अग्निवीरों के लिए रोल मॉडल विक्रम बत्रा

चीन ने सन् 1962 में भारत पर हमला करके अपना असली चरित्र दिखा दिया था। देश की सरहदों पर चीन व पाक जैसे देशों को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए भारतीय सेना के तीनों अंगों का युवा जोश व तकनीकशुदा अचूक मारक क्षमता वाले हथियारों से लैस होना जरूरी है…

‘जीत के बाद तिरंगा लहराकर आऊंगा या फिर उसी तिरंगे में लिपट कर आऊंगा, लेकिन आऊंगा जरूर’। वतनपरस्ती से लबरेज इन जज्बाती अल्फाज का इजहार हिमाचल प्रदेश के जांबाज कैप्टन विक्रम बत्रा ने सन् 1999 की भारत-पाक जंग के दौरान किया था। कारगिल युद्ध में प्वांइट 4875 (बत्रा टॉप) पर पाक फौज को धूल चटाकर 7 जुलाई 1999 को कैप्टन विक्रम बत्रा ने मातृभूमि की रक्षा में अपना र्स्वोच्च बलिदान देकर अपनी इस तहरीर को सच साबित कर दिया था। युद्ध में असीम शौर्य पराक्रम के लिए सेना ने कै. विक्रम बत्रा को सर्वोच्च सैन्य सम्मान ‘परमवीर चक्र’ (मरणोपरांत) से अलंकृत किया था। कारगिल में प्वांइट 5140 को फतह करने के बाद उस नौजवान अफसर ने रेडियो सेट के जरिए ‘ये दिल मांगे मोर’ का उद्घोष किया था यानी कारगिल विजय के बाद वह जांबाज योद्धा अपने जहन में कारगिल क्षेत्र से आगे बढ़ने की हसरत लिए बैठा था। यदि देश की तत्कालीन सियासत ने इच्छाशक्ति दिखाई होती तो शायद आज पाकिस्तान अपने वजूद पर अफसोस जाहिर करता। जिस मुल्क में वतन पर कुर्बानी का जज्बा रखने वाले ऐसे शूरवीर योद्धा मौजूद हों, वहां दुश्मन कोई भी हिमाकत करने से खौफजदा रहते हैं। भारत अपने पड़ोस में शातिर चीन व आतंक के सरपरस्त पाकिस्तान के साथ हजारों कि. मी. लंबी सरहद साझा करता है। पाक सेना भारत पर चार मर्तबा हमला करके भारतीय सेना द्वारा शर्मनाक शिकस्त का सामना कर चुकी है। चीन ने सन् 1962 में भारत पर हमला करके अपना असली चरित्र दिखा दिया था। देश की सरहदों पर चीन व पाक जैसे देशों को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए भारतीय सेना के तीनों अंगों का युवा जोश व तकनीकशुदा अचूक मारक क्षमता वाले हथियारों से लैस होना जरूरी है।

 रक्षा मंत्रालय भारत सरकार ने 14 जून 2022 को तीनों सेनाओं में भर्त्ती के लिए ‘अग्निपथ योजना’ की घोषणा की है। जिसके तहत 17.5 वर्ष से लेकर 21 वर्ष की आयु के युवाओं को बतौर ‘अग्निवीर’ जवान के रूप में चार साल के कार्यकाल के लिए भर्ती किया जाएगा। चार वर्ष बाद 25 प्रतिशत अग्निवीर लंबी अवधि की सैन्य सेवा का हिस्सा बनेंगे तथा शेष 75 फीसदी सेना से रिटायर हो जाएंगे। मगर अग्निपथ की घोषणा के साथ ही कई राज्यों में युवाओं का हिंसक एहतेजाज देखने को मिला। अग्निपथ योजना पर रक्षा मंत्रालय का तर्क या मकसद चाहे जो भी हो, मगर देश के नीति निर्माताओं, युवावर्ग व आम लोगों को समझना होगा कि विशिष्ट चरित्र व कड़े अनुशासन की प्रतीक सेना रोजगार का साधन नहीं है। 740 कि. मी. लंबी नियंत्रण रेखा जहां बंदूकें कभी खामोश नहीं रहती, बारूद कभी ठंडा नहीं होता, आग उगलते मरुस्थलों से लेकर 22 हजार फीट की बुलंदी पर माइनस पचास डिग्री तापमान वाले बर्फीले रणक्षेत्र सियाचिन ग्लेशियर तक संगीनों के साए में जिंदगी जीने वाली थलसेना का सफर जोखिम भरा है। विश्व की सर्वोत्तम भारतीय थलसेना का हिस्सा बनना किसी भी युवा के लिए गर्व का विषय है। शारीरिक, मानसिक व मेडिकल की शर्तों पर फिट व शिक्षित वर्ग के युवा ही सेना में भर्ती हो सकते हैं जो कि हर किसी के बस की बात नहीं है। सेना का हिस्सा बनने वाले जवानों को ये मालूम नहीं होता कि वे अपनी सैन्य सेवा पूरी करके सेवानिवृत्त होकर घर आएंगे या फिर तिरंगे में लिपट कर लौटेंगे। चूंकि सेना की संस्कृति ‘स्वयं से पहले राष्ट्र’ की है। सेना देश की एकमात्र गैर राजनीतिक संस्था है जिसका प्रशिक्षित जवान मातृभूमि की रक्षा के लिए अपना बलिदान देने की ‘कसम’ लेता है। राष्ट्र रक्षा से सेना कभी समझौता नहीं करती। सशस्त्र बलों के उच्च प्रशिक्षित सोल्जर ही पैरा कमांडो, एनएसजी, एसपीजी, एसटीएफ मार्कोस (नेवी), गरुड़ कमांडो (वायुसेना) आदि स्पेशल फोर्सेज का हिस्सा बनते हैं।

 देश की वीआईपी व वीवीआईपी सुरक्षा में इन्हीं सुरक्षा एजेंसियों के जवान मुख्य भूमिका निभाते हैं। भारतीय सैन्य प्रशिक्षण दुनियाभर की सेनाओं में उत्तम दर्जे का आंका गया है, मगर विडंबना है कि हमारी सर्वश्रेष्ठ फोर्सेज के सर्वश्रेष्ठ जवान जिन्हें बोफोर्स तोप, अर्जुन व टी 90 टैंक, कई आधुनिक हथियारों तथा मिसाइल सिस्टम के संचालन की गहन जानकारी के साथ दुश्मन की सरहद में घुसकर ‘लक्षित हमले’ जैसे घातक सैन्य आपरेशन की महारत हासिल होती है, जो सैनिक ‘सयुक्त राष्ट्र संघ’ (यूएनओ) जैसे मिशनों का हिस्सा बनकर विदेशों में भारत का प्रतिनिधित्व करते हैं, यही उच्च प्रशिक्षित, अनुशासित व मानसिक तथा शारीरिक तौर पर फिट सैनिक सेवानिवृत्ति के बाद सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी के लिए मोहताज रहते हैं। पूरी जवानी देश के नाम करने वाले रणबांकुरों को ‘वन रैंक वन पेंशन’ के लिए दशकों तक आंदोलन करना पड़ा। सैनिकों की पेंशन व सुविधाएं कई वर्षों से हमारे हुक्मरानों को बोझ लग रही हैं। हैरत होती है कि राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर भी देश में सियासी संग्राम छिड़ जाता है। अग्निपथ योजना पर मशविरे वे लोग दे रहे हैं जिनका सेना से कोई संबंध या सैन्य क्षेत्र का जमीनी तजुर्बा बिल्कुल नहीं रहा। भारत में लोकतांत्रिक व्यवस्था मौजूदा है। देश के लाखों सैन्य परिवार सियासतदानों को अपने वोट की ताकत से जम्हूरियत की बुलंदी पर पहंुचाने की हैसियत रखते हैं। लिहाजा हमारे हुक्मरानों को देश के रक्षा क्षेत्र से जुड़ी किसी भी योजना पर सामरिक विषयों के अनुभवी सेवानिवृत्त सैनिकों की राय जरूर लेनी चाहिए। विश्व के 80 से अधिक देशों की सेना में युवाओं को ‘टूर ऑफ ड्यूटी’ के नाम पर कम अवधि के लिए भर्ती किया जाता है। मगर आबादी के लिहाज से तथा सरहदों के मामले में भारत की परिस्थितियां अलग हैं। सैन्य टे्रनिंग में जवानों का कड़ा परिश्रम व उनके प्रशिक्षकों की कड़ी मेहनत के साथ रक्षा बजट का एक बड़ा हिस्सा खर्च होता है। अतः कड़े सैन्य प्रशिक्षण व सैनिकों के परिश्रम का लाभ देश की सुरक्षा एजेंसियों को मिलना चाहिए। सरकारों को ‘अग्निवीर’ जवानों के लिए कोस्टगार्ड, पैरामिलिट्री फोर्स, असम राइफल्स, डीएससी, मर्चेंट नेवी तथा राज्य व केंद्र शासित प्रदेशों की पुलिस फोर्स में आधिकारिक तौर पर कोटा तय करना होगा। बहरहाल अग्निवीरों को कै. विक्रम बत्रा व मनोज पांडे जैसे कारगिल युद्ध के परमवीरों को अपना आदर्श बनाकर सैन्य क्षेत्र की अग्निपथ योजना का सकारात्मक तरीके से लाभ उठाना चाहिए।

प्रताप सिंह पटियाल

लेखक बिलासपुर से हैं


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App