हिंदी, चिंदी और बिंदी

By: Oct 20th, 2022 12:08 am

खुशी की बात यह है कि लगभग सभी भारतीय भाषाओं में यह गुण मौजूद है और हिंदी का ही नहीं, पंजाबी, बंगाली, मराठी, असमिया, तमिल, तेलुगू आदि सभी भारतीय भाषाभाषियों का एक बड़ा वर्ग है जो प्रगतिशील है, आगे बढ़ रहा है तथा और भी आगे बढऩा चाहता है। उसे समृद्ध साहित्य चाहिए, पाठ्यपुस्तकें चाहिएं, अपनी भाषा के समाचार चाहिएं, जानकारीपूर्ण लेख चाहिएं, तकनीकी सामग्री चाहिए। तकनीकी और कार्पोरेट जगत में जिसे बंडल और अनबंडल कहा जाता है, उसी के प्रयोग से रोजग़ार के नए अवसर ढूंढऩा बिल्कुल संभव है…

कुछ हिंदी भाषी प्रदेशों की बात छोड़ दें तो हमारा देश मूलत: अंग्रेजी में चलता है। दफ्तरों में फाइलों पर नोटिंग अंग्रेजी में होती है, अदालतों का काम अंग्रेजी में होता है, वरिष्ठ अधिकारी अंग्रेजी में बात करते हैं, कार्पोरेट जगत अंग्रेजी में बात करता है, फैसला ले सकने वाले सत्ताधारी लोग अंग्रेजी में सोचते, बोलते और लिखते हैं। अंग्रेजी जानने वाले लोगों को अच्छी नौकरी और अच्छी तनखाह मिलने की संभावना ज्यादा होती है। अंग्रेजी जानने वाले लोगों की प्रोमोशन के अवसर भी ज्यादा हैं और उनके लिए रोजग़ार के अवसर भी अपेक्षाकृत ज्यादा हैं। प्रसिद्ध अभिनेत्री श्रीदेवी की आखिरी कुछ फिल्मों में एक फिल्म थी इंगलिश-विंगलिश जिसमें यह दिखाया गया था कि उनकी अपनी बेटी उनकी उपेक्षा इसलिए करती है क्योंकि वह अंग्रेजी स्कूल में पढ़ती है, अच्छी अंग्रेजी बोल लेती है, लेकिन स्कूल के दूसरे बच्चों की मांओं की तरह उसकी अपनी मां अंग्रेजी नहीं बोल पाती। बहुत से घरों में ऐसा सचमुच होता है। बच्चे पढ़-लिख जाते हैं, फर्राटे से अंग्रेजी बोलते हैं और अपने उन्हीं मां-बाप की उपेक्षा करने लगते हैं जिन्होंने अच्छे स्कूल में पढ़ाने के लिए अपने बच्चे की फीस भरी थी। हिंदी के लगभग सभी अखबार अब अपनी खबरों में अंग्रेजी शब्दों का धड़ल्ले से प्रयोग करते हैं और कई बार तो यह प्रयास एकदम हास्यास्पद हो जाता है, तो भी यही चलता है। देश के कई हिस्सों में आज भी ऐसे लोग हैं जो हिंदी पढ़ते, बोलते या समझते नहीं हैं, और तो और हिंदी का विरोध भी करते हैं। यह हिंदी के चिंदी-चिंदी होने की दुखद दास्तान है। तस्वीर के इस दुखद पहलू के बावजूद तस्वीर का दूसरा रुख यह है कि बहुत से लोग और बहुत सी संस्थाएं हिंदी के कारण ही फल-फूल रही हैं।

बॉलीवुड ने हिंदी फिल्मों के माध्यम से देश में धाक जमाई है। हिंदी फिल्मों के अभिनेता देश भर में पहचाने जाते हैं, जबकि प्रादेशिक फिल्मों के अभिनेताओं की लोकप्रियता कदरन छोटे दायरे तक ही सीमित रह जाती है। देश का एक बड़ा वर्ग हिंदी भाषी है और इसलिए हिंदी जानने वालों के लिए भी रोजग़ार के कई ऐसे अवसर हैं जिनकी ओर अक्सर ध्यान नहीं जाता। कोरोना गुजऱ जाने के बावजूद अभी पुराने दिन नहीं लौटे हैं। इस कठिन दौर में जबकि नौकरियां गई हैं, लोग सडक़ पर आए हैं और परंपरागत ढंग की नौकरियों के अवसर खत्म होते जा रहे हैं, ऐसे में हमें नए दृष्टिकोण से सोचने की आवश्यकता है। बहुत से हुनर ऐसे हैं जिन्हें सीखकर नए रोजग़ार शुरू किए जा सकते हैं। लेखन और पत्रकारिता भी ऐसे ही हुनर हैं जो कई तरह के रोजग़ार दे सकते हैं। समस्या यह है कि हमारे देश के कालेज और विश्वविद्यालय इस नज़रिए से सोचते ही नहीं। पत्रकारिता का कोर्स करने वाले बच्चों को यही सिखाया जाता है कि वे किसी अखबार, टीवी चैनल या ऑनलाइन पोर्टल में नौकरी पा सकते हैं। इनमें से कुछ लोग जो किसी मीडिया घराने में नौकरी नहीं ले पाते, किसी जनसंपर्क कंपनी में काम तलाश करते हैं। एक और तथ्य यह है कि सालों तक मीडिया क्षेत्र में काम करने वाले लोगों को जब नौकरी मिलना बंद हो जाती है तो ज्यादातर लोग अपना न्यूज़ पोर्टल खोलने के अलावा कुछ और नहीं सोच पाते। हिंदी की इस समस्या को ध्यान में रखकर मैंने कई संस्थाओं से बात की।

मेरा सुझाव था कि पत्रकारिता का हुनर सीखकर व्यक्ति उद्यमी बन सकता है, कई तरह के व्यवसाय कर सकता है, खुद तो रोजग़ार में हो ही सकता है, दूसरों के लिए रोजग़ार का कारण बन सकता है। नौकरी ढूंढऩे वाला ऐसा व्यक्ति नौकरी देने वाला बन सकता है। परिणामस्वरूप कहानी लेखन महाविद्यालय तथा समाचार4मीडिया ने पत्रकारिता से संबंधित कार्यशालाओं के आयोजन की घोषणा की। देश भर में यह अकेला प्रयास था जहां पत्रकारिता के हुनर से संबंधित अलग-अलग व्यवसाय शुरू करने की संभावना पर बात की गई। कार्यशाला के प्रतिभागियों का उत्साह देखते ही बनता था। हिंदी भाषा में अलग-अलग तरह के हुनर सिखाने वाली संस्था ‘जीतो दुनिया’ ने भी इस ओर बड़ी पहल की है। सिर्फ हिंदी जानने और हिंदी में ही काम करने वाले लोगों के लिए यह एक अच्छी खुशखबरी है। यह हिंदी के माथे पर लगी खुशनुमा बिंदी है। भाषा एक जीवंत वस्तु है। समय के साथ भाषा का विकास होता रहता है। हर भाषा दूसरी भाषाओं के कुछ शब्दों को खुद में समेट कर समृद्ध होती है। अपनी भाषा में दूसरी भाषा के शब्दों का समावेश हमारी भाषा की उदारता का प्रतीक है जो इसे और समृद्ध बनाता है।

हिंदी ने उर्दू, फारसी, अरबी और अंग्रेजी सहित कई भाषाओं के शब्दों को खुद में समेटा है। इन शब्दों के हिंदी में आ मिलने से भाषा में प्रवाह आया है, रवानगी बढ़ी है, और यह और भी आसान और रुचिकर हो गई है। यह कमजोरी नहीं है, खूबी है। यह हिंदी के माथे पर लगी एक और खुशनुमा बिंदी है। भारतवर्ष में हिंदी भाषी पाठकों का बड़ा बाजार है। विश्वप्रसिद्ध लेखकों की पुस्तकों और रचनाओं का हिंदी अनुवाद अपने आप में एक बड़ा व्यवसाय है। हिंदी भाषा में पत्रकारिता करने वालों के लिए अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद एक सहज-सरल क्रिया है। कार्पोरेट जगत की प्रेस विज्ञप्तियों का हिंदी अनुवाद, वेबसाइटों के लिए हिंदी में सामग्री तैयार करना आदि कई ऐसे व्यवसाय हैं जो हिंदीभाषी पाठकों की आवश्यकता हैं। हिंदी में पढऩे-लिखने वाले लोग कम महत्वाकांक्षी नहीं हैं, वे आगे बढऩा चाहते हैं और यदि उन्हें उनकी भाषा में उपयुक्त सामग्री मिले तो वे उसे पसंद करेंगे ही। हिंदी पाठकों का बाजार बहुत विशाल है, कल्पनाशक्ति के प्रयोग से इस विशद बाजार का दोहन बहुत आसान है। ये सिर्फ कुछ ही उदाहरण हैं। ऐसे अनेकों उदाहरण मौजूद हैं जहां हिंदी में काम करने वाले लोगों ने रोजग़ार के नए, अनछुए आयाम खोज निकाले हैं। हाल ही में मध्य प्रदेश में एमबीबीएस की पढ़ाई के लिए हिंदी माध्यम की सुविधा आरंभ की गई है।

यह हिंदी के माथे की एक सुनहरी खुशनुमा बिंदी है। हिंदी की ये खुशनुमा बिंदियां सिर्फ हिंदी तक ही सीमित नहीं हैं। खुशी की बात यह है कि लगभग सभी भारतीय भाषाओं में यह गुण मौजूद है और हिंदी का ही नहीं, पंजाबी, बंगाली, मराठी, असमिया, तमिल, तेलुगू आदि सभी भारतीय भाषाभाषियों का एक बड़ा वर्ग है जो प्रगतिशील है, आगे बढ़ रहा है तथा और भी आगे बढऩा चाहता है। उसे समृद्ध साहित्य चाहिए, पाठ्यपुस्तकें चाहिएं, अपनी भाषा के समाचार चाहिएं, जानकारीपूर्ण लेख चाहिएं, तकनीकी सामग्री चाहिए। तकनीकी और कार्पोरेट जगत में जिसे बंडल और अनबंडल कहा जाता है, उसी के प्रयोग से रोजग़ार के नए अवसर ढूंढऩा बिल्कुल संभव है। उदाहरण के लिए हिंदी का जानकार एक पंजाबी भाषी व्यक्ति हिंदी से पंजाबी में और पंजाबी से हिंदी में अनुवाद के अवसर ढूंढ़ सकता है। कल्पनाशक्ति के प्रयोग से हम ऐसे कई अवसर खोज सकते हैं। यह हिंदी की खुशनुमा बिंदी है। अत: सिर्फ हिंदी या किसी भी भारतीय भाषा में पढऩे-लिखने वाले व्यक्ति के लिए हीनभावना से ग्रस्त होने का कोई कारण नहीं है। हिंदी की बिंदी बहुत बड़ी है, बहुत खूबसूरत है, इसका लाभ लीजिए और सफलता के उच्चतम शिखर तक पहुंचिए। आमीन!

पी. के. खुराना

राजनीतिक रणनीतिकार

ई-मेल: indiatotal.features@gmail.com


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App