भैया जी का टिकट मत काटो प्लीज

By: Oct 12th, 2022 12:05 am

सबको सोए सोए भी तंग करने वाले उस वक्त मुंह लटकाए दिखे तो मुझे बहुत प्रसन्नता हुई। चलो, ऊंट भी आज पहाड़ के नीचे आया। वर्ना कल तक तो ऊंट ही पहाड़ों को अपने नीचे लिया करता था, बौराया हुआ, दौराया हुआ। मैंने उनके लटके मुंह को तनिक सीधा करने की अनचाही कोशिश करते उनसे उनका मुंह लटका होने का कारण पूछा तो वे मेरे कंधे पर अपना सिर रख फफक कर रोते बोले, ‘क्या बताऊं यार! बहुत बुरी खबर है।’‘क्या हो गया! साली के यहां ईडी की रेड पड़ गई?’ ‘इससे भी बुरी खबर।’ मैंने उन्हें मन ही मन हंसते सांत्वना देते लालायित हो पूछा तो वे उसी तरह मेरे कंधे पर अपना सिर टिकाए मेरे कंधे वाले कुरते के हिस्से में अपना नाक साफ करते बोले, ‘बंधु! लगता है, अबके मेरा टिकट कट रहा है।’

‘टिकट कटे बोले तो? ऐसे कैसे हो सकता है? आप जैसे फणाधार का टिकट काट कर पार्टी को अपना पत्ता कटवाना है क्या? आप तो पार्टी के सबसे अधिक जिताऊ नेता हो। किसी ने गलत अफवाह फैला दी होगी आपके बारे में भैयाजी! आपसे अब चला जा रहा हो या न, पर आपके बिना पार्टी एक कदम भी नहीं चल सकती। पार्टी ने आप जैसे कद्दावर के साथ मजाक मजाक में मजाक किया होगा शायद! वैसे भी आजकल पार्टियों में मजाक ही तो चल रहे हैं।’ ‘तो मतलब अब…।’ ‘मतलब अब से मैं अपनों की सेवा से वंचित होने जा रहा हूं! पार्टी की इस धृष्टता के लिए मुझे मेरे अपने माफ करें।’ कह वे और भी जोर जोर से रोने लगे। ‘तो इसमें डरने की क्या बात है भैयाजी! इस पार्टी से नहीं तो टिकट उस पार्टी से सही। आपको टिकटों की कमी है क्या?’ ‘तुम नहीं जानते नई पार्टी में पांव जमाने के लिए कितनी जद्दोजहद करनी पड़ती है? माना मैं उम्र की परवाह नहीं करता ! पर नई पार्टी में नए सिरे से अपने को जमाना पड़ता है। नए सिरे से खाने कमाने का ग्राउंड बनाना पड़ता है।

ऊपर से उस पार्टी के पुराने कार्यकर्ता जरा सा भी गुर्राने पर पागल कुत्तों की तरह काटने पड़ते हैं।’ ‘तो बहुत हो गई अब ये अपनों की सेवा! सारी उम्र आपने भैयाजी अपनों की सेवा के सिवाय और किया ही क्या ! अनपढ़ तक तो प्रोफेसर बनवा दिए। अब कुछ अपने लिए भी तो जी लो भैयाजी’, मैंने उन्हें हजार चूहे खाकर गंगा तट पर लेटने की बुरी सलाह दी तो वे बोले, ‘ये कैसी बातें कर रहे हो तुम मेरे खास होकर भी बंधु। तुम नहीं जानते कि इस संसार में नेता का सबसे बड़ा कोई दु:ख है तो बस, टिकट कटने का दु:ख है। इस संसार में कोई भी नेता किसी से नहीं डरता। डरता है तो बस, टिकट कटने से। टिकट में पावर की असीम से ससीम संभावनाएं छिपी होती हैं। दो रूखी सूखी रोटी खाकर चैन से सोने वाले तुम क्या जानो कि कुर्सी की भूख क्या होती है! पावर का सलाद क्या होता है! इस भूख को शांत करने के लिए हमारी क्लास का क्या नहीं करता? अपने को बचने के लिए कहां कहां नहीं मरता! कहां कहां अपना जमीर नहीं बेचता! किस किस के चरणों में नहीं लोटता ! यह सब किसके लिए? जनता के लिए? न बंधु न! पावर के लिए, कुर्सी के लिए’, और फिर वे मेरे कंधे के सहारे ही बेहोश हो गए।

पता नहीं, अब उन्हें कब होश आए? हे उनका टिकट काटने वाले परमादरणियो! आपसे मेरी दोनों हाथ जोड़ गुजारिश है कि आपका जनता का कुछ भी काटो, पर प्लीज! अपने भैयाजी की टिकट न काटो। उनका टिकट कट गया तो उनके बचे ऊंचे पदों पर आसीन होने वालों क्या होगा जनाब! अस्सी साल के युवा के साथ ऐसा भद्दा मजाक करना अच्छा लगता है जी क्या! इस अनुकंपा के लिए मेरे परिवार के सारे वोट आपके। लो। आरबीआई के गवर्नर की तरह वचन दिया!

अशोक गौतम

ashokgautam001@Ugmail.com


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