कालेज शिक्षा में होगा सुधार

निहित सुधारों में ग्रेडेड अकेडमिक, एडमिनिस्ट्रेटिव और फाइनेंशियल ऑटोनॉमी आदि शामिल हों। क्षेत्रीय भाषाओं में ई-कोर्स शुरू किए जाएं। वर्चुअल लैब्स विकसित किए जाएं। इसके लिए हमारे कॉलेजों और विश्वविद्यालयों को सक्रिय होना चाहिए। नए कॉलेज शिक्षा फ्रेमवर्क में केवल सैद्धांतिक पहलू को ही नहीं, बल्कि व्यावहारिक पक्ष पर भी खासा जोर दिया जाए ताकि उच्च शिक्षा की सुस्ती समाप्त हो…

केंद्र ने कॉलेज शिक्षा मे बदलाव की पूरी तैयारी कर ली है। इसी दिशा में 12 दिसम्बर को यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन ने फोर ईयर अंडरग्रेजुएट पाठ्यक्रम (एफवाईयूपी) की रूपरेखा जारी कर दी है। अभी तक बीए, बीएससी या बीकॉम करने वालों को तीन साल में ग्रेजुएशन की डिग्री मिलती थी। लेकिन अगले साल से ग्रेजुएशन की डिग्री के लिए चार साल तक पढ़ाई करनी पड़ेगी। ख़बरों के अनुसार आने वाले शैक्षणिक सत्र 2023-24 में सभी विश्वविद्यालयों में इसे लागू कर दिया जाएगा। मतलब अगले साल जो छात्र बीए, बीएससी या बीकॉम में एडमिशन लेंगे उनके ये कोर्स चार साल के होंगे। अंडरग्रेजुएट कोर्स की अवधि में किया जा रहा बदलाव देश के सभी 45 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में लागू होगा। सूत्रों के अनुसार केंद्रीय विश्वविद्यालयों के साथ अधिकांश राज्य स्तरीय और निजी विश्वविद्यालय भी चार वर्षीय अंडरग्रेजुएट कोर्स लागू करने वाले हैं। तीन साल के अंडरग्रेजुएट कोर्स में एडमिशन ले चुके छात्रों को भी चार वर्षीय पाठ्यक्रम अपनाने की सुविधा दी जाएगी। यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन की ओर से फोर ईयर यूनिवर्सिटी प्रोग्राम को लेकर फ्रेमवर्क के अनुसार अब छात्रों को 4 साल में अंडर ग्रेजुएट कोर्स को पूरा करना होगा। नए नियमों के अनुसार छात्रों को कई सुविधाएं भी मिलेंगी। इसके अनुसार कह सकते हैं कि 12वीं के बाद की पढ़ाई अब पूरी तरह बदलने वाली है। कहतें है कि नए सेशन में इन नियमों के तहत दाखिला मिलेगा। जो छात्र अगले सेशन में अंडर ग्रेजुएट प्रोग्राम में एडमिशन लेंगे, उन्हें कई तरह के फायदे हैं। नई शिक्षा व्यवस्था में अगर कोई तीन साल साल से पहले पढ़ाई छोड़ देता है तो उसे तीन साल के भीतर फिर से शामिल होने की अनुमति दी जाएगी। साथ ही छात्र को सात साल की अवधि में अपनी ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल करने का मौका दिया जाएगा। यूजी कोर्स में एडमिशन लेते समय छात्र जिस कोर्स को चुनते हैं वो सब्जेक्ट बदल सकते हैं। पहले भाग के तीन सेमेस्टर में सभी छात्रों को कॉमन और इंट्रोक्टरी कोर्स की अनिवार्य पढ़ाई करनी होगी। इसी तरह दूसरे भाग के चौथे, पांचवें और छठे सेमेस्टर में एक मुख्य विषय लेना होगा। इसके साथ दो छोटे यानी माइनर सब्जेक्ट का विकल्प मिलेगा। तीसरे भाग में सातवें और आठवें सेमेस्टर को शामिल किया गया है।

इसमें छात्रों को ऑनर्स और शोध का विकल्प मिलेगा। यूजी कोर्स में दाखिला लेने वाले शिक्षार्थियों को सभी विषयों में अपनी रुचि के कोर्स चुनने का अवसर मिलेगा। छात्र चाहें तो वह पहले से चले आ रहे तीन वर्षीय अंडर ग्रेजुएशन प्रोग्राम को ही जारी रख सकते हैं। नए नियम के तहत सात साल के भीतर एंट्री-एक्जिट की सुविधा मिलेगी। चार वर्षीय यूजी डिग्री प्रोग्राम वाले छात्र सीधे पीएचडी के लिए पात्र होंगे। पहले साल की पढ़ाई से सर्टिफिकेट, दूसरे में डिप्लोमा, तीसरे में डिग्री और चौथ में आनर्स डिग्री और रिसर्च डिग्री मिलेगी। कॉलेज छात्रों के पास विकल्प होगा कि वो क्लास लेने का तरीका बदल सकते हैं। छात्र ऑनलाइन, ऑफलाइन या डिस्टेंस मोड से क्लास लेने का ऑप्शन चुन सकते हैं। यह बदलाव लम्बे समय से शिक्षा के क्षेत्र मे वांछित थे। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) की गाइडलाइन के अनुसार चार वर्षीय स्नातक डिग्री वाले उम्मीदवार सीधे पीएचडी कर सकते हैं और उन्हें मास्टर डिग्री की आवश्यकता नहीं होगी। यूजीसी का सर्कुलर जारी होने के बाद विद्यार्थी इस निर्णय से काफी खुश हैं। इसका मुख्य कारण पीजी की डिग्री न करना है। हालांकि यह छात्र इसे जितना आसान सोच रहे हैं यह उतना आसान भी नहीं होगा। चार साल का यूजी कोर्स करने के बाद भले ही विद्यार्थियों का एक साल बच रहा है, लेकिन इसमें उन्हें ऑनर्स विद रिसर्च की डिग्री जरूरी होगी। ग्रेजुएशन डिग्री के साथ उन्हें 12 क्रेडिट का प्रोजेक्ट वर्क भी करना होगा। यूजीसी के अनुसार जो छात्र तीन साल में ग्रेजुएशन करना चाहते हैं, उन्हें 120 क्रेडिट (अकादमिक घंटों की संख्या से मापा जाता है) प्राप्त करने होंगे। जबकि चार साल यूजी कोर्स ऑनर्स की डिग्री के लिए चार साल में 160 क्रेडिट हासिल करने होंगे। ऑनर्स विद रिसर्च के लिए छात्रों के पास 7.9 सीजीपीए यानी 75 प्रतिशत अंक होना जरूरी है। यह डिग्री भी केवल वही कॉलेज करा सकेंगे जिसमें परमानेंट दो पीएचडी गाइड हैं।

जिन कॉलेजों में पीएचडी गाइड नहीं हैं, वह यह डिग्री नहीं करा सकते हैं। कुछ ही कॉलेजों में ही यह सुविधा है। यूजीसी के अनुसार स्नातक कार्यक्रमों के लिए पाठ्यक्रम और क्रेडिट ढांचे को अधिसूचित किया है जो छात्रों को प्रवेश और निकास के लिए कई विकल्प प्रदान करेगा। मौजूदा च्वाइस बेस्ड क्रेडिट सिस्टम को संशोधित करके प्रारूप विकसित किया गया है। कार्यक्रम के अनुसार छात्र मौजूदा समय की तरह तीन साल के पाठ्यक्रम के बजाय केवल चार साल की ऑनर्स डिग्री हासिल कर सकेंगे। ऑनर्स डिग्री भी दो श्रेणियों, ऑनर्स और ऑनर्स विद रिसर्च में प्रदान की जाएगी। जारी करिकुलम में अगर कोई छात्र रिसर्च स्पेशलाइजेशन करना चाहते हैं तो उन्हें अपने चार साल के कोर्स में एक रिसर्च प्रोजेक्ट शुरू करना होगा। इससे उन्हें रिसर्च स्पेशलाइजेशन के साथ ऑनर्स की डिग्री मिलेगी। फिलहाल छात्रों को तीन साल के यूजी कोर्स को पूरा करने के बाद ऑनर्स डिग्री मिलती है। विद्यार्थियों से मोटा शुल्क वसूलने वाले महाविद्यालयों को अब शैक्षिक गुणवत्ता सुधार के प्रयास करने होंगे। इससे विद्यार्थियों के शैक्षणिक स्तर में सुधार होगा। इसके लिए कॉलेजों को संसाधनों के मामले में अपडेट होना होगा। आईसीटी संसाधनों की उपलब्धता सुनिश्चित करनी होगी। साथ ही कॉलेज में प्लेसमेंट सेल, कॅरियर काउंसलिंग सेल एवं पूर्व छात्र संघ एसोसिएशन की स्थापना के जरिए स्टूडेंट्स को बेहतर प्लेटफार्म उपलब्ध कराना होगा। इसके साथ ही नैक एक्रीडिटेशन के लिए भी आवश्यक आंतरिक गुणवत्ता आश्वासन प्रकोष्ठ का गठन करना होगा। बुनियादी सुविधाएं बढ़ानी होंगी। वित्तीय सहायता बढ़ाकर स्टाफ की कमी दूर करनी होगी।

उच्च अध्ययन के तहत राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय परीक्षा में सफल स्टूडेंट्स का रिकॉर्ड अरेंज (संभाल) कर कॉलेज की वेबसाइट पर प्रदर्शित करना होगा। कॉलेज में यूजीसी योग्यताधारी शैक्षणिक स्टाफ की निरंतर उपलब्धता सुनिश्चित करनी होगी। वहीं शोध पत्रों के प्रकाशन के लिए प्रोत्साहन, विशेष योग्यजनों के लिए सुविधाएं देनी होंगी। साथ ही शिक्षकों को सम्मेलनों, कार्यशालाओं, शिक्षक व्यावसायिक विकास कार्यक्रम में भाग लेने के लिए प्रोत्साहन व वित्तीय सहायता देनी होगी। सरकार देखे कि इस दिशा में ढील तो नहीं है। कुल मिला कर भविष्य की तमाम चुनौतियों और व्यावहारिक पहलुओं पर विचार के बाद लागू की जा रही नई उच्च शिक्षा प्रणाली एक बड़े सामाजिक और आर्थिक बदलाव की वाहक बनेगी। इससे कॉलेज और विश्वविद्यालयों की शिक्षा प्रणाली में आमूलचूल परिवर्तन तो आएगा ही, इसके साथ ही नए भारत के निर्माण के सपने को भी साकार करने में यह सक्षम साबित होगी। निहित सुधारों में ग्रेडेड अकेडमिक, एडमिनिस्ट्रेटिव और फाइनेंशियल ऑटोनॉमी आदि शामिल हों। इसके अलावा क्षेत्रीय भाषाओं में ई-कोर्स शुरू किए जाएं। वर्चुअल लैब्स विकसित किए जाएं। इसके लिए हमारे कॉलेजों और विश्वविद्यालयों को सक्रिय होना चाहिए। नए कॉलेज शिक्षा फ्रेमवर्क में केवल सैद्धांतिक पहलू को ही नहीं, बल्कि व्यावहारिक पक्ष पर भी खासा जोर दिया जाए ताकि उच्च शिक्षा की वर्षों की सुस्ती को समाप्त किया जा सके। उम्मीद है कि उच्च शिक्षा में अब सुधार होगा।

डा. वरिंदर भाटिया

कालेज प्रिंसीपल

ईमेल : hellobhatiaji@gmail.com


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