निर्माण सामग्री के रेट कम करवाए सरकार

By: Apr 27th, 2022 12:06 am

प्रदेश सरकार को मनमाने दामों में भवन निर्माण सामग्री बेचने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करके जनता को राहत पहुंचानी चाहिए…

हिमाचल प्रदेश सरकार बेशक बस किराए में महिलाओं को पचास फीसदी छूट, बिजली बिल में कटौती और ग्रामीण क्षेत्रों में पानी बिल माफ करके वाहवाही लूट रही है, मगर सच बात यह है कि आजकल भवन निर्माण सामग्री सोने के भाव बिक रही है। पक्के मकान बनाने की चाहत रखने वालों की तमाम आशाओं पर मानो पानी फिर गया है। अब अधिकतर ग्रामीण लोगों की यही चाहत रहती है कि उन्हें सरकार से पक्का मकान बनाने की अनुदान राशि मिल जाए। ऐसा प्रतीत होता है कि हिमाचल प्रदेश में उद्योगपतियों पर सरकारों का कोई अंकुश नहीं है। मुख्यमंत्री राहत कोष में चंद सिक्के डालने वाले उद्योगपति क्या इसलिए अपनी मनमर्जी से भवन निर्माण सामग्री के दाम निरंतर बढ़ा रहे हैं? सीमेंट दाम वृद्धि के लिए कांग्रेस भाजपा को दोषी ठहरा रही है और भाजपा ने भी कभी कांग्रेस को कटघरे में खड़ा किया होगा। कुल मिलाकर कहा जाए तो ऐसे उद्योगपतियों पर सरकारों की कोई लगाम नहीं है। वर्ष 2017 से अभी तक सीमेंट के दाम 19 बार बढ़ाए जा चुके हैं। वर्तमान समय में अचानक सीमेंट के दाम करीब चालीस रुपए तक बढ़ाए गए हैं। सीमेंट की एक बोरी 465 रुपए में बेचकर गरीब जनता को दोनों हाथों से लूटा जा रहा है। हिमाचल प्रदेश के पहाड़ काटकर प्रकृति से खिलवाड़ किया जा रहा है। इसकी एवज में प्रदेश की जनता को कचरायुक्त विषैले धूल के कण नसीब हो रहे हैं। ऐसे उद्योगों की चिमनियों से निकलने वाले काले धुएं से वातावरण दूषित हो रहा है। फसलों, बागीचों, फलों, पेड़-पौधों और सब्जियों पर इसका दुष्प्रभाव पड़ रहा है। वहीं लोग भी इसका खामियाजा भुगत रहे हैं। सीमेंट दाम वृद्धि की वजह से आजकल पंचायतों में भ्रष्टाचार के मामले बढ़े हैं। कुछेक पंचायतों के विकास कार्यों में इस्तेमाल होने वाला सीमेंट पंचायत प्रतिनिधियों की आपसी मिलीभगत से लोगों को बेचा जा रहा है। प्रदेश की सैकड़ों पंचायतों का ऑडिट आजकल इसी वजह से शक के दायरे में चल रहा है। भवन निर्माण के लिए लोग अब पंचायत प्रतिनिधियों से सस्ते सीमेंट की गुहार लगा रहे हैं।

 वहीं कुछेक पंचायत प्रतिनिधि इस तरह भ्रष्टाचार करके मालामाल होकर सरकार को चूना लगा रहे हैं। कहने को अवैध खनन पर रोक लगाई जा रही है, मगर खड्डों, नालों की तरफ यदि नजर दौड़ाई जाए तो आजकल वे अवैध खनन के चलते नदियों का रूप धारण करते जा रहे हैं। प्रकृति से खिलवाड़ करके लोग आम जनमानस की जिंदगी भी कुछ इस तरह दांव पर लगा चुके हैं। दो दशक पहले भवन निर्माण के लिए खड्ड, नालों का रेत-बजरी लगाया जाता था। अवैध खनन की वजह से खड्डों में कई फुट गहरे गड्ढे बन जाने से रेत-बजरी मिलना मुश्किल काम बन चुका है। संयुक्त परिवार अब देखने को नहीं मिल रहे। लोग आपसी देखादेखी के चलते महंगे भवन निर्माण किए जाने को पहल दिए जा रहे हैं। बैंकों के कर्जदार बनकर लोग पक्के मकान बनाने में जुटे हैं। पक्के भवन निर्माण में इस्तेमाल होने वाले रेत, बजरी, ईंट और सरिया के दाम में अचानक उछाल आने की वजह से लोगों का बजट चरमरा गया है। भवन निर्माण करने वाले कारीगर अब सिर्फ स्टोन क्रशर का रेत, बजरी लगाए जाने को तवज्जो देते हैं। अवैध खनन से निर्मित रेत-बजरी की ट्राली जनता को कई गुणा महंगे दामों में बेची जा रही है और सरकार ऐसे स्टोन क्रशर मालिकों के खिलाफ कार्रवाई करने में असहाय है। प्रशासन कहने को अवैध खनन करने वालों के खिलाफ कभी-कभार कार्रवाई करके जनता की आंख में धूल झोंकने की कोशिश करता है। प्रशासनिक अधिकारी जब भी अपने कार्यालयों से अवैध खनन करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए निकलते हैं, उससे पहले ही उन तक ऐसी सूचनाएं पहुंचाना भ्रष्ट सिस्टम की गवाही देता है। आश्चर्यजनक यह है कि हिमाचल प्रदेश की खड्डों व नालों का सीना चीरकर तैयार किया जाने वाला रेत-बजरी अन्य राज्यों में सस्ता बेचा जा रहा है और हिमाचल प्रदेश में यह महंगा क्यों है, यह बड़ा सवाल है। अवैध खनन की वजह से भूमि कटाव निरंतर जारी है। प्राकृतिक जल स्रोत सूखने की कगार पर पहुंच गए हैं। करोड़ों रुपए खर्च करके सिंचाई परियोजनाएं, नलकूप, हैंडपंप और वाटर सप्लाई लगाई जा रही है, मगर जमीनों के दोहन के कारण जल स्तर बहुत नीचे गिर रहा है। खड्डों में बहने वाली पानी की कूहलों से किसान फसलों-सब्जियों की सिंचाई करते थे। अवैध खनन के कारण खड्डों में कई फुट गहरे गड्ढे खोदकर पानी के बहाव को मोड़ा जा रहा है।

 अब ऐसे हालात में लोगों को खड्डों से रेत-बजरी सस्ते दामों में मिलना मुश्किल हो चुका है। जेसीबी मशीनों से अवैध खनन करके अब रेत-बजरी तैयार करके सोने के भाव बेची जा रही है। कहने को सरकार ने अवैध खनन अधिकारी खड्डों में तैनात कर रखे हैं, मगर अवैध खनन माफिया के समक्ष ऐसे अधिकारी भी नाकाफी हैं। प्रकृति के संरक्षण के प्रति जनता का जागरूक न होना ही ऐसे माफिया के हौसले बुलंद कर रहा है। उच्च न्यायालय तक के आदेशों को ठेंगा दिखाकर अवैध खनन माफिया खड्डों का सीना चीरकर प्रकृति के साथ खिलवाड़ कर रहा है। यही नहीं, भवन निर्माण में इस्तेमाल की जाने वाली ईंटों के दाम भी अब कई गुणा बढ़ चुके हैं। प्रत्येक उद्योग मालिक का अपना ही रेट होता है। ईंटों के साइज सहित उसे अच्छी तरह न पकाए जाने का खामियाजा अधिकतर लोगों को भुगतना पड़ रहा है। हिमाचल प्रदेश में नियमों को ताक पर रखकर अन्य राज्यों की ईंटें बेचकर प्रदेश सरकार के राजस्व को चूना लगाया जा रहा है। ईंट बनाते समय कारीगर मिट्टी में नमक यह सोचकर मिश्रित करते हैं कि वह टूट न सके। अक्सर कच्ची ईंटें सूखने के बाद कई भागों में टूट जाती हैं जिसका नुकसान उद्योग मालिक को झेलना पड़ता है। नमक से मिश्रित ईंटों से बने मकान में बहुत अधिक समस्याएं अब लोगों को झेलनी पड़ रही हैं। ऐसी ईंटें कुछ वर्षों बाद मकान में सफेद रंग में तबदील होकर खुरना शुरू कर देती हैं। ऐसी ईंटों पर पलस्तर, पेंट तक भी चिपक नहीं पाता है। श्रम विभाग इस तरफ गौर करना भी गवारा नहीं समझता है। वर्तमान में 6 हजार रुपए तक एक हजार ईंट का दाम पहुंच चुका है। ग्रामीणों को इतनी महंगी ईंटें बेची जा रही हैं और सरकारें इस तरफ कोई ध्यान नहीं देती हैं। यूक्रेन-रूस युद्ध की आड़ में हिमाचल प्रदेश में सरिया और स्टील के दाम कई गुणा बढ़ चुके हैं। सरिया के दाम पिछले डेढ़ महीने में कई बार बढ़े जिसके चलते जनता काफी त्रस्त है। प्रदेश सरकार को मनमाने दामों में भवन निर्माण सामग्री बेचने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करके जनता को राहत पहुंचानी चाहिए। सरकार निर्माण सामग्री के दाम कम करवाए।

सुखदेव सिंह

लेखक नूरपुर से हैं


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