धर्म की आड़ में रुका शिक्षा का प्रसार

मदरसों में शिक्षा के स्तर को ऊंचा उठाने के लिए प्रधानमंत्री ने ऐलान किया है कि वह इन संस्थाओं में पढ़ रहे विद्यार्थियों के एक हाथ में लैपटॉप व दूसरे हाथ में कुरान देखना चाहते हैं। इसी तरह असम सरकार ने कुछ मदरसों को स्कूलों में परिवर्तित करने का निर्णय लिया है…

धर्म का प्रयोग आज धर्म के तथाकथित ठेकेदारों द्वारा देश की एकता व अखंडता को खंडित करने के लिए किया जा रहा है। शिक्षा जिसका शाब्दिक अर्थ है सीखना या सिखाना अर्थात अंदर से आगे बढ़ना है तथा किसी व्यक्ति या बालक की आंतरिक शक्तियों को विकसित करने का नाम ही शिक्षा है। इसी तरह धर्म का शाब्दिक अर्थ है धारण करना या जो सभी को धारण किए हुए हों। हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध व जैन, यह सभी धर्म न होकर संप्रदाय या समुदाय हैं। देश में आज़ादी के दिनों में भी धर्म के ठेकेदारों ने देश को विभाजित करके ही सांस ली तथा अब भी धर्म की आड़ में संविधान का मुखौटा पहन कर यह लोग देश को टुकड़ों-टुकड़ों में बांट कर अपने स्वार्थ को सिद्ध करने में जुटे हुए हैं। सनातन धर्म जो विश्व का सबसे पुराना धर्म है, ने हमेशा सहिष्णुता व भाईचारे का पाठ पढ़ाया तथा सत्यम-शिवम-सुुंदरम को अपना आधार मान कर मानवता की अलख को जगाया। आज हमारे कुछ राजनेता भली-भांति समझकर नसमझ बने हुए हैं तथा जानते हुए भी धार्मिक उन्माद व हिंसा फैलाने से बाज़ नहीं आ रहे। धर्म की आड़ में ही हमारे देश का विभाजन हुआ तथा अब भी धर्म और मज़हब के नाम पर समय समय पर विभिन्न समुदायों में दंगे फसाद होते रहते हैं।

धार्मिक आस्था तो मानव मात्र को शांतिपूर्वक जीवन जीने का सहारा देने के लिए होती है, मगर जब यह आस्था समाज को कष्टदायी साबित होने लगे तो यह अभिशाप का रूप धारण कर लेती है। धार्मिक कट्टरता से या फिर अन्य धर्मों के प्रति ईर्ष्या, असहिष्णुता से सैकड़ों व्यक्ति अकाल मौत का शिकार होते रहे हैं। कश्मीर, हैदराबाद के दंगे, 1980 में मुरादाबाद व 1984 में हिंदू-सिख दंगे, गोधरा कांड, अयोध्या विवाद, दिल्ली में शहीन बाग दंगे इनकी प्रज्वलित उदाहरणें हैं। भारत में कुछ समुदाय भारतीय संविधान में प्रदत अल्पसंख्यकों को दी गई छूट व सुविधाओं का दुरुपयोग करके अपने अधिकारों के नाम पर धार्मिक उन्माद फैलाने की अवांछित कोशिश करते रहते हैं। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 30 के अंतर्गत अल्पसंख्यकों को अपनी मर्जी से अपने धार्मिक संस्थान खोलने व उनमें शिक्षा देने का प्रावधान है, मगर यह प्रावधान उन्हें अपना विकास व शैक्षणिक स्तर ऊंचा करने के लिए रखा गया है न कि साम्प्रदायिकता व धार्मिक कट्टरता फैलाने के लिए। आज तो पूरी दुनिया में धार्मिक कट्टरता को आतंकवाद का रूप दिया जा रहा है। कुछ कुटिल बुद्धि लोग, धर्म मज़हब का सहारा लेकर जनता को गुमराह करना चाहते हैं। आज पूरी दुनिया में आतंकवाद विभिन्न रूपांे में उभर रहा है। अपनी आस्था, विचारों व इच्छाओं को किसी अन्य समुदाय व समाज पर थोपने का अधिकार किसी को नहीं हो सकता तथा ऐसे व्यक्ति या समुदाय मानवता के दुश्मन होते हैं। वे न तो स्वयं जीना चाहते हैं और न ही अन्य को जीने देते हैं। उन्हंे भ्रम है कि धर्म के लिए मरने वाला जन्नत का भागीदार होता है। धर्म के प्रचार द्वारा आतंकवाद फैलाकर दुनिया को अपनी मुठ्ठी में कर लेना तो केवल एक भ्रम है।

 इस संबंध में नोबल पुरस्कार विजेता ‘लेमाह’ का कहना है कि विश्वशांति के लिए सबसे बड़ा खतरा धर्म का दुरुपयोग है। भारत में धर्म और शिक्षा की बात कहें तो सबसे पहले तो यह कहना अतिशयोक्ति  नहीं होगी कि भारत में 16वीं शताब्दी से ही मिशनरी स्कूल यानी ईसाई धर्म मानने वाले अनुयाइयों द्वारा ही आरंभ कर दिए गए थे जो देश की स्वतंत्रता प्राप्ति तक पूरे देश में फैल चुके थे। भारत में कारमल, सैंट जेवियर, सैंट जोसेफ व विश्व कॉटेन नामक ईसाई संस्थाएं हजारों स्कूल भारत में चला रहे हैं। इन संस्थाओं को विदेशों व कई संस्थाओं को भारत सरकार की फंडिंग भी प्राप्त हो रही है। यह संस्थाएं प्रत्यक्ष रूप से कोई धार्मिक कट्टरता नहीं फैला रहीं, मगर अपनी संस्थाआंे का शैक्षणिक स्तर ऊंचा बना कर अमीर व ज्यादा पढे़-लिखे लोगों के बच्चों को अपना आकर्षण बना कर कहीं न कहीं पाश्चात्य शिक्षा के माध्यम से भारतीय संस्कृति के साथ छेड़खानी तो कर ही रही हैं। इसी तरह जब हम इस्लामिक मदरसों की बात करें तो भारत में इन संस्थाओं ने 17वीं शताब्दी से ही अपना कार्य करना शुरू कर दिया था। वर्तमान में भारत मंे लाखों मदरसे, जिसमें से काफी अपनी ही मद्द से तथा अन्य सरकारी मद्द से चल रहे हैं। भारत में मुस्लिम समुदाय की आबादी कुल जनसंख्या गणना (2011) 17 प्रतिशत थी, जबकि केवल 4 प्रतिशत मुस्लिम बच्चे ही मदरसों में शिक्षा ग्रहण कर रहे थे। इन मदरसों का शैक्षणिक स्तर इतना ऊंचा नहीं है। परिणामस्वरूप अमीर व पढे़-लिखे मुसलमानों के बच्चे इन मदरसों से शिक्षा ग्रहण नहीं करते। इन मदरसों की फंडिंग विदेशों से व ‘जगात’ के दान द्वारा की जाती है तथा भारत सरकार भी कुछ मदरसों को अनुदान के रूप में धनराशि जुटाती आ रही है। यह भी पाया गया है कि पिछले कुछ वर्षों से इन मदरसों की संख्या में काफी बढ़ौतरी हुई है तथा धार्मिक कट्टरता के नाम पर बच्चों को जेहादी बनाया जा रहा है।

 हाल ही में कश्मीर घाटी में शोपियां के मदरसे से 13 आतंकवादी पकड़े गए तथा इसी काम में लगे हुए तीन अध्यापकों को सस्पैंड भी किया गया है। ऐसे और भी कई उदाहरण हैं। यहां शैक्षणिक स्तर को ऊंचा उठाने की बजाय केवल कुरान में दी गई आयतें पढ़ाने पर ज्यादा जोर दिया जा रहा है। यही कारण है कि मदरसों से निकले हुए बच्चे न तो डॉक्टर और न ही इंजीनियर व प्रशासनिक अधिकारी बन पाए हैं। वे या तो मजदूर या फिर मौलवी बन कर ही रह जाते है। मदरसों में शिक्षा के स्तर को ऊंचा उठाने के लिए प्रधानमंत्री ने ऐलान किया है कि वह इन संस्थाओं में पढ़ रहे विद्यार्थियों के एक हाथ में लैपटॉप व दूसरे हाथ में कुरान देखना चाहते हैं। इसी तरह असम सरकार ने कुछ मदरसों को स्कूलों में परिवर्तित करने का निर्णय लिया है, ताकि बच्चे धार्मिक कट्टरता की दलगत राजनीति से ऊपर उठ कर एक अच्छे नागरिक बन कर देश को सशक्त व मजबूत बनाने में अपना योगदान दे सकें। अब तो अन्य राज्यों जैसे मध्य प्रदेश व महाराष्ट्र की सरकारें भी इन मदरसों को आधुनिक स्कूलों में परिवर्तित करने जा रही हैं। हिंदू समुदाय से संबंधित शिक्षा से जुडे़ हुए कुछ गुरुकुल स्कूलों या फिर आरएसएस द्वारा चलाए गए स्कूलों की बात करें तो हम स्पष्ट रूप से कह सकते हैं कि इन स्कूलों में उच्च नैतिक आदर्शों व आध्यात्मिक शिक्षा का पठन-पाठन कराने के अतिरिक्त उत्कृष्ट शिक्षा भी प्रदान की जाती है।

राजेंद्र मोहन शर्मा

रिटायर्ड डीआईजी


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App