प्रदेश के शतरंज वीरों ने चमकाया नाम

विश्व कीर्तिमान बनाने वाले प्रदेश के ये 6 शतरंज कौतुक भी इस दिशा में प्रयत्नशील हैं। क्या ही अच्छा हो कि हमारे प्रदेश से भी कोई ग्रैंड मास्टर बने…

क्या हम लगातार दिन-रात बिना सोए 24 घंटे गुज़ारने की सोच भी सकते हैं? अमूमन नहीं। परंतु जिनमें ज़ज़्बा होता है, मंजिल पाने का अदम्य साहस होता है, मैदान में डटे रहने की जि़द्द होती है और धैर्य बनाए रखने की क्षमता होती है, उनके लिए खेल हो या जीवन की कोई और मुहाज़, वे अपनी मुहाज़ में नए प्रतिमान और कीर्तिमान स्थापित कर जाते हैं। ऐसा ही कर दिखाया है हिमाचल प्रदेश के 6 शतरंज वीरों ने जिन्होंने लगातार सबसे अधिक समय तक शतरंज खेलने का गौरवमयी विश्व कीर्तिमान स्थापित किया है। हिमाचल प्रदेश शतरंज संघ की ओर से आयोजित गत 11 से 14 जून तक चली इस सफल व अनूठी चैस मैराथन का साक्षी बना हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला के छोटे से कस्बे ठियोग के समीप स्थित शिमला हिल्ज़ इंटरनेशनल होटल। यहां इन शतरंज वीरों ने सीसीटीवी की नज़रों तले तथा आधिकारिक प्रत्यक्षदर्शियों व गवाहों के समक्ष लगातार 72 घंटे से अधिक समय तक लगातार शतरंज खेली। इस तरह वर्ल्ड बुक ऑफ रिकार्ड्स लंदन के पन्नों पर इन खिलाडि़यों का नाम दर्ज़ हो गया। निस्संदेह इस उपलब्धि से प्रदेश का ही नहीं, बल्कि भारत का नाम शतरंज के विश्व पटल पर स्वर्णिम अक्षरों में सुशोभित हुआ है। इन 6 शतरंज कौतुकों में हितेश आजाद व संजीव वेक्टा ने ब्लिट्ज प्रारूप में 72 घंटे 3 मिनट तक 663 गेम्ज़ खेली।

 रेपिड प्रारूप में इतने ही लंबे समय तक विक्की आजाद और अनिल शोष्टा ने 187 गेम्ज़ खेली, जबकि अक्षय शोष्टा और दलीप सिंह ने बुलेट प्रारूप में 63 घंटे 6 मिनट तक 663 गेम्ज़ खेली। सनद रहे कि इससे पूर्व भी हितेश आज़ाद ने प्रदेश के ही शतरंज खिलाड़ी हंस राज ठाकुर के साथ 53 घंटे 17 मिनट तक शतरंज खेली थी जो उस समय का विश्व रिकॉर्ड था। इस कीर्तिमान को बाद में लगातार 56 घंटे तक शतरंज खेल कर नार्वे के खिलाडि़यों ने अपने नाम कर लिया था। महत्त्वपूर्ण है कि इन खिलाडि़यों ने यह कीर्तिमान स्थापित करने के बाद कहा कि विश्व रिकार्ड स्थापित करने के पीछे उनका मूल उद्देश्य प्रदेश में शतरंज को लोकप्रिय बनाना व बच्चों तथा युवाओं को इस खेल के प्रति आकर्षित व प्रेरित करना है। बच्चों व युवाओं को शतरंज के प्रति आकर्षित करना इसलिए महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह खेल उनके मानसिक विकास में अहम भूमिका निभा सकता है। शतरंज वो खेल है जिसमें हार के बाद भी खिलाड़ी हारता नहीं और उसमें जीत की ललक बनी रहती है। हमने अक्सर बादशाहों को जंग के मैदान में जीतते हुए देखा या सुना है, परंतु शतरंज के खेल में बादशाहों को प्यादों से मात खाते हुए देखा जा सकता है। यह शह और मात का वो खेल है, जिसमें मात खाने के बाद भी खिलाड़ी जीतने की तमन्ना नहीं छोड़ता। शतरंज की सीधी, आड़ी व तिरछी चालें जीवन की ऊबड़-खाबड़ राहों पर चलने का सबक देती हैं।

 शतरंज, जिसे अंग्रेज़ी में चैस कहते हैं, दो शब्दों के मेल से बना है- शत और रंज। शत यानी सौ और रंज यानी नाराज़गी, निराशा, दुख या अवसाद। इस तरह शतरंज का मतलब हुआ सौ तरह के रंज से पार पाने वाला खेल। इसे पहले ‘चतुरंग’ अर्थात सेना भी कहा जाता था। यह चौकोर बोर्ड पर चौंसठ चौकोर खानों में 6 तरह के बत्तीस मोहरों के साथ खेला जाने वाला खेल है। छोटी उम्र में यदि बच्चों का ध्यान शतरंज जैसे खेल की ओर मोड़ा जाए तो खेल के साथ उनके बौद्धिक व मानसिक विकास को नई दिशा मिल सकती है। वैज्ञानिक ब्लेज़ पास्कल ने कहा है कि शतरंज मनुष्य के दिमाग की व्यायामशाला है। शतरंज खेलते समय मानव मस्तिष्क का दांया और बांया दोनों पक्ष एक साथ काम करते हैं। पहली चाल चलने से पहले तो चैस बोर्ड पर मोहरे सुव्यवस्थित लगते हैं। परंतु प्रत्येक चाल के बाद वैकल्पिक चालों की संख्या बढ़ती चली जाती है। एक अनुमान के अनुसार तीन चालों के बाद लगभग 9 मिलियन, चार चालों के बाद 288 बिलियन और पूरी बाज़ी में औसतन ब्रह्मांड में उपलब्ध इलैक्ट्रॉन से अधिक संभावित विकल्प होते हैं। जैसे इस खेल में मोहरे आड़ी-तिरछी चालें चलते हैं, मस्तिष्क भी उन चालों की तरह विभिन्न संभावनाओं को तेज़ी से तलाशने लगता है। इससे मस्तिष्क की प्रोसैसिंग तीव्र हो जाती है। शतरंज में तरह-तरह की परिस्थितियों से गुजरते व जूझते हुए खिलाड़ी का इंटैलिजैंस कोशैंट बढ़ता जाता है। उसकी तार्किक व वैचारिक शक्ति भी अपेक्षाकृत कहीं अधिक होती है। यह खेल मानव कल्पना, सृजनात्मकता व दूरदर्शिता को मज़बूत करता है। स्मरण शक्ति तेज़ बनी रहती है।

 यह तर्क, विचार, संभावनाओं व समन्वय की गणना का खेल है। लिहाजा यह गणित के विद्यार्थियों के लिए बहुत उपयोगी है। आज के तनाव व अवसाद से भरे जीवन में तो शतरंज और भी महत्त्वपूर्ण है। शतरंज गलतियों के विरुद्ध एक संघर्ष है। हर नई बाज़ी में वह अपनी गलती को सुधारता जाता है। शतरंज से बच्चों को नकारात्मक कार्य में समय नष्ट करने से बचाया जा सकता है। आज विश्व में लगभग 2000 ग्रैंडमास्टर हैं, जिनमें से 74 ग्रैंडमास्टर भारत के हैं। इनमें 15 वर्ष से कम उम्र के खिलाड़ी भी हैं जिन्हें चाइल्ड  प्रॉडिजी कहा जाता है। भारत के 12 वर्ष 7 महीने और 17 दिन के डी. गुकेश, भारतीय मूल के अमेरिकन 12 वर्ष 4 महीने के अभिमन्यू मिश्रा व रूस के 12 वर्ष 7 महीने के सर्गे कर्जेकिन के बाद विश्व के तीसरे नंबर के चाइल्ड प्रोडिजी हंै। उल्लेखनीय है कि 16 वर्षीय भारतीय शतरंज ग्रैंडमास्टर रमेशबाबू प्रगनानंद ने ऑनलाइन रैपिड शतरंज टूर्नामेंट ‘एयरथिंग्स मास्टर्स 2022’ में दुनिया के नंबर एक शतरंज चैंपियन, नॉर्वे के मैग्नस कार्लसन को हराकर इतिहास रचा है। यह बात भी ध्यातव्य है कि कई महिलाएं भी चैस ग्रैंडमास्टर हैं। ज़ाहिर है उपलब्धियां हासिल करने के लिए लिंग, उम्र, कद-काठी नहीं, बल्कि संकल्प व निरंतर अभ्यास मायने रखते हैं। शतरंज यही सिखाता है। हमारे देश में शतरंज की स्थिति अच्छी है, परंतु हिमाचल प्रदेश से अभी कोई चैस ग्रैंड मास्टर नहीं बन पाया है। यह तभी संभव हो पाएगा यदि प्रदेश के बच्चों में बाल्यकाल से ही शतरंज के प्रति रुचि पैदा की जाए। इसके लिए ज़रूरी है हर स्कूल का हर बच्चा शतरंज खेले। रूस में 260 से अधिक ग्रैंड मास्टर हैं क्योंकि वहां शतरंज संस्कृति का अंग है। वहां शादी में दुल्हन को गिफ़्ट में चैस बोर्ड दिया जाता है। चैस विश्व चैंपियन भारतीय ग्रैंड मास्टर विश्वनाथन आनंद का सपना है कि देश के प्रत्येक स्कूल में शतरंज खेला जाए। विश्व कीर्तिमान बनाने वाले प्रदेश के ये 6 शतरंज कौतुक भी इस दिशा में प्रयत्नशील हैं। क्या ही अच्छा हो कि हमारे प्रदेश से भी कोई ग्रैंड मास्टर बने। प्रदेश को शतरंज के इन खिलाडि़यों पर नाज़ है।

जगदीश बाली

लेखक शिमला से हैं


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