लिव इन रिलेशनशिप का कड़वा सच

देश के इस चर्चित हत्याकांड में पुलिस अपनी कार्रवाई कर रही है तथा नित नवीन जानकारियां मिल रही हैं…

आनलाईन चैटिंग, फिर डेटिंग, प्यार का ढोंग, तत्पश्चात लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाले, शारीरिक भोग के पागलपन में चूर आफताब ने श्रद्धा के पैंतीस टुकड़े कर मानवता की धज्जियां उड़ाई कर रख दी हैं। इतिहास में शायद इतना घृणित कार्य कभी भी नहीं हुआ होगा। इस प्यार, शारीरिक संबंध तथा हत्याकांड ने मानवता को झकझोर कर रख दिया है। महाराष्ट्र की 27 वर्षीय श्रद्धा वाकर तथा 28 वर्षीय आफताब पूनावाला का आनलाईन डेटिंग से परवान चढ़ा हुआ प्यार, आकर्षण घृणित हत्या कांड इस तरह परिवर्तित हुआ कि मानवता शर्मसार हो गई। पुलिस की प्रारंभिक जानकारी के अनुसार मुंबई के काल सैंटर में काम करने वाला यह प्रेमी युगल परिवार एवं समाज के विरोध के कारण दिल्ली के महरौली में लिव इन रिलेशनशिप में रहने लगा। वर्ष 2019 से जान-पहचान तथा सहजीवन पद्धति में जीवन यापन कर रहा इस युगल के खलनायक आफताब को श्रद्धा से नफरत बहुत नफरत होने लगी थी। आफताब ड्रग एडिक्टिड था तथा उसे गांजा की सिगरेट पीने की आदत थी। 18 मई 2022 को आफताब ने गांजा पीकर श्रद्धा का गला दबा कर हत्या करके उसके शव के 35 टुकड़े कर उन्हें स्टोर करने के लिए 300 लीटर का फ्रिज खरीदा। बाद में वह कई दिनों तक धीरे-धीरे दिल्ली के छतरपुर के जंगलों में अलग-अलग जगह तक फैंकता रहा। श्रद्धा से नफरत ने उसने श्रद्धा के फोटो जला दिए। बताया जा रहा है कि आफताब ने श्रद्धा का सिर मैदानगढ़ी में लगभग एक किलोमीटर में फैले हुए तालाब में फैंक दिया था जिसे खाली करवाया जा रहा है।

बहरहाल मामले में आफताब आमीन पूनावाला को 12 नवंबर को पुलिस ने गिरफ्तार कर 10 दिन के रिमांड के बाद अदालत द्वारा चार दिन का समय बढ़ा दिया है तथा उसे उसके बयानों के अनुसार विभिन्न स्थानों पर ले जाकर जांच पड़ताल कर साक्ष्य जुटाए जा रहे हैं। पुलिस द्वारा आफताब के नार्को टेस्ट तथा पालीग्राफ टैस्ट की भी अनुमति ली गई है। देश के इस चर्चित जघन्य हत्याकांड में पुलिस अपनी कार्रवाई कर रही है तथा इस मामले में नित नवीन जानकारियां प्राप्त हो रही हैं। इस बारे सच क्या है यह तो अभी गहन जांच का विषय है लेकिन इतना ज़रूर है कि 2019 से लिव इन रिलेशनशिप के साये में चल रहा यह प्रेम प्रसंग जघन्य हत्याकांड में परिवर्तित होकर दरिंदगी तथा मानवता की सारी हदें पार देश में दहशत फैला गया। सन् 2006 माननीय उच्चतम न्यायालय ने एक केस में फैसला देते हुए कहा था कि वयस्क होने के बाद कोई व्यक्ति किसी के साथ रहने या शादी करने के लिए स्वतंत्र है। इस फैसले के साथ लिव इन रिलेशनशिप को कानूनी मान्यता मिल गई। अदालत ने कहा था कि कुछ लोगों की नजऱ में अनैतिक माने जाने के बावजूद ऐसे रिश्ते में रहना कोई अपराध नहीं है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लिव इन रिलेशनशिप में रह रहे दो वयस्क जोड़ों की पुलिस सुरक्षा की मांग को जायज ठहराते हुए कहा कि ये संविधान के आर्टिकल 21 के तहत दिए गए ‘राइट टू लाइफ’ की श्रेणी में आता है।

कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट कहा था कि लिव इन रिलेशनशिप को व्यक्तिगत स्वायत्तता के चश्मे से देखने की आवश्यकता है, न कि सामाजिक नैतिकता की धारणाओं से। यहां पर माननीय न्यायालयों के फैसलों पर कोई भी टिप्पणी न करके इतना विचार करना आवश्यक है कि जीवन के अधिकार के संवैधानिक मौलिक अधिकार के साथ समाज में स्वस्थ नैतिक मूल्यों की स्थापना होना भी आवश्यक है। आखिर मनुष्य होने के साथ हमारा पशुओं जैसा व्यवहार तथा दरिंदगी कहां तक उचित है? इस तरह की घटनाएं समाज में दहशत फैलाकर प्रेम, आकर्षण तथा शादी जैसी शब्दावलियों के लिए पुन: सोचने को मजबूर करती हैं। आफताब के दिल में श्रद्धा के लिए इतनी नफरत तथा दरिंदगी कि वह उसकी बोटी-बोटी छ: महीने तक जंगलों में फैंकता रहा। मानवीय प्रेम, जीवन की परिणति घृणित, जघन्य और शर्मसार करने वाली इससे बड़ी घटना क्या हो सकती है। हालांकि वर्तमान समय में युवक तथा युवतियां पढ़े-लिखे तथा समझदार हैं, परंतु पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव में आकर अब वे भी लिव इन रिलेशनशिप की बात करते हैं। शहरों तथा महानगरों, विश्वविद्यालयों, विभिन्न संस्थानों में कार्यरत नौकरीपेशा लोग इसी आधुनिकता के प्रभाव में हैं। शादी जैसे पवित्र रिश्ते को महज कांट्रेक्ट समझा जाता है। जन्म-जन्म के बंधन में बंधने वाली कसमें अब औपचारिकता मात्र हो गई हैं। शादियों में हमारे रस्म-ओ-रिवाजों का उपहास उड़ाया जाता है। विवाहित युगलों के पास बच्चे पैदा करने, उनका पालन-पोषण तथा शिक्षण का समय नहीं। घर में बच्चों की देखभाल नौकर कर रहे हैं, शहरों में बच्चे पालने के पैसे देकर अनेक व्यवस्थाएं उपलब्ध हैं। शैशवावस्था से ही बच्चों को नौकरों की हिंसा, पालन-पोषण तथा संस्कार मिल रहे हैं। बच्चों की ट्यूशन कक्षाएं, हाबी क्लासेज में बच्चों को व्यस्त रखा जाता है। शाम या देर रात माता-पिता थके हारे घर आते हैं। सुबह फिर से वही दिनचर्या शुरू हो जाती है।

सामाजिक संबंधों, पारिवारिक रिश्तों तथा बूढ़े माता-पिता की सेवा, पारिवारिक तथा सामाजिक जि़म्मेदारियां निभाना तो अब गए ज़माने की बात हो गई है। जि़ंदगी मशीन जैसी हो गई है। कोई किसी के साथ स्थायी रूप से बंधना नहीं चाहता। व्यावसायिक युवा दिन-रात धन-दौलत, पद, प्रमोशन की दौड़ गाड़ी-बंगला, बैंक बैलेंस की अंधी दौड़ में सामान्य जीवन को भूल गए हैं। सब धन-दौलत, शान-ओ-शौकत, शौहरत, भौतिकवाद की चकाचौंध में जी रहे हैं। इस परिवेश में जीवन मूल्यों की बात करना तो अपनी फजीहत करवाना है। याद रखें, सबसे पहले हमारा अस्तित्व होना आवश्यक है, तभी हम नौकरी, धन-दौलत तथा भौतिक संसाधनों के बारे में सोच सकते हैं। युवाओं को ऐसे घटनाक्रमों से सबक लेते हुए अपने जीवन की व्यवहारिकता, सामाजिकता तथा संस्कारों के लिए सचेत हो जाना चाहिए। इस सम्बन्ध में जीवन के अधिकारों के अनेक पहलू कानून में निर्धारित होंगे परन्तु सामाजिक तथा मानवीय व्यवहार की दृष्टि से तो ऐसा कुकर्म होना अप्राकृतिक, अमानवीय तथा घोर अमानवीय अपराध की दृष्टि से ही देखा जा सकता है। लिव इन रिलेशनशिप के कानून के विषय में देश में जागरूक बुद्धिजीवियों, कानूनविदों तथा समाजशास्त्रियों में इसे वापस लेने की नई बहस शुरू हो गई है। लिव इन रिलेशनशिप में रह रहे आफताब द्वारा श्रद्धा की घृणित हत्या का काला सच है। इससे पहले भी इस रिलेशनशिप के कारण बहुत से कत्ल, लड़ाई-झगड़े, आत्महत्याएं हो चुकी हैं। सम्बन्धों में कानूनी पेचीदगियां, संपत्तियों के बंटवारे, बच्चों पर स्वामित्व, तलाक़, आत्महत्याएं, बलात्कार के अनेकों केस पुलिस तथा न्यायलयों में दर्ज हो चुके हैं। अब यह सिलसिला बंद होना चाहिए।

प्रो. सुरेश शर्मा

लेखक घुमारवीं से हैं


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