कलियुग में भक्ति का लक्ष्य है लोक कल्याण
आज दुनिया में शायद ही ऐसा कोई व्यक्ति हो जिसमें मोह, माया, लोभ, लालच न हो। आज बहुत से लोग ऐसे भी हैं जो कुछ दिन की पूजा करके, व्रत रखकर, धार्मिक स्थानों की यात्रा कर ही यह लालसा रखते हैं कि परमात्मा हमसे जल्दी प्रसन्न हों और हमारी सांसारिक सुखों की सभी मनोकामनाएं पूरी कर दें, लेकिन क्या ऐसा संभव है? शायद नहीं। जो लोग ऐसी भावना रखते हैं, उन्हें सबसे पहले धार्मिक ग्रंथ पढ़ने चाहिएं, सत्संग सुनना चाहिए और यह जानना चाहिए कि सत्ययुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग आदि युगों में ऋषि-मुनियों या अन्य लोगों ने किस तरह और कितने लंबे समय तक भक्ति की थी। कलियुग में परमात्मा को पाने के लिए निस्वार्थ भक्ति बहुत जरूरी है। भक्ति का मकसद लोककल्याण और परोपकार होना चाहिए।
-राजेश कुमार चौहान, सुजानपुर टीहरा
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