चार मिले, चौंसठ खिले…

By: Jul 7th, 2022 12:08 am

यह एक मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि जब कोई हमें पसंद करने लगता है तो यह स्वाभाविक है कि हम भी उसे पसंद करने लग जाते हैं। कोई जुगत नहीं भिड़ानी पड़ती, कोई प्रयत्न नहीं करना पड़ता, बस हो जाता है। हां, जुगत तब भिड़ानी पड़ती है जब रिश्ता बनाना हो, जब यह सुनिश्चित करना हो कि सामने वाला हमें पसंद करे। तब हमें फराख दिल होना पड़ता है, तब हमें खुशमिज़ाज होना पड़ता है, तब हमें प्रयत्नपूर्वक कुछ ऐसा करना पड़ता है कि सामने वाला हमें पसंद करे, तब हमें यह करना पड़ता है कि हम सामने वाले के काम आएं। यह हो गया तो बाकी सब खुद सध गया। जड़ को पानी मिल गया तो तना, पत्ते, फूल और फल खुद-ब-खुद बन जाएंगे। उनके लिए अलग से मेहनत की जरूरत नहीं है। यही रिश्तों के साथ भी होता है। आप किसी के काम आइए, आप किसी को रास्ता दिखाइए, आप किसी की मुसीबत का हल ढूंढ़ कर दीजिए और वो आपका हो गया। जो आपका मुरीद हो गया, वो आपको भी खुद-ब-खुद अच्छा लगने लगेगा। यह छोटा-सा फार्मूला है रिश्ते बनाने का…

संयोग अक्सर होते हैं, होते ही रहते हैं। संयोग ऐसा बना कि मेरे कालेज के समय के चार मित्रों सुभाष, रमेश, अभिषेक और नंद लाल का अचानक चंडीगढ़ आने का कार्यक्रम बना तो मैंने उनसे निवेदन किया कि वे सब हमारे यहां ही ठहरें। पुराने मित्रों का मिलना तो खुशी का कारण होता ही है। सभी मित्र परिवार सहित पधारे थे, सो हम पांच परिवार इकट्ठे हो गए तो धमाल तो होना ही था। पुरानी यादें, पुरानी बातें, बच्चों की उपलब्धियां, सब पर खूब चर्चा हुई। खुशी के इस माहौल में हमारे मित्र सुभाष जी ने एक कविता सुनाई और उसका अर्थ बताया तो खुशियां मानो चौगुनी हो गईं। सुभाष जी ने फरमाया- ‘चार मिले चौंसठ खिले, बीस रहे कर जोड़, प्रेमी सज्जन दो मिले, खिल गए सात करोड़’। हमें एकदम से तो कुछ समझ नहीं आया, पर जब उन्होंने इसका खुलासा भी किया तो मज़ा आ गया। यह कोई रहस्य नहीं है। ‘चार मिले’- मतलब जब भी कोई दो मित्र मिलते हैं तो वे एक-दूसरे को देखते हैं जिसके कारण सबसे पहले आपस में दोनों की आंखें मिलती हैं, इसलिए कहा, ‘चार मिले’, फिर कहा, ‘चौंसठ खिले’- यानी, दोनों के बत्तीस-बत्तीस दांत, कुल मिलाकर चौंसठ हो गए, दोनों के चेहरे पर मुस्कान आ गई, इस तरह ‘चार मिले, चौंसठ खिले हुआ’। अब आगे है ः ‘बीस रहे कर जोड़’- दोनों हाथों की दस उंगलियां, दोनों व्यक्तियों की बीस हुईं, बीसों मिलकर ही एक-दूसरे को प्रणाम की मुद्रा में हाथ उठते हैं! ‘प्रेमी सज्जन दो मिले’- जब दो आत्मीय जन मिलें, दोस्त मिलें, रिश्तेदार मिलें, ऐसे लोग मिलें जिनमें आपस में प्रेम हो, विश्वास हो, एक-दूसरे का आदर हो- यह बड़े रहस्य की बात है- क्योंकि मिलने वालों में आत्मीयता नहीं हुई तो न ‘चौंसठ खिलेंगे’ और न ‘बीस रहे कर जोड़ होगा’। वैसे तो शरीर में रोम की गिनती करना लगभग असंभव है, लेकिन मोटा-मोटा साढ़े तीन करोड़ माने जाते हैं। इस तरह इस कविता का अंतिम भाग- ‘प्रेमी सज्जन दो मिले, खिल गए सात करोड़’ का अर्थ हुआ कि जब हमारा कोई प्रिय व्यक्ति हमसे मिलता है तो हमारा रोम-रोम खिल जाता है। एक व्यक्ति के रोम साढ़े तीन करोड़, तो दोनों के हुए सात करोड़।

 इसीलिए कहा है कि ‘खिल गए सात करोड़’ यानि एक-दूसरे को देख कर दोनों साथियों का रोम-रोम खिल जाता है। यह कितने गर्व और आनंद की बात है कि हमारी कहावतों और लोकोक्तियों में कितना सार छुपा है। एक-एक शब्द मीठी चाशनी में डूबा हुआ, मन को भावविभोर करता हुआ-सा है। इन्हीं कहावतों के जरिए हमारे बुजुर्ग, जिनको हम कम पढ़ा-लिखा समझते हैं, वो आज भी इन कहावतों के ज़रिए हमारे अंदर संस्कारों के बीज बोते रहते हैं। अब हमें यह समझना है कि इस पूरी बात का असल मतलब क्या है, क्योंकि इसे समझेंगे तो आपको इस जानकारी का पूरा लाभ मिल सके। समझने की बात यह है कि किसी भी व्यक्ति को मिलने पर आपका दिल कब खुश होता है? तभी तो खुश होंगे न आप, अगर आपको उनसे प्रेम हो, अगर आपके मन में उनके लिए आदर हो, अगर आपको वो अच्छे लगते हों। इसके विपरीत अगर वह व्यक्ति आपको पसंद न हो या सिर्फ मामूली जान पहचान हो तो आप नमस्ते करें, पैर छुएं या हैलो कहें, वो सिर्फ होठों से होगा, दिल में कोई भावना नहीं उठेगी। नमस्ते की या पैर छुए या हैलो कहा, कुछ भी किया, पर बात वहीं की वहीं खत्म। दिल में कोई भावना नहीं, कोई उद्गार नहीं, कोई हिलोर नहीं। इसीलिए कहा जाता है कि अगर आप चाहते हैं कि जिसे आप मिलें उसे देख कर आपका दिल खिले तो पहल आपको करनी होगी, रिश्ता आपको बनाना होगा, रिश्ता आपको सींचना होगा, आपको देखना होगा कि आप उस व्यक्ति के लिए क्या करें कि वो आपको पसंद करने लग जाए। अक्सर हम सोचते हैं कि यह तो उल्टी गंगा बहाने जैसी बात है, पर सच यही है कि अगर हम यह चाहते हैं कि सामने वाला हम सामने वाले को पसंद करें तो उससे पहले यह आवश्यक है कि सामने वाला हमें पसंद करे।

 यह एक मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि जब कोई हमें पसंद करने लगता है तो यह स्वाभाविक है कि हम भी उसे पसंद करने लग जाते हैं। कोई जुगत नहीं भिड़ानी पड़ती, कोई प्रयत्न नहीं करना पड़ता, बस हो जाता है। हां, जुगत तब भिड़ानी पड़ती है जब रिश्ता बनाना हो, जब यह सुनिश्चित करना हो कि सामने वाला हमें पसंद करे। तब हमें फराख दिल होना पड़ता है, तब हमें खुशमिज़ाज होना पड़ता है, तब हमें प्रयत्नपूर्वक कुछ ऐसा करना पड़ता है कि सामने वाला हमें पसंद करे, तब हमें यह करना पड़ता है कि हम सामने वाले के काम आएं। यह हो गया तो बाकी सब खुद सध गया। जड़ को पानी मिल गया तो तना, पत्ते, फूल और फल खुद-ब-खुद बन जाएंगे। उनके लिए अलग से मेहनत की जरूरत नहीं है। यही रिश्तों के साथ भी होता है। आप किसी के काम आइए, आप किसी को रास्ता दिखाइए, आप किसी की मुसीबत का हल ढूंढ़ कर दीजिए और वो आपका हो गया। जो आपका मुरीद हो गया, वो आपको भी खुद-ब-खुद अच्छा लगने लगेगा। यह छोटा-सा फार्मूला है रिश्ते बनाने का। एक बार अगर आप रिश्ते बनाने में माहिर हो गए तो आप खुद भी खुश रह सकेंगे और आपके संपर्क में आने वाले लोग भी आपसे खुश रह सकेंगे। इसी से बनेगा फिर कि ‘चार मिले, चौंसठ खिले, बीस रहे कर जोड़, प्रेमी सज्जन दो मिले, खिल गए सात करोड़’। याद रखिए, जीवन में सारी खुशियां, रिश्तों से हैं। रिश्ता अपने परिवार से हो, अपने दोस्तों से हो, अपने सहकर्मियों से हो या किसी से भी। रिश्ता अच्छा होगा तो जीवन खुद-ब-खुद अच्छा हो जाएगा। इसीलिए कहा गया है कि ‘यारां नाल बहारां मेले मित्तरां दे’, यानी जीवन में बहारें मित्रों से हैं, दोस्तों से हैं, अपनों से हैं, अपने प्रियजनों से हैं। हम अपने प्रियजनों के साथ हैं तो खुशियां हैं, आनंद है। एक-दूसरे का साथ है तो बातचीत है, दिल खोलने का साधन है, इसके विपरीत अकेलापन तो अक्सर उदासी का कारण बन जाता है। इसलिए लाभ इसी में है कि हम रिश्ते बनाएं, उन्हें सींचें, यारों-दोस्तों-मित्रों-रिश्तेदारों से मिलते-जुलते रहें ताकि जीवन में खुशियां ही खुशियां हों। इस तरह जीवन को खुशहाल बनाएं।

पी. के. खुराना

राजनीतिक रणनीतिकार

 ई-मेलः indiatotal.features@gmail.com


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