बढ़ती आर्थिक एवं कृषि अहमियत

आत्मनिर्भर भारत अभियान और मेक इन इंडिया को सफल बनाना होगा। देश में खाद्यान्न उत्पादन और खाद्यान्न निर्यात और अधिक बढ़ाने के रणनीतिक प्रयत्न किए जाने होंगे। अर्थव्यवस्था को डिजिटल करने की रफ्तार तेज करनी होगी…

हाल ही में 26 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हैदराबाद के इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस के छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि जी-20 देशों में भारत सबसे तेज गति से आर्थिक विकास करने वाला देश है और देश में अब तक का सबसे ज्यादा पूंजी निवेश हुआ है। यह कोई छोटी बात नहीं है कि इस समय यूक्रेन संकट के कारण जब अमेरिका और जापान सहित दुनिया की विभिन्न अर्थव्यवस्थाएं मंदी और गिरावट का सामना कर रही हैं, तब संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में वृद्धि चालू वित्त वर्ष 2022-23 में 6.4 फीसदी रहने का अनुमान है और भारत सबसे तेजी से वृद्धि करने वाली प्रमुख अर्थव्यवस्था है। गौरतलब है कि केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने 27 मई को कहा कि देश की अर्थव्यवस्था को सामर्थ्यवान बनाने में देश के कृषि क्षेत्र की अहम भूमिका है। देश में खाद्यान्न की प्रचुरता है तथा गेहूं की भी कोई कमी नहीं है, लेकिन केंद्र ने इस खाद्यान्न की अनियंत्रित विदेशी बिक्री पर अंकुश के लिए गेहूं पर निर्यात प्रतिबंध लगाया है। बाजार में संतुलन बनाए रखना सरकार का फर्ज है। यह बात महत्त्वपूर्ण है कि पड़ोसी, गरीब और अन्य देशों को उनकी खाद्य सुरक्षा जरूरतों को पूरा करने के लिए भारत सरकार के द्वारा गेहूं का निर्यात उपयुक्त रूप से किया जाता रहेगा।

हाल ही में कृषि मंत्रालय के द्वारा प्रस्तुत चालू फसल वर्ष 2021-22 के तीसरे अग्रिम अनुमान के अनुसार, फसल वर्ष 2021-22 में देश में कुल खाद्यान्न उत्पादन रिकॉर्ड 31.45 करोड़ टन होगा जो पिछले वर्ष की तुलना में 37.7 लाख टन अधिक है। यद्यपि इस वर्ष गेहूं का उत्पादन 10.64 करोड़ टन होगा जो कि पिछले साल के मुकाबले 31 लाख टन कम है, लेकिन चावल, मोटे अनाज, दलहन और तिलहन का रिकॉर्ड उत्पादन चमकते हुए दिखाई दे रहा है। 2021-22 के दौरान चावल का कुल उत्पादन 12.97 करोड़ टन रिकॉर्ड अनुमानित है। मोटे अनाज (पोषक तत्वों वाली फसलें) वाली फसलों का उत्पादन 5.07 करोड़ टन और मक्के का उत्पादन रिकार्ड 3.3 करोड़ टन रहेगा। दलहनी फसलों की पैदावार 2.78 करोड़ टन होने का अनुमान है। सरकार ने दालों के उत्पादन का लक्ष्य 2.5 करोड़ टन ही रखा था। तिलहनी फसलों की भी रिकार्ड 3.85 करोड़ टन पैदावार होगी। ऐसे सुकूनदेह कृषि परिदृश्य से जहां महंगाई और गरीबी नियंत्रित रहेगी, वहीं कृषि निर्यात से जरूरतमंद देशों की मदद करते हुए विदेशी मुद्रा की कमाई भी की जा सकेगी। यह कोई छोटी बात नहीं है कि वैश्विक मंदी की चुनौतियों के बीच वित्त वर्ष 2021-22 में  भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) में रिकॉर्डतोड़ बढ़ोतरी हुई है। वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के द्वारा 19 मई को जारी आंकड़ों के मुताबिक भारत ने 2021-22 में 83.57 अरब डॉलर का रिकॉर्ड एफडीआई प्राप्त किया है। पिछले वर्ष 2020-21 में देश में 81.97 अरब डॉलर का एफडीआई हुआ था। एफडीआई के प्रमुख निवेशक देशों के मामले में सिंगापुर 27 फीसदी के साथ शीर्ष पर मौजूद है। इसके बाद अमेरिका और मॉरीशस का नंबर है। अमेरिका 18 फीसदी के साथ दूसरे जबकि मारीशस 16 फीसदी के साथ तीसरे स्थान पर है। कंप्यूटर साफ्टवेयर और हार्डवेयर क्षेत्र में सबसे अधिक एफडीआई प्राप्त हुआ है। इसके बाद सेवा क्षेत्र और ऑटोमोबाइल उद्योग में सबसे अधिक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश दर्ज किया गया है। देश का विदेशी मुद्रा भंडार भी इस समय करीब 600 अरब डॉलर के मजबूत स्तर पर दिखाई दे रहा है। इसमें कोई दो मत नहीं हैं कि भारत मैन्युफैक्चरिंग के क्षेत्र में विदेशी निवेश के लिए एक पसंदीदा देश के रूप में तेजी से उभर रहा है। मैन्युफैक्चरिंग के क्षेत्र में एफडीआई इक्विटी प्रवाह में वर्ष 2021-22 में पिछले वित्त वर्ष 2020-21 के मुकाबले 76 प्रतिशत की भारी भरकम बढ़ोतरी दर्ज की गई है। दुनियाभर में यह माना जा रहा है कि भारत सस्ती लागत के विनिर्माण में चीन को पीछे छोड़ सकता है। भारत में दुनिया में सर्वश्रेष्ठ गुणवत्ता वाले कम लागत के उत्पाद बनाए जा सकेंगे और विनिर्माण उद्योग जितनी अधिक बिक्री करेंगे उससे अर्थव्यवस्था में उतने ही अधिक रोजगार सृजित होंगे।

भारत में श्रम लागत चीन की तुलना में सस्ती है। भारत के पास तकनीकी और पेशेवर प्रतिभाओं की भी कमी नहीं है। केंद्र सरकार ने उद्योग-कारोबार, करारोपण और विभिन्न श्रम कानूनों को सरल बनाया है। इससे भी उद्योग-कारोबार आगे बढ़ रहे हैं। यह बात भी महत्वपूर्ण है कि कोविड-19 के बीच चीन के प्रति बढ़ी हुई वैश्विक नकारात्मकता और वर्ष 2022 में चीन में कोरोना संक्रमण के कारण उद्योग-व्यापार के ठहर जाने से चीन से बाहर निकलते विनिर्माण, निवेश और निर्यात के मौके भारत की ओर आने लगे हैं। इस समय वोकल फार लोकल को बढ़ावा और विदेशी वस्तुओं के उपयोग को कम करने के साथ देश में प्रतिभा, उद्योग, व्यापार और प्रौद्योगिकी को तेजी से प्रोत्साहित किया जा रहा है। दुनिया भारत के उत्पादों की तरफ बड़े भरोसे से देख रही है और भारत को मैन्युफैक्चरिंग हब बनाने में दुनिया के विभिन्न देशों का अच्छा सहयोग और समर्थन मिल रहा है। इसमें कोई दो मत नहीं कि अब विशेष आर्थिक क्षेत्र (सेज) की नई अवधारणा और नए निर्यात प्रोत्साहनों से देश को दुनिया का नया मैन्युफैक्चरिंग हब बनाए जाने और आयात में कमी लाने की संभावनाएं भी उभरकर दिखाई दे रही हैं। अब सेज की नई अवधारणा के तहत सरकार के द्वारा सेज से अंतरराष्ट्रीय बाजार और राष्ट्रीय बाजार के लिए विनिर्माण करने वाले उत्पादकों को विशेष सुविधाओं से नवाजा जाएगा। सेज में खाली जमीन और निर्माण एरिया का इस्तेमाल घरेलू व निर्यात मैन्युफैक्चरिंग के लिए हो सकेगा। यह बात भी महत्वपूर्ण है कि अमेरिका, भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया ने क्वाड के रूप में जिस नई ताकत के उदय का शंखनाद किया है, वह क्वाड भारत के उद्योग-कारोबार के विकास में मील का पत्थर साबित हो सकता है। इससे भारत के मैन्युफैक्चरिंग हब बनने को बड़ा आधार मिलेगा। इसके साथ-साथ भारत उद्योग-कारोबार के विस्तार हेतु जिस तीन आयामी रणनीति पर आगे बढ़ रहा है, उससे भी मैन्युफैक्चरिंग हब की संभावनाएं आगे बढ़ेंगी। ये तीन महत्वपूर्ण आयाम हैं ः एक, चीन के प्रभुत्व वाले व्यापार समझौतों से अलग रहते हुए नार्डिक देशों जैसे संगठनों के व्यापार समझौता का सहभागी बनना।

दो, पाकिस्तान को किनारे करते हुए क्षेत्रीय देशों के संगठन बिम्सटेक (बे ऑफ बंगाल इनीशिएटिव फॉर मल्टी सेक्टोरल टेक्नोलॉजिकल एंड इकोनॉमिक कोऑपरेशन) को प्रभावी बनाना और तीन, मुक्त व्यापार समझौतों (एफटीए) की डगर पर तेजी से आगे बढ़ना। निःसंदेह सामर्थ्यवान भारत से दुनिया की उम्मीदें लगातार बढ़ती जा रही हैं। देश और दुनिया के करोड़ों लोगों की उम्मीदों को पूरा करने के लिए अभी देश को कई बातों पर ध्यान देना होगा। आत्मनिर्भर भारत अभियान और मेक इन इंडिया को सफल बनाना होगा। देश में खाद्यान्न उत्पादन और खाद्यान्न निर्यात और अधिक बढ़ाने के रणनीतिक प्रयत्न किए जाने होंगे। अर्थव्यवस्था को डिजिटल करने की रफ्तार तेज करनी होगी। ऐसे में नया सामर्थ्यवान देश बनने की डगर पर आगे बढ़ते हुए भारत के बारे में 19 मई को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के द्वारा प्रस्तुत की गई वह रिपोर्ट साकार हो सकेगी, जिसमें कहा गया है कि भारत वर्ष 2026-27 तक पांच लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था बन जाएगा। हम उम्मीद करें कि देश के उद्योग कारोबार, कृषि और सर्विस सेक्टर की मजबूती से विशाल आकार वाली अर्थव्यवस्था के बल पर सामर्थ्यवान भारत देश के करोड़ों लोगों को आर्थिक-सामाजिक खुशियां देने के साथ दुनिया के जरूरतमंद देशों की उम्मीदों को पूरा करते हुए भी दिखाई देगा।

डा. जयंतीलाल भंडारी

विख्यात अर्थशास्त्री


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