आवारा जानवरों की बढ़ती दहशत

यह हमारा कत्र्तव्य है कि हम अपने आसपास के पशुओं पर गौर करें…

हमारे हिंदू समाज में जहां गाय को एक माता के रूप में पूजा जाता था तथा कुत्ते को एक वफादार जानवर माना जाता था, आज के समय में बाकी जानवरों के मुकाबले इन्हीं की सबसे ज्यादा दहशत है। जहां किसी समय कुत्तों की वफादारी के उदाहरण दिए जाते थे, वहां आज वही वफादार जानवर एक हिंसक जानवर के रूप में उभर रहा है। हाल ही में जैसे हमीरपुर जिले में 2 साल की एक बच्ची को कुत्ते ने नोच कर मार डाला, ऐसे ही न जाने कितने सैकड़ों मामले देखने को मिल रहे हैं। वहीं गाय और सांड जो हिंदू समाज में किसी समय पूजनीय थे, आज हमारा समाज उन्हीं का बहिष्कार कर रहा है जो कि हमें ही महंगा पड़ रहा है। अधिकतर सडक़ दुर्घटनाएं इन्हीं के कारण हो रही हैं और यह कहना गलत नहीं है कि इसमें कहीं न कहीं मानव का ही दोष है। आवारा जानवरों को सडक़ के जानवरों के रूप में परिभाषित किया गया है जो सडक़ पर पैदा होते हैं और प्रजनन करते हैं और कभी भी स्वामित्व में नहीं होते हैं, खोए हुए जानवर जो घर का रास्ता नहीं ढूंढ सकते हैं तथा सडक़ पर ही विचरण करने लग जाते है, मालिक द्वारा परित्यक्त जानवर जो घर से निकाल दिए जाते है या सडक़ पर छोड़ दिया जाता है, किसी सरकारी या गैरसरकारी संगठन, पशु चिकित्सालय, गोशाला अथवा डेयरी फार्म के द्वारा अनुपयोगी पशु के रूप में जो निकाल दिए जाते हंै। आवारा जानवर जंगली जानवर नहीं हैं। वे जहां भी जाते हैं, वे घरेलू जानवरों के रूप में रहते हैं। आवारा जानवरों का मुख्य कारण परित्याग है जिसके बाद उनके बीच अनियंत्रित प्रजनन होता है, जिसके परिणामस्वरूप सडक़ के जानवरों की अनेकों पीढिय़ा बन जाती हैं जो और संख्या को बढ़ाती है। समय की कमी के कारण लोग अपने पालतू जानवरों की ठीक से देखभाल नहीं कर सकते हैं तथा पालतू जानवर का परित्याग कर देते हैं।

अध्ययन के तहत क्षेत्र में, मुक्त घूमने वाले कुत्ते और बिल्लियां एक हल्की से मध्यम समस्या पेश करते हैं, जो पालतू जानवरों के मालिकों के एक छोटे प्रतिशत से उत्पन्न होती है। पर्यावरणीय खतरों (यानी ऑटोमोबाइल) से मृत्यु से केवल थोड़ी मात्रा में पालतू जानवरों की पीड़ा होती है और गैर-पालतू जानवरों की जानबूझकर हत्या की एक मध्यम मात्रा होती है। हम इस अध्ययन में इस्तेमाल की गई पद्धति को भूल गए और इससे प्राप्त परिणामों का महत्व कहीं और है। सामान्य आबादी के लिए पालतू स्वामित्व के अनुपात और पालतू स्वामित्व के कारणों और लाभों को बेहतर ढंग से स्थापित करने के लिए इसे व्यापक आधारित सर्वेक्षण प्रश्नावली के साथ जोड़ा जाना चाहिए। तब हम पालतू जानवरों की अधिक संख्या की समस्या के बारे में तथ्य प्राप्त कर सकते थे, साथ ही पालतू जानवरों के प्रति सामुदायिक मूल्यों को बेहतर ढंग से समझ सकते थे। सामाजिक एवं राजनीतिक रूप से आवारा पशुओं का मुद्दा आज के समय बहुत बड़ी बहस का हिस्सा हो गया है। लेकिन इसके निवारण के लिए आज तक किसी संगठन एवं किसी सरकार ने कोई प्रभावी कदम नहीं उठाया है। ये जानवर अक्सर यातायात प्रवाह को रोकते हैं जिसके परिणामस्वरूप अनावश्यक समय की बर्बादी होती है तथा अनेक सडक़ दुर्घटनाएं होती हैं। स्थिति और भी खराब तब हो जाती है जब ये पशु रात में स्वतंत्र रूप से सडक़ों पर घूमते हैं या बैठ जाते हैं, वाहन चालकों के लिए अंधेरे के कारण अचानक पशु को स्पॉट करना मुश्किल हो जाता है। आवारा पशुओं के कारण हर वर्ष हज़ारों की संख्या में दुर्घटनाएं होती हंै तथा सैंकड़ों लोग अपनी जान से हाथ धो बैठते हैं और कई घायल हो जाते हैं।

कुत्ते व सांड जैसे आवारा जानवर शहरों के लिए एक प्रमुख मुद्दा बन गए हैं। अत्यधिक भौंकने और काटने के कारण न केवल ध्वनि प्रदूषण बल्कि मानव समाज के लिए स्वास्थ्य संबंधी चिंताएं भी पैदा हो गई हैं। आक्रामकता, चिकित्सा समस्याओं, पालतू जानवरों के स्वामित्व की लागत, प्रजनन में जटिलताओं, जीवन शैली में बदलाव के कारण स्वास्थ्य जैसे कठिनाइयों के कारण आवारा जानवरों को पालतू बनाने में लोग हिचकिचाते हैं। मालिकों के लिए वित्तीय मुद्दों, आवास की समस्याओं, परित्याग और पंजीकरण के लिए कानूनी कार्रवाई के कारण भी लोग जानवर पालने में घबराते हंै। एक बड़े आवारा जानवर विशेष रूप से गाय एवं सांड अधिक चुनौतियों का सामना करते हैं। इनमें से अधिकांश गायें अवैध या अपंजीकृत डेयरियों और मवेशियों के शेड के मालिकों द्वारा छोड़ दी जाती हैं। पशु की प्रजनन क्षमता का नुकसान, बुढ़ापा, दूध उत्पादन की समाप्ति, खूंखारपन बर्दाश्त करने में असमर्थता के कारण मालिकों द्वारा छोड़ दिए जाते हैं। दूध न देने वाले मवेशियों को तथा छोटे बछड़ों को मालिक बाहर जाने देते हैं ताकि वे बाहरस खुले में चर सकें। घर का चारा बच जाए। मानव समाज के लिए आवारा जानवरों से संबंधित कई आर्थिक, धार्मिक, राजनीतिक एवं स्वास्थ्य चिंताएं हैं। शहरों की सडक़ों पर घूमने वाले अधिकांश जानवर अस्वस्थ हैं, जिससे मनुष्यों और जानवरों दोनों के लिए स्वास्थ्य संबंधी चिंताएं बढ़ रही हैं। वे घास या अन्य स्वच्छ खाद्य भोजन न खाकर सड़े गले व बचे हुए भोजन तथा कचरे से गुजारा कर रहे हैं। जानवर सबसे खतरनाक खाद्य-जनित और जल जनित रोग जनकों में से कई के लिए जलाशयों के रूप में कार्य करते हैं।

पशु आहार संचालन से जल में एंटीबायोटिक्स, पोषक तत्व (नाइट्रोजन और फास्फोरस), हार्मोन, तलछट, भारी धातु, कार्बनिक पदार्थ, अमोनिया और मीथेन सहित बहुत से रोगजनक व प्रदूषक पर्यावरण खाद्य श्रंृंखला को नुकसान पहुंचाने की क्षमता रखते हंै और पर्यावरण को दूषित करने की क्षमता है। इन प्रदूषकों के कारण होने वाली बीमारियों के परिणामस्वरूप न केवल अस्थायी स्वास्थ्य समस्या पैदा होती है, बल्कि गंभीर संकट और यहां तक कि मृत्यु भी होती है। इसे अगर जल्द से जल्द एक गंभीर समस्या के रूप में नहीं देखा गया तो ये समस्या एक विशाल संकट का रूप धारण कर सकती है। आवारा कुत्तों के साथ हस्तक्षेप करने वाले व्यक्तियों या पशु कल्याण संगठनों की हर कार्रवाई पर सावधानी से विचार किया जाना चाहिए। यह सुनिश्चित करना कि लोगों और जानवरों का कल्याण सबसे अच्छा हो। आदर्श रूप से, इन कार्यों का अंतिम परिणाम ऐसी दुनिया होनी चाहिए जहां सडक़ों पर कोई जानवर पीडि़त न हो। कुत्ते इंसान के सबसे अच्छे दोस्त होते हैं और इंसानों को बिना शर्त प्यार और वफादारी प्रदान करते हैं। अंतत: यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी हमारी है कि कुत्तों को सडक़ों पर परेशानी न हो। वे सुरक्षा, आश्रय और प्यार के पात्र हैं जो एक घर या संरक्षित वातावरण प्रदान कर सकता है। यह हमारा कत्र्तव्य है कि हम अपने आसपास के पशुओं पर गौर करें तथा सरकार से आग्रह करें कि वह इस समस्या का समाधान करे।

प्रो. मनोज डोगरा

लेखक हमीरपुर से हैं


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