अनंत में ब्रह्मलीन डा. लाल चंद

अल्पायु में अचानक यह संसार छोडऩे वाले डा. लाल चंद हिमाचल प्रदेश की लोक संस्कृति तथा संगीत जगत में एक शून्य पैदा कर गए हैं। हिमाचल प्रदेश में उनके सांगीतिक योगदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता। प्रदेश के संगीत समाज की ओर से उन्हें विनीत एवं विनम्र सांगीतिक श्रद्धांजलि…

हिमाचल प्रदेश में अनेक कलाकारों, संगीतज्ञों, गायकों, वादकों, नर्तकों, लोक कलाकारों, नाटककारों तथा साहित्यकारों ने अपने संघर्ष, समर्पण तथा प्रतिभा से प्रदेश की कला एवं संस्कृति को पोषित करने का प्रयास किया है। अनेकों कला साधकों, कला प्रेमियों तथा संस्कृति कर्मियों ने अपने-अपने त्याग, तपस्या तथा कड़ी साधना से निकले पसीने से सींच कर प्रदेश की कला एवं संस्कृति को देश तथा दुनिया के शीर्ष पर स्थापित किया है। इस सांस्कृतिक यात्रा में अनगिनत कलाकारों, साहित्यकारों, लेखकों, लोक कलाकारों, गायकों, वादकों, नर्तकों, शायरों, कवियों, नाट्य कर्मियों, फिल्म कलाकारों ने अपनी कड़ी साधना तथा तपस्या से इस छोटे से प्रदेश को देश में उत्कृष्ट एवं शीर्ष पर स्थापित करने में अपना योगदान दिया। हालांकि ललित कलाओं में शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में कलिष्टता तथा शास्त्रीय पेचीदगियों के चलते इस क्षेत्र में अभी तक हम अपेक्षित एवं वांछित स्थान पर स्थापित नहीं हो पाए हैं, फिर भी प्रदेश के महाविद्यालयों तथा विश्वविद्यालयों में प्रदेश सरकार के निरंतर प्रयासों से इस क्षेत्र में भी हम तीव्र गति से आगे बढ़ रहे हैं। प्रदेश में शिमला, सोलन, नाहन, बिलासपुर, सुंदरनगर, मंडी, कुल्लू, धर्मशाला तथा चंबा आदि स्थान कला एवं संस्कृति के गढ़ बन चुके हैं। इस प्रदेश से भी अनेक शास्त्रीय गायकों एवं वादकों ने इस संगीत यात्रा में अपनी आहुति देकर प्रदेश का नाम ऊंचा किया है।

वर्तमान में वरिष्ठ शास्त्रीय संगीतज्ञों के साथ-साथ अब अनेक युवा संगीत साधक इस प्रदेश में शास्त्रीय संगीत की शून्यता को दूर करने में प्रयासरत हैं जो आकाशवाणी, दूरदर्शन तथा विभिन्न सांस्कृतिक विभागों के माध्यम से प्रदेश का नाम रौशन कर रहे हैं। प्रदेश की इसी सांगीतिक यात्रा में समर्पण से जुटे हुए थे प्रदेश के जाने-माने एवं चहेते संगीतज्ञ डा. लाल चंद, जो कि 17 अगस्त 2022 की सुबह असमय इस नाद ब्रह्म के निराकार अनंत में हमेशा-हमेशा के लिए समाविष्ट हो गए। प्रदेश के सांगीतिक इतिहास में इस कलाकार का अल्पायु में विदा हो जाना कोई त्रासदी से कम नहीं। डा. लाल चंद जि़ला हमीरपुर के गांव टिक्कर, नाल्टी के एक साधारण परिवार से संबंधित थे। पिता जुल्फी राम तथा माता दुर्गी देवी के घर पैदा हुए लाल चंद अपने बचपन में गऱीबी में पले, बढ़े तथा शिक्षित हुए। उनके बड़े भाई रमेश चंद ने उन्हें पढ़ाने तथा आगे बढ़ाने में हमेशा प्रेरित एवं प्रोत्साहित किया। डा. लाल चंद ने प्राथमिक पाठशाला नाल्टी, राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला गलोड़ से जमा दो तथा राजकीय महाविद्यालय हमीरपुर से स्नातक की उपाधि प्राप्त कर हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय शिमला से एमए तथा पीएचडी संगीत गायन की उपाधि प्राप्त की। ग्रामीण परिवेश से निकले डा. लाल चंद ने संगीत शिक्षण तथा शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में अपनी कड़ी सांगीतिक यात्रा से प्रदेश में अपना ऐसा स्थान बना लिया था कि वो युवा संगीत साधकों तथा वरिष्ठ संगीतज्ञों की श्रेणी में अपना श्रेष्ठ तथा सम्माननीय स्थान बना कर प्रदेश में ‘संगीत के लाल’ बन चुके थे। प्रारंभ में डा. लाल चंद ने केन्द्र सरकार के सांग एंड ड्रामा विभाग में अपनी सेवाएं देना प्रारंभ की।

तत्पश्चात वे प्रदेश के महाविद्यालय संवर्ग में गायन संगीत के प्राध्यापक के रूप में नियुक्त हुए। उन्होंने राजकीय महाविद्यालय देहरी, बिलासपुर, आरकेएमवी शिमला, ठियोग, फाईन आट्र्स कॉलेज शिमला में अपनी सेवाएं दी । वर्तमान में वे राजकीय महाविद्यालय अर्की में संगीत प्राध्यापक के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे थे। डा. लाल चंद बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उत्कृष्ट गायन के साथ वे प्रदेश के प्रतिष्ठित हारमोनियम वादक भी थे। शास्त्रीय गायन के साथ गीत, गज़़ल, भजन, ठुमरी तथा परंपरागत लोक संगीत में अपना अधिकार रखते थे। सुर, लय और ताल पर उनकी अद्वितीय पकड़ थी। कथक नृत्य में संगीतकार के रूप में लय और ताल की बारीकियों पर विशेष अधिकार रखते थे। वे एक हरफनमौला कलाकार थे। वे आकाशवाणी तथा दूरदर्शन शिमला के चहेते तथा प्रमाणित कलाकार थे। आमतौर पर उनके कार्यक्रम इन केन्द्रों पर देखे तथा सुने जाते थे। प्रदेश के विभिन्न स्थानों में आयोजित होने वाले मुख्य सांस्कृतिक समारोह उनके बिना अधूरे रहते थे। शिक्षा विभाग, भाषा-कला संस्कृति विभाग तथा भाषा-कला संस्कृति अकादमी के वे चहेते कलाकार थे। देश के प्रतिष्ठित शास्त्रीय संगीतज्ञ शिमला आकर अपने साथ हारमोनियम संगति के लिए डा. लाल चंद को ही ढूंढते थे। डा. लाल चंद एक श्रेष्ठ कलाकार होने के साथ-साथ हंसमुख, सरल, सौम्य एवं एक बेहतरीन व्यक्ति थे।

अभी हाल ही में प्रदेश शिक्षा विभाग द्वारा हिमाचल प्रदेश की स्वर्ण जयंती तथा देश की स्वतंत्रता के पचहत्तर वर्ष पर आयोजित अमृत महोत्सव में डा. लाल चंद ने अपने सहयोगी महाविद्यालय संवर्ग के संगीत प्राध्यापकों प्रो. सुरेश शर्मा, डा. गोपाल भारद्वाज, डा. हेमराज चंदेल तथा डा. सतीश ठाकुर के साथ प्रदेश के सिग्नेचर सांग के निर्माण में अहम भूमिका निभाई। गऱीबों की सहायता करना, संघर्ष कर रहे विद्यार्थियों की तन-मन-धन एवं नि:स्वार्थ भाव से सेवा करना उनके जीवन का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा था। उनके लिए कोई भी बड़े से बड़ा कार्य असंभव नहीं था। वे सभी को सृजनात्मक, रचनात्मक कार्यों के लिए प्रेरित कर सहयोग करते थे। किसी व्यक्ति का आतिथ्य, प्रेम, सम्मान करना, इज्ज़त तथा गरिमा को बना कर रखना, उनसे गरिमापूर्ण व्यवहार करना उनसे बेहतर कोई नहीं हो सकता। डा. लाल चंद प्रदेश में अनेकों महामहिम राज्यपालों, मुख्यमंत्रियों, मंत्रियों, प्रशासकीय अधिकारियों, शिक्षा अधिकारियों, प्राध्यापकों, विद्यार्थियों, संगीत प्रेमियों तथा जन-जन के हृदय की धडक़नों में बसते थे। डा. लाल चंद एक विलक्षण तथा अद्वितीय व्यक्ति थे। इस लोक से उनके असमय चले जाना बहुत ही दुखद है। अल्पायु में अचानक यह संसार छोडऩे वाले डा. लाल चंद हिमाचल प्रदेश की लोक संस्कृति तथा संगीत जगत में एक शून्य पैदा कर गए हैं। हिमाचल प्रदेश में उनके सांगीतिक योगदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता। प्रदेश के संगीत समाज की ओर से उन्हें विनीत एवं विनम्र सांगीतिक श्रद्धांजलि। प्रदेश सरकार यदि चाहे तो मां सरस्वती के पुत्र डा. लाल चंद की स्मृति एवं सम्मान में कोई सांगीतिक पुरस्कार स्थापित कर या कोई वार्षिक संगीत समारोह शुरू कर उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि दे सकती है।

प्रो. सुरेश शर्मा

लेखक घुमारवीं से हैं


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