जिला परिषद कर्मियों को सरकारी दर्जा दो

By: Jul 4th, 2022 12:06 am

कहने को ऐसे लोग सरकारी कर्मचारी हैं, मगर उन्हें मिलने वाला वेतनमान इतना नहीं कि वे अपने परिवारों का सही जीवनयापन कर सकें…

लोकतांत्रिक व्यवस्था में सरकार की नीतियां सभी सरकारी कर्मचारियों पर एक समान लागू न होने की वजह से विरोध की चिंगारियां अक्सर फूट जाती हैं। वर्तमान समय में हालात इस कदर बन चुके हैं कि दशकों जनता के प्रति समर्पित रहने वाले कर्मचारियों को सेवानिवृत्ति के बाद पुरानी पेंशन की सुविधा तक नहीं है। वहीं एक दिन के लिए भी चुने जाने वाले माननीयों को अच्छा वेतनमान, पेंशन की सुविधा होना ही सरकारी कर्मचारियों को आंदोलन की राह अपनाने को मजबूर कर रहा है। बात अगर प्रशासनिक अधिकारियों की करें तो वे भी सुविधाओं के मामले में माननीयों से बहुत पीछे हैं। अगर यूं कहा जाए कि माननीय अपनी सुविधाएं लेने के लिए एकजुट होकर अपने अधिकारों का गलत दुरुपयोग कर रहे हैं तो ऐसा कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। 70 हजार करोड़ रुपए के कर्ज से दबी हिमाचल सरकार के खिलाफ सरकारी कर्मचारी अक्सर लामबंद हैं। सरकार अगर एक विभाग के कर्मचारियों की मांगें मान रही है तो अगले दिन दूसरे विभाग के कर्मचारी भी सड़कों पर उतरकर आंदोलन कर रहे हैं। हिमाचल प्रदेश में शिक्षा की लौ जगाने वाले राष्ट्र निर्माता ही सबसे अधिक पुरानी पेंशन की मांग प्रमुखता से उठाते रहे हैं। कंप्यूटर अनुदेशकों के लिए 23 वर्षों के बाद भी कोई स्थायी नीति न बनना सरकारों की पक्षपाती कार्यप्रणाली को दर्शाता है। कहने को पंचायती राज विभाग को अत्यधिक सशक्त किए जाने के दावे किए जा रहे हैं, पर सरकार की नीतियां गांव स्तर तक पहुंचाने वाले जिला परिषद कर्मचारी, अधिकारी स्वयं ही आज सुविधाओं से महरूम हैं। जिला परिषद कर्मचारियों व अधिकारियों को आज दिन तक पंचायती राज विभाग में शामिल न किया जाना पक्षपात को दर्शाता है। पंचायत सचिव, कनिष्ठ सहायक और सहायक अभियंता आदि भी पुरानी पेंशन सहित अन्य सुविधाओं की मांगें न उठा सकें, ठीक इसी वजह से ऐसा किया गया है। उक्त कर्मचारी वर्षों से सरकारों से सरकारी कर्मचारी घोषित किए जाने की मांग उठा रहे हैं, मगर इसके बावजूद आज दिन तक सरकारों ने उनकी एक नहीं सुनी है। अपने परिवारों की असुरक्षा को देखते हुए जिला परिषद कर्मचारी-अधिकारी प्रदेश महासंघ भी सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतरने जा रहा है। संघ ने इस बाबत प्रदेश सरकार को मांग पत्र सौंपकर 25 जून को हुई कैबिनेट बैठक में जिला परिषद कर्मचारियों की मांगें मानने के लिए अपील की थी। कैबिनेट की बैठक में जिला परिषद कर्मचारियों की समस्याओं बारे कोई चर्चा न होते देख अब संघ के कर्मचारियों ने विकास खंड स्तर पर पेनडाऊन स्ट्राइक किए जाने का फैसला लिया है। इससे पूर्व स्वास्थ्य विभाग के चिकित्सक, पुलिस कर्मी भी इस तरह का विरोध प्रदर्शन कर चुके हैं। कोरोना वायरस महामारी के दौरान अपनी जान की परवाह किए बिना जनता के प्रति अपनी जिम्मेदारियां बखूबी निभाने वाले जिला परिषद कर्मचारी व अधिकारी पेनडाऊन हड़ताल करेंगे तो इसका खामियाजा गरीब जनता को भुगतना पड़ेगा।

 जिला परिषद कर्मचारियों द्वारा भी अब अपनी मांगों को लेकर सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतरने से पंचायतों के कामकाज पर इसका विपरीत असर पड़ेगा। प्रदेश की पंचायतों में आजकल कई विकास कार्य चल रहे हैं। अगर ऐसे में सरकारी कर्मचारी ही कार्यालयों में मौजूद नहीं रहेंगे तो उनकी समस्याओं का समाधान कैसे होगा, यह आज बड़ा सवाल है। प्रदेश सरकार का कर्मचारी ही अगर उसके खिलाफ सड़कों पर बगावत करे तो यह कोई सुखद बात नहीं है। सरकारों ने ऐसे हालात बनाए कि सरकारी कर्मचारी जनता के प्रति कार्यालयों में अपनी जिम्मेदारियां निभाने के बजाय अपनी मांगों को मनवाने के लिए सदैव संघर्षरत रहते आ रहे हैं। आज सवाल यह उठता है कि अगर प्रत्येक सरकारी विभाग का कर्मचारी अपनी मांगें मनवाने के लिए आंदोलन की राह पर जाएगा तो गरीब जनता के कार्यों को कौन हल करेगा। केंद्र सरकार द्वारा अभी हाल ही में शुरू की गई अग्निपथ योजना का पूरे देश में कड़ा विरोध किया जा रहा है। योजना के तहत केवल मात्र चार वर्ष ही युवाओं को भारतीय सेनाओं में अपनी सेवाएं दिए जाने का अवसर मिलेगा। केंद्र सरकार की इस योजना का लाखों युवाओं को लाभ सहित उनका संपूर्ण व्यक्तित्व विकास भी संभव हो पाएगा। अग्निवीरों को सेवा के बाद कोई पेंशन सुविधा नहीं मिलेगी। ठीक इसी वजह से सरकारी विभागों में कार्यरत अन्य कर्मचारी भी अब पुरानी पेंशन की सुविधा की मांग पुरजोर से उठा रहे हैं। बुढ़ापा आराम से कट जाए, इसलिए ही आम आदमी सरकारी नौकरी पाने की हसरत अधिक रखता है। सरकारी विभागों में रोजगार के अवसर जितने सृजित किए जाने की जरूरत है, उतने नहीं किए जा रहे हैं।

 प्रदेश सरकारें अपना राजस्व बचाने के चक्कर में युवाओं का जमकर शोषण कर रही हैं। बेरोजगारी से युवाओं को राहत पहुंचाने के नाम पर सरकारें अनुबंध, पीटीए और आउटसोर्सेज पर नियुक्तियां करती जा रही हैं। कहने को ऐसे लोग सरकारी कर्मचारी हैं, मगर उन्हें मिलने वाला वेतनमान इतना नहीं कि वे अपने परिवारों का सही जीवनयापन कर सकें। सरकारों की दोगली नीतियों की वजह से ऐसे कर्मचारियों को दशकों बाद लंबे संघर्ष के बाद नियमित सेवाएं किए जाने का अवसर मिल रहा है। उम्र के अंतिम पड़ाव में नियमित होने वाले कर्मचारियों को कुछ ही वर्ष सही,  वेतनमान मिल पा रहा है। गनीमत यह कि ऐसे कर्मचारियों को सेवानिवृत्ति बाद भी नई पेंशन के नाम पर शर्मसार किए जाने की कोशिश चल रही है। नई पेंशन के नाम पर सेवानिवृत्त कर्मचारियों की झोली में नाममात्र ही सिक्के डाले जा रहे हैं। सरकारों की तमाम यातनाओं के शिकार ऐसे कर्मचारी अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन कैसे करें, आज बड़ी समस्या बनती जा रही है। युवा अवस्था में ऐसे कर्मचारी अधिकतर समय जनता की सेवा किए जाने के बजाय अपनी मांगें मनवाने में व्यतीत करते जा रहे हैं। दूसरी ओर आजकल कुछेक सरकारी कर्मचारियों की राजनीति में रुचि अधिक बढ़ती जा रही है। ऐसे कर्मचारी जनता के प्रति जिम्मेदारियां निभाने के बजाय नेताओं के इशारों पर अधिक नाच रहे हैं। राजनीति में रुचि रखने वाले सरकारी कर्मचारी कई संघों का दायित्व संभाले हुए हैं जो भोले-भाले कर्मचारियों को सरकार के खिलाफ लामबंद किए जाने में अपनी अहम भूमिका निभा रहे हैं। हिमाचल प्रदेश के सरकारी विभागों के कर्मचारियों को उनकी जॉब डिसक्रिप्शन के बारे में अवगत करवाए जाने की बहुत जरूरत है। अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ना प्रत्येक कर्मचारी का मौलिक अधिकार है, मगर जनता के प्रति अपनी जिम्मेदारियां निभाना भी उनका प्रथम कर्त्तव्य बनता है।

सुखदेव सिंह

लेखक नूरपुर से हैं


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