मतदाता का शिक्षित-जागरूक होना जरूरी

भारतीय चुनाव आयोग की उद्घोषणा होते ही हिमाचल प्रदेश में पांच वर्षों के बाद चुनाव का बिगुल बज चुका है। प्रदेश की विधानसभा के लिए 12 नवंबर 2022 को मतदान तथा आठ दिसंबर को मतगणना के पश्चात नई सरकार का स्वरूप सबके सामने होगा। इस चुनाव में 2848201 पुरुष, 2628555 महिला तथा 37 थर्ड जेंडर के व्यक्ति अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे। प्रदेश में कुल 68 विधानसभा सीटों में 48 अनारक्षित, 17 अनुसूचित जाति तथा तीन अनुसूचित जनजाति के लिए सीटें आरक्षित हैं। वर्तमान सरकार के पास फिर से खरा उतरने की चुनौती है तथा विपक्ष के पास विरोधी दल की असफलता को भुनाने का अवसर है। पांच वर्षों के बाद चुनावी बिसात बिछ गई है। अब सत्ता के सिंहासन की चाबी मतदाता के पास है। कोई सरकार के कामकाज से खुश होगा। कोई काम न होने की वजह से नाराज़ होगा।

किसी को मना लिया जाएगा तथा कोई अपने आक्रोश का इज़हार करेगा। अब मतदाता मतदान से पूर्व राजा बनकर पांच वर्षों के लिए अपना राजा बनाएगा। यही लोकतंत्र की खूबसूरती है कि हम अपने मत की ताकत का प्रयोग करते हुए अपने पसंदीदा नुमाइंदे चुन कर अपने विकास की इबारत लिखते हैं। यही मतदान हमें विकास की राह दिखाता है। मतदाता या तो सरकार के कार्यों से सहमत होता हुआ अपनी मोहर लगाता है या असहमत होकर अपने मत से आक्रोश दिखाते हुए किसी और उम्मीदवार या पार्टी का समर्थन करता है। राजनीति हमारे जीवन का अटूट अंग है तथा वोट हमारे पास हथियार का काम करता है। शर्त यह है कि इस हथियार का प्रयोग सोच-समझ कर किया जाए। यही वोट की ताकत हमारे लोकतंत्र को मजबूत करती है। भारतवर्ष में बहुत से लोग अपना मतदान कर नहीं करते। मतदान के अधिकार का प्रयोग न करने वाले जहां निरक्षर, अशिक्षित तथा गैर जि़म्मेदार लोग हैं, वहीं पर शिक्षित तथा समृद्ध लोग भी मतदान करने के लिए उदासीन रहते हैं।

मतदाताओं को शिक्षित तथा जागरूक किया जाना आवश्यक है। जहां हम नागरिक के अधिकारों की बात करते हैं, वहीं पर हमें अपने राष्ट्रीय कत्र्तव्य के लिए भी जागरूक तथा कत्र्तव्यनिष्ठ होना चाहिए। भारतवर्ष में लोग अपने अधिकारों को छीनने की बात तो करते हैं, लेकिन अपने राष्ट्रीय कत्र्तव्यों को निभाने की बात नहीं होती। अधिकार और कत्र्तव्य तो एक-दूसरे के पूरक हैं। यदि हम अपने कत्र्तव्यों को निभाते हैं, तभी हम अपने अधिकारों के लिए पात्र होते हैं। मतदान को नागरिक के अनिवार्य कत्र्तव्य निर्वहन के साथ ही जोड़ा जाना चाहिए। ये राष्ट्र हमें शिक्षा, सडक़, सुरक्षा, बिजली, पानी तथा रोजगार देता है। क्या हम इसकी मजबूती तथा खुशहाली के लिए पांच वर्षों में एक दिन का समय नहीं निकाल सकते? लोकतंत्र में देश के विकास तथा खुशहाली के लिए मतदान किया जाना बहुत ही आवश्यक है। किसी भी धर्म, क्षेत्रवाद, भाषावाद, जातिवाद के नाम पर मतदान नहीं किया जाना चाहिए। देश के विकास को मद्देनजऱ रखते हुए शिक्षित, ईमानदार, चरित्रवान तथा ऊर्जावान व्यक्तियों का चयन किया जाना चाहिए। ऐसे व्यक्तियों का चुनाव किया जाना चाहिए जिन पर विश्वास किया जा सके। जो गरीबी, भुखमरी, भ्रष्टाचार मिटाने की बात करें। जो विकास तथा नवीन सृजन तथा विकास की बात करें। जो सुख-दुख में लोगों के साथ खड़े हों। चुनावों के समय मतदाताओं को अनैतिक रूप से दिए गए किसी भी व्यक्ति या दल के प्रलोभन को स्वीकार नहीं करना चाहिए।

चुनावी मौसम में प्रत्याशियों तथा राजनीतिक दलों द्वारा साम, दाम, दंड, भेद की नीति अपनाई जाती है। एक जागरूक मतदाता को सचेत रहना चाहिए तथा किसी भी अनैतिक आचरण तथा प्रलोभन को स्वीकार नहीं करना चाहिए। रुपया-पैसा, वस्तु, शराब तथा किसी भी प्रकार का प्रलोभन स्वीकार नहीं करना चाहिए। मत पाने के उद्देश्य से इस प्रकार का लेन-देन अनैतिक तथा गैरकानूनी भी है। अगर चुनाव के समय कोई उम्मीदवार या कोई राजनीतिक दल ऐसा करने का प्रयास करें तो एक जागरूक नागरिक तथा मतदाता निर्वाचन आयोग की वैबसाइट पर लॉगइन कर इसकी सूचना दर्ज करवा सकता है। ऐसा होने पर कोई भी व्यक्ति राज्य के निर्वाचन आयोग, जि़ला निर्वाचन अधिकारी, निर्वाचन क्षेत्र के निर्वाचन अधिकारी, तहसील तथा क्षेत्र के पंजीकरण अधिकारी के पास प्रमाण सहित अपनी शिकायत दर्ज करवा सकता है। भारतीय निर्वाचन आयोग द्वारा मतदाता शिक्षा तथा जागरूकता के लिए पाठशालाओं तथा महाविद्यालयों में स्वीप यानी सिस्टमैटिक वोटर एजुकेशन एंड इलेक्टोरल पार्टिसिपेशन सैल्स के माध्यम से मतदाताओं विशेषकर युवाओं को जोडऩे की व्यवस्था की गई है। स्वीप के माध्यम से युवा मतपत्र बनवाने, मतपत्रों में अशुद्धियां समाप्त करने, मतदान के लिए जागरूक करने, कम प्रतिशत मतदान पडऩे वाले मतदान केन्द्रों तथा निष्पक्ष एवं निर्भीक होकर अधिक से अधिक मतदान करने विशेषकर युवाओं को जागरूक करने के लिए स्थानीय प्रशासन का सहयोग करते हैं। निर्वाचन आयोग द्वारा चुनावों की घोषणा होते ही आदर्श चुनाव आचार संहिता को भी लागू किया जाता है। यह निर्वाचन आयोग द्वारा उम्मीदवारों तथा राजनीतिक दलों के लिए बनाई गई नियमावली होती है।

कानूनी रूप से सभी को इसका पालन करना आवश्यक होता है। इसके उद्देश्य चुनाव के समय राजनीतिक दलों को चुनाव अभियान को निष्पक्ष, निर्भीक एवं साफ-सुथरा बनाना और सत्ताधारी दल को ग़लत फायदा उठाना तथा सरकारी मशीनरी पर रोक लगाना है। आदर्श चुनाव आचार संहिता को राजनीतिक दलों तथा उम्मीदवारों के लिए आचरण एवं व्यवहार का पैरामीटर माना जाता है। चुनाव समाप्त होते ही इसे चुनाव आयोग द्वारा हटा दिया जाता है। चुनाव का समय मतदाता के लिए त्योहार से कम नहीं होता। संवैधानिक तरीके से प्राप्त लोकतंत्र की रक्षा के लिए मिला यह अधिकार किसी भी नागरिक के लिए अमूल्य है। इसी से लोकतंत्र मजबूत होता है। सभी को इस अधिकार का प्रयोग करते हुए अधिक से अधिक संख्या में मतदान केन्द्र पर पहुंच कर मतदान कर इस उत्सव में भाग लेना चाहिए। आइए, इस चुनावी उत्सव में भाग लेकर भारतवर्ष के लोकतंत्र को मजबूत कर प्रदेश तथा देश के विकास में अपनी भूमिका निभाएं।

प्रो. सुरेश शर्मा

लेखक घुमारवीं से हैं


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