जगदीश बाली लेखक शिमला से हैं

ऐसा कहते हैं और सही कहते हैं कि यदि गुरु श्रेष्ठ मिल जाए तो शिष्य श्रेष्ठतम बन सकता है। सचिन तेंदुलकर कहते हैं, ‘मैं खुद को काफी भाग्यशाली समझता हूं कि मुझे आचरेकर सर जैसे निस्वार्थ इनसान से क्रिकेट सीखने का मौका मिला।’ चंद्रगुप्त मौर्य को चाणक्य जैसा गुरु मिला, तो वह नंद वंश को उखाड़ कर मगध का राजा बन गया था। जहां माता-पिता बच्चों का लालन-पालन करते हैं, वहीं अध्यापक उसे तराशने का काम करता है। मैं अध्यापक हूं और जाहिर है छात्र भी रहा हूं। हर वर्ष जब अध्यापक दिवस आता है तो खुद को अध्यापक के रूप में देखता हूं और ऐसा करते-करते नैपथ्य में अपने छात्र जीवन का एक चलचि

यदि उचित समय पर बच्चों को सही राह न दिखाई जाए, तो आगे चल कर वे समस्या बन जाते हैं। मां-बाप को याद रखना चाहिए कि बच्चे की बेहतर परवरिश के लिए डांट व दुलार, फटकार व शाबाशी, थपेड़े व पुचकार की जरूरत होती है, ताकि उसका विकास एकतरफा न हो...

जमीन को बढ़ाना हमारे बस में नहीं है, परंतु हम जनसंख्या को नियंत्रित करने का काम जरूर कर सकते हैं। हम इस पृथ्वी पर किराएदार की तरह हैं। इस पर आने वाली पीढ़ी का भी इतना ही अधिकार है जितना हमारे पूर्वजों का था और हमारा है। क्या हम अपने बच्चों को जनसंख्या से त्रस्त

जहां मां-बाप एक-एक पैसा जोड़ कर अपने बच्चों के भविष्य के सपने देखते हैं, वहीं नशे में डूबे हुए ये बच्चे नशे की एक-एक बूंद से, ड्रग्ज की एक-एक सांस से, खैनी या जर्दे की एक-एक चुटकी से उन सपनों को ध्वस्त करने में लगे हैं। युवाओं को इस गर्त से बचाने के लिए बड़े-बुज़ुर्गों,

कहीं कोई गायक, कोई धावक, कोई नर्तक, कोई संगीतज्ञ, कोई लेखक अपने हुनर को आवाज नहीं दे पाता क्योंकि वे अंकतालिका में ऊपर नहीं आते और जो अंक तालिका में ऊपर नहीं आते, वो फिर कहां आ पाते हैं। मालूम नहीं ऐसे कितने हुनरमंद सितारे अंकों के पर्दे के पीछे छुप जाते हैं और चांद

यदि नारी को अपने हिस्से की धूप चाहिए, अपने हिस्से का आसमां चाहिए, अपने हिस्से का जहां चाहिए, तो उसे हिसारों से बाहर आना होगा। जिस नारी के आंचल में दूध है, उसकी आंखों में आखिर पानी क्यों? पापा के आंगन की मल्लिका आखिर मर्द की दासी कैसे बन जाती है? मर्द द्वारा दिए गए

भूलना नहीं चाहिए कि विभिन्न भाषा व संस्कृतियों के ताने-बाने का मेल भी इसी देश की संस्कृति है। नाम ज़रूर बदलिए, मगर तभी यदि सांस्कृतिक गौरव के लिए अत्यंत आवश्यक है क्योंकि नाम बदलने के अलावा भी ज़माने में करने को बहुत काम है। नाम की अदला-बदली चलती रहेगी, परंतु मैं अपना मज़ा खराब नहीं

वास्तव में फेसबुक को ठेसबुक नहीं बल्कि स्पेसबुक कहा जाना चाहिए। निस्संदेह फेसबुक एक सशक्त माध्यम है। माना सोशल मीडिया की कुछ कमियां हैं, परंतु यह धारणा बना लेना कि फेसबुक पर जो साहित्यिक सृजन हो रहा है वो स्तरहीन है, न्यायसंगत व तर्कसंगत नहीं। गलत नहीं है कि सोशल मीडिया ने साहित्य को नया

संविधान सभा में 299 प्रतिनिधि शामिल थे। संविधान को बनाने से पहले सभा के सदस्यों ने विभिन्न देशों के संविधानों का अध्ययन किया। अंतत: 10 देशों के संविधान के विभिन्न तत्वों को इसमें शामिल किया गया। यह 2 वर्ष, 11 महीने और 18 दिन में बन कर तैयार हुआ… किसी भी राष्ट्र की कानून की

खबरों की प्रस्तुति ऐसी हो कि खबर वाला न लेफ्ट का लगे न राइट का लगे, बस वह ख़बर का लगे। यदि मीडिया का रवैया पूर्वाग्रहों से ग्रस्त व गैर जि़म्मेदाराना रहेगा, तो देश सच का पता पूछता रहेगा और सच लापता रहेगा… मीडिया की ताकत पर अकबर इलाहाबादी कहते हैं, ‘खीचों न कमानों को