सेवानिवृत्ति के बाद अपने ही समझते हैं बेगाना

यह बात भी सही है कि सेवा में रहते हुए हर व्यक्ति अपनी आंखों पर अहंकार व अहम की पट्टी इस तरह से बांध लेता है कि उसे अपने स्वार्थ के अलावा और कुछ नहीं दिखाई देता। इनसानियत की सभी हदें लांघ कर वह हैवानियत पर उतारू हो जाता है तथा मानवीय मूल्यों का तिरस्कार कर देता है। उसे पता नहीं कि सेवानिवृत्ति के बाद उससे सभी प्रकार की सुविधाएं जैसे कि घर में काम करने के लिए सरकारी कर्मचारियों की सेवाएं लेना या अन्य कई प्रकार के नौकर-चाकरों के ऊपर बिना वजह से रौब पैदा करना इत्यादि सब कुछ उससे छीन लिया जाता है तथा समय के थपेड़े बजने शुरू हो जाते हैं। कुछ लोगों को जब यह सुविधाएं नहीं मिल पाती तो वे नकारात्मक सोच पाल कर मानसिक उन्माद के मरीज बन जाते हैं तथा उन्हें कई प्रकार की बीमारियां जैसे कि उच्च रक्तचाप, मधुमेह व अन्य कई प्रकार की बीमारियों का शिकार बनना पड़ता है। ऐसे लोग परिस्थितियों से समझौता नहीं कर पाते तथा यह समझने लग पड़ते हैं कि उनके लिए अब दुनिया खत्म हो चुकी है…

वास्तव में इस संसार में सभी प्राणी स्वार्थ की वजह से ही एक-दूसरे के साथ जुड़े होते हैं तथा स्वार्थ निकल जाने के बाद वो लोग अपना मुंह फेर लेते हैं। इस स्वार्थ की दुनिया में अच्छाइयां इस प्रकार लुप्त हो जाती हैं जैसे कि समुद्र में मिलने के बाद नदियों का अस्तित्व समाप्त हो जाता है। यह बात सर्वमान्य है कि पक्षी केवल फलदार पेड़ों पर ही बैठना पसंद करते हैं, क्योंकि सूखे पेड़ों पर उन्हें खाने के लिए कुछ नहीं मिलता। यह बात भी सही है कि सेवा में रहते हुए हर व्यक्ति अपनी आंखों पर अहंकार व अहम की पट्टी इस तरह से बांध लेता है कि उसे अपने स्वार्थ के अलावा और कुछ नहीं दिखाई देता। इनसानियत की सभी हदें लांघ कर वह हैवानियत पर उतारू हो जाता है तथा मानवीय मूल्यों का तिरस्कार कर देता है। उसे पता नहीं कि सेवानिवृत्ति के बाद उससे सभी प्रकार की सुविधाएं जैसे कि घर में काम करने के लिए सरकारी कर्मचारियों की सेवाएं लेना या अन्य कई प्रकार के नौकर-चाकरों के ऊपर बिना वजह से रौब पैदा करना इत्यादि सब कुछ उससे छीन लिया जाता है तथा समय के थपेड़े बजने शुरू हो जाते हैं।

कुछ लोगों को जब यह सुविधाएं नहीं मिल पाती तो वे नकारात्मक सोच पाल कर मानसिक उन्माद के मरीज बन जाते हैं तथा उन्हें कई प्रकार की बीमारियां जैसे कि उच्च रक्तचाप, मधुमेह व अन्य कई प्रकार की बीमारियों का शिकार बनना पड़ता है। ऐसे लोग परिस्थितियों से समझौता नहीं कर पाते तथा यह समझने लग पड़ते हैं कि उनके लिए अब दुनिया समाप्त है। अब न तो मोबाइल की घंटी बजती है और न ही कोई घर में मिलने आता है, चेहरे पर झुर्रियां आनी शुरू हो जाती हैं तथा उसके बच्चे भी उसकी तरफ ज्यादा ध्यान नहीं देते। उसकी भावनात्मक बुद्धिमता कमजोर रहने लगती है तथा वह अपने आप को अकेला महसूस करने लग जाता है। ऐसा भी नहीं है कि सभी सेवानिवृत्त लोगों के साथ ऐसी नकारात्मक सोच वाली घटनाएं घटती हैं, क्योंकि कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जिन्होंने अपने सेवा काल में लोगों की समस्याओं को अपनी समस्या समझकर काम किया होता है तथा अपना नाता धरातल से जुड़ा नहीं किया होता। उन्होंने बड़ी ईमानदारी और पारदर्शिता के साथ लोगों की सेवा की होती है तथा ऐसे कर्मचारियों को दुनिया कभी भी भुलाती नहीं है। सेवानिवृत्ति के जीवन को किस तरह से खुशहाल बनाया जाए, इसके संबंध में निम्नलिखित सुझाव दिए जाते हैंः- 1. कभी भी यह मत सोचा जाए कि आधी से ज्यादा जिंदगी तो गुजर गई है तथा अब तो इधर-उधर घूमकर या फिर टीवी इत्यादि देखकर ही जीवन व्यतीत करना है। 2. जिस तरह पतझड़ के बाद बसंत आता है, उसी तरह हमारी जिंदगी में भी सेवानिवृत्ति के बाद बसंतकाल आता है। अपनी जिंदगी अपने बच्चों पर ही नहीं छोड़ देनी चाहिए क्योंकि बच्चे भी आपको बोझ समझने लग सकते हैं। अब आपको एक सामान्य जीवन व्यतीत करना चाहिए तथा स्थानीय लोगों के बीच में आ-जाकर न केवल अपनी भावनाओं को प्रकट करना चाहिए, बल्कि उन्हें हर प्रकार की सहायता पहुुंचाकर एक नए जीवन की शुरुआत करनी चाहिए। 3. समय का उचित प्रबंधन करना चाहिए तथा अपने स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहकर अपना कुछ समय मेडिटेशन या फिर प्रभु सुमिरन की तरफ लगाना चाहिए। 4. मत सोचें कि अब आप बूढ़े हो चुके हैं, क्योंकि आप केवल एक सरकारी सेवा से निवृत्त हुए हैं तथा अब आपको सिक्के के दूसरे पहलू की तरह अपने नए जीवन की शुरुआत करनी चाहिए। जापान जैसे देशों में सेवानिवृत्त जैसे शब्दों का प्रयोग नहीं किया जाता और शायद यही कारण है कि उन लोगों की जीवन प्रत्याशा सबसे अधिक है। 5. सेवाकाल में सभी लोग अपनी धर्मपत्नी व बच्चों पर बिना वजह के रौब झाड़ते रहते हैं, मगर सेवानिवृत्ति के बाद उन्हें इस दृष्टिकोण को बदलना ही होगा तथा उनके साथ सामंजस्य व समन्वय उत्पन्न करना होगा। 6. आपको टीवी देखने के अतिरिक्त कुछ हल्की गेम्स जैसे चैस, कैरमबोर्ड या फिर अपने स्वास्थ्य के अनुसार बैडमिंटन, टैनिस इत्यादि गेम्स में रुचि बढ़ानी चाहिए। इसके अतिरिक्त घर में अपनी धर्मपत्नी के साथ मिलकर घर का छोटा-मोटा काम जैसे कि झाड़ू-पोचा लगाना, सब्जी काटना या फिर अन्य कोई काम करने में रुचि बढ़ानी चाहिए। किसी कल्याणकारी संस्था का सदस्य बनकर कुछ धनराशि समाज सेवा में लगानी चाहिए।

 इसी तरह वरिष्ठ नागरिकों के साथ मिलकर सुबह और शाम सैर को जाएं तथा उनके साथ अपने दिल की बातें साझा करें और अपने आप को सक्रिय बनाए रखें। इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए हर सेवारत व्यक्ति को यह बात कभी नहीं भूलनी चाहिए कि उसे एक न एक दिन सेवानिवृत्त होना है। एक अच्छे इनसान की तरह बनकर इस तरह से जनमानस की सेवा करें ताकि सेवानिवृत्ति के बाद भी लोग आपको अपनी पलकों पर बैठाए रखें। कबीर जी की ये पंक्तियां आपको हमेशा प्रेरित करती रहनी चाहिएः- ‘कबीरा जब हम पैदा हुए, जग हंसा हम रोए/ऐसी करनी कर चलो, हम हंसे और जग रोए।’

राजेंद्र मोहन शर्मा

रिटायर्ड डीआईजी


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