मेडिकल डिवाइस पार्क की अहमियत

इस पार्क की स्थापना से 5000 करोड़ के निवेश के साथ लगभग 10,000 लोगों को रोज़गार मिलेगा। हिमाचल के पक्ष में इस पार्क की घोषणा होने के कई मायने हैं। यह प्रदेश एक पहाड़ी राज्य है, जहां बड़े भूखंडों की कमी रहती है। उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु व मध्यप्रदेश मैदानी राज्यों की श्रेणी में आते हैं व हिमाचल के मुकाबले इनका आकार बहुत बड़ा है। भारी प्रतिस्पर्धा के बाद हिमाचल जैसे पहाड़ी राज्य को इस महत्त्वपूर्ण उपलब्धि का श्रेय जाना स्वाभाविक है। प्रदेश के युवा रोज़गार की तलाश में अधिकतर बड़े बाहरी राज्यों का रुख करते हैं। इस पार्क की स्थापना से हिमाचल के युवाओं को अपने ही प्रदेश में नौकरी के अच्छे अवसर प्राप्त हो सकेंगे…

‘‘आत्मनिर्भर भारत’’ की अवधारणा कोविड काल में 12 मई 2020 को उत्पन्न हुई, जिसका मुख्य उद्देश्य था कि परमुखापेक्षी न बनकर हर क्षेत्र में देश आत्मनिर्भर बने। भारत की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए यह एक महत्त्वपूर्ण घोषणा थी। भारत में चिकित्सा उपकरणों का बाज़ार लगभग 70 हजार करोड़ रुपए का है, परंतु वर्तमान में लगभग 80 प्रतिशत चिकित्सा उपकरणों को आयात करना पड़ता है। हालांकि हमारा देश विश्व में चिकित्सा उपकरणों की खपत के लिहाज से 20 शीर्ष देशों में शामिल है व एशिया में जापान, चीन व कोरिया के बाद चौथा सबसे बड़ा बाज़ार है। अभी तक भारत उच्च गुणवत्ता व प्रौद्योगिकी वाले चिकित्सा उपकरणों को अमेरिका, सिंगापुर, चीन, जापान व जर्मनी आदि देशों से आयात करता है, जो कि देश तक पहुंचते-पहुंचते काफी महंगे हो जाते हैं और फलस्वरूप चिकित्सा की लागत भी बढ़ जाती है। इन्हीं बातों को ध्यान मंे रखते हुए 21 जुलाई 2020 को भारत सरकार के उर्वरक मंत्रालय के अंतर्गत औषधीय विभाग ने आत्मनिर्भर भारत योजना में चिकित्सा उपकरण पार्कों को बढ़ावा देने वाली योजना की घोषणा की। यह उद्योग ‘‘इंजीनियरिंग व चिकित्सा’’ क्षेत्र के समन्वय का एक अनूठा उदाहरण है, जिसमें चिकित्सा शिक्षा के नियमों व मानदंडों के अनुसार मशीनों को विकसित किया जाता है। इन चिकित्सा उपकरणों में सर्जिकल उपकरण व डायग्नोस्टिक उपकरण जैसे कार्डिएक इमेजिंग, सीटी स्कैन, एक्स-रे, मॉलिक्यूलर इमेजिंग, एमआरआई और हाथ से प्रयोग किए जाने वाले उपकरण शामिल हैं। आसान सी भाषा में यदि समझने का प्रयास करें तो देश में मेडिकल डिवाइस पार्क स्थापित होने से चिकित्सा उपकरणों का उत्पादन सस्ते में हो सकेगा, जिससे इलाज़ का खर्चा भी घटेगा व बहुमूल्य विदेशी मुद्रा की बचत हो सकेगी।

 मेडिकल डिवाइस पार्क योजना के अंतर्गत देश में 4 पार्कों की स्थापना हेतु प्रदेश सरकारों से प्रस्ताव मांगे गए तथा प्रतिस्पर्धा बोली के आधार पर पार्कों की स्वीकृति की जानी निश्चित हुई। प्रति पार्क परियोजना का 90 प्रतिशत अथवा अधिकतम 100 करोड़ रुपए केन्द्र सरकार द्वारा अनुदान के रूप में योजना के अंतर्गत दिया जाना है। दिनांक 15.10.2020 को प्रदेश सरकार ने जिला सोलन के नालागढ़ में 300 एकड़ भूमि पर इस पार्क को स्थापित करने का एक प्रतिस्पर्धी प्रस्ताव ‘‘औषधीय विभाग’’ भारत सरकार को भेजा। नियत मानदंडों के आधार पर आकलन के पश्चात हिमाचल के पक्ष में ‘‘मेडिकल डिवाइस पार्क’’ की घोषणा हुई। फलस्वरूप 349.83 करोड़ रुपए की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट भारत सरकार को भेजी गई, जिसके अंतर्गत 100 करोड़ रुपए अनुदान के रूप में केन्द्र द्वारा दिए जाएंगे व शेष 249.83 करोड़ रुपए राज्य सरकार द्वारा वहन किए जाएंगे। दिनांक 10.02.2022 को केन्द्र द्वारा इस विस्तृत परियोजना रिपोर्ट को स्वीकृत किया गया। हिमाचल के अतिरिक्त उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु व मध्य प्रदेश में भी अन्य 3 पार्कों के निर्माण की मंजूरी प्रदान की गई है। योजना की कार्यावधि 2020-21 से 2024-25 तक निर्धारित की गई है। प्रदेश सरकार ने इस स्वीकृत परियोजना के कार्यान्वयन के लिए हिमाचल प्रदेश राज्य औद्योगिक विकास निगम को अधिकृत किया है। केन्द्र सरकार द्वारा प्रारम्भ में 30 करोड़ रुपए जारी कर दिए गए हैं व प्रदेश सरकार ने भी अपने भाग का 30 प्रतिशत जो कि 74.95 करोड़ बनता है, जमा करवा दिया है। ‘‘राष्ट्रीय औषधीय शिक्षा व अनुसंधान संस्थान’’ मोहाली व चंडीगढ़ के ‘‘स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान एवं अनुसंधान संस्थान’’ के ‘‘बायो-डिज़ायन व इनोवेशन’’ केन्द्र को ‘‘नौलेज सहभागी’’ व ‘‘तकनीकी सहभागी’’ के रूप में शामिल किया गया है। इस पार्क में उद्यमों की स्थापना के लिए 800 करोड़ रुपए से अधिक के समझौता ज्ञापन हस्ताक्षरित हो चुके हैं। उद्योग विभाग द्वारा देश व विदेश में इस पार्क में निवेश व तकनीक प्रदान करने के लिए ‘‘निवेश आउट रीच कार्यक्रम’’ की रूपरेखा बनाई गई है। ‘‘मेडिकल उपकरणों’’ से संबंधित क्षेत्र के अग्रणी सलाहकारों व औद्योगिक संगठनों से लगातार संवाद चल रहा है।

 मूलभूत ढांचे  जैसे बिजली, पानी व सड़कों के विकास के लिए संबंधित विभागों से उद्योग विभाग का लगातार सम्पर्क है। ‘‘भाखड़ा व्यास प्रबंधन बोर्ड’’ चंडीगढ़ से इस पार्क के लिए 10 की एम.एल.डी जलापूर्ति घनौली नहर से करने के लिए प्रस्ताव भेज दिया गया है। इस पार्क की स्थापना से 5000 करोड़ के निवेश के साथ लगभग 10,000 लोगों को रोज़गार मिलेगा। हिमाचल के पक्ष में इस पार्क की घोषणा होने के कई मायने हैं। यह प्रदेश एक पहाड़ी राज्य है, जहां साथ लगते व बड़े भूखंडों की कमी रहती है। उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु व मध्यप्रदेश मैदानी राज्यों की श्रेणी में आते हैं व हिमाचल के मुकाबले इनका आकार बहुत बड़ा है। भारी प्रतिस्पर्धा के बाद हिमाचल जैसे पहाड़ी राज्य को इस महत्त्वपूर्ण उपलब्धि का श्रेय जाना स्वाभाविक है। प्रदेश के युवा रोज़गार की तलाश में अधिकतर बड़े बाहरी राज्यों का रुख करते हैं। इस पार्क की स्थापना से हिमाचल के युवाओं को अपने ही प्रदेश में नौकरी के अच्छे अवसर प्राप्त हो सकेंगे व भारी-भरकम निवेश के कारण प्रदेश की आर्थिकी को निश्चय ही और बल मिलेगा। हिमाचल का पहले ही दवा निर्माण में पूरे देश में ही नहीं, अपितु एशिया महाद्वीप में भी एक महत्त्वपूर्ण स्थान है। अब इस पार्क के आने से महत्त्वपूर्ण मेडिकल उपकरणों का उत्पादन इस कड़ी में सोने पर सुहागा साबित होगा।

संजय शर्मा

लेखक शिमला से हैं


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