सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों की दादागिरी

सुरक्षा परिषद के यह पांच बड़े देश किसी अन्य देश को स्थायी सदस्य नहीं बनने देंगे तथा विश्व में अन्य देशों को आपस में लड़ाते रहेंगे…

दूसरे महायुद्ध की विभीषिका को रोकने के लिए अमेरिका के राष्ट्रपति रुजवेल्ट ने पहल करते हुए 51 देशों के साथ मिलकर एक चार्टर पर हस्ताक्षर करवाए तथा 24 अक्तूबर 1945 को यूएनओ की स्थापना की। इस संस्था का मुख्य कार्य अंतरराष्ट्रीय झगड़ों का शांतिपूर्ण हल निकालना, सदस्य राष्ट्रों के बीच परस्पर मैत्रीपूर्ण हल निकालना तथा मानव के मूल अधिकारों के प्रति सम्मान में वृद्धि करना है। इससे पूर्व भी प्रथम विश्व युद्ध के परिणामों को ध्यान में रखते हुए वर्ष 1920 में वरसाय की संधि की गई थी। इस संधि का मुख्य उद्देश्य भी सदस्य देशों के झगड़ों का मैत्रीपूर्ण हल निकालना था मगर क्योंकि प्रथम युद्ध में जर्मनी ने अन्य देशों, विशेषत: फ्रांस देश का काफी बड़ा क्षेत्र अपने अधीन कर लिया था तथा इस संधि के अंतर्गत उसे इस अधिकृत किए गए क्षेत्र को वापस लौटाने के लिए मजबूर किया गया था, जर्मनी ने इसे अपना अपमान समझते हुए दूसरे विश्वयुद्ध की शुरुआत की थी तथा जापान, इटली इत्यादि मित्र देशों के साथ मिलकर ब्रिटेन, अमेरिका, रशिया व फ्रांस इत्यादि देशों के विरुद्ध युद्ध का शंखनाद कर दिया था। इस युद्ध में संलिप्त सभी देशों को काफी नुकसान उठाना पड़ा तथा तीसरे विश्व युद्ध को टालने के लिए ही यूएन की स्थापना की गई। इस संघ के छह मुख्य अंग हैं जिनमें महत्त्वपूर्ण अंग सुरक्षा परिषद है। इस परिषद के पांच स्थायी सदस्य व 10 अस्थायी सदस्य हैं जो दो-दो वर्ष के लिए चयनित किए जाते हंै।

यही वह परिषद है जो सदस्य देशों के आपसी झगड़ों पर विराम लाने का प्रयत्न करती है। इसी कारण एक मुहावरे के रूप में इसे दुनिया का पुलिस मैन भी कहा जाता है। इसमें प्रत्येक सदस्य का एक वोट होता है। प्रक्रिया संबंधी मामलों में निर्णय के लिए 15 में से 9 सदस्यों द्वारा सकारात्मक मतदान आवश्यक होता है तथा जिनमें पांचों स्थायी देशों का सकारात्मक मत आवश्यक होता है। यदि कोई स्थायी सदस्य किसी निर्णय से सहमत नहीं है तो वह नकारात्मक मतदान करके अपने ‘वीटो’ के अधिकार का उपयोग कर सकता है। इस दशा में 15 में से 14 सदस्य देशों के समर्थन के बावजूद प्रस्ताव स्वीकृत नहीं होते। वास्तव में यूएन की स्थापना के समय सदस्य देशों ने निर्णय लिया कि युद्ध में विजेता व बड़े देशों को ही स्थायी सदस्य बनाकर उन्हें वीटो पावर दी जाएगी। इस तरह से यूरोप के तीन बड़े देशों रशिया, ब्रिटेन, फ्रांस व अमेरिका को वीटो पावर दी गई। इस युद्ध में चीन ने हिस्सा नहीं लिया था तथा अधिकतर देश भारत को स्थायी सदस्य बनाने के पक्षधर थे, मगर न जाने किन कारणों से उस समय के राजनेताओं ने चीन को इस पावर को देने का समर्थन कर दिया तथा परिणामस्वरूप चीन इसका स्थायी सदस्य बन गया। इन पांच स्थायी देशों की हेकड़ी आम तौर पर देखने को मिलती रहती है तथा यह संस्था कई मामलों में मूकदर्शक बनकर भी रह जाती है। यह ठीक है कि यूएनओ ने कई देशों में शांति सेना तैनात कर रखी है। सूडान, वारूंडी, लाईबेरिया, कांगो, इथोपिया, पश्चिमी सहारा, साइप्रस व गोलान इत्यादि देशों में यह सेना अपना दायित्व निभा रही है। वास्तव में यह पांचों स्थायी देश अपने स्वार्थ को ध्यान में रखते हुए तथा दूसरों को नीचा दिखाने के लिए अपनी निरंकुश पावर का इस्तेमाल करते आ रहे हैं। इन देशों की दादगिरी के कुछ उदाहरण इस तरह से हैं :

1. यूक्रेन-रूस युद्ध में जब रूस के विरुद्ध निंदा प्रस्ताव लाया गया तब रूस ने ही अपनी वीटो पावर का प्रयोग करते हुए इस प्रस्ताव को पास नहीं होने दिया, जबकि दुनिया के सब देश रूस द्वारा यूक्रेन पर अकारण हमले के विरुद्ध एकमत से रूस की निंदा कर रहे थे।

2. अब हाल ही में चीन ने अपने पड़ोसी देश ताईवान पर युद्ध की तैयारियां कर रखी हैं तथा सीमा पर युद्ध अभ्यास करके ताईवान को डराने की कवायद कर रहा है। चीन भी रूस की तरह अपनी विस्तारवादी नीति को अपनाकर एक गुंडे की तरह शांतिप्रिय देश पर अपना आधिपत्य जमाना चाहता है।

3. उधर उत्तर कोरिया के तानाशाह नेता किम जोंग अपने परमाणु विस्फोटों से पूरी दुनिया को डरा रहा है क्योंकि उसे पता है कि जरूरत पडऩे पर चीन उसकी सहायता के लिए आगे आ जाएगा।

4. इजरायल व फिलिस्तीन के युद्ध को रोकने के लिए चार वीटो पावर देशों ने अपना प्रस्ताव लाया, मगर अमेरिका अपनी वीटो पावर से उनके इस प्रस्ताव को पास नहीं होने दे रहा है। 5. भारत के मोस्ट वांटेड आतंकवादी मकसूद अजहर को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित करने से रोकने के लिए चीन कई बार अपनी वीटो पावर का इस्तेमाल कर चुका है। अभी तक सबसे अधिक वीटो पावर का प्रयोग रूस द्वारा 143 बार किया गया है। इसी तरह यूएसए द्वारा 83 बार, इंग्लैंड द्वारा 32 बार, फ्रांस व चीन द्वारा क्रमश: 26 व 16 बार किया जा चुका है। यहां यह लिखना उचित है कि रूस ने भारत व पाकिस्तान के कश्मीर मसले पर भारत के पक्ष में वीटो पावर का प्रयोग किया है अन्यथा कश्मीर का मसला शायद और उलझ गया होता। उल्लेखनीय है कि भारत लंबे समय से वीटो पावर की मांग कर रहा है, मगर भारत पर वीटो पावर वाले देशों ने कई प्रतिबंध लगाने के लिए मजबूर किया गया जिन्हें भारत ने नकार कर अपना स्वतंत्र अस्तित्व को बनाए रखा है। पहले भारत को नान प्रोलीफिरेशन संधि (एनपीटी) पर दस्तखत करने के लिए मजबूर किया गया ताकि भारत किसी भी परमाणु शस्त्र को न बना सकें तथा फिर ‘कंपरीहेन्सिव टैस्ट बैन संधि’ (सीटीबीटी), जिसके अंतर्गत भारत किसी भी परमाणु विस्फोट का परीक्षण न कर सके, भारत ने यह जानते हुए कि यह देश उसको ब्लैकमेल करना चाहते हैं, उनकी बात न मान कर अपना स्वतंत्र वजूद बनाए रखा। इस समय जी-4 के चारों सदस्य देश जर्मनी, जापान, भारत व ब्राजील वीटो पावर के हकदार हैं, मगर इन्हें अन्य देश जैसा कि पाकिस्तान, द. कोरिया, इटली व अर्जेंटीना, जिन्हें यूनाइटिड फार कुन्सेनसज (यूएफसी) कहते हैं, रोड़ा अटकाते रहते हंै। इस समय भारत वीटो पावर बनने का सबसे अधिक प्रबल हकदार है क्योंकि भारत शांतिप्रिय व प्रगतिशील देश होने के साथ साथ यूएनओ का संस्थापक देश है। भारत सुरक्षा परिषद का आठ बार सदस्य बन चुका है तथा सेना के क्षेत्र में भारत दुनिया का दूसरा बड़ा देश है। इस तरह हम कह सकते हैं कि सुरक्षा परिषद के यह पांच बड़े देश किसी अन्य देश को स्थायी सदस्य नहीं बनने देंगे तथा विश्व में देशों को आपस में लड़ाते रहकर तमाशबीन का काम करते रहेंगे। आखिर इन 5 स्थायी सदस्यों की दंबगगिरी व दादागिरी पर विराम लगाना आवश्यक है अन्यथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न देशों में शांति स्थापित रखना असंभव महसूस होता है। भारत के स्थायी सदस्य बनने की राह में सबसे बड़ा रोड़ा चीन है।

राजेंद्र मोहन शर्मा

रिटायर्ड डीआईजी


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