत का साया हावी हो चुका है। सांस्कृतिक परंपराओं, सामाजिक संस्कारों व पौराणिक मान्यताओं के मायने केवल पूजा पद्धति, आस्था या धार्मिक अनुष्ठानों तक सीमित नहीं होते। परंपराओं व सांस्कृतिक परिवेश में पूर्वजों की भावनाएं शामिल होती हैं। इन चीजों का अभिप्राय सामाजिक चेतना व राष्ट्रीय गौरव का भाव पैदा करने वाली आर्यवर्त के गौरवशाली अतीत की उस शाश्वत व्यवस्था तथा सांस्कृतिक वैभव व स्वाभिमान को जगाने वाले वैदिक ज्ञान से परिपूर्ण कर्मकांड व गौरवमयी संस्कारों से है जिनके मार्गदर्शन व सिंद्धातों पर अनादिकाल से समस्त प्राणीजगत, मानवता, प्रकृति व समाज का वजूद बरकरार है। कई लोक कलाओं का संगम देवभूमि हिमाचल विश्व पटल पर अपनी विशेष पहचान बनाए हुए है।

 महादेव की नगरी छोटी काशी मंडी के अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव में गूंजने वाली देव ध्वनि व शोभायात्रा जैसे उत्सव व देव परंपराएं राज्य की समृद्ध लोक संस्कृति के परिचायक हैं। राज्य की इस संस्कृति के भव्य दीदार के लिए देश, विदेश से लाखों श्रद्धालु यहां पहंुचते हैं। मगर वर्तमान में पहाड़ के शादी समारोह के लोकगीतों, संस्कारों, खानपान व स्थानीय बोलचाल पर भी पश्चिमी संस्कृति का प्रभाव पड़ चुका है। राज्य के कई स्थानीय कलाकार अपने लोकगीतों से पहाड़ी संस्कृति को सहेजने में लगे हैं। कई लेखक पहाड़ी भाषा में लेख व कविताओं के माध्यम से पहाड़ की सांस्कृतिक पहचान को बरकरार रखने में जुटे हैं। वास्तव में शिक्षा तंत्र में अंग्रेजी भाषा के बढ़ते वर्चस्व ने भारत की 22 आधिकारिक भाषाओं में से एक प्राचीन वैदिक भाषा संस्कृत को हाशिए पर धकेल दिया। अंग्रेजी की मोहब्बत ने हमें फिर से पश्चिमी तहजीब का गुलाम बना दिया। अंग्रेजी मानसिकता के बढ़ते खुमार में हम अपनी संस्कृति को भूल रहे हैं, मगर विडंबना यह है कि पश्चिमी देशों में संस्कृत व भारतीय संस्कृति का सम्मोहन बढ़ रहा है। ‘महर्षि पतंजलि’ की विरासत योग करोड़ों लोगों की जीवनशैली का हिस्सा बनकर विश्व पटल पर भारत का प्रतिनिधित्व कर रहा है। सकारात्मक ऊर्जा के लिए मेडिटेशन तथा स्वास्थ्य के लिए भारतीय चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद का सहारा लिया जा रहा है। कोरोना काल में विदेशों में अभिवादन के लिए नमस्ते व प्रणाम की झलक देखने को मिली।

 ब्राजील सहित कई अफ्रीकी देश दुग्ध गुणवत्ता के लिए भारतीय देशी गोधन को पाल रहे हैं, मगर भारत में गौपालन की जगह विदेशी नस्ल के कुत्ते पालने का रुझान बढ़ रहा है। ‘तुलसी पूजन’ के दिवस पर सैंटा क्लॉज का लिबास धारण करना, नववर्ष का आगाज विदेशी, जन्मदिन व शादी की सालगिरह मनाने का तरीका विदेशी, देश का लोकप्रिय खेल क्रिकेट विदेशी, खेलों के कोच विदेशी, महीनों के नाम विदेशी, वेलेंटाइन डे, वृद्धाश्रम व अनाथालयों का बढ़ता प्रचलन आधुनिकता की आंधी में अपनी देवभाषा संस्कृत व संस्कृति को भूलने का परिणाम है। लेकिन श्रीलंका, वियतनाम, इंडोनेशिया, थाईलैंड, कंबोडिया व मॉरीशस सहित कई देशों में भारतीय संस्कृति के पदचिन्ह आज भी मौजूद हैं। जर्मनी व इटली जैसे कई देशों में संस्कृत पढ़ाई जाती है। भारतीय बौद्ध भिक्षु ‘कुमार जीव’ ने चौथी सदी में भारतीय ग्रंथों के ज्ञान को चीनी भाषा में अनुवाद करके चीन में पहंुचा दिया। इंडोनेशिया में 89 प्रतिशत आबादी मुस्लिम तथा थाईलैंड में 95 फीसदी आबादी बौद्ध धर्म को मानती है, मगर दोनों देशों के लोगों ने अपने पूर्वजों की सनातन संस्कृति व संस्कारों का त्याग नहीं किया। दोनों देशों का राष्ट्रीय प्रतीक ‘गरुड़’ पक्षी है। इंडोनेशिया की करंसी के 20 हजार रुपए के नोट पर भगवान ‘गणेश’ की फोटो छपी है। एयरलाइन्स का नाम गरुड़ इंडोनेशिया है तथा सेना ‘इंटेलिजेंस’ का शुभंकर प्रतीक ‘हनुमान’ है।

 थाईलैंड का राष्ट्रीय ग्रंथ ‘रामायण’ है। इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता में महान् धनुर्धर ‘अर्जुन’ की प्रतिमा तथा थाईलैंड की राजधानी बैंकाक के ‘स्वर्णभूमि’ हवाई अड्डे पर स्थापित ‘सागर मंथन’ की विशाल प्रतिमाएं विदेशी भूमि पर भारतीय संस्कृति का गौरव बढ़ाती हैं, मगर दुर्भाग्य से हमारे देश की सड़कों, चौक, चौराहों पर भारतीय संस्कृति को उजाड़ने वाले विदेशी आक्रांताओं के नाम मौजूद हैं। बहरहाल गर्व का विषय है कि मध्यप्रदेश के ‘राजगढ़’ जिले का ‘झिरी’ गांव तथा कर्नाटक के शिमोगा जिले में ‘मुत्तूर’ गांव भारत के दो ऐसे गांव हैं जहां के निवासी आपसी संवाद के लिए संस्कृत भाषा का ही प्रयोग करते हैं। ऋषियों की विरासत कई भाषाओं की जननी संस्कृत को सहेजने वाले इन गांवों में लोगों के घरों की दीवारों पर संस्कृत में श्लोक लिखे हैं। स्मरण रहे प्राचीन से दुनिया को ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ का संदेश व कई विषयों की शिक्षा देने वाले ‘विश्व गुरु’ भारतवर्ष के पावन भूखंड की पहचान हमारे मनीषियों द्वारा रचित वैदिक ग्रंथों में समाहित ज्ञान सम्पदा से रही है। ‘वेदों की ओर लौट चलो’ का नारा देने वाले स्वामी दयानंद सरस्वती तथा सन् 1893 में शिकागो की विश्व धर्म महासभा में भारत की महान् संस्कृति का प्रतिनिधित्व करने वाले वेदांत के प्रखर प्रवक्ता व भारतीय दर्शन के अग्रदूत स्वामी विवेकानंद जैसे संन्यासी योद्धाओं के संदेश को समझना होगा। ऋषि व कृषि की पृष्ठभूमि रहे भारत में भावी पीढि़यों के भविष्य के लिए संस्कृत, संस्कृति व परंपराओं के संरक्षण व अस्तित्व बचाने के प्रयास राष्ट्रीय स्तर पर होने चाहिए।

प्रताप सिंह पटियाल

लेखक बिलासपुर से हैं


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