सेना और राजनीति-2

2014 में जब माननीय श्री नरेंद्र मोदी जी ने अपना चुनाव प्रचार शुरू किया था तो उन्होंने सेवानिवृत्त सैनिकों को इक_ा करके उनकी राजनीति में भागीदारी की बात कही थी, पर उसके बाद भी ओआरओपी के लिए सैनिक अभी भी अंदोलन कर रहे हैं और सडक़ों पर हैं। सबसे बड़ी बात सैनिक सैन्य सेवा के दौरान अपने लिए कभी भी कोई आंदोलन या हड़ताल नहीं करता, इसलिए सेवानिवृत्ति के बाद भी हड़ताल करने या फिर सडक़ों में उतरने में थोड़ा झिझक रखता है और अपने लिए कुछ मांगने में भी संकोच करता है। इसके विपरीत उसके सिविलियन कोंअटरपार्ट नागरिक इस क्षेत्र में उनसे मजबूत होते हैं, जहां पर वैटरन राजनीतिक दावेदारी में कमजोर पड़ जाता है, पर अगर एक बात पर ध्यान दिया जाए कि राजनीतिक नेता बनने के लिए धरना प्रदर्शन करना या फिर हड़ताल करना ही एकमात्र योग्यता नहीं है।

दूसरा आम जनमानस में यह धारणा बन रखी है कि साफ-सुथरी छवि वाले और सच्चे आदमी राजनीति में कामयाब नहीं हो सकते। शायद इन दो मुख्य मान्यताओं की वजह से एक सैनिक को लोग राजनेता के रूप में स्वीकार करने में थोड़ा झिझक रखते हैं। आम लोगों में यह धारणा भी है कि एक सैनिक कभी भी घुमा फिरा कर बात नहीं करता जबकि राजनेता बनने के लिए बातों को घुमाने-फिराने की कला आनी चाहिए। लोगों में यह भी मानना है कि दूध को दूध और पानी को पानी यानी सच को सच और झूठ को झूठ बोलने वाला आदमी भी राजनीति में कामयाब नहीं हो सकता, लोगों का इस तरह का विश्वास और धारणा कि यह राज नेता या राजनीति में आने वाले लोगों को बातों को घुमा फिरा के करने के साथ साथ झूठ बोलने की कला भी होनी चाहिए।

लोगों को अपनी बातों में उलझा कर पीछे चलाने का गुण ही एक आम इंसान को कामयाब राजनेता बनाता है। एक सैनिक इन सब चीजों में पीछे रह जाता है, पर मेरा अपना व्यक्तिगत मानना है कि राजनीति में संयम और सुनने की कला होनी चाहिए। दूसरों की बात को ज्यादा सुनना तथा अपने विचारों को दूसरा पर लादने से परहेज होना चाहिए, पर इसके साथ साथ अगर आदमी सच का साथ दें और आम जनता, गरीबों की तथा समाज के हर वर्ग को एक सामान नजर से देखते हुए सबकी तरक्की की ओर आगे बढऩे की बात करें तो आम जनता को भी उसका साथ देना चाहिए। एक सैनिक में यह खूबी होती है कि वह अपने हित को सर्वोपरि न रखते हुए सबसे पहले देश और उसके बाद उस देश में रहने वाले लोगों के हित की चिंता करता है और सबके बाद अपनी बात करता है और आज हमारे देश को जरूरत है ऐसे ही कुछ लोगों की, जो राजनीति में आगे आएं और देश और देश में रहने वाले लोगों को सर्वोपरि रखते हुए उनके हितों की रक्षा करते हुए काम करें, न कि मात्र अपने आप को और अपने परिवार और सगे संबंधियों के ही लाभ के लिए काम करें। एक सैनिक अपनी जवानी को देश सेवा में लगाने के बाद अगर सेवानिवृत्ति के बाद जनसेवा या लोक सेवा में लगाना चाहता है तो वह उन सब गुणों में इक्कीस सिद्ध होगा जो एक प्रगतिशील देश के राजनेताओं में होने चाहिए। मेरे विचार में सैन्य पृष्ठभूमि से जनसेवा में पदार्पण एक सशक्त गणतंत्र और साफ-सुथरी राजनीति के लिए बहुत अहम कदम होगा।

कर्नल (रि.) मनीष

स्वतंत्र लेखक


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