जागरूक मतदाता ही लोकतंत्र का आधार

चुनाव कानूनों में आजादी के बाद से काफी महत्वपूर्ण बदलाव हुए हैं, लेकिन निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनाव के महत्व को कम नहीं किया जा सकता है…

हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव का बिगुल बजते ही जहां राजनीतिक पार्टियां सक्रिय होने लग पड़ी हैं, वहीं मतदाताओं की नब्ज को टटोलने का काम भी शुरू कर दिया है। लेकिन इन चुनावों में मतदाताओं के लिए जागरूक होना जरूरी है ताकि विधानसभा के इस उत्सव में सही नेता का चुनाव कर सकें। अगर मतदाता जागरूक नहीं होंगे तो अपने नेता का सही चुनाव भी नहीं कर पाएंगे। इसलिए उन्हें आने वाले विधानसभा के चुनावों में सही नेता का चुनाव करें, तभी लोकतंत्र की स्थापना हो सकती है और नेताओं को भी चाहिए कि चुनावों के दृष्टिगत ही मतदाताओं को अपना भगवान न मानें, बल्कि चुने जाने के पश्चात 5 वर्षों तक उनको भगवान मानें, तभी एक स्वस्थ लोकतंत्र की स्थापना हो सकती है। इसलिए मतदाताओं को भी चाहिए कि वे किसी प्रकार के लालच में न आकर अपने कीमती वोट को निर्भीक व निडर होकर अपना मतदान करें। इस बार 14वीं विधानसभा के चुनावों के लिए 5574793 मतदाता हैं जिनमें 28 लाख 46 हजार 201 पुरुष मतदाता हैं, वहीं महिला मतदाताओं की संख्या 27 लाख 88 हजार 556 है। इन चुनावों में 43175 ऐसे मतदाता हैं जिन्होंने हाल ही में 18 वर्ष की आयु पूर्ण की है। इसी तरह 56 हजार से अधिक दिव्यांग मतदाता इस बार अपने वोट का प्रयोग करेंगे। इन चुनावों में लगभग 1189 ऐसे मतदाता हैं जिनकी आयु 100 से अधिक हो चुकी है।

इन विधानसभा चुनावों में हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिला से संबंध रखने वाले 105 वर्षीय श्याम शरण नेगी भी अपने मतदान का प्रयोग करेंगे जो इस क्षेत्र से पहले मतदाता हैं। चुनाव कानूनों में आजादी के बाद से काफी महत्वपूर्ण बदलाव हुए हैं, लेकिन निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनाव के महत्व को कम नहीं किया जा सकता है। यह बेहतर ढंग से समझने के लिए कि क्या युवा अपने वोट की परवाह करते हैं, आइए हम युवा मतदाता भागीदारी के इतिहास की जांच करके शुरू करें। राष्ट्र निर्माण में युवा ही संपत्ति हैं। इसका अहसास 1988 में किया जा सकता है, जब 61वें संशोधन विधेयक ने मतदाताओं की पात्रता आयु को 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दिया था। इस बदलाव से युवाओं को अपने देश की जिम्मेदारी लेने के लिए प्रेरित करने की उम्मीद थी। हालांकि यह काफी हद तक असफल रहा क्योंकि 20वीं शताब्दी के अधिकांश समय में युवाओं की भागीदारी कम रही। हिमाचल में नामांकन के अंतिम दिन तक युवा वोट बना सकेंगे। भारतीय चुनाव आयोग ने यह फैसला लिया है। प्रदेश में 17 से 25 अक्तूबर तक नामांकन करने की तिथि घोषित की गई है। ऐसे में जो युवा 17 वर्ष के हैं और 25 अक्तूबर तक 18 वर्ष के हो जाएंगे, उन्हें अपना वोट बनाने का अधिकार होगा।

चुनाव आयोग ने नए मतदाताओं के लिए इस बार वेलकम किट देने का फैसला किया है। मतदान केंद्रों में इन वोटरों का स्वागत किया जाएगा। युवा मतदाताओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए सरकार द्वारा की गई पहली सक्रिय पहलों में से एक राष्ट्रीय मतदाता दिवस की स्थापना थी, जो 2011 से हर 25 जनवरी को मनाया जाता है। इसका उद्देश्य योग्य युवाओं को नामांकित करना और उन्हें मतदान में भाग लेने के लिए प्रेरित करना है। यह मतदाताओं के बीच चुनावी प्रक्रिया में प्रभावी भागीदारी बढ़ाने के लिए भी मनाया जाता है। यह पहल 2000 के दशक के कम युवा मतदान को आज के स्तर तक बढ़ाने में महत्वपूर्ण थी। युवा वोट को प्रोत्साहित करने का सबसे स्पष्ट तरीका शिक्षा और जागरूकता फैलाना है। लोकतंत्र में हर वोट मायने रखता है और युवाओं के लिए यह जरूरी है कि वे अपने वोट की कीमत जानें। युवाओं को अपने मौलिक अधिकारों की रक्षा, लोकतंत्र का जश्न मनाने और उनकी चिंताओं को सुनने के लिए मतदान करना चाहिए। युवाओं में आम समस्याओं को हल करने के लिए उन्हें मतदान में देश के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझना आवश्यक है। बैंगलोर पॉलिटिकल एक्शन कमेटी जैसे कई संगठनों ने पहली बार मतदाताओं को लामबंद करके युवाओं को वोट देने के लिए प्रोत्साहित किया है। हाल के आम चुनाव में लगभग 15 मिलियन पहली बार मतदाता (18 से 19 वर्ष की आयु) थे, जिन्हें लगभग 900 मिलियन मतदाताओं में जोड़ा गया था। लोकतांत्रिक देशों में लोग राजनीतिक शक्ति का स्रोत हैं। राजनीति में सक्रिय रूप से भाग लेने की उम्मीद से ही देश चल रहा है। आजकल सरकार फेसबुक और अन्य सेवाओं का भी उपयोग कर रही है क्योंकि आजकल अधिकतर युवा ऑनलाइन जुड़े हैं। फेसबुक सभी को रिमाइंडर जारी करेगा। युवा मतदाता चाहे पंजीकृत हों या नहीं, उन्हें सूचना जरूर जाएगी और उस माध्यम से वोट देने के लिए प्रेरित होंगे। ऐतिहासिक रूप से, युवा लोगों ने वृद्ध वयस्कों की तुलना में कम दरों पर मतदान किया है। 2018 और 2020 में युवा मतदाता मतदान में बड़ी वृद्धि देखी गई। हालांकि अभी बहुत काम करना बाकी है। हमारा शोध लगातार इंगित करता है कि कई युवा लोगों को सूचित मतदाता बनने के लिए (या प्राप्त करने में विफल) तैयारी अपर्याप्त है जिससे नस्ल/जातीयता, शैक्षिक प्राप्ति और अन्य सामाजिक, आर्थिक और जनसांख्यिकीय कारकों द्वारा मतदान दरों में महत्वपूर्ण बदलाव होते हैं। युवा जिन मूल मुद्दों से निपटना चाहते हैं, उन्हें गंभीर रूप से देखने से पहले, किसी को यह समझना चाहिए कि एक आम गलत धारणा यह रही है कि अधिकांश युवा धार्मिक रूप से संबद्ध या अत्यधिक वैचारिक नहीं हैं। हालांकि इनशॉट्र्स द्वारा किए गए सर्वेक्षण के परिणामों से पता चला है कि लगभग 40 फीसदी उत्तरदाताओं का मानना था कि विचारधारा वह कारक है जिस पर वे मतदान करते समय विचार करने की अत्यधिक संभावना रखते हैं। यह पिछले और भविष्य के चुनावों पर युवा वोटों के प्रभाव को समझने में महत्वपूर्ण है, क्योंकि आर्थिक और सामाजिक जरूरतों के अलावा धर्म और विचारधारा मतदाताओं को प्रभावित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। आज के युवाओं की मुख्य चिंताओं में नौकरी के अवसरों की कमी, महिलाओं की सुरक्षा, निष्पक्ष शासन की आवश्यकता और ग्रामीण विकास शामिल हैं जैसा कि चुनाव विश्लेषण रिपोर्टों के ढेरों द्वारा बताया गया है। भारत के 30 फीसदी से अधिक युवा बेरोजगार होने के कारण रोजगार सृजन और उच्च शिक्षा संबंधित मुद्दे सुर्खियों में रखते हैं। आने वाले कार्यबल के संकट को जोड़ते हुए, उच्च शिक्षा के लिए देश का खर्च 2019 तक पिछले 12 वर्षों से 1.47 फीसदी पर बना रहा था। यह युवाओं को इसके खिलाफ और अधिक बोलने के लिए प्रेरित कर रहा था।

प्रो. मनोज डोगरा

लेखक हमीरपुर से हैं

 


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App