वोट की कीमत जानकर मतदान जरूरी

हम तब तक अच्छी व्यवस्था खड़ी नहीं कर पाएंगे जब तक हम वोट का महत्त्व और अपने मतदाता होने के फर्ज को पूरी जिम्मेदारी के साथ निभा नहीं देते हैं। चुनाव प्रक्रिया को त्रुटिपूर्ण समझकर चुनाव के दिन घर में ही रहने का प्रयास न करें, अपितु परिवार के साथ घर से बाहर निकलकर वोट जरूर डालें…

देवभूमि हिमाचल में 12 नवंबर 2022 को लोकतंत्र का महापर्व मनाया जाएगा। प्रदेश के लोग अपने मताधिकार का इस्तेमाल करेंगे। देश का चुनाव आयोग भी हरसंभव प्रयास करता है कि हम सब वोट डालने के अधिकार का प्रयोग करें और देश में प्रजातंत्र की जड़ें और मजबूत करें। सर्वविदित है कि भारत में चुनावों का आयोजन भारतीय संविधान के तहत भारतीय निर्वाचन आयोग द्वारा किया जाता है। यह एक अच्छी तरह स्थापित परंपरा है कि एक बार चुनाव प्रक्रिया शुरू होने के बाद कोई भी अदालत चुनाव आयोग द्वारा परिणाम घोषित किए जाने तक किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं कर सकती है। इसके बावजूद अनेक मतदाता अपने वोट डालने के अधिकार का प्रयोग नहीं करते हैं। वोट डालने का मकसद देश में आजादी के महत्त्व को सार्थक बनाना है। वोट सिर्फ उम्मीदवारों की जीत नहीं तय करते, बल्कि लोकतंत्र का भविष्य भी तय करते हैं। एक वोट में काफी वजन होता है। यह ठीक है कि वोट के अधिकार को लेकर काफी बहस चलती रहती है। वोट को एक महत्त्वपूर्ण संपत्ति मानते हुए इसे हासिल करने के लिए कुछ उम्मीदवार मतदाताओं को धमकाने से भी नहीं बाज आते। लेकिन सभी को एक वोट का अधिकार देकर लैंगिक, धार्मिक और अन्य भेदभावों के बावजूद बराबरी का संदेश दिया जाता है। इस नैतिक दृष्टि से वोट देने का अधिकार सार्वभौमिक हो जाता है। वोट डालना क्यों जरूरी है, आइए जानें हम समझें कि अगर आप अपने हितों के लिए वोट नहीं करेंगे तो कौन करेगा? चुनाव और सरकार लोगों की, लोगों द्वारा और लोगों के लिए होते हैं।

लोगों को सिर्फ दर्शक बने रहने और शिकायत करने के बजाय लोकतंत्र की सफलता के लिए इसमें भाग लेना चाहिए। युवाओं के लिए मतदान उनका संवैधानिक अधिकार है। उनके द्वारा चुनी गई सरकार उनके भविष्य के लिए किए गए निर्णयों को प्रभावित करेगी जो चुनावी प्रक्रिया में भाग लेने के लिए एक अच्छा और पर्याप्त कारण है। दुनिया में अभी भी कुछ ऐसे देश हैं जहां लोग अपनी सरकार चुनने में सक्षम नहीं हैं क्योंकि उन्हें वोट देने का अधिकार नहीं है। मतदान एक अधिकार और विशेषाधिकार है जिसे पाने के लिए हमारे पूर्वजों ने आजादी की लड़ाई लड़ी है। हमें इसकी सराहना करनी चाहिए और स्वेच्छा से हर मौके पर इसे करना चाहिए। वोट डालने के मर्म को समझाने के लिए एक दंत कथा है। किसी बड़े राज्य में एक राजा शासन करता था। एक बार उसके राज्य में महामारी फैल गई। बहुत सारे लोग मरने लगे। राजा ने इसे रोकने के लिए कई उपाय किए। कितने ही पैसे खर्च कर डाले, पर यह बीमारी खत्म होने का नाम नहीं ले रही थी और लोग दिन-प्रतिदिन मरते रहे। एक दिन दुखी होकर राजा भगवान से प्रार्थना करने लगा। राजा को दुखी देख भगवान प्रकट हुए और उन्होंने राजा से कहा, ‘तुम दुखी न हो राजन। इस समस्या का हल मेरे पास है।’ भगवान ने अपनी बात जारी रखी और बोले, ‘तुम्हारी राजधानी के बीचोंबीच एक पुराना सूखा हुआ कुआं है। अगर अमावस्या की रात को राज्य के हर एक परिवार उस कुएं में एक बाल्टी दूध डालेगा, तब यह समस्या इस गांव से समाप्त हो जाएंगी और कोई नहीं मरेगा।’

इतना कह कर भगवान गायब हो गए। दूसरे ही दिन राजा ने सभा बुलवाई और सभी गांव वालों को कहा कि प्रत्येक व्यक्ति के घर से एक बाल्टी दूध अमावस्या की रात को गांव के बीच वाले कुएं में डालना अनिवार्य है। कुछ दिनों उपरांत वह दिन आ गया। उसी रात्रि को जब कुएं में दूध डालना था, तब गांव की एक चालाक कंजूस बुढिय़ा ने सोचा कि सारे लोग कुएं में तो दूध डालेंगे ही, मैं अकेली एक बाल्टी पानी डाल दूंगी तो किसी को क्या पता चलेगा। फिर उस कंजूस बुढिय़ा ने उस रात्रि चुपचाप एक बाल्टी पानी डाल दी। अगले दिन देखा गया कि अभी भी लोग वैसे ही महामारी से मर रहे थे। कुछ भी नहीं बदला था क्योंकि महामारी अभी भी गांव से दूर नहीं गई थी। राजा ने उस कुएं के पास जाकर उसका कारण जानना चाहा। वहां उसने देखा कि कुआं पूरा पानी से भरा हुआ है। दूध की तो एक बूंद तक नहीं दिख रही है। तब राजा समझ गया कि इसी वजह से गांव में अभी तक महामारी है और लोग मर रहे हैं। दरसल यह इसलिए हुआ कि जो विचार उस बुढिय़ा को आया था, वही विचार सारे गांव वालों को भी आया था और किसी ने भी उस कुएं में दूध नहीं डाला। जैसा इस कहानी में हुआ, वैसा ही कई बार हम सोचते हैं कभी कोई ऐसा काम आता है कि सबको मिल कर करना होता है तो अक्सर हम अपनी जिम्मेदारियों से हाथ झटक लेते हैं और ये सोचते हैं कि कोई न कोई दूसरा व्यक्ति कर ही देगा। वोट डालने की जिम्मेवारी भी इसी तरह की है, जिसे हमें सामूहिक तौर पर निभाना होगा।

भारत जैसा युवा देश जिसकी 65 प्रतिशत से अधिक आबादी 35 वर्ष से कम है, उस देश के युवाओं की जिम्मेदारी बनती है कि वे अशिक्षित लोगों को वोट का महत्व बताकर उनको वोट देने के लिए बाध्य करें। लेकिन यह विडंबना है कि हमारे देश में वोट देने के दिन लोगों को जरूरी काम याद आने लग जाते हैं। कई लोग तो वोट देने के दिन अवकाश का फायदा उठाकर परिवार के साथ पिकनिक मनाने चले जाते हैं। कुछ लोग ऐसे भी हैं जो घर पर होने के बावजूद अपना वोट देने के लिए वोटिंग बूथ तक जाने में आलस करते हैं। इस तरह गैर-जागरूक, उदासीन व आलसी मतदाताओं के भरोसे हमारे देश के चुनावों में कैसे सबकी भागीदारी सुनिश्चित हो सकेगी। साथ ही एक तबका ऐसा भी है जो प्रत्याशी के गुण न देखकर धर्म, मजहब व जाति देखकर अपने वोट का प्रयोग करता है। यह कहते हुए बड़ी ग्लानि होती है कि वोटिंग के दिन लोग अपना वोट संकीर्ण स्वार्थ के चक्कर में बेच देते हैं। यही सब कारण हंै कि हमारे देश के चुनावों में से चुनकर आने वाले अधिकतर लोग दागी और अपराधी किस्म के होते हैं। याद रहे कि पांच वर्ष बाद हमारा लोकतंत्र हमें अपनी तकदीर लिखने का मौका देता है जिसका उपयोग जरूर होना चाहिए। इस दौरान मतदान से पहले तथाकथित लोगों द्वारा मिलने वाले प्रलोभन से परहेज करना चाहिए। हम सभी को अपने मतों का प्रयोग करके चुनाव को शत-प्रतिशत मतदान तक ले जाने का प्रयास करना चाहिए। जिस पार्टी का जो नेता आप चाहते हैं, उसे आप वोट डालिए।

वे सभी नेता देश के नागरिक हैं और चुनाव आयोग से मान्यता प्राप्त हैं। इसलिए उस क्षण तक वे जनता के प्रतिनिधि हैं। उन पर किसी प्रकार का आरोप या प्रत्यारोप नहीं लगा सकते। आपका कीमती वोट किसी भी नेता का मूल्यांकन कर सकता है। जो आप चुनेंगे वो जीत कर आएगा और यदि शत-प्रतिशत वोटिंग की जाती है तो उस जीते हुए प्रतिनिधि की सोच बदल सकती है और वह हर क्षेत्र के हर व्यक्ति के लिए काम कर सकता है, जैसे कि बिजली, पानी, सुरक्षा, शिक्षा, पेंशन, बाग-बगीचे, सडक़ें आदि-आदि। देश का नागरिक मतदान करके अपने कत्र्तव्य को निभाता है। देश के नागरिक का धर्म है कि वह मतदान में हिस्सा ले और किसी ईमानदार प्रतिनिधि को चुने, जो देश का विकास कर सके। यह हम देशवासियों के हाथ में होता है कि हम किस तरह की सरकार चाहते हैं। आइए, सोचें कि हम लोग अपनी बेटी का किसी से विवाह करने से पहले पूरी तहकीकात करते हैं। लेकिन इसके विपरीत वोट ऐसे ही किसी को भी उठाकर दे देते हैं। वोट भी तो बेटी ही है न। हम तब तक अच्छी व्यवस्था खड़ी नहीं कर पाएंगे जब तक हम वोट का महत्व और अपने मतदाता होने के फर्ज को पूरी जिम्मेदारी के साथ निभा नहीं देते हैं। चुनाव प्रक्रिया को त्रुटिपूर्ण समझकर चुनाव के दिन घर में ही रहने का प्रयास न करें, अपितु परिवार के साथ घर के बाहर निकलकर वोट जरूर डालें और देश में लोकतंत्र की प्रक्रिया को सफल बनाएं।

डा. वरिंदर भाटिया

कालेज प्रिंसीपल

ईमेल : hellobhatiaji@gmail.com


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