मां-बाप से बढक़र हितचिंतक दूसरा कोई नहीं

उंगली पकडऩे वाले जब नजर नहीं आते तो आंखें धुंधला जाती हैं। मां-बाप एक ऐसी नेमत है जो एक बार छिन जाए तो दोबारा लौट कर कभी नहीं आती…

माता-पिता अपनी हर खुशी का त्याग कर अपने बच्चों की देखभाल करते हैं तथा हमेशा उनकी फिक्र करते रहते हंै। संसार में सबसे पवित्र रिश्ता मां-बाप का ही होता है। वे तो भगवान से भी बढक़र होते हैं। अपने अंतिम सांसों तक वे अपने बच्चों का ख्याल रखते हैं तथा बच्चों का भी फर्ज बनता है कि वे उनकी सेवा करें व उचित सम्मान करें। वे बच्चों को नया जीवन देते हैं तथा बच्चे उनके कर्ज से कभी मुक्त नहीं हो सकते। मगर आज के जमाने के लोग माता-पिता के महत्व को भूल रहे हैं तथा उन्हें केवल आश्रित समझते हंै। कई लोग तो उन्हें लावारिस की तरह कहीं भी मंदिरों या वृद्ध आश्रमों में छोड़ आते हैं। गरीब व्यक्ति में अब भी कुछ संस्कार बचे हुए हैं, मगर अमीर व्यक्ति अपने ऐशो-आराम की जिंदगी व्यतीत करना चाहते हैं तथा अक्सर माता-पिता को नकारते चले जाते हैं। कुछ लोग अपनी पत्नियों के वशीभूत होकर मां-बाप से किनारा कर लेते हैं। यह भी देखा गया है कि जिस मां-बाप के एक से ज्यादा पुत्र होते हैं, वे माता-पिता को पालने की जिम्मेदारी एक-दूसरे पर डालते रहते हैं तथा अपने बूढ़े माता-पिता को भटकने के लिए मजबूर कर देते हंै। बच्चे अपने माता-पिता व पत्नी के बीच सामंजस्य व संतुलन बनाने में असफल हो जाते हैं तथा रिश्तों की डोर को तोडक़र तार-तार कर देते हैं। हालांकि सरकार ने बूढ़े मां-बाप व आश्रितों के भरण पोषण के लिए वर्ष 2007 में एक मजबूत कानून बना कर ट्रिब्यूनल्स की स्थापना की है मगर बूढ़े मां बाप शर्म व अपनी इन्सानियत के कारण कोर्ट कचहरी में नहीं जाना चाहते तथा घर में तंगी का समय काट कर ही सब्र का प्याला पी-पी कर अपने प्राण त्याग देते हैं।

सरकारी मुलाजिमों के ऊपर तो कुछ नियंत्रण कर लिया जाता है क्योंकि नियमों के अनुसार उन्हें आचार संहिता की पालना करनी आवश्यक होती है, मगर दूसरे लोग कुछ समय तक तो बाध्य रहते हैं, मगर चंद महीनों के बाद ही अवहेलना करना शुरू कर देते हैं तथा बूढ़े मां बाप अपनी असमर्थता के कारण अपनी हार मान लेते हैं तथा उन्हें कई प्रकार की बीमारियां लग जाती हैं। बुजुर्गों में डिमेशिया की बीमारी अक्सर लग जाती है। उनकी याददाश्त कमजोर हो जाती है। इसके अलावा उच्च रक्तचाप, मधुमेह, टीबी जैसी बीमारियां उन्हें घेर लेती हैं। वो जिद्दी हो जाते हैं तथा बात-बात पर गुस्सा करना शुरू कर देते हैं। कुछ लोगों को पार्किन्स जैसी नर्वस सिस्टम संबंधी बीमारियां लग जाती हैं जोकि बढ़ती आयु के कारण होनी स्वाभाविक होती है। दूसरी तरफ बच्चे उनकी मनोवैज्ञानिक सोच का सही आकलन नहीं करते तथा बुजुर्गों को भला बुरा कहना शुरू कर देते हंै। अकेलापन उन्हें धीरे-धीरे डिप्रेशन की ओर धकेलना शुरू कर देता है। बुजुर्गों में आत्महत्या की घटनाएं दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं जोकि बच्चों की बेरुखी का ही परिणाम है। इस समय जापान जोकि प्रगतिशील देश है तथा जिसमें जीवन प्रत्याशा भी सबसे अधिक है, मगर इसके बावजूद वहां पर बुजुर्गों द्वारा की जाने वाली आत्महत्या की घटनाएं सबसे अधिक हंै। इसके साथ-साथ संयुक्त परिवार प्रथा भी लगभग टूट चुकी है तथा कोई भी व्यक्ति एक दूसरे की मदद नहीं करता अन्यथा संयुक्त परिवार में लोग इक्ठ्ठे रह कर बुजुर्गों की देखभाल करते रहते थे। ऐसे कई उदाहरण देखने को मिलते हैं जो इन्सानियत की डोर को झिंझोड़ कर रख देते हैं तथा सोचने पर मजबूर कर देते हैं कि आज की पीढ़ी के लोग कैसे हैवान बनते जा रहे हंै। कभी करोड़ों की रेमंड कम्पनी के मालिक विजयपद सिफानियां की तूती बोला करती थी, मगर आज उसके बेटे सिफानियां ने उसे सारी सम्पत्ति से बेदखल करके उसे एक मामूली से फ्लैट में रहने को मजबूर कर दिया है। इसी तरह एक अरबपति महिला मुम्बई के पॉश इलाके के अपने करोड़ों के फ्लैट में पूरी तरह गलकर कंकाल बन गई जबकि विदेश में बहुत बड़ी नौकरी करने वाले करोड़पति बेटे को पता ही नहीं चला कि मां कब मर गई।

हमारी पुरातन संस्कृति में अनेकों ऐसे उदाहरण हैं जो मां बाप व बच्चों के प्रगाढ़ रिश्तों व उनकी वफादारी का पथ प्रदर्शन करते हैं। श्री राम ने तो अपनी सौतेली मां के कहने पर ही अयोध्या की राजगद्दी को त्याग दिया था तथा अपनी पत्नी सीता जी के साथ वनवास पर चले गए थे। श्री श्रवण कुमार ने अपने अंधे माता पिता को तीर्थयात्रा करवाने के लिए उन्हें अपने कन्धों पर दो टोकरियां तथा डंडे (कांवडिय़ां) की मदद से भ्रमण करवाया था तथा माता पिता की प्यास बुझाने के लिए जब वो बावड़ी पर पानी लेने के लिए गया तो दशरथ के तीर से मारा गया था। इसी तरह चाणक्य जोकि चन्द्रगुप्त मौर्य के प्रधानमंत्री रहे, ने भी अपनी मां की ममता का सत्कार करते हुए एक बहुत बड़ी मिसाल कायम की थी। कहते हैं कि उसकी मां ने चाणक्य को कहा कि उसका एक दांत बाहर निकला हुआ जो ज्योतिष के अनुसार इंगित करता है कि वह उसे छोडक़र कहीं चला जाएगा। उसने मां की ममता का आदर करते हुए अपना बाहर निकला हुआ दांत तोड़ दिया था, भले ही वह बाद में प्रधानमंत्री बना। इसी तरह महाभारत में भी एक प्रसंग है कि जब नकुल, सहदेव, भीम, कृष्ण व युधिष्ठिर को जंगल में प्यास लगी थी तब युधिष्ठिर के सभी भाई यक्ष के सवालों का उत्तर न दे पाने पर मारे गए थे तथा जब युधिष्ठिर से अनेकों प्रश्नों में यह प्रश्न पूछा गया कि पृथ्वी से भारी व आसमान से ऊंचा कौन है तब युधिष्ठिर ने यक्ष को सही उत्तर देकर कि वो मां और बाप ही होते हैं, उसे अनुत्तरित कर दिया था। मां बाप की जिंदगी अपनी औलाद के संघर्ष में ही गुजर जाती है।

मां बाप की सेवा करना ईश्वर की इबादत करने से कहीं ज्यादा होती है। मां बाप तो ऐसे होते हैं जिनके होने का एहसास नहीं होता लेकिन न होने का एहसास बहुत होता है। मां बाप वो हस्ती है जिनके पसीने की एक बूंद का कर्ज भी औलाद नहीं चुका सकती। मां बाप का दम घुट जाता है जब औलाद यह कह देती है ‘कि तुमने मेरे लिए किया क्या है’। याद रखें कि दुनिया में लाने वाले जब दुनिया में नहीं रहते तो दुनिया अंधेरी लगती है। चलना फिरना सिखाने वाले जब वो खुद चलने फिरने के काबिल नहीं रहते तो दिल शिद्दत से भर जाता है। सहारा देने वालों को जब खुद सहारे की जरूरत पड़ जाए तो इन्सान डगमगाने लगता है। रास्ता दिखाने वाले को जब रास्ता नहीं दिखाई देता तथा बोलना सिखाने वाले खामोश हो जाते हैं तो आवाज और अलफाज बेमायने हो जाते हैं। मां बाप तो वो बहार है जिस पर एक बार फिजां आ जाए तो फिर यह बहार नहीं आती। उंगली पकडऩे वाले जब नजर नहीं आते तो आंखें धुंधला जाती हैं। मां-बाप एक ऐसी नेमत है जो एक बार छिन जाए तो दोबारा लौट कर कभी नहीं आती।

राजेंद्र मोहन शर्मा

रिटायर्ड डीआईजी


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