श्री बांके बिहारी मंदिर की मर्यादा

बड़े लोगों को पिछले दरवाजे से दर्शन करवाने की कवायद से क्या ईश्वर तुरंत खुश हो जाएंगे? मालिक के दरबार में तो कोई भी विशेष वीआईपी नहीं होता। रब्ब के घर में किसी के ओहदे और रुतबे का कोई मोल नहीं होता। यह बात समझने की ही नहीं, समझाने के लिए भी मायने रखती है। ऐसे दिखावटी रुतबे से ईश्वर के द्वार और दरबार की मर्यादा विचलित हो जाती है…

विश्व प्रसिद्ध श्री बांके बिहारी मंदिर भारत में मथुरा जिले के वृंदावन धाम में रमण रेती पर स्थित है। यह भारत के प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। श्री बांके बिहारी जी भगवान श्री कृष्ण जी का ही एक रूप है जो इसमें प्रदर्शित किया गया है। इसका निर्माण 1864 में स्वामी हरिदास ने करवाया था। इस जन्माष्टमी पर यूपी के वृंदावन में बांके बिहारी मंदिर में देर रात मंदिर में दर्शन के लिए उमड़ी भीड़ में दब कर दो लोगों की मौत हो गई। घटना के समय मौजूद लोगों ने बताया कि भीड़ इतनी ज्यादा थी कि मंगला आरती के दौरान करीब 50 लोग बेहोश होकर गिर पड़े थे। कहते हैं कि ज्यादा भीड़ होने की वजह से वहां मौजूद कुछ श्रद्धालुओं को सांस लेने में तकलीफ हुई, जिससे भगदड़ मच गई। सवालों के घेरे कहते हैं कि आखिर क्यों इतनी भीड़ को बगैर सावधानी के मंदिर में घुसने दिया गया? कहते हैं वृंदावन में मंगला आरती के दौरान हादसे के शिकार हुए श्रद्धालुओं के आंसू रुक नहीं रहे हैं। जान बचने पर बारंबार श्री बांके बिहारी को प्रणाम कर रहे हैं। उनका कहना है कि प्रभु की कृपा से ही उनकी जान बची, अन्यथा वे तो मौत निश्चित मान चुके थे।

दम घोंटू माहौल के वह 30 मिनट लोग कभी नहीं भूल सकते जो उस समय वहां मौजूद थे। अचानक गेट नंबर-1 पर एक व्यक्ति की तबीयत बिगडऩे के बाद अफरा-तफरी का जो माहौल बना तो हर कोई जान बचाने की जुगत लगाने लगा था। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार फरीदाबाद की सुभाष कॉलोनी से बांके बिहारी के दर्शन को आईं मनीता पत्नी नेत्रपाल ने बताया कि उन्हें मंगला आरती के बारे में पता चला तो वह वृंदावन में रुक गए। उन्हें नहीं पता था कि मंगला आरती में इतनी भीड़ होगी। वह और उनके पति एवं पड़ोसी भीड़ में बुरी तरह से फंस गए। वह जैसे ही नीचे हुईं भीड़ में दब गईं। पति ने जब उन्हें गिरते देखा तो पुलिस के सहयोग से बाहर निकाला और फिर अस्पताल में भर्ती कराया। घटना से सिहरे नेत्रपाल ने कहा कि एक बार वह भी घबरा गए थे कि भीड़ से बचकर कैसे बाहर निकलेंगे। वहीं, देहरादून से मंगला आरती दर्शन की लालसा से आईं शीतल पुत्री लक्ष्मण सिंह तो 24 घंटे बाद भी घटना के बारे में सोचकर कंपकंपा रही थीं। उन्होंने गेट नंबर तीन से मंदिर में प्रवेश किया था। वह जब सीढिय़ों से मुख्य प्रांगण में उतर रही थीं, तभी पीछे से भीड़ का रेला आया। दबाव से दम घुटने लगा और बेसुध होकर वह काफी आगे जाकर गिरीं। उठने की कोशिश के दौरान किसी ने उनके चेहरे पर तो किसी ने उनके पेट पर पैर रखकर उन्हें बुरी तरह से रौंद दिया।

पास खड़े एक व्यक्ति ने पुलिस के सहयोग से उन्हें उठाया और मंदिर से बाहर लाकर गलियों से होते हुए ऑटो से अस्पताल पहुंचाया। आरके मिशन अस्पताल में भर्ती रुकमणि विहार निवासी सरोज तो घटना को बयां करते-करते रोष में भर उठती हैं। वह कहती हैं कि मंदिर में भीड़ नियंत्रित करने के कोई इंतजाम नहीं थे। लगातार भीड़ का दबाव बढ़ रहा था। वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में शुक्रवार रात मची भगदड़ में नोएडा की महिला की मौत हो गई। महिला अपने बेटे और बहू के साथ पहली बार वृंदावन गई थी। शनिवार सुबह 48 वर्षीय निर्मला देवी का शव नोएडा लाया गया। इसी तरह पहली बार वृंदावन गई निर्मला देवी परिवार के साथ सेक्टर 99 स्थित ग्रीन व्यू अपार्टमेंट में रहती थी। उनके 31 साल के बेटे अमन ने बताया कि रात 1.55 बजे मंगला आरती के दौरान अचानक भगदड़ मच गई। उन्होंने अपनी मां का हाथ थाम रखा था, लेकिन भगदड़ में उनका हाथ छूट गया। वहीं पत्नी फर्श पर गिर गई। अमन ने बताया कि वहां बहुत भयानक मंजर था। लोग एक-दूसरे को कुचलते हुए भाग रहे थे। वे भीड़ के धक्के में बाहर निकले, लेकिन मां नहीं दिखी। पत्नी से वे फोन पर संपर्क में थे। मशक्कत के बाद एक हलवाई को बताए गए हुलिए से उन्हें पता लगा कि दो महिलाओं को सरकारी अस्पताल ले गए हैं। अस्पताल पहुंचने पर डॉक्टरों ने बताया कि उनकी मां की मृत्यु हो गई है। भीड़ के कुप्रबंध की जिम्मेवारी नियत होनी चाहिए। यह घटना बता रही है कि बार-बार मंदिरों में होने वाले भीड़ हादसों को हल्के से न लिया जाए और न इसे रात गई बात गई की तरह माना जाए।

खास महत्व रखने वाले तीर्थस्थलों में जाने वाले भक्तों की मनोदशा एकदम अलग होती है। वे विशेष दिनों पर भक्तिभाव से भरपूर होकर वहां पहुंचते हैं। जब भक्त इस भाव से अंदर आता है तो वो अपने आप को भगवान की भक्ति में तल्लीन कर चुका होता है और प्रशासन के साथ पुलिस की जिम्मेदारी कई गुना बढ़ जाती है। खाटू श्याम जी के मंदिर में भी कुछ दिन पहले ही 8 अगस्त को ऐसी ही लापरवाही हुई थी। राजस्थान के सीकर के खाटू श्याम मंदिर में मची भगदड़ में 3 महिला श्रद्धालुओं की मौत हो गई, जबकि दर्जन भर से ज्यादा श्रद्धालु घायल हो गए। यह हादसा उस वक्त हुआ जब कई घंटे के इंतज़ार के बाद सुबह कपाट खुलने थे। मंदिर में आरती देखने के लिए भारी भीड़ उमड़ी और भगदड़ मच गई। त्योहार या ख़ास दिनों में हादसों का सिलसिला नया नहीं है, पर कुछ दिनों में सारी व्यवस्थाएं अस्त-व्यस्त हो जाती हैं। इसी साल के पहले दिन ही माता वैष्णो देवी मंदिर में भी भारी भीड़ की वजह से भगदड़ मची थी। यहां भी दर्शन के लिए भारी भीड़ उमड़ी थी जिसमें 12 लोगों की मौत हो गई। इससे पहले 2015 में झारखंड के देवघर के बाबा वैद्यनाथ मंदिर में भगदड़ में 11 लोगों की मौत हो गई, तो वहीं मध्यप्रदेश के दतिया जिले के रतनगढ़ के मंदिर में नवरात्रि में मची भगदड़ में 115 लोगों की मौत हुई। केरल का सबरीमाला मंदिर, पुरी का जगन्नाथ मंदिर, हिमाचल प्रदेश का नैना देवी मंदिर या फिर हरिद्वार का हरकी पौड़ी अतीत में इन सभी धार्मिक स्थलों पर भी भगदड़ के मामले सामने आए थे जिनमें श्रद्धालुओं को अपनी जान गंवानी पड़ी। इन हादसों से सबक लेना ज़रूरी है। जैसे खाटू श्याम में हुई भगदड़ के बाद राजस्थान सरकार ने नया प्रोटोकॉल बनाया है। खाटू श्याम मंदिर को शनिवार, रविवार, सरकारी छुट्टी या किसी भी त्योहार पर चौबीसों घंटे खुले रखने के आदेश दिए गए हैं। क्या इस तरह के उपाय दूसरे मंदिरों में भी लागू किए जा सकते हैं। धार्मिक स्थानों पर भीड़ मैनेजमेंट काफी हद तक ख़ास दिनों में आने वाली भक्तों की तादाद पर निर्भर करता है। काशी विश्वनाथ में जिस तरह दर्शन की ऑनलाइन बुकिंग की सुविधा है, उसी तरह से भीड़ वाले धार्मिक स्थानों पर व्यवस्था की जाए जिससे सीमित लोग रहें और ढंग से दर्शन कर सकें। श्री बांके बिहारी मंदिर में भी ऐसी व्यवस्था की जरूरत है। प्रशासनिक एंगल से हमारा पहला लक्ष्य यही होना चाहिए कि विशेष दिनों मे बहुत बड़ी तादाद में भक्तों को मंदिर परिसर में एक दम नहीं पहुंचने देना चाहिए, क्योंकि एक बार अगर वो मंदिर के अंदर पहुंच गए तो उन्हें दर्शन से रोक पाना बहुत ही मुश्किल है। प्रवेश और तुरंत निकास के पर्याप्त द्वार होने जरूरी हैं। क्या श्री बांके बिहारी मंदिर में ऐसा इंतजाम था? इस पर सवाल है कि ऐसे हादसों के लिए पहले दर्शन करवाने वाली वीआईपी कल्चर भी जिम्मेवार है। बड़े लोगों को पिछले दरवाजे से दर्शन करवाने की कवायद से क्या ईश्वर तुरंत खुश हो जाएंगे? मालिक के दरबार में तो कोई भी विशेष वीआईपी नहीं होता। रब्ब के घर में किसी के ओहदे और रुतबे का कोई मोल नहीं होता। यह बात समझने की ही नहीं, समझाने के लिए भी मायने रखती है। ऐसे दिखावटी रुतबे से ईश्वर के द्वार और दरबार की मर्यादा विचलित हो जाती है। उम्मीद की जानी चाहिए कि ऐसे हादसों की पुनरावृत्ति रोकने के लिए धार्मिक स्थलों पर भीड़ प्रबंध का सिस्टम विकसित किया जाएगा।

डा. वरिंदर भाटिया

कालेज प्रिंसीपल

ईमेल : hellobhatiaji@gmail.com


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