सामाजिक-मानवीय मूल्यों का प्रतिबिंब रामलीला

राम नाटक हमारी सांस्कृतिक, सामाजिक तथा सामाजिक मूल्यों की विरासत एवं प्रतिबिंब है। वर्तमान समय में परंपरागत रूप से चल रहे रामनाटक के मंचन में भाग लेकर एवं दर्शक बन कर लोगों को आनंद लेना चाहिए तथा मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम के आदर्शों से अपने जीवन को सफल बनाने का प्रयास करना चाहिए। आधुनिक युग में भी रालीलाएं होना गर्व की बात है…

अति भौतिकवादी, स्वार्थ परायणता, महत्वाकांक्षी तथा वर्तमान भागदौड़ की जि़ंदगी में धन्य हैं वे लोग जो आज भी रामनाटक देखते हैं, रामलीला में अपना किरदार निभाते हैं। रामनाटक बच्चों को भी दिखाते हैं तथा रामायण के पात्रों से कुछ न कुछ अपने जीवन में ग्रहण तथा आत्मसात करते हैं। आज प्रत्येक व्यक्ति चौबीस घंटे मोबाइल, टीवी तथा विभिन्न संचार संसाधनों से चिपका हुआ है। सोशल मीडिया के ट्विटर, फेसबुक, यूट्यूब, स्नैपचैट, वाट्सएप, इंस्टाग्राम तथा गूगल में रम चुके व्यक्ति के पास सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक तथा सामूहिक कार्यों के लिए समय नहीं है। नि:स्वार्थ भाव से कार्य करने वाले लोग बहुत कम मिलते हैं। मोबाइल और टीवी संस्कृति ने जैसे हमारे सरल एवं सामान्य जीवन को लील कर दिया हो। मोबाइल से चिपका माता-पिता के सामने बैठा हुआ बच्चा भावनात्मक रूप से उनके पास नहीं होता। वह अपनी आयु, अवस्था तथा मनमिजाज़ के अनुसार दुनिया के किसी भी हिस्से में संचार संसाधनों के माध्यम से गोते लगा रहा होता है। आज की पीढ़ी की व्यस्त मां अपने बच्चे को चुप तथा व्यस्त करने के लिए मोबाइल देकर अपना पल्ला झाड़ लेती है। अप्रत्यक्ष रूप से विकास के दौर में हम किस विनाशलीला का शिकार हो रहे हैं। हमारा समाज, रिश्ते-नाते, सम्बन्ध, संस्कृति, परम्पराएं, संस्कार, रीति-रिवाज़, मानवीय मूल्य किस प्रकार से शिथिल हो रहे हैं और हमें महसूस भी नहीं हो रहा। भौतिकवाद में मदमस्त व्यक्ति झूम रहा है। रामायण में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम के उत्तम पात्र के अतिरिक्त अन्य सभी पात्रों से वास्तविक जीवन की सुखद तथा दु:खद परिस्थितियों में जीवन व्यवहार की शिक्षा मिलती है। जब कोई व्यक्ति रामायण के विभिन्न पात्रों का अभिनय करता है तो उसका अनुभव एवं आनंद ही कुछ और है। पूर्व से ही हमारी संस्कृति में रामायण को मंच पर अभिनीत किया जाता रहा है।

अप्रशिक्षित तथा समाज में व्यक्तिगत रूप से परिचित स्थानीय कलाकारों द्वारा विभिन्न पात्रों का अभिनय देखना, कभी न भूलने वाला, कभी पूर्व सुनिश्चित किए गए अभिनय में ग़लती कभी मंच के पीछे संवाद याद करवाने वाले व्यक्ति से भूल, प्राकृतिक रूप से चूक होने का आनन्द लेने का भी अपना ही आनन्द रहता है। अप्रशिक्षित कलाकारों तथा स्वाभाविक रूप से उनके किरदार में चूक होने पर हास्य तथा व्यंग्य होने से उत्पन्न आनन्द का भी अपना ही मज़ा है। गांव, गली, नुक्कड़ तथा शहर में राम नाटक समितियों द्वारा रामलीलाओं का आयोजन होना किसी वार्षिक पर्व से कम नहीं। गांव के कलाकार तथा आयोजक बहुत ही उत्सुकता से राम नाटकों की प्रतीक्षा करते हैं। समाज में विभिन्न कार्यों में रुचि रखने वाले नि:स्वार्थ एवं समर्पित भाव से कार्य करने वाले व्यक्तियों को उनकी रुचि के अनुसार कार्य सौप दिए जाते हैं। पितृपक्ष में श्राद्धों के पश्चात शरद नवरात्रों में होने वाले इन राम नाटकों के आयोजित होने से पूर्व बैठकें आयोजित कर सदस्यों को विभिन्न कार्य सौंप दिए जाते हैं। इनमें से आयोजन के दान-दक्षिणा इकट्ठा करने तथा विभिन्न संसाधनों के संग्रह करने की जि़म्मेदारी दी जाती है। विभिन्न पात्रों के परिधानों को निकाल कर धूप लगवाई जाती है, पोशाकों को ड्राईक्लीन करवाया जाता है, मेकअप का सामान, स्टेज सैटिंग के सभी उपकरणों, साज-सज्जा का सामान, संगीत वाद्ययंत्रों, गायकों, वादकों, नर्तकों, बिजली-पानी, दर्शकों के बैठने की व्यवस्था आदि निश्चित कर दी जाती है।

विभिन्न पात्रों का किरदार निभाने के लिए स्थानीय पात्रों का उनकी कद-काठी, आवाज़ रूप रंग तथा भाव भंगिमाओं को देख कर रोल बांट दिए जाते हैं। रामायण में अभिनय के लिए सभी प्रकार के बड़े, बूढ़े, युवा, बच्चे छोटे-मोटे, लम्बे सभी तरह के लोग उपयुक्त पाए जाते हैं। स्त्री पात्रों का अभिनय आमतौर पर पुरुषों द्वारा ही अभिनीत किए जाते हैं। अभिनय का प्रशिक्षण वानर सेना के वानरों, राक्षसों, द्वारपालों तथा प्रहरियों के किरदारों से प्रारंभ हो जाता है। इससे धीरे-धीरे उनका डर समाप्त हो जाता है तथा उनमें उत्साह तथा अनुभव भी हो जाता है। इन कलाकारों में शहर के छोटा-मोटा कारोबार करने वाले व्यापारी, फल बेचने वाले, होटल-ढाबे में काम करने वाले, मन्दिरों के पुजारी, सामान्य कर्मचारी ही होते हैं। बीस-पच्चीस दिन पहले रामायण के विभिन्न दृश्यों की रिहर्सल शुरू हो जाती है। सभी लोग समर्पित भाव, विधि-विधान तथा भगवान श्री राम का आदेश मानकर श्रद्धा भाव से इस कार्य को सामूहिक रूप से सम्पन्न करते हैं। इस समय में रामायण के पात्र दस दिन शराब या मांसाहार को हाथ नहीं लगाते। निश्चित रूप से जो लोग पूरी निष्ठा एवं पवित्रता से इस प्रकार के सामूहिक एवं संगठनात्मक कार्य करते हैं, उनका अनुभव चिरस्मरणीय एवं अवर्णीय होता है ।

इस अनुभव को केवल अनुभूत किया जा सकता है तथा इसका आनंद लिया जा सकता है। रामायण मंचन का इतिहास है कि इस मंच ने भारतीय सिनेमा तथा थियेटर को महान कलाकार दिए हैं। सिनेमा के पूर्वकाल में रामायण, महाभारत, श्रीकृष्ण, सत्यभामा, सत्यवादी हरिश्चंद्र, चन्द्रगुप्त तथा अनेक धार्मिक एवं ऐतिहासिक चरित्रों तथा घटनाओं से सम्बन्धित फिल्मों का ही निर्माण हुआ है। प्रारम्भिक सिनेमा तथा नामी-गिरामी अभिनेता भी रामलीला की उपज हैं। राम नाटकों से बहुत अच्छे सामाजिक कार्यकर्ता, नेता तथा अभिनेता निकले हैं। रामायण के मंचन के माध्यम से सामान्य कलाकारों के हाव-भाव, मुख-मुद्रा तथा उत्पन्न प्राकृतिक परिस्थितियों की हास्य घटनाएं वर्षों तक हमारे कानों में गूंजते रहती हैं। रामायण की शिक्षा तथा जीवन पद्धति को हम इसके अभिनय से अनुभव कर सकते हैं। राम नाटकों के संस्कारित युवा कलाकार ज्ञान, ध्यान, श्रद्धा, शुचिता, पवित्रता तथा शुद्धता से नि:शुल्क कार्य करते हैं। राम नाटक हमारी सांस्कृतिक, सामाजिक तथा सामाजिक मूल्यों की विरासत एवं प्रतिबिंब है। वर्तमान समय में परंपरागत रूप से चल रहे रामनाटक के मंचन में भाग लेकर एवं दर्शक बन कर लोगों को आनंद लेना चाहिए तथा मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम के आदर्शों से अपने जीवन को सफल बनाने का प्रयास करना चाहिए।

प्रो. सुरेश शर्मा

लेखक घुमारवीं से हैं


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