छात्रों की फिटनेस जरूरी

हमारे छात्रों के लिए, हमारे देश के लिए, हमारे उम्दा भविष्य के लिए ये बिंदु बड़े महत्त्वपूर्ण हैं और इन्हें सम्पूर्ण शिक्षा की प्रक्रिया का हिस्सा होना चाहिए। यूजीसी की शारीरिक फिटनेस-मानसिक स्वास्थ्य की पहल का स्वागत होना चाहिए और हम यह समझ लें कि मानसिक स्वास्थ्य का बिंदु सभी के लिए जरूरी है…

अब देश की सभी यूनिवर्सिटी और एजुकेशनल इंस्टीट्यूट्स में छात्रों की फिजिकल और मेंटल फिटनेस का ध्यान रखना अनिवार्य होगा। हिमाचल प्रदेश की तो सभी यूनिवर्सिटी और एजुकेशनल इंस्टीट्यूट्स में भी अब छात्रों की फिजिकल और मेंटल फिटनेस का ध्यान रखना जरूरी कर दिया गया है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की उच्चस्तरीय कमेटी ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के तहत शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को लेकर गाइडलाइंस तैयार कर ली है। इसे जल्द ही जारी कर दिया जाएगा। इसके मुताबिक 2022-23 शैक्षणिक सत्र से विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में स्पोर्ट्स अनिवार्य विषय होगा। इसमें छात्रों को स्पोर्ट्स एक्टिविटी से जोड़ा जाएगा। इंस्टीट्यूट में अब फिजिकल, मेंटल हेल्थ काउंसलर और हेल्थ एक्सपर्ट भी नियुक्त करने की बाध्यता होगी। यूजीसी की हाई लेवल कमेटी के मुताबिक कोविड काल के दौरान हर किसी ने फिजिकल और मेंटल फिटनेस के साथ-साथ भावनात्मक पहलुओं की जरूरत पर भी ध्यान दिया। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में इस विषय को भी मेंशन किया गया था। इसी के आधार पर इसे तैयार किया गया है। जाहिर है स्कूल में स्पोर्ट्स सब्जेक्ट अनिवार्य तो रहता है, मगर हायर एजुकेशनल इंस्टीट्यूट में यह महज विकल्प के तौर पर होता है। यूजीसी ने इससे पहले 2019 में एजुकेशनल इंस्टीट्यूट्स के साथ फिटनेस प्लान साझा किया था। इसमें सभी यूनिवर्सिटी और कॉलेजों को स्कूलों की ही तरह एक घंटे का स्पोर्ट्स पीरियड रखना अनिवार्य कर दिया गया था, जिसमें स्पोर्ट्स एक्टिविटी, योगा, साइकिलिंग, डांस, पारंपरिक विधा जैसे विकल्पों के जरिए फिटनेस पर जोर दिया गया है। इन संस्थानों के कैंपस में वॉकिंग ट्रैक भी बनेंगे जिसका मकसद कैंपस में स्टूडेंट्स को ज्यादा से ज्यादा पैदल चलने की आदत डाली जा सके, जिससे उनकी फिटनेस को भी बढ़ावा मिलेगा। इस गाइडलाइन का मकसद स्टूडेंट्स में शारीरिक, स्पोर्ट्स एक्टिविटी और सकारात्मक सोच को बढ़ावा देना है। यह फैसला स्टूडेंट्स के लिए स्ट्रेस, प्रेशर और मनोवैज्ञानिक परेशानियों को दूर करने में मददगार होगा।

यूजीसी के मुताबिक सभी यूनिवर्सिटीज और कॉलेजों में स्टूडेंट्स सर्विस सेंटर बनाने होंगे। टेलीफोनिक या ऑनलाइन मोड के जरिए काउंसिलिंग भी करवाई जाएगी। इसके साथ ही स्टूडेंट्स को नैतिक जिम्मेदारी जैसे महिलाओं, पिछड़े बच्चों की मदद करना भी सिखाया जाएगा। यह बहुत अच्छा कदम है और सभी राज्य सरकारों को इसे कॉलेज और विश्वविद्यालयों में लागू करवाना चाहिए। आज शारीरिक फिटनेस, मानसिक स्वास्थ्य सभी छात्रों के लिए जरूरी आयाम है और इसमें इससे जुड़े हमारे शिक्षकों की एक प्रभावी भूमिका है। शिक्षा संस्थानों में विद्यार्थियों के मानसिक स्वास्थ्य को स्वस्थ रखने का दायित्व भी संबंधित शिक्षकों पर होता है। इससे जुड़े एक उत्कृष्ट शिक्षक को चाहिए कि वह प्रत्येक छात्र के समुचित विकास पर ध्यान रखे। उन्हें चाहिए कि वे छात्रों की वास्तविक शारीरिक और मानसिक स्थिति का ज्ञान प्राप्त करें और उनके मानसिक स्वास्थ्य को ठीक रखने के लिए तत्पर रहें। मानसिक दबाव के युग में छात्रों का मानसिक स्वास्थ्य कम महत्त्वपूर्ण नहीं है। मानसिक स्वास्थ्य के संबंध में विद्वान लेखक फ्रेंडसन  ने कहा है कि ‘मानसिक स्वास्थ्य का विकास शिक्षा का एक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य और प्रभावशाली अधिगम की एक अनिवार्य शर्त दोनों हैं।’ आज छात्रों के प्रति शिक्षकों का व्यवहार नम्र, शिष्ट और सहानुभूतिपूर्ण हो। पक्षपात या भेदभाव किए बिना उसे कक्षा एवं संस्था के समस्त छात्रों के साथ समान और प्रेमपूर्ण व्यवहार करना चाहिए। इससे उनके मानसिक स्वास्थ्य पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है। शिक्षा संसथान में अनुशासन की स्थापना में वहां काम कर रहे शिक्षकों का विशेष योगदान होता है। हमें चाहिए कि कक्षा तथा संस्थान का अनुशासन भय, दंड, दमन और कठोरता पर आधारित न होकर प्रजातांत्रिक सिद्धांतों स्वतंत्रता, समानता, भ्रातृत्व व न्याय पर आधारित होना चाहिए। हमें छात्रों में स्वअनुशासन, आत्म-अनुशासन की भावना का विकास करने के लिए स्वानुशासन, प्रभावात्मक अनुशासन तथा अनुकरण द्वारा अनुशासन को प्रोत्साहित करना चाहिए।

 इसके साथ-साथ छात्रों को उत्तरदायित्वपूर्ण कार्य सौंपकर विद्यालय के प्रशासन में सहयोगी एवं भागीदार बनाना चाहिए। ऐसा करने से छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य को कठोर अनुशासन के दुष्प्रभाव से बचाया जा सकता है। इसी तरह से शिक्षण विधियों का छात्र के मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ता है। हमारी शिक्षण विधियां ज्यादातर रवायती भी हैं। इनमें और नयापन लाने की दरकार है। ठीक और सटीक शिक्षण विधियों के अभाव में छात्रों में अनेक प्रकार की मानसिक विसंगतियां, बुराइयां, कुंठा तथा बीमारियां घर कर लेती हैं जो उनके भावी जीवन को नुकसान पहुंचाती हैं। कक्षा के अलग-अलग मानसिक क्षमता के छात्रों को दृष्टिगत रखते हुए उपयुक्त शिक्षण विधियों का प्रयोग करना चाहिए। क्या ऐसा किया जा रहा है, इसकी पड़ताल की जरूरत है। अक्सर स्कूल छात्र और उनके अभिभावक कहते हैं कि कुछ शिक्षक छात्रों को इतना अधिक होम वर्क दे देते हैं कि उसे समय से पूर्ण करना उनकी सामर्थ्य से परे होता है। इससे पेरेंट्स भी मानसिक दबाव में आ जाते हैं। छात्रों द्वारा होम वर्क को समय से पूर्ण न कर पाने के कारण वे दंड का विचार करके भय व चिंताग्रस्त हो जाते हैं। इससे उनमें मानसिक तनाव उत्पन्न होने लगता है। अतः ऐसे शिक्षकों को चाहिए कि छात्रों को केवल उतना ही होम वर्क दें जिसे वे सरलता से बिना किसी मानसिक तनाव के पूर्ण कर सकें। इसके अलावा छात्रों को जरूरत से ज्यादा सब्जेक्ट नहीं पढ़ाए जाने चाहिए। ज्यादा सब्जेक्ट पढ़ाए जाने से ‘जैक ऑफ आल ट्रेड बट मास्टर ऑफ नथिंग’ वाली स्थिति बन रही है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू करने में राज्यों द्वारा देरी होने से स्थिति ठीक होने में भी देरी हो रही है। इसके साथ ही परीक्षा प्रणाली को तनावमुक्त बनाने के लिए इसके एक जबरदस्त ओवरहाल की और एकसारता की जरूरत है।

 हमें चाहिए कि सभी विद्यालय शिक्षण के साथ-साथ अन्य पाठ्य सहगामी क्रियाओं जैसे खेलकूद, स्काउटिंग, योग, व्यायाम, प्रश्न प्रतियोगिताएं, अभिनय, गायन, वादन, संगीत, नृत्य, सांस्कृतिक कार्यक्रम, स्वच्छता कार्यक्रम इत्यादि का आयोजन नियमित कार्ययोजना बनाकर अवश्य करें। ऐसा करने से बालक इनमें से किसी न किसी क्रिया को माध्यम बनाकर अपने संवेगों, इच्छाओं, मूल प्रवृत्तियों, विशिष्ट रुचियों, जन्मजात क्षमताओं इत्यादि को अभिव्यक्त करते हुए अपने मानसिक स्वास्थ्य को स्वस्थ रखने में सफल सिद्ध होगा। सभी स्कूल अन्य शैक्षिक गतिविधियों के साथ-साथ निर्देशन एवं परामर्श की भी व्यवस्था करें। छात्रों की विषयगत समस्याओं का निर्देशन एवं निदान, भविष्य में पाठ्यक्रम/विषयों का चयन, कैरियर काउंसिलिंग, व्यावसायिक निर्देशन एवं परामर्श को कुशलतापूर्वक प्रदान कर छात्रों को अवसाद या मानसिक अस्वस्थता से बचा सकता है। स्कूल का छात्र हो या कॉलेज का छात्र, देश के हर छात्र का स्वास्थ्य उस स्थिति का नाम है जब एक छात्र अच्छी तरह से शारीरिक और मानसिक रूप से फिट हो और आध्यात्मिक रूप से, नैतिक रूप से हमारा छात्र जागृत हो। हमारे छात्रों के लिए, हमारे देश के लिए, हमारे उम्दा भविष्य के लिए ये बिंदु बड़े महत्त्वपूर्ण हैं और इन्हें सम्पूर्ण शिक्षा की प्रक्रिया का हिस्सा होना चाहिए। यूजीसी की शारीरिक फिटनेस और मानसिक स्वास्थ्य की पहल का स्वागत किया जाना चाहिए और हम यह समझ लें कि मानसिक स्वास्थ्य का बिंदु न केवल कॉलेज व विश्वविद्यालयों के लिए महत्त्वपूर्ण है, बल्कि स्कूल के छात्रों के लिए भी बराबरी का महत्त्व रखता है।

डा. वरिंदर भाटिया

कालेज प्रिंसीपल

ईमेल : hellobhatiaji@gmail.com


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