बांके बिहारी प्रकटोत्सव : दर्शन कर अपने को कृतार्थ करें

By: Nov 26th, 2022 12:30 am

बांके बिहारी मंदिर मथुरा जिले के वृंदावन धाम में रमणरेती पर स्थित है। यह भारत के प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। ‘बांके बिहारी’ भगवान श्रीकृष्ण का ही एक रूप है जो इसमें प्रदर्शित किया गया है। श्रीधाम वृंदावन एक ऐसी पावन भूमि है जिस भूमि पर आने मात्र से ही सभी पापों का नाश हो जाता है। ऐसा आखिर कौन व्यक्ति होगा, जो इस पवित्र भूमि पर आना नहीं चाहेगा तथा श्री बांके बिहारी जी के दर्शन कर अपने को कृतार्थ करना नहीं चाहेगा। यह मंदिर श्री वृंदावन धाम के एक सुंदर इलाके में स्थित है। कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण स्वामी श्री हरिदास जी के वंशजोंं के सामूहिक प्रयास से संवत 1921 के लगभग किया गया था…

संक्षिप्त इतिहास

मंदिर निर्माण के शुरुआत में किसी दानदाता का धन इसमें नहीं लगाया गया। श्रीहरिदास स्वामी विषय उदासीन वैष्णव थे। उनके भजन-कीर्तन से प्रसन्न हो निधिवन से श्री बांके बिहारी जी प्रकट हुए थे। स्वामी हरिदास जी का जन्म संवत 1536 में भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष में अष्टमी के दिन वृंदावन के निकट राजापुर नामक गांव में हुआ था। इनके आराध्यदेव श्याम सलोनी सूरत वाले श्री बांके बिहारी जी थे। इनके पिता का नाम गंगाधर एवं माता का नाम श्रीमती चित्रा देवी था। हरिदास जी स्वामी आशुधीर देव जी के शिष्य थे। इन्हें देखते ही आशुधीर देवजी जान गए थे कि ये सखी ललिताजी के अवतार हैं तथा ‘राधाष्टमी’ के दिन भक्ति प्रदायनी श्रीराधा जी के मंगल-महोत्सव का दर्शन लाभ हेतु ही यहां पधारे हैं। स्वामी हरिदास जी को रसनिधि सखी का अवतार माना गया है। ये बचपन से ही संसार से ऊबे रहते थे। किशोरावस्था में इन्होंने आशुधीर जी से युगल मंत्र दीक्षा ली तथा यमुना समीप निकुंज में एकांत स्थान पर जाकर ध्यानमग्न रहने लगे। जब ये 25 वर्ष के हुए, तब इन्होंने अपने गुरु जी से विरक्तावेष प्राप्त किया एवं संसार से दूर होकर निकुंज बिहारी जी की नित्य लीलाओं का चिंतन करने में रह गए। निकुंज वन में ही स्वामी हरिदास जी को बिहारी जी की मूर्ति निकालने का स्वप्नादेश हुआ था। तब उनकी आज्ञानुसार मनोहर श्यामवर्ण छवि वाले श्रीविग्रह को धरा की गोद से बाहर निकाला गया।

यही सुंदर मूर्ति जग में श्री बांके बिहारी जी के नाम से विख्यात हुई। इस मूर्ति को मार्गशीर्ष, शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को निकाला गया था। अत: प्राकट्य तिथि को हम ‘विहार पंचमी’ के रूप में बड़े ही उल्लास के साथ मनाते हैं। श्री बांके बिहारी जी निधिवन में ही बहुत समय तक स्वामी जी द्वारा सेवित होते रहे थे। फिर जब मंदिर का निर्माण कार्य सम्पन्न हो गया, तब उनको वहां लाकर स्थापित कर दिया गया। सनाढ्य वंश परम्परागत श्रीकृष्ण यति जी, बिहारी जी के भोग एवं अन्य सेवा व्यवस्था संभाले रहे। फिर इन्होंने संवत 1975 में हरगुलाल सेठ जी को श्री बिहारी जी की सेवा व्यवस्था सम्भालने हेतु नियुक्त किया। तब इस सेठ ने वेरी, कलकत्ता, रोहतक इत्यादि स्थानों पर श्री बांके बिहारी ट्रस्टों की स्थापना की। इसके अलावा अन्य भक्तों का सहयोग भी इसमें काफी सहायता प्रदान कर रहा है। आनंद का विषय है कि जब काला पहाड़ के उत्पात की आशंका से अनेकों विग्रह स्थानांतरित हुए, परंतु श्री बांके बिहारी जी यहां से स्थानांतरित नहीं हुए। आज भी उनकी यहां प्रेम सहित पूजा चल रही है। कालांतर में स्वामी हरिदास जी की उपासना पद्धति में परिवर्तन लाकर एक नए सम्प्रदाय ‘निम्बार्क संप्रदाय’ से स्वतंत्र होकर ‘सखीभाव संप्रदाय’ बना। इसी पद्धति के अनुसार वृंदावन के सभी मंदिरों में सेवा एवं महोत्सव आदि मनाए जाते हैं। श्री बांके बिहारी जी मंदिर में केवल शरद पूर्णिमा के दिन श्री श्री बांके बिहारी जी वंशीधारण करते हैं। केवल हरियाली तीज के दिन ही ठाकुर जी झूले पर बैठते हैं एवं जन्माष्टमी के दिन ही केवल उनकी मंगला-आरती होती है, जिसके दर्शन सौभाग्यशाली व्यक्ति को ही प्राप्त होते हैं और चरण दर्शन केवल अक्षय तृतीया के दिन ही होता है। इन चरण-कमलों का जो दर्शन करता है, उसका तो बेड़ा ही पार लग जाता है।

कथा प्रसंग

स्वामी हरिदास संगीत के प्रसिद्ध गायक एवं तानसेन के गुरु थे। एक दिन प्रात:काल स्वामी जी देखने लगे कि उनके बिस्तर पर कोई रजाई ओढक़र सो रहा है। यह देखकर स्वामी जी बोले, ‘अरे मेरे बिस्तर पर कौन सो रहा है।’ वहां श्रीबिहारी जी स्वयं सो रहे थे। शब्द सुनते ही बिहारी जी निकल भागे, किंतु वे अपने चुड़ा एवं वंशी को बिस्तर पर रखकर चले गए। स्वामी जी को वृद्ध अवस्था में दृष्टि जीर्ण होने के कारण कुछ नजऱ नहीं आया। इसके पश्चात् श्री बांके बिहारी जी मंदिर के पुजारी ने जब मंदिर के कपाट खोले तो उन्हें श्री बांके बिहारी जी के पलने में चुड़ा एवं वंशी नजऱ नहीं आई, किंतु मंदिर का दरवाज़ा बंद था। आश्चर्यचकित होकर पुजारी जी निधिवन में स्वामी जी के पास आए एवं स्वामी जी को सभी बातें बताई। स्वामी जी बोले कि प्रात:काल कोई मेरे पलंग पर सोया हुआ था। वो जाते वक्त कुछ छोड़ गया है। तब पुजारी जी ने प्रत्यक्ष देखा कि पलंग पर श्री बांके बिहारी जी की चुड़ा-वंशी विराजमान हैं। इससे प्रमाणित होता है कि श्री बांके बिहारी जी रात को रास करने के लिए निधिवन जाते हैं। इसी कारण से प्रात: श्री बिहारी जी की मंगला-आरती नहीं होती है। कारण, रात्रि में रास करके यहां बिहारी जी आते हैं। अत: प्रात: शयन में बाधा डालकर उनकी आरती करना अपराध है।

स्वामी हरिदास जी के दर्शन प्राप्त करने के लिए अनेकों सम्राट यहां आते थे। एक बार दिल्ली के सम्राट अकबर, स्वामी जी के दर्शन हेतु यहां आए थे। ठाकुर जी के दर्शन प्रात: 9 बजे से दोपहर 12 बजे तक एवं सायं 6 बजे से रात्रि 9 बजे तक होते हैं। विशेष तिथि उपलक्ष्यानुसार समय का परिवर्तन कर दिया जाता है। श्री बांके बिहारी जी के दर्शन के सम्बन्ध में अनेकों कहानियां प्रचलित हैं, जैसे- ‘एक बार एक भक्तिमती ने अपने पति को बहुत अनुनय-विनय के पश्चात् वृंदावन जाने के लिए राजी किया। दोनों वृंदावन आकर श्री बांके बिहारी जी के दर्शन करने लगे। कुछ दिन श्री बिहारी जी के दर्शन करने के पश्चात् उसके पति ने जब स्वगृह वापस लौटने कि चेष्टा की तो भक्तिमति ने श्री बिहारी जी दर्शन लाभ से वंचित होना पड़ेगा, ऐसा सोचकर वो रोने लगी। संसार बंधन के लिए स्वगृह जाएंगे, इसलिए वो श्री बिहारी जी के निकट रोते-रोते प्रार्थना करने लगी कि ‘हे प्रभु, मैं घर जा रही हूं, किंतु तुम चिरकाल मेरे ही पास निवास करना।’ ऐसी प्रार्थना करने के पश्चात् वे दोनों रेलवे स्टेशन की ओर घोड़ा गाड़ी में बैठकर चल दिए। उस समय श्री बांके बिहारी जी एक गोप बालक का रूप धारण कर घोड़ा गाड़ी के पीछे आकर उनको साथ लेकर जाने के लिए भक्तिमति से प्रार्थना करने लगे। इधर पुजारी ने मंदिर में ठाकुर जी को न देखकर भक्तिमति की प्रेमयुक्त घटना को जान लिया एवं तत्काल वे घोड़ा गाड़ी के पीछे दौड़े।

गाड़ी में बालक रूपी श्रीबांकेबिहारी जी से प्रार्थना करने लगे। दोनों में ऐसा वार्तालाप चलते समय वो बालक उनके मध्य से गायब हो गया। तब पुजारी जी मंदिर लौटकर आए और पुन: श्रीबांकेबिहारी जी के दर्शन करने लगे। इधर भक्त तथा भक्तिमति श्री बांके बिहारी जी की स्वयं कृपा जानकर दोनों ने संसार का गमन त्याग कर श्री बांके बिहारी जी के चरणों में अपने जीवन को समर्पित कर दिया। ऐसे ही अनेकों कारण से श्री बांके बिहारी जी के झलक दर्शन अर्थात् झांकी दर्शन होते हैं।


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