भ्रष्टाचार के बीज चुनाव के दिनों में उगते हैं

भ्रष्टाचार से मुक्त सरकार ही देश के हित में लोगों का भला कर सकती है…

राजनीतिक और प्रशासनिक भ्रष्टाचार समाज की आर्थिक व्यवस्था को सबसे ज्यादा प्रभावित करता है तथा यही भ्रष्टाचार समाज के अंग-अंग में बस कर आम जनता को त्रस्त करता है। वास्तव में भ्रष्टाचार इन दोनों संगठनों की परस्पर सांठगांठ से ही पनपता है। इसके अतिरिक्त राजनीतिज्ञ अपनी-अपनी पार्टी के नाम पर पार्टी फंड के रूप में अवैध धन एकत्रित करते चले जाते हैं तथा नौकरशाह उनकी हरकतों को नजरअंदाज करते हुए आंखें मूंद कर बैठे रहते हैं। मतदाताओं व विपक्षी दल के नेताओं को खरीदने व विज्ञापनों इत्यादि पर किया गया धन ही तो मुख्यत: चुनावी भ्रष्टाचार होता है। ऐसे खर्चों की आपूर्ति करने के लिए राजनीतिज्ञों को धनबलियों की शरण में जाना ही पड़ता है तथा माफिया व कार्पोरेट इत्यादि के लोग उन्हें अपने काले धन का हिस्सा उपलब्ध करवाने में एक-दूसरे से आगे बढक़र अपनी-अपनी शौहरत लूटते रहते हैं। ऐसे लोगों को पता होता है कि चुनाव जीतने के बाद सत्तासीन दल के लोग उनको अपना गोरखधंधा चमकाने में भरपूर सहयोग करेंगे। वैसे तो बाहुबलियों व धनाढ्य लोगों को चुनाव में उतरे मुख्य दलों को सभी प्रत्याशियों को अपना अवैध धन उपलब्ध करवाते हंै, मगर जिस दल के उम्मीदवारों के सदस्यों की जिताने की प्रत्याशा अधिक हो, उन्हें पूरे तन, मन व धन से सहयोग करते हैं।

यह धनाढ्य व कालाबाजारी के लोग इतने कुशाग्र बुद्धि के होते हैं कि वे पहले ही भांप लेते हैं कि कौनसा नेता या दल जीतने वाला है तथा पिछले पांच वर्षों में वे जिन नेताओं के साथ गलजफड़ी डाले होते हैं, उन्हें तिलांजलि देकर जीतने वाले नेताओं के अंगसंग हो जाते हैं। यह लोग अंडों जितनी दी गई सहायता को बदले में तब तक चैन में नहीं रहते जब तक वे मुर्गी को जान तक नहीं मार लेते। धन लूटने वाले माफिया के लोगों का यह खेल निरंतर चलता रहता है तथा आम गरीब व मध्यम वर्ग के लोगों का शोषण होता रहता है। सत्ता दल सत्ता में आने के बाद गरीब व मध्यम वर्ग के लोगों के कल्याण के लिए कई प्रकार के आर्थिक पैकेज देना शुरू कर देते हैं तथा इन लोगों को रेगिस्तान में पानी के तालाब की परछाई दिखनी शुरू हो जाती है। फिजूलखर्चों व भ्रष्ट माध्यमों से की गई कमाई की भरपाई के लिए जनता पर कई प्रकार के टैक्स लगा दिए जाते हंै तथा कर्मचारियों को महंगाई भत्ता दिए जाने वाली हल्की सी मिलाई लगा दी जाती है। आम गरीब जनता महंगाई की मार से जूझती है तथा पांच वर्ष तक दूसरी सरकार के आने का इंतजार करने लग जाती है। अधिकतर नौकरशाह राजनीतिज्ञों के इशारे पर काम करना शुरू कर देते हैं तथा भ्रष्ट राजनीतिज्ञों के काले कारनामों को पनपने में सहायता करना शुरू कर देते हैं।

कुछ ही नौकरशाह, जो ईमानदार व कत्र्तव्यनिष्ठ होते हैं, राजनीतिज्ञों के अनुचित आदेशों की पालना करने से इंकार कर देते हैं, मगर उन्हें अपने कार्यकाल में कई प्रकार की उलझनों का सामना करना पड़ता है। जितने भी बड़े-बड़े घोटाले होते हैं, उनके पीछे कहीं न कहीं सरकारी तंत्र का भी हाथ होता है। भ्रष्टाचार की कडिय़ां एक-दूसरे के साथ जुड़ती चली जाती हैं तथा फिर यह उस समय भयंकर रूप धारण कर लेती है जब सामाजिक, आर्थिक व न्यायिक व्यवस्था को सुदृढ़ करने वाली संस्थाएं व नौकरशाह सभी कहीं न कहीं अपनी सत्ता व अधिकारों का दुरुपयोग करना शुरू कर देते हैं तथा लोगों में रोष फैलना आरंभ हो जाता है। धनबली व पूंजीवादी लोग भारत की राजनीति को लगातार प्रभावित करते आए हैं क्योकि राजनीतिज्ञों को इन लोगों से हर प्रकार की सहायता मिलती रहती है। ऐसे लोगों के काले कारनामों पर सत्ता में बैठी सरकार मिट्टी डालने की कोशिश करती रहती है तथा कई प्रकार के माफिया समूह सरकारी संपत्ति को लूटने का काम करते रहते हैं। भारत में भ्रष्टाचार कुछ सम्माजनक भी हो गया है क्योंकि सम्मानित लोग इसमें शामिल होते जा रहे हैं। भारत में भ्रष्टाचार नौकरशाहों, राजनेताओं व अपराधियों के बीच पनपने वाले संबंध का ही परिणाम है। पहले तो रिश्वत का भुगतान अनुचित कार्यों को कराने के लिए किया जाता था, मगर अब तो रिश्वत का भुगतान सही काम को सही समय पर करवाने के लिए भी करना पड़ता है। राजनीतिज्ञों के अनचाहे खर्चों को रोकने के लिए व उनके भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए अग्रलिखित सुझाव दिए जाते हैं :

1. चुनाव आयोग राजनीतिक प्रत्याशियों के द्वारा किए जाने वाले खर्चों पर पूरी निगाह रखता है, मगर अभी और भी कुछ करने की जरूरत है। चुनावी दिनों में राजनीतिज्ञों द्वारा विभिन्न कार्यों पर किए जाने वाले खर्चों का पूरा लेखा-जोखा लेना चाहिए। हैलीकाप्टरों व चुनाव में लगाई गई गाडिय़ों पर होने वाले खर्चों का व पार्टी फंड के नाम पर प्राप्त की गई अवैध धन राशियों का पता लगाना चाहिए।

2. मतदाताओं को चुनावी दिनों में बांटे जाने वाले विभिन्न प्रकार के उपहारों व शराब के वितरण पर रोक लगानी चाहिए तथा अवहेलना करने वालों को चुनाव लडऩे के अयोग्य करार देना चाहिए।

3. विदेशों में बैठे धनबलियों द्वारा मनी लांडरिंग के माध्यम से भेजे जाने वाले धन पर कड़ी निगाह रखनी चाहिए तथा इस संबंध में खुफिया सूचना देने वालों को प्रोत्साहन धन राशि देनी चाहिए।

4. विजिलैंस, इन्फोर्समैंट, आबकारी व आयकर इत्यादि विभागों को स्थानीय कार्पोरेट्स व माफिया के लोगों पर निगाह रखनी चाहिए तथा निर्भीकता से कार्य करना चाहिए।

5. ऐसी जन सभाओं, जिनमें 500 से अधिक लोग हों, को आयोजित करने पर प्रतिबंध होना चाहिए।

6. चुनावी दिनों में विभिन्न टीवी चैनलों द्वारा दिए जाने वाले प्रत्याशियों के जीतने व हारने के सर्वेक्षणों पर रोक लगानी चाहिए तथा केवल चुनाव समाप्त होने के बाद ही उन्हें एक्जिट पोल सर्वे प्रकाशित करने की इजाजत होनी चाहिए।

7. भ्रष्ट राजनीतिज्ञों को सजा देने के लिए मतदाताओं के पास अपनी वोट का सही प्रयोग करना एक बहुत बड़ा हथियार होता है तथा उन्हें किसी के बहकावे में आकर अपना मतदान नहीं करना चाहिए।

8. राजनीतिक दल अपने-अपने दृष्टिपत्रों में मतदाताओं को लुभाने के लिए कई ऐसी घोषणाएं कर देते हं जिन्हें पूरा करना अति असंभव होता है तथा चुनाव आयोग को चाहिए कि इन दलों को अपने दृष्टिपत्र में इन घोषणाओं को पूरा करने के लिए विभिन्न आय के स्त्रोतों का भी विवरण देने के लिए बाध्य करना चाहिए। इस तरह हम कह सकते हैं कि आज भ्रष्टाचार ने देश की जड़ों को पूरी तरह से खोखला कर दिया हुआ है। हमारा समाज ही सरकार का निर्माण करता है। वास्तव में समाज के अंदर ही भ्रष्टाचार के बीज विद्यमान होते हैं। जब तक लोग अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाते, तब तक राजनीतिज्ञों का भ्रष्टाचार का तांडव नहीं रुकेगा। भ्रष्टाचार से मुक्त सरकार ही देश के हित में लोगों का भला कर सकती है। राज्यों में पनप रहे भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने की सख्त जरूरत है तथा मोदी जी को इस ओर ध्यान देना ही होगा।

राजेंद्र मोहन शर्मा

रिटायर्ड डीआईजी


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