स्कूली शिक्षा पर कुछ सुझाव

शिक्षा हमें नैतिकता सिखा कर, हमारे कत्र्तव्यों के बारे में बताकर समाज का एक जिम्मेदार नागरिक बनाने में हमारी मदद करती है। यह सच है कि शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जिसे प्राप्त करके इनसान अपने पैरों पर खड़ा हो सके और अपने परिवार का भरण-पोषण कर सके, लेकिन शिक्षा का मूल उद्देश्य इनसान को एक चरित्रवान और जिम्मेदार नागरिक बनाना होता है। इन गुणों के विकास की शुरुआत स्कूली शिक्षा से होनी चाहिए…

जिस देश और राज्य की स्कूल शिक्षा प्रणाली उच्च कोटि की होती है, वह देश बहुत तेज गति से विकास करता है। अत: प्रत्येक देश के विकास में उस देश की शिक्षा प्रणाली का बहुत बड़ा योगदान होता है। वर्तमान में हमारी स्कूल शिक्षा प्रणाली में बहुत सी कमियां हैं जिनमें सुधार करना बहुत जरूरी है। यदि हमें तेज गति से विकास करना है तो हमें अपनी स्कूल शिक्षा व्यवस्था उच्च स्तर की बनानी होगी। स्कूल शिक्षा प्रणाली में सुधार के लिए समय-समय पर अनेक प्रोग्राम चलाए जाते हैं। लेकिन इसके बाद भी स्कूल शिक्षा व्यवस्था में इतना सुधार नहीं हुआ है जितना होना चाहिए था। मेरे विचार में कुछ सरल सुझाव हैं जिनका प्रयोग करके स्कूल शिक्षा प्रणाली में सुधार किया जा सकता है। सबसे पहले ग्रामीण शिक्षा में सुधार को लें। भारत में ग्रामीण क्षेत्र की शिक्षा का स्तर ज्यादा ठीक नहीं है। ग्रामीण क्षेत्र की शिक्षा में सुधार की बहुत आवश्यकता है। ग्रामीण क्षेत्र में अच्छे शिक्षकों की नियुक्ति की जानी चाहिए। ग्रामीण शिक्षा में सुधार किए बिना शिक्षा के स्तर को उठाया नहीं जा सकता है। स्कूलों को परंपरागत पाठ्यक्रमों को हटाकर अब कौशल आधारित शिक्षा देनी चाहिए। जिस छात्र की जिस भी विषय में दिलचस्पी हो, उस छात्र को उस विषय की ही शिक्षा प्रदान करनी चाहिए। कौशल आधारित शिक्षा का सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि छात्र आत्मनिर्भर बनेंगे। भारत सरकार ने भी अब अपना पूरा फोकस स्किल इंडिया प्रोग्राम पर कर रखा है। शैक्षणिक सुधार में शिक्षकों की भूमिका भी बहुत महत्त्वपूर्ण है।

अधिकतर स्कूलों में एक शिक्षक 60-70 से भी अधिक बच्चों को पढ़ा रहा है। ऐसे में शिक्षक बच्चों को पढ़ा तो पाता नहीं है, बस बच्चों को घेरे रहता है। स्कूल शिक्षा प्रणाली में सुधार करने के लिए इस अनुपात को ठीक करना बहुत आवश्यक है। एक शिक्षक 20 से 30 छात्रों को ही ठीक ढंग से पढ़ा सकता है। भारत के ग्रामीण और शहरी शिक्षकों में बहुत बड़ा अंतर पाया जाता है। ऐसे प्रोग्राम चलाने चाहिए जिससे ग्रामीण और शहरी शिक्षकों को साथ-साथ प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। शिक्षकों को इस प्रकार प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए जिससे वे अपने अधिकारों और कत्र्तव्यों को जान सकें। शिक्षकों के प्रशिक्षण एवं उनके परीक्षण की उचित व्यवस्था करनी चाहिए। स्कूलों में शिक्षा के साथ-साथ स्वास्थ्य और रोजगार प्रमुख परियोजनाएं भी लागू करनी चाहिए जिससे बच्चों का पूर्ण विकास किया जा सके। ग्रामीण क्षेत्रों में ज्ञान का अभाव पाया जाता है जिसके कारण ग्रामीण क्षेत्रों में लोग साधनों का ठीक से प्रयोग नहीं कर पाते हंै। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में प्राथमिक शिक्षा, प्राथमिक चिकित्सा और बुनियादी रोजगार जैसी विकट समस्याएं हमेशा पाई जाती हैं। स्कूलों में अब व्यावसायिक शिक्षा को एक मुख्य विषय के रूप में पढ़ाया जाना चाहिए। भारत में अधिकांश छात्र धन के अभाव में 10वीं या 12वीं के बाद अपनी शिक्षा को छोड़ देते हंै। अत: सरकार को ऐसे छात्रों के लिए सब्सिडी और अनुदान की उचित व्यवस्था करनी चाहिए, जिससे कोई भी गरीब छात्र अपनी पढ़ाई को बीच में न छोड़े। आज का युग कंप्यूटर एवं सूचना प्रौद्योगिकी का युग है।

अज के समय में प्रत्येक छात्र को बेसिक कंप्यूटर की जानकारी होना बहुत आवश्यक है। आज के समय में हर क्षेत्र में कंप्यूटर का प्रयोग हो रहा है। अत: सरकार को प्रत्येक स्कूल में नि:शुल्क बेसिक कंप्यूटर शिक्षा की व्यवस्था करनी चाहिए। अभिभावक जागरूक रहें, तभी बच्चों की शैक्षिक प्रगति संभव है। अभिभावकों को जागरूक करने के लिए भी प्रोग्राम चलाने चाहिए। अभिभावक जागरूक हों एवं शिक्षक के प्रति स्नेह हो तो स्कूल का विकास संभव है। सरकार को सभी स्कूलों में स्मार्ट क्लास की व्यवस्था करनी चाहिए। इससे स्कूलों में छात्र मायूस नहीं होंगे, तेजी से सीखेंगे और आधुनिक तकनीक से रूबरू हो सकेंगे। स्मार्ट क्लास में बच्चे बहुत तेज गति से सीखते हैं। राष्ट्रीय आय का एक निश्चित भाग शिक्षा पर व्यय किया जाना चाहिए। प्रत्येक देश का विकास उस देश के नागरिकों की शिक्षा के स्तर पर बहुत अधिक निर्भर करता है। इसलिए विकसित देशों में अविकसित देशों की तुलना में शिक्षा पर अधिक व्यय किया जाता है। अत: यदि भारत को अपनी शिक्षा के स्तर को ऊपर उठाना है तो भारत को अपनी राष्ट्रीय आय का एक निश्चित भाग शिक्षा पर व्यय करना होगा। भारत में शिक्षा स्तर में सुधार करने के लिए अच्छी पुस्तकों का प्रसार-प्रचार करना होगा और स्कूलों में अच्छी और सस्ती पुस्तकें उपलब्ध करानी होंगी। साथ ही पुस्तकों के गुण व उत्पादन में सुधार करना होगा। आज के समय में ई-पुस्तकालय बहुत महत्त्वपूर्ण है। ई-पुस्तकालय से छात्र कभी भी और कहीं भी पुस्तकों एवं आवश्यक अध्ययन सामग्री तक पहुंच सकते हैं और उन्हें पढ़ सकते हैं। स्कूली शिक्षा के साथ-साथ खेल को भी महत्त्व दिया जाना चाहिए क्योंकि खेल हमारे जीवन का एक अहम हिस्सा है।

खेल हमारे शारीरिक एवं मानसिक दोनों ही विकास का स्रोत है। खेल बच्चों का दिमागी विकास करने में लाभकारी है। अत: प्रत्येक स्कूल में खेलों की व्यवस्था की जानी चाहिए। प्राथमिक शिक्षा में बहुत ज्यादा विषय नहीं होने चाहिए। गणित व विज्ञान, भाषाएं और आसपास के माहौल पर पढ़ाई होनी चाहिए। ज्यादा जोर होना चाहिए योग, ध्यान, खेलकूद पर, ताकि स्वस्थ भारत की नींव मजबूत हो। गणित जरूरी है, लेकिन जिस प्रकार से गणित की पढ़ाई अभी होती है, उसमें सुधार की जरूरत है। वैदिक गणित और भारतीय गणित व्यवस्था को फिर से लागू करने की जरूरत है। भारत जो पूरी दुनिया के लिए गणित की पाठशाला हुआ करता था, उसका आज यह हश्र हुआ है कि हर दूसरा विद्यार्थी गणित से डरता है। भारत में जहां हर व्यक्ति गणित में माहिर हुआ करता था, वहां आज हर व्यक्ति गणित से कतराता है। एक समय था जब भारत के ही लोगों ने दुनिया को ज्यामिति और शून्य की अवधारणा दी थी। आज फिर से भारत में गणित के शिक्षण और प्रशिक्षण पर जोर देने की जरूरत है। शिक्षा इसलिए लेनी चाहिए ताकि हम अपने जीवन को और समाज को खुशहाल बना सकें। प्रत्येक क्षेत्र में उन्नति कर सकें, विज्ञान के क्षेत्र में, कृषि के क्षेत्र में, ताकि भविष्य में हमारी आने वाली पीढिय़ां सुखमय जीवन जी सकें। बहुत से शिक्षित लोग इस कार्य में लगे हुए हैं। ठीक उनके विपरीत यदि आप अशिक्षित लोगों को देखना चाहते हैं, तो आप उन्हें झंडा उठाए सडक़ों पर देख सकते हैं। कहना न होगा कि अपने बच्चों को शिक्षित कीजिए।

वास्तविक जीवन से परिचय करवाइए। उन्हें हवा-हवाई कथाएं न सुनाएं। उन्हें किसी भी तरह की आसमानी किताब न पढ़ाएं। उन्हें जीवन जीना सिखाएं। प्रैक्टिकल बनाएं ताकि आने वाली पीढिय़ों में एक समझदार एवं सभ्य समाज का निर्माण हो सके। शिक्षा इसलिए जरूरी है ताकि लोग नैतिक बनें। परंतु यह नैतिकता उनकी अपनी हो, उनके अंदर से आई हो। शिक्षा हमें अपने परिवार, समाज, रीति-रिवाजों, संस्कारों, मूल्यों, सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, हमारे इतिहास आदि से परिचित करवाती है। शिक्षा हमें नैतिकता सिखा कर, हमारे कत्र्तव्यों के बारे में बताकर समाज का एक जिम्मेदार नागरिक बनाने में हमारी मदद करती है। यह सच है कि शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जिसे प्राप्त करके इनसान अपने पैरों पर खड़ा हो सके और अपने परिवार का भरण-पोषण कर सके, लेकिन शिक्षा का मूल उद्देश्य इनसान को एक चरित्रवान और जिम्मेदार नागरिक बनाना होता है। इन गुणों को विकसित करने की शुरुआत स्कूल की अच्छी-सही शिक्षा से ही होगी।

डा. वरिंदर भाटिया

कालेज प्रिंसीपल

ईमेल : hellobhatiaji@gmail.com


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