सेना तथा मौसमी आपदाएं

भारत क्षेत्रफल तथा आबादी के हिसाब से विश्व का एक बड़ा देश है। हमारे देश में अलग-अलग भाषाएं, बोलियां बोलने वाले तथा अलग-अलग धर्म, जाति से संबंध रखने वाले लोग रहते हैं। भौगोलिक संरचना के हिसाब से अगर देखें तो उत्तर- पूर्व में पहाड़, पश्चिम और दक्षिण में समुद्र और उत्तर-दक्षिण में मरुस्थल होने से इन इलाकों में रहने वाले लोगों का रहन-सहन, पहनावा तो अलग-अलग होता ही है, पर यहां का मौसम भी भिन्न ही रहता है, पर इस असमानता में समानता ही हमारे देश की खासियत है और इसका व्याख्यान हम राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर में हर मंच पर करते हैं, कि हिंदू-मुस्लिम-सिख-ईसाई आपस में सब भाई-भाई। प्रदेश की तरक्की और सद्भावना को देखकर कुछ विदेशी ताकतें, गलत इरादे से हमारे देश कि एकता, प्यार और सद्भावना को बिगाडऩे के लिए समय-समय पर कभी सांप्रदायिक तो कभी क्षेत्रीय हिंसा भडक़ाने की कोशिश करते रहते हैं, पर ऐसी लाख कोशिशों के बावजूद हमारे देश के नागरिकों के बीच सौहार्द और प्रेम का सदियों से चला आ रहा रिश्ता कभी कमजोर नहीं पड़ता तथा लोग ईद, दिवाली, क्रिसमस और गुरु पर्व एक साथ मिलजुल कर मनाते हैं। जिस तरह लाख कोशिशों के बावजूद हमारे आपसी प्रेम का धागा कमजोर नहीं पड़ता, उसी तरह देश के अलग-अलग हिस्सों में बेरहम मौसम से नुकसान होने के बावजूद देश की सुरक्षा के लिए तैनात सेना का हौसला मंद नहीं होता, चाहे बर्फ गिरे, बरसात हो या भूस्खलन, देश की सुरक्षा के लिए अपने कत्र्तव्य से सैनिक किसी भी परिस्थिति में पीछे नहीं हटते। इसी तरह के बेरहम मौसम से बीते दिन मणिपुर में हुए भूस्खलन हादसे में टेरिटोरियल आर्मी के 7 सैनिकों की जान खोने की खबर मिली।

मणिपुर में हो रही बारिश के बीच 29 और 30 जून की मध्यरात्रि नोनी जिले में भारी भूस्खलन हुआ जिसमें सेना के कई जवान और नागरिक लापता हो गए थे। जिरीबाम से इंफाल तक निर्माणाधीन रेलवे लाइन की सुरक्षा के लिए तूपुल रेलवे स्टेशन के पास तैनात भारतीय सेना के कैंप के स्थान पर भूस्खलन हुआ और हादसे में 7 सैनिकों की मौत हो गई और 23 जवान लापता हंै। भारतीय सेना और असम राइफल की टीम द्वारा चलाए जा रहे बचाव अभियान में अभी तक 13 लोगों को बचा लिया गया है। भूस्खलन के कारण इजाई नदी का प्रवाह बढऩे तथा खराब मौसम के कारण बचाव कार्यों में जिस तरह से बाधाएं आ रही हैं उस सबको देखते हुए सेना ने हेलीकॉप्टर भी स्टैंड बाय पर रखा है जो मौसम ठीक होते ही बचाव ऑपरेशन में शामिल किया जाएगा। जिला प्रशासन बचाव तथा राहत कार्योंं के लिए राष्ट्रीय और राज्य आपदा प्रबंधन एजेंसियों के संपर्क में है तथा स्थानीय लोगों को भी बारिश से सतर्क रहने के लिए कहा जा रहा है। सैनिकों का इस तरह से सीमा की रक्षा के दौरान तो सर्वोत्तम बलिदान सामने आता ही है, पर इस तरह के हादसों में कभी असम की बाढ़, मणिपुर के भूस्खलन और लद्दाख के बर्फीले तूफानों में भी जान खोनी पड़ती है, पर भारतीय सेना सीमा पर दुश्मनों से जिस तरह से डटकर मुकाबला करती है उसी तरह चाहे किसी भी क्षेत्र में तैनात हो, वहां के मौसम से भी पूरा हौसले के साथ लड़ती है।

कर्नल (रि.) मनीष

स्वतंत्र लेखक


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