भ्रष्टाचार व महंगाई हरा देते हैं हर सत्ता को

यदि अधिकतर लोग इन शातिर लोगों की हरकतों पर अपनी पैनी निगाह रख पाएं तो राजनेता व नौकरशाह भ्रष्टाचार नहीं कर पाएंगे…

महंगाई आम आदमी के जीवन से जुड़ा एक गंभीर मुद्दा होता है जो पूरे आर्थिक ढांचे को प्रभावित करता है। पिछले कुछ वर्षों से चलती आ रही महंगाई का मुख्य कारण आपूर्ति की कमी व लोगों की निम्न क्रय शक्ति रही है। रिजर्व बैंक ने भी अपनी मौद्रिक नीति के अन्तर्गत ब्याज दरों में बदलाव लाकर समय समय पर महंगाई पर अंकुश लगाने की कोशिश की है, मगर कई ऐसे कारण हैं जिनकी वजह से कीमतें बढ़ती चली गई। तेल की कीमतों को बढऩे से रोकना किसी देश के अपने वश में नहीं होता क्योंकि इसका सीधा संबंध तेल निर्यातक देशों से होता है। रूस व यूक्रेन की लड़ाई ने तेल की आपूर्ति को प्रभावित किया है तथा कीमतों में इजाफा हुआ है। इसी तरह गैस सिलेंडर की कीमतें भी बढ़ती चली गईं जिसने हर गृहिणी को प्रभावित किया है। कोरोना काल में देश की अर्थव्यवस्था बिल्कुल ठप हो गई तथा जिससे उबरने में समय लगना स्वाभाविक ही है। तेल की कीमतें बढऩे से ट्रांसपोर्टेशन पर गहरा प्रभाव पड़ता है जोकि सीधे तौर पर आम जनता को प्रभावित करता है। बढ़ती जनसंख्या भी देश की अर्थव्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित करती रहती है। यह ठीक है कि इस संकट का हल सरकारों के पास अभी तक संभव नहीं हुआ है, परंतु यह समस्या देश में महंगाई बढऩे का हमेशा एक मुख्य कारण होता है।

बढ़ती महंगाई का एक मुख्य कारण कालाबाजारी भी होता है जिस पर सत्तारूढ़ सरकार अंकुश लगाने में नाकाम रहती है। 1. सत्ता के समय सत्ताधारी लोग आम तौर पर अपनी आंखों पर पट्टी बांध कर काम करते हैं, फिर अपने चहेतों को रेवडिय़ां बांटते रहते हंै। ऐसे चहेते लोग सरकारी संपदा चाहे रेत, बजरी हो तो चाहे सरकारी इमारतों व सडक़ों का निर्माण हो, उसका भरपूर दोहन करते हुए अपनी जेबें भरते रहते हैं जो अन्तत: महंगाई बढ़ाने में कहीं न कहीं योगदान देते हैं। 2. आजकल छोटे से छोटे कामों का उद्घाटन तथा उन पर अपनी नाम की पट्टियां लगाने की होड़ सी चल पड़ी है। प्रत्येक दल के सदस्य ऐसी पट्टियां लगाकर अपनी शौहरत बटोरना चाहते हैं तथा ठेकेदारों को उद्घाटन समारोहों पर चायपान इत्यादि का भारी भरकम बोझ उठाने को मजबूर करते हैं तथा बदले में ऐसे लोग काम की गुणवत्ता से समझौता करते हुए सरकार को गरीबों पर टैक्स लगाने के लिए मजबूर करते हैं। उदाहरण के तौर पर हाल ही में गुजरात में मोरवी पुल जिसकी मुरम्मत पर आठ करोड़ खर्च आया था, कुछ ही दिनों में नीचेे गिर गया तथा जिसमें 130 से भी ज्यादा लोगों की मौत हो गई तथा ऐसे हादसों में मौत के शिकार हुए लोगों के परिजनों को सरकार को भारी भरकम आर्थिक सहायता देनी पड़ती है तथा जो किसी न किसी रूप में महंगाई बढ़ाने में एक बहुत बड़ा कारण बनती है। 3. सत्ता में आने के लिए सभी दल बड़ी बड़ी घोषणाएं कर देते हैं तथा मतदाताओं को लुभाने के लिए किसी भी सीमा तक सरकारी धन लुटाते रहते हैं।

उदाहरणत: मुफ्त बिजली-पानी उपलब्ध करवाना तथा महिलाओं के लिए मुफ्त गैस चूल्हे व उन्हें बसों में निशुल्क यात्रा करने की सुविधा देना तथा इसी तरह से किसानों के खातों में धन जमा कराना जैसी स्कीमें सरकारी खजाने पर एक बड़ा बोझ बन जाती हैं तथा सरकारों को बहुत बड़े कर्जे का शिकार होना पड़ता है। आखिर कब तक देश व प्रांतों को करजाई किया जाता रहेगा। ऐसी प्रलोभित स्कीमों को न रोका गया तो एक न एक दिन देश में आर्थिक मंदी का दौर आ जाएगा तथा महंगाई के कारण लोग जीवन और मृत्यु के बीच झूलने लगेंगे। 4. कहते हैं कि जब राजा ढीला हो तो उसके लैफ्टीनैंट व नौकरशाह खूब मौज मस्ती करते हैं तथा जितना हो सके वो सरकारी धन को दोनों हाथों से लूटते रहते हैं। मन्त्री लोग बिना वजह की स्कीमों में जरूरत से अधिक सरकारी धन खर्चते रहते हैं तथा उसमें कमीशन के रूप में अपनी जेबें भरते रहते हंै। जरूरत न होते भी जगह जगह रैस्ट हाउस बनवाना जो शराबी कबाबी लोगों के अड्डे बन जाते हैं। इसी तरह के नाम पर आगामी स्कीमों के लिए दस वर्ष की सामग्री खरीद कर सडक़ों के किनारों पर लावारिस छोड़ कर सरकारी धन को चूना लगाते रहते हैं। बद्दी में कई फार्मा कम्पनियां घटिया सामान बनाने में लगी हैं जिसका मुख्य कारण यही है कि उन्हें कहीं न कहीं कोई पनाह देता आया है अन्यथा श्री शांता कुमार जैसे राजनेता अगर सत्ता में होते तो ऐसे लोग जरूर सलाखों के पीछे धकेलते। 5. सरकारी नौकरशाह भी कमजोर घुड़सवार का फायदा लेते हुए अपने हाथ रंगने में पीछे नहीं रहते। चापलूस व भ्रष्ट अधिकारी अपने पास दो-दो, तीन-तीन महकमे रखने की होड़ में लगे रहते हैं तथा भ्रष्ट लोगों से मेल मिलाप करते हुए इस तरह से धन लूटते हैं जिसका आम व्यक्ति को पता ही नहीं चलता। सरकारी इमारतें अपने मनचाहे ठेकेदारों व एजेंसियों के माध्यम से बनवाई जाती हैं तथा उनको फायदा पहुंचाते हुए अपनी जेबें भी भरते रहते हंै।

सरकारी धन की यह लूट खसूट महंगाई का रूप धारण कर लेती है तथा गरीब मध्यम वर्ग के लोगों को इसका शिकार होना पड़ता है। 6. सत्ताधारी लोग अपनी हर प्रकार की जरूरी व कुछ गैर जरूरी प्रयासों में सरकारी धन का दुरुपयोग धड़ल्ले से करते रहते हैं। मंत्री लोगों को तो तब तक ध्यान नहीं आता जब तक उनके प्रवास में उस स्थान के अधिकारी अपनी अपनी गाड़ी लेकर उनकी हाजिरी न भरें। मंत्री गण आम तौर पर सरकारी काम की बारीकियों से अनभिज्ञ होते हैं तथा उन्हें मजबूरी में नौकरशाहों की सलाह पर ही निर्भर रहना पड़ता है। नौकरशाह ही उन्हें धन को खर्चने का रास्ता बताते हैं तथा स्वाभाविक है कि बदले में वो भी कुछ पारितोषिक ग्रहण करना चाहते हैं। सरकार के पिट्ठू बनकर वो भी भ्रष्टाचार करने से पीछे नहीं हटते क्योंकि उन्हें पता होता है कि मंत्रियों का हाथ उनकी पीठ पर हैं। 7. केवल विजिलैंस विभाग ही ऐसे भ्रष्ट नौकरशाहों पर शिकंजा कस सकता है., मगर उनकी ट्रैप करने की शक्तियों पर भी इस प्रकार प्रतिबंध लगा दिया जाता है कि वो जानते हुए भी शातिर लोगों को अपनी गिरफ्त में नहीं ले पाते हैं। चुनाव के दिनों में बुद्धिजीवी मतदाता ऐसे भ्रष्ट राजनीतिज्ञों के विपरीत अपने मत का प्रयोग करते हैं तथा उन्हें चुनाव के मैदान में पटखनी लगा देते हैं, मगर यह खेल शाश्वत है तथा निरंतर हर दल के लोग खेलते रहते हैं। मोदी जी ने इन राजनीतिक खिलाडिय़ों के कृत्यों पर काफी सीमा तक अंकुश लगाया है, मगर उनकी टांगें खींचने वाले बहुत अधिक हैं जो उन्हें किसी भी समय धराशायी करने की फिराक में लगे रहते हंै। यदि अधिकतर लोग इन शातिर लोगों की हरकतों पर अपनी पैनी निगाह रख पाएं तो भ्रष्ट राजनीतिज्ञों व नौकरशाहों की कोई हिम्मत व ताकत नहीं है कि वो देश को लूट कर गरीब जनता को तड़पने के लिए मजबूर कर सकें।

राजेंद्र मोहन शर्मा

रिटायर्ड डीआईजी


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