विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊंचा रहे हमारा

आज़ाद सांसें, आज़ाद ख्याल और आज़ाद जि़ंदगी, ये आज़ादी के सबसे खूबसूरत और खुशनुमा एहसासात हैं। आज़ादी मानव जीवन के लिए कितती खास व अहम नेमत है, इस बात का अंदाज़ा तब सहज ही लगाया जा सकता है जब कोई हम से ये कहता है कि चंद समय के लिए अपने मोबाइल फोन ऑफ कर दीजिए या फिर तब जब कोरोना के भय से हमें मास्क लगाना पड़ता है और हम सांसों की घुटन को महसूस करते हैं। आज़ाद सांसों का मतलब वो समझ सकते हैं जिन्होंने गुलामी की घुटन को महसूस किया हो और झेला हो। आज़ाद सांसें क्या होती हैं, ये वे लोग भली भांति समझते थे जिन्होंने भारत को आज़ाद करने के लिए अपने जीवन को समर्पित कर दिया और अंत तक कहते रहे- आजाद थे आज़ाद ही रहेंगे, या वे जो कहते रहे- तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा, या फिर वे जो ये कहते रहे- सरफरोशी की तमन्ना आज हमारे दिल में है, देखना है ज़ोर कितना बाजुए कातिल में है। आज़ाद फज़ाओं में आज़ाद सांस लेते हुए हम 75 वर्ष पूरा कर रहे हैं और इन 75 वर्षों की आज़ादी को समर्पित है स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव जिसके तहत संपूर्ण देश में ‘हर घर तिरंगा’ अभियान चलाया गया है। तीन रंगों वाला तिरंगा, हमारा राष्ट्र ध्वज जो प्रतीक है आज़ाद भारत का व द्योतक है देश की आन, बान और शान का। बुलंदी पर लहराते हुए तिरंगे का दीदार होते ही अनायास ही हमारे ज़ेहन से श्यामलाल गुप्त ‘पार्षद’ द्वारा रचित ये पंक्तियां उभर आती हैं- विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊंचा रहे हमारा। आयताकार आकार का हमारा तिरंगा 3 : 2 के माप में बना होता है। इसके शीर्ष पर रहता है केसरिया रंग जो प्रतीक है साहस और बलिदान का।

यह रंग राष्ट्र के प्रति त्याग व निस्वार्थ की भावनाओं को दर्शाता है। मध्य में सफेद रंग सूचक है शांति, सच्चाई और पवित्रता का। तीसरा यानी हरा रंग प्रतीक है देश की खुशहाली, विकास व संपन्नता का। मध्य में बना 24 धारियों वाला अशोक चक्र द्योतक है निरंतर क्रियाशीलता का। इस तरह बना है हमारे देश का गौरव प्रतीक तिरंगा। पिंगाली वेंकैया द्वारा निर्मित इस ध्वज के मूल रूप को सन् 1931 में कांग्रेस ने कराची अधिवेशन में स्वराज ध्वज के रूप में अपनाया। स्वराज ध्वज में सफेद पट्टी पर बीच में चरखे का चिन्ह बना हुआ था। बाद में स्वराज ध्वज के चरखे की जगह 24 तीलियों वाले अशोक चक्र को रखा गया। इसी परिवर्तित स्वरूप को 22 जुलाई सन् 1947 को संविधान सभा की एक बैठक में भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया गया। जिस आज़ादी को हासिल करने के लिए खुदी राम बोस, भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद, सुभाष चंद्र बोस सरीखे जांबाजों ने अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया, उस आज़ादी के प्रतीक तिरंगे को बुलंद रखने के लिए राइफलमैन जसवंत सिंह रावत, कैप्टन मनोज कुमार पांडे, मेजर शैतान सिंह, कैप्टन सौरभ कालिया, कैप्टन विक्रम बत्रा जैसे जवानों ने अपने प्राण न्यौछावर कर दिए। इस राष्ट्र ध्वज की आन, बान और शान को बरकरार रखने के लिए सीमा पर दिन-रात मुस्तैद खड़ा है देश का फौजी। देश के सम्मान का प्रतीक ये तिरंगा हमें हमेशा प्रेरित करता है देश के लिए कुछ कर गुजरने के लिए।

जगदीश बाली
लेखक शिमला से हैं


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