हिमाचली युवा संगीत साधकों का दर्द

प्रदेश के इन युवा संगीत साधकों का दर्द समझा जाना चाहिए। इसी बहाने प्रदेश की जनता को भी अपने बच्चों को संगीत जैसे विषय को पढ़ाने का अवसर मिलेगा…

संगीत के बिना जीवन अधूरा है या यूं कहें कि संगीत के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जाती है। संगीत के बिना शिक्षा, शिक्षण संस्थानों, सृष्टि, संस्कृति तथा संस्कारों की परिकल्पना नहीं की जा सकती। यह एक नाद विद्या है जो इस ब्रह्माण्ड के कण-कण में व्याप्त है। भगवान श्री कृष्ण ने भी नारद मुनि के प्रश्न करने पर कहा था- ‘नाहं वसामि वैकुंठे योगिनां हृदये न च। मद्भक्ता यत्र गायन्ति तत्र तिष्ठामि नारद।’ यानी हे देवर्षि नारद! मैं न तो बैकुंठ में निवास करता हूं और न ही योगीजनों के हृदय में मेरा निवास होता है। मैं तो सदैव उन भक्तों के पास रहता हूं जहां मेरे भक्त मेरा गायन करते हैं। निश्चित रूप से संगीत के बिना जीवन कुरूप है। यह व्यक्ति के संवेगों, भावनाओं तथा संवेदनाओं का प्रकटीकरण है। संगीत मनुष्य के संवेगात्मक विकास के लिए एक मुख्य घटक है। प्राचीन समय से वर्तमान शिक्षण पद्धति में संगीत मानवीय तथा व्यक्तित्व निर्माण का एक मुख्य अंग रहा है। संगीत ऋषि आश्रमों, गुरुकुलों तथा राज दरबारों में दी जाने वाली शिक्षा में प्रमुख विषय रहा है। कहा जा सकता है कि संगीत के बिना शिक्षा अपूर्ण एवं अधूरी है क्योंकि संगीत सम्पूर्ण एवं सर्वांगीण मानवीय विकास के लिए अति आवश्यक है। शास्त्रीय संगीत मुगल दरबारों की शोभा रहा है। भारतीय परम्परा में संगीत का शिक्षण, प्रचार तथा प्रसार विभिन्न घरानों में प्रकांड पंडितों तथा दिग्गज उस्तादों द्वारा होता रहा है। स्वतंत्रता के पश्चात संगीत गुरुकुलों तथा घरानों से निकल कर संस्थागत शिक्षण पद्धति में शामिल हुआ। भारतीय तथा अंग्रेजी शिक्षण पद्धति में संगीत अनिवार्य रूप से एक विषय के रूप में पढ़ाया जाता रहा है।

प्रत्येक धर्म, संस्कृति तथा पूजा-पद्धति में संगीत एक मुख्य भूमिका निभाता रहा है। दुनिया में कोई भी मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा तथा गिरजाघर ऐसा नहीं मिलेगा जहां संगीत की ध्वनियां न निकलती हों। ज्ञान, ध्यान, उपासना तथा अपने इष्ट की प्राप्ति के लिए संगीत एक महत्त्वपूर्ण साधन है। संगीत मनुष्य में संवेगों एवं संवेदनाओं का संचार करता है। संगीत मात्र एक विषय नहीं, बल्कि हमारी जीवन पद्धति या जीवन संस्कृति का एक अभिन्न एवं अनिवार्य अंग है। हिमाचल प्रदेश में संगीत विद्यालयों तथा महाविद्यालयों में एक विषय के रूप में पढ़ाया जा रहा है, फिर भी शिक्षा एवं संगीत के दृष्टिकोण से यह नाकाफी है। प्रदेश सरकार तथा शिक्षा विभाग द्वारा संगीत शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए समय-समय पर प्रयास होते रहे हैं। शिक्षा के उद्देश्यों को दृष्टिगत रखते हुए संगीत शिक्षण प्रत्येक विद्यार्थी एवं विद्यालय की आवश्यकता है। प्रदेश में विश्वविद्यालीय स्तर पर संगीत शिक्षा जहां संतोषजनक है, वहीं पर इसमें अभी बहुत सी गायन शैलियों, वाद्य-वादन शैलियों, नृत्य शैलियों का प्रशिक्षण देने के लिए बहुत से विभागों को चलाए जाने की आवश्यकता है। महाविद्यालय स्तर पर वर्तमान में चल रहे लगभग एक सौ चालीस महाविद्यालयों में मात्र सत्तर से पचहत्तर महाविद्यालयों में गायन या वादन या फिर दोनों विधाओं की शिक्षा दी जाती है। यहां पर भी संगीत से संबंधित अन्य विषय एवं शैलियां शिक्षण से गौण हैं। पाठशाला स्तर पर जमा एक एवं जमा दो कक्षाओं में लगभग दो हजार से बाईस सौ पाठशालाओं में लगभग सौ पाठशालाओं में संगीत गायन या वादन विशेष रूप में पढ़ाया जाता है। माध्यमिक तथा उच्च पाठशालाओं में अब संगीत न के बराबर ही है। इस स्तर पर भी अब सेवानिवृत्ति के बाद अध्यापकों के पुराने पदों को डाइंग काडर में डाल दिया गया है। प्राथमिक स्तर पर योग एवं संगीत को अनिवार्य रूप से लागू करने के लिए सरकार तथा विभाग के स्तर पर प्रयास चल रहे हैं।

 आशा है कि निकट भविष्य में प्राथमिक स्तर पर भी संगीत शिक्षण प्रारंभ हो, लेकिन यदि संगीत अप्रशिक्षित जूनियर बेसिक टीचर्स को छोटा-मोटा प्रशिक्षण देकर ही पढ़वाना हो तो संगीत शिक्षा का उद्देश्य पूर्ण नहीं होता। इससे पढ़े लिखे प्रशिक्षित युवाओं के लिए रोज़गार के अवसर कैसे सृजित होंगे? अप्रशिक्षित अध्यापक कैसे संगीत शिक्षण के साथ न्याय कर पाएंगे? ये विचारणीय प्रश्न हैं। आज विद्यार्थियों, अभिभावकों तथा लोगों में संगीत के प्रति आकर्षण तो है, परंतु साधन-संसाधन तथा मार्गदर्शन उपलब्ध नहीं हैं। संगीत के बिना किसी भी शिक्षण संस्थान की कल्पना नहीं की जा सकती। यह तो शिक्षण संस्थान की आत्मा होती है। संगीत शिक्षा प्रत्येक विद्यार्थी एवं शिक्षण संस्थान का अधिकार है। इससे वंचित  कैसे रखा जा सकता है? वर्तमान शिक्षा एवं शिक्षण प्रणाली में नित नए विषयों का समावेश हो रहा है, लेकिन अपनी संस्कृति के धरोहर संगीत जैसे अति आवश्यक विषय की अवहेलना हो रही है। हालांकि राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में संगीत जैसे महत्त्वपूर्ण विषय को बढ़ावा देने की बात की  गई है जो कि अपनी संस्कृति एवं सांस्कृतिक मूल्यों को स्थापित करने में बहुत ही आवश्यक है। हिमाचल के संगीत शिक्षित प्रशिक्षित युवा संगीत छात्र कल्याण संगठन के माध्यम से कई बार प्रदेश के महामहिम राज्यपालों, मुख्यमंत्रियों, शिक्षा मंत्रियों तथा उच्च स्तरीय अधिकारियों से मिल कर अपनी तथा अपने संगीत विषय की वेदना सुनाते रहे हैं। अभी कुछ दिन पूर्व प्रदेश के ये बेरोजगार संगीत शिक्षित युवा एवं प्रतिभाशाली विद्यार्थी प्रदेश के शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह ठाकुर से मिले हैं।

 इस मुलाकात में युवा संगीतज्ञों ने प्रदेश के सभी महाविद्यालयों, शिक्षा महाविद्यालयों तथा पाठशालाओं में संगीत विषय को पढ़ाने तथा रोजगार के अवसर सृजित करने की गुहार लगाई है। उन्होंने प्रदेश में रिक्त पड़े तबला वादकों के पदों को भरने तथा टीजीटी तथा पीजीटी पदों को भरने में बीएड की शर्त को हटाने की मांग की। निश्चित रूप से संगीत का अध्यापक या प्रवक्ता बनने के लिए इस बीएड की शर्त का कोई औचित्य नहीं जब तक टीचिंग इन म्यूजि़क के साथ बीएड प्रशिक्षण उपलब्ध न हो। हिमाचल प्रदेश में बीएड का प्रशिक्षण टीचिंग इन म्यूजि़क के साथ उपलब्ध ही नहीं है। निश्चित रूप से हिमाचल प्रदेश सरकार ने ललित कला महाविद्यालय तथा हाल ही में लता मंगेशकर संगीत महाविद्यालय खोलने की घोषणा कर सराहनीय कार्य किया है, परंतु अभी भी इस दिशा में योजनाबद्ध तरीके से बहुत प्रयास करने की आवश्यकता है। प्रदेश के इन युवा संगीत साधकों का दर्द समझा जाना चाहिए। इसी बहाने प्रदेश की जनता को भी अपने बच्चों को संगीत जैसे महत्त्वपूर्ण विषय को पढ़ाने का अवसर मिलेगा। वर्तमान में हर घर, गली, मोहल्ले, गांव एवं शहर में संगीत के लिए युवा आकर्षित हो रहे हैं। संगीत विषय शिक्षा, संस्कृति तथा संस्कारों को सहेजने तथा संरक्षण की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

प्रो. सुरेश शर्मा

लेखक घुमारवीं से हैं


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