महाराजा रणजीत-गुलाब सिंह का योगदान

गुलाब सिंह लाहौर दरबार के इस पतन और भित्तरघात पर आंसू बहा रहे थे। लेकिन वे जानते थे कि यह वक्त रोने का नहीं है। सारा पश्चिमोत्तर भारत या सप्त सिन्धु ब्रिटिश इंडिया का हिस्सा बनने जा रहा है। यहां भी यूनियन जैक लहराने लगेगा। पहाड़ में कहावत है, ‘सारी जावत देख के आधी की सुधि लेय’। गुलाब सिंह कूटनीति में भी निष्णात थे। अंग्रेज़ के हाथ में जाने से जितना इलाक़ा बचाया जा सकता है, उतना बचा लेने के प्रयास करने चाहिए। 1846 की अमृतसर संधि इसी कूटनीति का परिणाम था। पूरा जम्मू, कश्मीर, लद्दाख, गिलगित और बलतीस्तान अंग्रेज़ों के हाथ में जाने से बच गया और जम्मू-कश्मीर के नाम से एक नई रियासत का उदय हुआ…

16 जून को महाराजा रणजीत सिंह ने अखनूर में गुलाब सिंह का राज्याभिषेक किया था। सप्त सिन्धु क्षेत्र में मुगल-अफग़ान शासन का अंत करने और इस पूरे क्षेत्र को एक राजनीतिक ईकाई के रूप में व्यवस्थित करने में जिनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है, उनमें महाराजा रणजीत सिंह और महाराजा गुलाब सिंह का नाम सर्वोपरि है। शुरुआती दौर में महाराजा संसार चंद ने भी इस दिशा में प्रयास किए थे, लेकिन उन्हें ज्यादा सफलता नहीं मिली और वे कांगड़ा छोड़ कर सुजानपुर में सीमित हो गए थे। जिन दिनों महाराजा रणजीत सिंह ने पूरे पश्चिमोत्तर भारत को राजनीतिक लिहाज़ से एक करने के प्रयास किए, उन दिनों इस क्षेत्र में बारह से भी ज्यादा स्वतंत्र मिसलों के शासक शासन कर रहे थे। अनेक स्थानों पर छोटे-छोटे राजा राज करते थे। बड़े भूभाग पर मुग़लों-अफग़ानों का ही विदेशी शासन स्थापित हो चुका था। ऐसे अवसर पर एकमात्र एक मिसल के मालिक रणजीत सिंह की दूरदृष्टि ही कही जाएगी कि उन्होंने स्थान-स्थान पर बिखरी इस भारतीय शक्ति को एक स्थान पर और एक केसरिया झंडे के नीचे एकजुट करने का सफल प्रयास किया। उन्होंने अल्पकाल में ही सभी मिसलों को समाप्त कर एक केन्द्रीकृत राज्य की स्थापना की। इसमें रणजीत के सबसे बड़े सहयोगी सप्तसिन्धु क्षेत्र के ही एक दूसरे वीर महाराजा गुलाब सिंह हुए। गुलाब सिंह भी दूरदृष्टि रखते थे। उन्होंने अनुमान लगा लिया था कि सप्त सिन्धु में एक नई शक्ति का उदय हो रहा है जिसमें इस क्षेत्र से विदेशी शासन को समाप्त करने की क्षमता है।

 इसलिए वे जम्मू से रणजीत सिंह से मिलने लाहौर की ओर चल पड़े। इसे भारत का भाग्य ही कहना होगा कि दोनों वीरों ने एक-दूसरे की क्षमताओं को पहचाना और मिल कर काम करने का निर्णय किया। यहीं से पश्चिमोत्तर भारत के इतिहास में एक नई पटकथा की शुरुआत हुई। लेकिन अभियान की सफलता के लिए जरूरी था कि सबसे पहले इस क्षेत्र के छोटे-छोटे भारतीय क्षत्रपों को एक छत के नीचे लाया जाए। जम्मू-लद्दाख-कश्मीर में यह काम गुलाब सिंह ने किया। गुलाब सिंह की इसी योग्यता, बहादुरी  और दूरदृष्टि को देखते हुए महाराजा रणजीत सिंह ने स्वयं अखनूर के स्थान पर गुलाब सिंह की जम्मू के राजा के तौर पर ताजपोशी की। उसके बाद गुलाब सिंह ने मध्य एशिया की सीमा से लगते सभी भारतीय क्षेत्रों को एक लड़ी में पिरोने का अभियान शुरू किया। लद्दाख, गिलगित और बल्तीस्थान को मिला कर सारे क्षेत्र को एकीकृत किया गया। इन एकीकरण अभियानों में जरनैल ज़ोरावर सिंह का ऐतिहासिक योगदान रहा। उधर महाराजा रणजीत सिंह ने मुलतान, पेशावर तक अपना झंडा फहरा दिया।

 इन अभियानों में सेनापति हरि सिंह नलवा का योगदान अविस्मरणीय रहेगा। कहना चाहिए कि महाराजा रणजीत सिंह ने अफग़ानिस्तान की सीमा तक की सीमा सुरक्षित कर दी। कश्मीर घाटी अभी भी अफग़ानों के कब्जे में थी। रणजीत सिंह की सेना ने कई अभियानों के बाद अंततः उसे स्वतंत्र करवा ही लिया। कुल मिला कर कहा जा सकता है कि रणजीत सिंह और गुलाब सिंह के इन संयुक्त प्रयासों के चलते इक्का-दुक्का बलोच क्षेत्रों को छोड़ कर पूरा पश्चिमोत्तर भारत या सप्तसिन्धु क्षेत्र एक सशक्त शासकीय व्यवस्था के अंतर्गत आ गया था। यह राज्य इतना शक्तिशाली था कि अंग्रेज़ सरकार जिसने हिन्दुस्तान के बाक़ी हिस्सों पर कब्जा कर लिया था, इस राज्य पर कब्जा करने से घबराती थी। उनकी हिम्मत नहीं थी कि इस राज्य को भी भारत के शेष राज्यों की तरह जीत कर अपने राज्य में शामिल कर लें। लेकिन इसे समय का फेर ही कहना होगा कि महाराजा रणजीत सिंह की मौत के बाद इस राज्य को संभालने की बात दो बहुत दूर की बात होगी, लाहौर दरबार में ही सत्ता पर कब्जा कर लेने को लेकर होड़ लगने लगी। अंग्रेज़ सरकार तो इसी समय की प्रतीक्षा कर रही थी। उनके अपने एजेंट पहले से ही लाहौर दरबार में बैठे थे। लाहौर दरबार में सत्ता को लेकर जो खानाजंगी शुरू हुई, उसमें अनेक वरिष्ठ सेनापति मार दिए गए। गुलाब सिंह के अपने दो भाई इस घरेलू कलह के चलते मारे गए। एक बार तो लाहौर दरबार के षड्यंत्रकारियों ने गुलाब सिंह को भी बुला कर मारने का षड्यंत्र रच लिया था। यह उनका भाग्य ही कहा जाना चाहिए कि उन्हें इस षड्यंत्र का आभास हो गया था और वे बच गए। अंततः वही हुआ जिसका गुलाब सिंह को डर था। अनुकूल समय देख कर अंग्रेज़ी सेना ने पंजाब पर हमला कर दिया। गुलाब सिंह जानते थे कि लाहौर की सेना के ही अनेक लोग अंग्रेज़ों से मिले हुए हैं। शाह मोहम्मद अपने जंगनामा में इसको स्पष्ट करता हुआ लिखता है ः ‘अरजी लिखी फिरंगी नू कुंज गोशे।

पहलां आपनी सुख अनंद वारी।

तेरे वल्ल मैं फौज़ां नूं तोरनी हां,

खट्टे करीं तूं इन्हां दे दन्द वारी।

पहलां आपना ज़ोर तूं सभ्भ लावीं,

पिच्छों करांगी ख़रच मैं बन्द वारी।

शाह मुहंमदा फेर ना आउन मुड़ के,

मैनूं एतनी बात पसंद वारी।’

रानी जि़न्दा जिस पर शासन की जि़म्मेदारी थी, वह स्वयं ही अंग्रेज़ों से मिली हुई थी। उसी की इच्छा थी कि पंजाब की सेना पराजित हो जाए और वह स्वयं अंग्रेज़ी फौज की सहायता से पंजाब पर राज करे। शाह मोहम्मद ही जि़क्र करता है कि रानी जि़न्दा अंग्रेज़ सेनापति को लिखती है कि बची-खुची पंजाब सेना को समाप्त कर लाहौर पर कब्जा कर लो ः

‘लिख्या तुरत पैग़ाम रानी जिन्द कौरांए

कोई तुसां ने देर नहीं लावनी जी।

रहन्दी फौज दा करो इलाज कोई,

काबू तुसां बगैर ना आवनी जी।

मेरी जान दे अब हो तुसीं राखे

पायो विच लाहौर दे छावनी जी।

शाह मुहंमदा अज्ज मैं ल्या बदला,

अग्गे होर की रब्ब नूं भावनी जी।’

गुलाब सिंह लाहौर दरबार के इस पतन और भित्तरघात पर आंसू बहा रहे थे। लेकिन वे जानते थे कि यह वक्त रोने का नहीं है। सारा पश्चिमोत्तर भारत या सप्त सिन्धु ब्रिटिश इंडिया का हिस्सा बनने जा रहा है। यहां भी यूनियन जैक लहराने लगेगा। पहाड़ में कहावत है, ‘सारी जावत देख के आधी की सुधि लेय’। गुलाब सिंह कूटनीति में भी निष्णात थे। अंग्रेज़ के हाथ में जाने से जितना इलाक़ा बचाया जा सकता है, उतना बचा लेने के प्रयास करने चाहिए। 1846 की अमृतसर संधि इसी कूटनीति का परिणाम था। पूरा जम्मू, कश्मीर, लद्दाख, गिलगित और बलतीस्तान अंग्रेज़ों के हाथ में जाने से बच गया और जम्मू-कश्मीर के नाम से एक नई रियासत का उदय हुआ। यदि गुलाब सिंह 1846 की संधि करने में सफल न होते तो आज यह सारा इलाक़ा पाकिस्तान का हिस्सा होता। मध्य एशिया की सीमा से लगते इस इलाके को रणजीत सिंह और गुलाब सिंह तो सुरक्षित रखने में कामयाब रहे, लेकिन यह देश का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि स्वतंत्र भारत की सरकार इसे सुरक्षित नहीं रख सकी और गिलगित व बलतीस्तान पर पाकिस्तान का कब्जा करवा दिया।

कुलदीप चंद अग्निहोत्री

वरिष्ठ स्तंभकार

ईमेल : kuldeepagnihotri@gmail.com


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