आतंकवादी सडक़ें!

By: Aug 25th, 2022 12:08 am

कुछ वर्ष पूर्व एक राज्य की सरकारी बस सेवा के ड्राइवरों की आंखों के निरीक्षण में पाया गया कि उनमें से आधे से ज्य़ादा ड्राइवरों को साफ नहीं दिखता था और उन्हें चश्मे की ज़रूरत थी, कइयों को रात को कम दिखता था। ऐसे ड्राइवर अंदाज़े से और राम भरोसे वर्षों से बसें चला रहे थे और खुद अपने लिए तथा अपनी सवारियों के लिए जान का खतरा थे। कार और मोटरबाइक कंपनियां मार्केटिंग पर बहुत ध्यान देती हैं, लेकिन अपने ड्राइवरों को प्रशिक्षित करने के लिए कुछ नहीं करतीं, या फिर उनके कई पुरस्कार-प्राप्त कार्यक्रम भी एकदम कागज़ी होते हैं। खेद का विषय है कि मीडिया में सडक़ दुर्घटनाओं की रिपोर्टिंग भी मशीनी अंदाज़ में होती है…

बात पुरानी है, पर बार-बार जिक़्र के काबिल है ताकि हम गफलत में न रहें। नौ साल पहले तब सारा देश सन्न रह गया था जब यूट्यूब के ज़रिए पता लगा कि केरल के एक धनाढ्य व्यक्ति ने अपने नौ वर्षीय बेटे को उसके जन्म दिन के उपहार के रूप में अपनी फरारी कार चलाने के लिए दी। उस बच्चे के साथ उसका सात वर्षीय भाई पैसेंजर सीट पर बैठा था। बच्चे की मां श्रीमती अमल निशाम ने बाद में एनडीटीवी को बताया कि बच्चा 5 साल की उम्र से ही महंगी लग्जऱी कारें चला रहा है और वह आत्मविश्वास के साथ कार ड्राइव करता है। मां ने गर्वपूर्वक इस ड्राइव का वीडियो यूट्यूब पर अपलोड किया, जिसे सवा लाख से भी ज्य़ादा लोगों ने देखा। देश भर में शोर मचा और अंतत: बच्चे के पिता को इस आरोप में गिरफ्तार किया गया कि उसने दो छोटे बच्चों की जान के अतिरिक्त सडक़ पर चलने वाले शेष लोगों की जान भी खतरे में डाली। इस घटना की मीडिया में बहुत चर्चा हुई। यह एक ऐसी घटना की चर्चा थी जिसमें खतरे की आशंका थी, पर हमारा समाज, मीडिया और प्रशासन एक खतरनाक तथ्य से बिल्कुल अनजान दिखता है, और वह तथ्य यह है कि सडक़ दुर्घटनाओं में इतनी जानें जाती हैं कि आतंकवादी घटनाएं भी उनके सामने फीकी पड़ जाती हैं।

प्रसिद्ध पत्रकार श्री विजय क्रांति ने अपने लेख ‘रोड्स किल मोर दैन टेररिज़्म इन इंडिया’ (भारत में आतंकवाद से भी ज्य़ादा मौतें सडक़ों पर) में कई भयावह तथ्यों का जिक़्र किया है। सन् 1947 से अब तक, यानी पिछले 70 सालों में जितने लोग देश में हुई सभी आतंकवादी घटनाओं के शिकार हुए उससे कहीं ज्य़ादा सिर्फ एक साल में सडक़ दुर्घटनाओं में मारे जाते हैं। 26/11 की बदनाम आतंकवादी घटना में जहां 195 निर्दोष लोग मारे गए, वहीं भारतीय सडक़ों पर हर रोज़ औरसतन 390 लोग जान गंवाते हैं। यानी सडक़ों पर हर रोज दो-दो 26/11 घटते हैं। दुखद सत्य यह भी है कि सडक़ दुर्घटनाओं का शिकार होने वाले आधे से ज्य़ादा लोग युवा पुरुष होते हैं जिनमें से अधिकांश अपने परिवार के लिए रोटी कमाने वाले अकेले या मुख्य सदस्य होते हैं। इससे परिवार के परिवार तबाह हो जाते हैं। परिवार के किसी सदस्य की अचानक मौत का सदमा इस नुकसान से अलग है, जिसकी कोई कीमत नहीं लग सकती। हमारे एनजीओ ‘बुलंदी’ ने एक सर्वेक्षण में पाया कि मुख्यत: तीन तरह के लोग सडक़ दुर्घटनाओं के ज्य़ादा शिकार होते हैं। इनमें सबसे पहले नंबर पर ट्रक डाइवर आते हैं, उसके बाद दूसरा नंबर नए बने बाइक चालकों का है और तीसरे नंबर पर कार मालिक आते हैं। ट्रक ड्राइवरों को सीमित समय में सामान एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाना होता है और रास्ते में आराम के साधनों और समय का अभाव होता है। ज्य़ादातर ट्रक ड्राइवर ईनाम के लालच में बिना आराम किए और नशे की हालत में ट्रक चलाते हैं।

थकावट और नशे के कारण वे सबसे ज्य़ादा दुर्घटनाएं करते हैं। नए-नए बाइक मालिक युवा दूसरे नंबर पर आते हैं जो बाइक की खरीद की खुशी में अपने मित्रों के साथ पार्टी के बाद नशे की हालत में घर लौटते हैं। हवा लगने पर नशा और तेज हो जाता है और बाइक चालक की निगाह धुंधली हो जाती है, बाइक पर से नियंत्रण खत्म हो जाता है और दुर्घटना घट जाती है। कार चालकों और बाइक चालकों में दुर्घटना का एक अन्य कारण बिल्कुल एक जैसा है। तकनीकी उन्नति के कारण कारों और बाइकों का ब्रेकिंग सिस्टम ज्य़ादा प्रभावी हुआ है, तथा रफ्तार पकडऩे में लगने वाला समय न के बराबर है। इससे कार चालक व बाइक चालक अति आत्मविश्वासी हो जाते हैं और उनको लगता है कि गाड़ी पर उनका पूरा नियंत्रण है। रोमांच की खातिर तेज गति में चलना अब एक आम बात है और जब कहीं से अचानक कोई गाड़ी के सामने आ जाए तो हमारी प्रतिक्रिया अपेक्षाकृत तेज़ नहीं होती, ब्रेक उतने प्रभावी साबित नहीं होते और दुर्घटना घट जाती है। ‘बुलंदी’ के सर्वेक्षण में यह भी पाया गया कि सडक़ दुर्घटनाओं में शामिल टैक्सियों तथा ऐसी कारों की संख्या सबसे कम होती है जिन्हें मालिक के बजाय ड्राइवर चलाते हैं, क्योंकि उनके साथी ड्राइवर उन्हें संभलकर गाड़ी चलाने के टिप्स देते रहते हैं। ऐसी कारें ज्य़ादातर उन मामलों में दुर्घटनाग्रस्त हुईं जहां सवारी को कहीं पहुंचने की जल्दी थी और सवारी की ओर से ड्राइवर को सामान्य से तेज़ रफ्तार से गाड़ी चलाने का निर्देश था। सन् 2020 के सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 2 लाख 42 हजार 485 लोग सडक़ दुर्घटनाओं में मारे गए, आठ लाख से भी ज्य़ादा लोग इन दुर्घटनाओं में घायल हुए।

यह कहना मुहाल है कि इनमें से कितने लोग जीवन भर के लिए अपंग हो गए क्योंकि सरकार के पास इनका कोई रिकार्ड नहीं है। सबसे ज्य़ादा भयावह तथ्य यह है कि वाहनों का 90 प्रतिशत अमीर देशों में है, लेकिन सडक़ दुर्घटनाओं की चपेट में आने वाले लोगों का 91 प्रतिशत विकासशील देशों का है। इन देशों में सडक़ों की मरम्मत, चालकों के प्रशिक्षण और ड्राइविंग लाइसेंस जारी करने के नियमों में होने वाली कोताही ने इन देशों की सडक़ों को आतंकवादी सडक़ों में तब्दील कर दिया है। दुनिया भर में सडक़ दुर्घटनाओं की गंभीरता को देखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2011-2020 को ‘सडक़ सुरक्षा के लिए कदमों का दशक’ घोषित किया था ताकि सरकारों और लोगों को सडक़ दुर्घटनाओं के प्रति जागरूक बनाकर सडक़ दुर्घटनाओं में कमी लाई जा सके। लेकिन हमारे देश में सडक़ सुरक्षा को लेकर वह हर चीज़ गड़बड़ है, जहां गड़बड़ी हो सकती थी। मसलन, ड्राइविंग लाइसेंस जारी करने की लचर प्रणाली ही अपने आप में एक बड़ी खामी है। अप्रशिक्षित चालक और गैरलाइसेंसधारी चालकों की बड़ी संख्या सडक़ों पर मंडराता बड़ा खतरा हैं। कुछ वर्ष पूर्व एक राज्य की सरकारी बस सेवा के ड्राइवरों की आंखों के निरीक्षण में पाया गया कि उनमें से आधे से ज्य़ादा ड्राइवरों को साफ नहीं दिखता था और उन्हें चश्मे की ज़रूरत थी, कइयों को रात को कम दिखता था। ऐसे ड्राइवर अंदाज़े से और राम भरोसे वर्षों से बसें चला रहे थे और खुद अपने लिए तथा अपनी सवारियों के लिए जान का खतरा थे। कार और मोटरबाइक कंपनियां मार्केटिंग पर बहुत ध्यान देती हैं, लेकिन अपने ड्राइवरों को प्रशिक्षित करने के लिए कुछ नहीं करतीं, या फिर उनके कई पुरस्कार-प्राप्त कार्यक्रम भी एकदम कागज़ी होते हैं। खेद का विषय है कि मीडिया में सडक़ दुर्घटनाओं की रिपोर्टिंग भी मशीनी अंदाज़ में होती है और लोगों को जागरूक करने के लिए कुछ नहीं किया जाता। मीडिया की इस उपेक्षा के कारण आम जनता में अपेक्षित जागरूकता नहीं आ पाई है और प्रशासन के असंवेदी रुख के कारण सारे देश को उसका नुकसान भुगतना पड़ रहा है। अब समय है कि हम इस ओर भी ध्यान दें ताकि समाज में ऐसे परिवारों की संख्या न बढ़े जो सडक़ दुर्घटना में परिवार के मुखिया की मृत्यु के कारण अनाथ हो गए।

पी. के. खुराना

राजनीतिक रणनीतिकार

ई-मेल: indiatotal.features@gmail.com


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App