रिक्रूटेबल मेल पॉलिसी में संशोधन की जरूरत

सैन्यबलों में युवाओं की भर्ती का पैमाना राज्यों की जनसंख्या के आधार पर नहीं चाहिए, बल्कि शौर्य बलिदान की गौरवशाली विरासत, वीरता पदकों के शानदार इतिहास व भौगोलिक परिस्थितियों के आधार पर होना चाहिए। पुलिस स्मृति दिवस पर अर्ध सेना बलों के शहीदों को नमन…

भारत के समस्त पुलिस बल 21 अक्तूबर का दिन ‘पुलिस स्मृति दिवस’ के तौर पर मनाते हैं। 20 अक्तूबर 1959 को लद्दाख के ‘कोंगका लॉ’ में ‘केंद्रीय रिजर्व पुलिस फोर्स’ (सीआरपीएफ) की पैट्रोलिंग पार्टी के 3 जवानों को चीन की सेना ने धोखे से हिरासत में ले लिया था। 21 अक्तूबर 1959 को अपने जवानों की तलाश में निकले सीआरपीएफ के एक अन्य गश्ती दल पर चीनी सेना ने लद्दाख के ‘हॉट स्प्रिंग’ इलाके में घात लगाकर हमला कर दिया था जिसमें 10 जवान वीरगति को प्राप्त हुए थे। उन जवानों के बलिदान की याद में पुलिस स्मृति दिवस मनाया जाता है। 1959 में चीन ने सीआरपीएफ के जवानों पर जानलेवा हमला करके 1962 की भारत-चीन जंग के मंसूबे की तस्दीक लद्दाख में ही कर दी थी, मगर भारत की तत्कालीन सियासत व असकरी कयादत उस हमले के पसमंजर को भांपने में विफल रही थी। अंग्रेज हुकूमत के दौर में सन 1939 में वजूद में आए सीआरपीएफ का देश की सुरक्षा में अहम योगदान है। 9 अप्रैल 1965 के दिन पाक सेना की 51वीं ब्रिगेड ने आपरेशन ‘डेजर्ट हॉक’ के तहत गुजरात के कच्छ के रण में भारतीय सरहद पर हमला बोल दिया था। गुजरात बार्डर पर मौजूद भारतीय ‘टॉक’ व ‘सरदार’ नामक पोस्टों पर मुस्तैद ‘सीआरपीएफ’ के बहादुर जवानों ने उस हमले का जोरदार पलटवार करके पाक लाव-लश्कर की पेशकदमी को वहीं ध्वस्त कर दिया था। पाक सेना पर उस सफलतम ‘काउंटर अटैक’ की याद में 9 अप्रैल के दिन को सीआरपीएफ ‘शौर्य दिवस’ के तौर पर भी मनाता है।

13 दिसंबर 2001 में भारतीय संसद पर आतंकी हमले के दौरान पांच आतंकियों को हलाक करके सीआरपीएफ के पांच जवानों ने अपना बलिदान देकर लोकतंत्र की सबसे बड़ी पंचायत ‘संसद’ को सुरक्षित बचा लिया था। महिला सुरक्षाकर्मी कमलेश कुमारी ‘शौर्य चक्र’ (मरणोपरांत) ने उस हमले में मुख्य किरदार निभाया था। सन 2018 में पुलिस स्मृति दिवस के अवसर पर भारत सरकार ने दिल्ली के चाणक्यपुरी में बने ‘राष्ट्रीय पुलिस स्मारक’ को राष्ट्र को समर्पित किया था। 30 फीट ऊंचे ग्रेनाइट के मुजस्समें पर देश के लिए बलिदान देने वाले लगभग 35 हजार पुलिसकर्मियों के नाम उनके शौर्य की शिनाख्त करते हैं। भारत की दिग्गज वेट लिफ्टर कुंजारानी देवी, एन लक्ष्मी, प्रतिमा कुमारी व सानामाचा चानू जैसी अंतरराष्ट्रीय महिला खिलाडिय़ों के खेल हुनर को सीआरपीएफ ने ही निखारा है। सीआरपीएफ की 6 महिला बटालियन हैं। इसी संगठन के ‘कोबरा कमांडो’ स्पेशल यूनिट में भी कई महिलाकर्मी सेवाएं दे रही हैं। आईटीबीपी, एसएसबी, बीएसएफ, सीआरपीएफ व सीआईएसएफ के जवान कड़े सैन्य प्रशिक्षण से गुजर कर ‘राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड’ (एनएसजी) जैसी स्पेशल फोर्स का हिस्सा बनकर देश के नेताओं व कई अन्य सेलीब्रिटी को वीआईपी सुरक्षा प्रदान करते हैं। ‘एनडीआरएफ’ आपदा की स्थिति से निपटने में हर वक्त तत्पर रहता है। ‘आसाम राइफल्स’ पूर्वोत्तर में तैनात है। माओवाद, नक्सलवाद व घाटी में पाकपरस्त आतंकवाद से निपटकर तपते रेगिस्तानों से लेकर अरुणाचल में चीन से सटी दुर्गम पर्वतीय सीमाओं तक पैरामिलिट्री फोर्स के जवान देशरक्षा में अहम किरदार निभाते हैं।

मगर विडंबना है कि अंतरराष्ट्रीय खेलों व सैन्य मिशनों में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले देश की सरहदों के प्रहरी पैरामिलिट्री फोर्सेज के जवानों को जनवरी 2004 के बाद ‘न्यू पेंशन स्कीम’ के दायरे में रखा गया है। हिमाचल प्रदेश की सैन्यशक्ति में अर्धसैनिक बलों के सेवारत व भूतपूर्व सैनिकों की संख्या लाखों में है। राज्य में ‘सेट्रल आम्र्ड पुलिस फोर्स’ वेलफेयर एसोसिएशन के बैनर तले पैरामिलिट्री फोर्स के हजारों भूतपूर्व सैनिक अपनी मांगों को लेकर आवाज बुलंद करते आ रहे हैं। प्रदेश में ‘अर्धसैनिक बल बोर्ड’ का गठन तथा स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए सेना की तर्ज पर ‘ईसीएचएस’ व कैंटीन सुविधा की मांग कई सालों से हो रही है। सेना भर्ती की तरह पैरामिलिट्री फोर्सेज में भी हिमाचल के युवाओं का कोटा कम हुआ है। हिमाचल में अर्ध सेना बलों की भर्ती के आयोजन होने चाहिए। पैरामिलिट्री के जवान ‘ओपीएस’ के दायरे में आएं, राज्य में सैनिक स्कूलों की संख्या बढ़े, युवाओं के लिए सैन्य भर्ती कोटे में बढ़ोतरी हो तथा लाखों सैन्य परिवारों की सुविधाओं के मद्देनजर ‘ईसीएचएस’ व कैंटीन सुविधाओं का दायरा भी बढऩा चाहिए। हिमाचल प्रदेश में चुनावी बिगुल बज चुका है। चुनावी समर में सभी सियासी दल लोकलुभावन वादे करके मतदाताओं को लुभाने की कोशिश कर रहे हैं, मगर सशस्त्र सेनाओं में प्रदेश के हजारों युवाओं के कैरियर से जुड़े मुद्दे किसी भी सियासी दल के एजैंडे में शामिल नहीं हैं। इसका कारण सियासी रहनुमाओं में सामरिक विषयों की जानकारी का अभाव व रक्षा क्षेत्र में जमीनी अनुभव की कमी है। राज्य के लाखों ‘वेटरन’ जम्हूरियत के निजाम में तब्दीली लाने की कुव्वत रखते हैं।

अत: सैन्य बलों से जुड़े मुद्दों की आवाज बुलंद करने के लिए लोकतांत्रिक संस्थाओं में पूर्व सैनिकों की हिस्सेदारी भी सुनिश्चित होनी चाहिए। देश के सशस्त्र बलों में युवाओं की भर्ती का पैमाना ‘रिक्रूटेबल मेल पापुलेशन (आरएमपी) इंडेक्स सिस्टम’ पर आधारित है। हमारे मरकजी वजीरों को समझना होगा कि जम्हूरियत में संख्याबल सियासत की दशा व दिशा तय कर सकता है, लेकिन जब देश की सरहदें पाकिस्तान व चीन जैसे मुल्कों से सटी हों, देश आतंकवाद व मजहब की उल्फत में डूबे कट्टरवाद से जूझ रहा हो तो संख्याबल मायने नहीं रखता, बल्कि देश को अदम्य साहस व वतन पर कुर्बानी का जज्बा रखने वाले सैन्य नेतृत्व जैसे गुणों से लबरेज सपूतों की जरूरत होती है। विक्टोरिया क्रॉस, परमवीर चक्र व अशोक चक्र जैसे आलातरीन सैन्य पदकों से सुसज्जित शौर्य पराक्रम का धरातल वीरभूमि हिमाचल अतीत से राष्ट्रवाद के जज्बात रखने वाले ‘वजीर राम सिंह पठानिया’ व जरनल ‘जोरावर सिंह कहलूरिया’ जैसे शूरवीर क्षत्रियों की जन्मस्थली रहा है। अत: सैन्यबलों में युवाओं की भर्ती का पैमाना राज्यों की जनसंख्या के आधार पर नहीं चाहिए, बल्कि शौर्य बलिदान की गौरवशाली विरासत, वीरता पदकों के शानदार इतिहास व भौगोलिक परिस्थितियों के आधार पर होना चाहिए। पुलिस स्मृति दिवस पर अर्ध सेना बलों के शहीदों को नमन।

प्रताप सिंह पटियाल

लेखक बिलासपुर से हैं


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