राजनीति के अखाड़े में मंझे हुए पहलवान थे मुलायम

By: Oct 10th, 2022 9:43 pm

82 साल की उम्र में मुलायम सिंह यादव अपने साथ जुड़ी कई यादों को यहीं छोडक़र इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह गए हैं। लंबे राजनीतिक जीवन में कई ऐसे घटनाक्रम हैं, जो मुलायम को पॉलिटिक्स के अखाड़े में भी उस्ताद बनाते हैं। अखाड़ों पर बड़े-बड़े पहलवानों को चित करने वाले मुलायम सिंह यादव राजनीति के अखाड़े में भी मंझे हुए पहलवान माने जाते रहे। बड़े-बड़े दावों से उन्होंने राज्य ही नहीं देश की हवा भी बदल कर रख दी…

कार सेवकों पर गोली चलाने का आदेश

साल 1967 में पहली बार विधानसभा की सीढ़ी चढक़र राजनीति में कदम रखने वाले मुलायम सिंह यादव महज 22 साल में देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री भी बन गए। हालांकि एक साल बाद ही अयोध्या में राम मंदिर पर आंदोलन तेज होने के बाद उनका एक फैसला आज भी लोगों के जेहन में तरोताजा है। 1990 में उन्होंने आंदोलनकारी कार सेवकों पर गोली चलाने का आदेश दिया था। इस घटना में कई लोग मारे गए। उनके इस फैसले की काफी आलोचना भी हुई थी। मुलायम ने खुद एक बार कहा था कि वह फैसला उनके लिए आसान बिलकुल नहीं था।

जनता दल से अलग होकर बनाई सपा

साल 1992 में नेताजी ने जनता दल से अपनी राहें जुदा कर दी और समाजवादी के रूप में अपनी पार्टी का गठन करके देश की राजनीति में कदम आगे बढ़ाए। पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यकों के बीच लोकप्रिय मुलायम सिंह यादव के लिए यह एक बड़ा कदम था। मुलायम सिंह यादव तीन बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। इसके अलावा केंद्र की राजनीति में भी सक्रिय रहे। वह देश के रक्षा मंत्री भी रह चुके हैं।

कल्याण सिंह से हाथ मिलाकर चौंकाया

कहा जाता था कि विरोधियों को इल्म भी होता था और मुलायम सिंह यादव राजनीतिक दांव चलकर पटखनी दे देते थे। एक ऐसा ही कदम नेताजी ने साल 2003 में चला। जब भाजपा से निकाले गए कल्याण सिंह के साथ मुलायम ने हाथ मिलाया। हालांकि इससे पहले साल 1999 में कल्याण सिंह ने अपनी अलग पार्टी भी बनाई। साल 2002 में हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में सिर्फ चार सीट जीत पाई। मुलायम ने कल्याण सिंह के साथ गठबंधन में सरकार बनाई और उनके बेटे राजवीर सिंह को सरकार में महत्त्वपूर्ण पद देकर दोस्ती निभाने से भी नहीं चूके। एक साल बाद कल्याण सिंह फिर से भाजपा में शामिल हुए, लेकिन 2009 में कल्याण सिंह ने फिर मुलायम का हाथ थामा।

जब बचाई मनमोहन सरकार

मनमोहन सिंह के नेतृत्व में देश में यूपीए सरकार थी। साल 2008 में अमरीका के साथ परमाणु करार के बाद जब वामपंथी दलों ने यूपीए से अपना गठबंधन पीछे कर दिया, तो उस वक्त मुलायम सिंह ही थे, जो संकटमोचक बनकर सामने आए और यूपीए सरकार को गिराने से बचा लिया। मुलायम ने बाहर से समर्थन करके मनमोहन सरकार बचाई थी।

अखिलेश को यूपी की सत्ता पर बैठाया

मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी ने 2012 के यूपी विधानसभा चुनाव में विरोधियों को चित किया और 403 सीटों में से 223 सीटों पर जीत हासिल की। उस वक्त भी माना जा रहा था कि मुलायम चौथी बार प्रदेश के मुख्यमंत्री का पद संभालेंगे, लेकिन तभी मुलायम ने एक और राजनीतिक दांव चला और अपने बेटे अखिलेश यादव के नाम पर सीएम पद की मुहर लगा दी। मुलायम ने सियासी विरासत सौंपकर अखिलेश के राजनीतिक जीवन को राह दिखाई। किसी ने भी अखिलेश के नाम पर आपत्ति नहीं जताई। हालांकि यह और बात है कि बाद में अखिलेश के नेतृत्व पर सवाल उठाकर चाचा शिवपाल यादव ने अलग राहें पकड़ी। कुछ वक्त बाद मुलायम सिंह को भी साइडलाइन करके अखिलेश पार्टी के चीफ बन गए।

कार्यकर्ताओं से कहा चिल्लाओ नेताजी मर गए

तारीख 4 मार्च 1984, दिन रविवार। नेताजी की इटावा और मैनपुरी में रैली थी। रैली के बाद वह मैनपुरी में अपने एक दोस्त से मिलने गए। दोस्त से मुलाकात के बाद वह एक किलोमीटर ही चले थे कि उनकी गाड़ी पर ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू हो गई। गोली मारने वाले छोटेलाल और नेत्रपाल नेताजी की गाड़ी के सामने कूद गए। करीब आधे घंटे तक छोटेलाल, नेत्रपाल और पुलिसवालों के बीच फायरिंग चलती रही। छोटेलाल नेताजी के ही साथ चलता था, इसलिए उसे पता था कि वह गाड़ी में किधर बैठे हैं। यही वजह है कि उन दोनों ने नौ गोलियां गाड़ी के उस हिस्से पर चलाईं, जहां नेताजी बैठा करते थे, लेकिन लगातार फायरिंग से ड्राइवर का ध्यान हटा और उनकी गाड़ी डिस्बैलेंस होकर सूखे नाले में गिर गई। नेताजी तुरंत समझ गए कि उनकी हत्या की साजिश की गई है। उन्होंने तुरंत सबकी जान बचाने के लिए एक योजना बनाई। उन्होंने अपने समर्थकों से कहा कि वो जोर-जोर से चिल्लाएं ‘नेताजी मर गए। उन्हें गोली लग गई। नेताजी नहीं रहे।’ जब नेताजी के सभी समर्थकों ने ये चिल्लाना शुरू किया तो हमलावरों को लगा कि नेताजी सच में मर गए। उन्हें मरा हुआ समझकर हमलावरों ने गोलियां चलानी बंद कर दीं और वहां से भागने लगे, लेकिन पुलिस की गोली लगने से छोटेलाल की उसी जगह मौत हो गई और नेत्रपाल बुरी तरह घायल हो गया। इसके बाद सुरक्षाकर्मी नेताजी को एक जीप में 5 किलोमीटर दूर कुर्रा पुलिस स्टेशन तक ले गए।


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