परीक्षा मूल्यांकन के बदलते मानक

राष्ट्रीय शिक्षा नीति के मूल वाक्य ‘नेशन फस्र्ट, करैक्टर मस्ट’ की परिभाषा को समझने तथा इसके लक्ष्य को प्राप्त करने में अभी हमें बहुत मेहनत करनी होगी। शिक्षा के अंतिम उत्पाद की गुणवत्ता ही शिक्षा की गुणवत्ता होती है। शिक्षा के वास्तविक लक्ष्य को पाने के लिए शिक्षा व्यवस्था, प्रशासन, शिक्षकों, अभिभावकों तथा समाज को चिंतन, अवलोकन तथा विश्लेषण की जरूरत है…

कभी हमने सुना था कि ज्ञान अनंत है और कभी भी इसका पार नहीं पाया जा सकता। ज्ञान के सभी क्षेत्रों के रहस्यों को इनसान अभी पूर्णत: जान नहीं पाया है। ऐसा भी समझा जाता है कि कुछ पाने के लिए सामने कुछ लक्ष्य होना चाहिए, लेकिन जब सौ ही प्रतिशत लक्ष्य प्राप्त कर लिया गया हो तो फिर पाने को क्या रहा? बीसवीं शताब्दी के अस्सी या नब्बे के दशक तक जब परीक्षार्थी के परीक्षा में पचहत्तर से अस्सी प्रतिशत अंक आते थे तो बहुत बड़ी बात समझी जाती थी। बोर्ड तथा विश्वविद्यालयों की पहली मैरिट अस्सी-ब्यासी प्रतिशत तक पहुंचना आश्चर्य समझा जाता था। फस्र्ट डिवीजन की तो बात ही क्या थी। छप्पन-सत्तावन प्रतिशत अंक लेकर लोग हाईएस्ट सैकिण्ड डिवीजन कहकर इतराते थे। सैंतालीस-अठतालीस प्रतिशत पर हम अपनी नाकामी का इज्ज़त से बहाना बना लेते थे ‘बस थोड़े से नंबरों से सैकिण्ड डिवीजन रह गई’। पैंतीस-सैंतीस प्रतिशत पर ‘चलो, साल बच गया’ कहकर अपने को सांत्वना दे लेते थे। किसी ने वाट्स ऐप में लिखा ‘हमारे समय में परीक्षा के अंक सामान्यत: सैल्सियस में आते थे, आजकल फारेनहाइट में आ रहे हैं। वर्तमान में परीक्षार्थियों के नब्बे-पचानवें प्रतिशत अंक आना सामान्य बात हो गई है। पचानवें प्रतिशत से नन्यानवें प्रतिशत अंक प्राप्त कर मैरिट में आना तो समझ में आता है। इस बार तो आश्चर्य हुआ जब सीबीएसई में दसवीं की छात्रा अनुक्रमांक 2262863 तान्या सिंह ने पांच सौ में से पांच सौ अंक 100 प्रतिशत अंक लेकर पूर्व के सारे कीर्तिमान ध्वस्त कर दिए। तान्या सिंह यमुनापुरम, बुलंदशहर, उत्तर प्रदेश की छात्रा रही हैं। तान्या के पिता विजय कुमार एक ठेकेदार तथा माता गृहणी हैं। तान्या ने अपने संदेश में विद्यार्थियों से कहा है कि सोशल मीडिया से दूरी रखें तथा किताबों को अपना मित्र बनाएं। इसी प्रकार इसी पाठशाला की भूमिका गुप्ता ने 499 तथा सौम्य नामदेव ने 497 अंक प्राप्त कर सभी को आश्चर्यचकित कर दिया है।

इसी सीबीएसई की दसवीं की परीक्षा में बिहार की छात्रा श्रीजा ने 99.4 प्रतिशत अंक लेकर बिहार राज्य में प्रथम सफलता के झंडे गाड़ दिए। उल्लेखनीय है कि श्रीजा के पिता ने उनकी मां के देहांत के पश्चात श्रीजा को घर से निकाल कर दूसरी शादी कर ली। श्रीजा ने अपने नाना-नानी के घर पर रहकर यह आश्चर्यजनक सफलता प्राप्त की है। एक और बात विचारणीय है कि वर्तमान में नब्बे प्रतिशत लड़कियां बोर्ड परीक्षाओं में मैरिट में अपना स्थान दर्ज कर रही हैं। इस वर्ष आईसीएसई की बारहवीं के घोषित परिणामों में 99.52 प्रतिशत परिणाम रहा। इन परिणामों में लड़कियों ने लडक़ों को बुरी तरह से पछाड़ दिया है तथा 18 विद्यार्थियों ने 99.75 से अधिक अंक प्राप्त किए हैं। हिमाचल प्रदेश स्कूली शिक्षा बोर्ड धर्मशाला की दसवीं तथा बारहवीं कक्षाओं में लड़कियों ने मैरिट में आकर अपना दबदबा कायम रखा है। इस समय देश के नामी-गिरामी कालेजों में स्नातक की उपाधि प्राप्त करने के लिए पचानवें-छियानवें प्रतिशत पर कटआफ समाप्त हो जाती है। वर्तमान में देश के सभी शिक्षा बोर्डों के परीक्षा परिणाम सभी संकायों में 95 प्रतिशत या आसपास रहते हैं। पूर्व में यह प्रतिशतता साठ से पचहत्तर प्रतिशत के बीच रहती थी। आज समय बदला है। परीक्षा पद्धति में बहुत से बदलाव हुए हैं। बच्चों के विभिन्न मानसिक स्तरों को ध्यान में रख कर ब्लू प्रिंट तैयार कर परीक्षा पत्र तैयार किए जाते हैं ताकि प्रत्येक विद्यार्थी अपनी मानसिक क्षमता के अनुसार परीक्षा पत्र हल कर सकें। विभिन्न टर्म में पाठ्यक्रम विभाजित किया जाता है ताकि बच्चों पर अनावश्यक दबाव न पड़े। पाठशाला में अध्यापक और घर पर अभिभावक पूरा वर्ष भर बच्चे के सिर पर सवार रहते हैं। बच्चों पर अधिक से अधिक अंक प्राप्त करने का मानसिक दबाव रहता है। यह मानसिक दबाव पारिवारिक तथा सामाजिक अधिक होता है। बच्चों का समग्र तथा सतत मूल्यांकन होता है। परीक्षा परिणाम तैयार करते विद्यार्थी का कोई भी पक्ष छोड़ा नहीं जाता। गूगल देवता तथा संचार साधनों का ज्ञान ग्रहण करने में आशीर्वाद आसानी से मिल जाता है। पूर्व में संचार संसाधन तो क्या पुस्तकें भी उपलब्ध नहीं होती थी। केवल अपनी मेहनत तथा गुरुओं का सहारा होता था।

वर्तमान में शिक्षा में प्रत्येक स्तर पर गुणवत्ता की बात होती है। यहां पर विचारणीय है कि सच में हम शिक्षा में गुणवत्ता के लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में अग्रसर हैं? क्या यह सत्य नहीं है कि वर्तमान शिक्षा में संस्कार, जीवन मूल्य तथा संतुलित शिक्षा का अभाव हो गया है? क्या आज की शिक्षा में सफलता को पचाने के साथ जीवन में असफलता को स्वीकार करने तथा विचलित न होने की शिक्षा दी जाती है? क्या विद्यार्थियों को समाज में रहने का व्यावहारिक प्रशिक्षण दिया जाता है? क्या सच में आज विद्यार्थियों को संस्कार, व्यवहार, आचरण तथा जीवन मूल्यों से युक्त शिक्षा दी जा रही है? क्या सौ प्रतिशत अंक प्राप्त करने वाला बच्चा जीवन की व्यावहारिकता तथा सफलता-असफलता, सुख-दुख तथा विपरीत परिस्थितियों में अपना संतुलन बनाने में सक्ष्म है? क्या विद्यार्थियों को राष्ट्रवादी शिक्षा दी जाती है? क्या हमारा कोई राष्ट्रीय चरित्र है? क्या हम यथार्थ को छोड़ कर भौतिकवाद में उलझ चुके हैं? यदि हां तो यह सौ प्रतिशत अंक प्राप्त करने की शिक्षा कितनी गुणवता युक्त है, इस बात पर विचार किया जाना अति आवश्यक है। विद्वान शिक्षाविदों का मानना है कि अंक बेशक कम रह जाएं, परंतु एक समग्र मानवीय उपकरण के निर्माण में कोई कमी नहीं रहनी चाहिए। अंकों की अंधी भेड़चाल में शामिल होकर कुछ भी उपलब्ध नहीं होने वाला। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के मूल वाक्य ‘नेशन फस्र्ट, करैक्टर मस्ट’ की परिभाषा को समझने तथा इसके लक्ष्य को प्राप्त करने में अभी हमें बहुत मेहनत करनी होगी। शिक्षा के अंतिम उत्पाद की गुणवत्ता ही शिक्षा की गुणवत्ता होती है। शिक्षा के वास्तविक लक्ष्य को पाने के लिए शिक्षा व्यवस्था, प्रशासन, शिक्षकों, अभिभावकों तथा समाज को चिंतन, अवलोकन तथा विश्लेषण कर बहुत परिश्रम करने की आवश्यकता है, अन्यथा गुणवत्ता युक्त शिक्षा पर बात करना बेमानी होगा।

प्रो. सुरेश शर्मा

लेखक घुमारवीं से हैं


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