मोक्षदा एकादशी : मोह का क्षय करने वाली

By: Dec 3rd, 2022 12:28 am

मोक्षदा एकादशी पुराणों के अनुसार मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की एकादशी को कहा जाता है। द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने इसी दिन अर्जुन को भगवद् गीता का उपदेश दिया था। इसीलिए यह तिथि गीता जयंती के नाम से भी प्रसिद्ध है…

नामकरण

यह एकादशी मोह का क्षय करने वाली है। इस कारण इसका नाम ‘मोक्षदा’ रखा गया है। इसीलिए भगवान श्रीकृष्ण मार्गशीर्ष में आने वाली इस मोक्षदा एकादशी के कारण ही कहते हैं, ‘मैं महीनों में मार्गशीर्ष का महीना हूं।’ इसके पीछे मूल भाव यह है कि मोक्षदा एकादशी के दिन मानवता को नई दिशा देने वाली गीता का उपदेश हुआ था।

व्रत

इस दिन गीता, श्रीकृष्ण, व्यास जी आदि का विधिपूर्वक पूजन करके गीता जयंती का उत्सव मनाया जाता है। इस एकादशी के बारे में कहा गया है कि शुद्धा, विद्धा और नियम आदि का निर्णय यथापूर्व करने के अनंतर मार्गशीर्ष शुक्ल दशमी को मध्याह्न में जौ और मूंग की रोटी, दाल का एक बार भोजन करके द्वादशी को प्रात: स्नानादि करके उपवास रखना चाहिए। भगवान का पूजन करें और रात्रि में जागरण करके द्वादशी को एक बार भोजन करके पारण करें।

गीता का पठन-पाठन

भगवद् गीता के पठन-पाठन, श्रवण एवं मनन-चिंतन से जीवन में श्रेष्ठता के भाव आते हैं। गीता केवल लाल कपड़े में बांधकर घर में रखने के लिए नहीं बल्कि उसे पढक़र संदेशों को आत्मसात करने के लिए है। गीता का चिंतन अज्ञानता के आचरण को हटाकर आत्मज्ञान की ओर प्रवृत्त करता है। गीता भगवान की श्वास और भक्तों का विश्वास है। इस दिन गीता, श्रीकृष्ण, व्यास जी आदि का विधिपूर्वक पूजन करके गीता जयंती का उत्सव मनाया जाता है। भगवान दामोदर (विष्णु) की धूप, दीप, नैवेद्य से पूजा करनी चाहिए। ब्राह्मण को भोजन कराकर दानादि देने से विशेष फल प्राप्त होता है। इस दिन व्रत करने से दुर्लभ मोक्ष पद की प्राप्ति होती है।

कथा

एक समय गोकुल नगर में वैखानस नामक राजा राज्य करता था। एक दिन राजा ने स्वप्न में एक आश्चर्य की बात देखी। उसका पिता नरक में पड़ा है और वह अपने पुत्र से उद्धार की याचना कर रहा है। राजा अपने पिता की यह दशा देख व्याकुल हो उठा। उसी समय उसकी निद्रा भंग हो गई। प्रात: राजा ने ब्राह्मणों को बुलाकर अपने स्वप्न का भेद पूछा। तब ब्राह्मणों ने कहा, ‘हे राजन! इसके लिए पर्वत नामक मुनि के आश्रम में जाकर इसका उद्धार पूछो।’ तब राजा ने वैसा ही किया। जब पर्वत मुनि ने राजा की बात सुनी, वे चिंतित हो गए। उन्होंने अपनी योग दृष्टि से राजा के पिता को देखा और बोले, ‘राजन! पूर्वजन्म के पापों से आपके पिताजी को नर्कवास प्राप्त हुआ है। उन्होंने सौतेली स्त्री के वश में होकर दूसरी स्त्री को रतिदान का निषेध कर दिया था। इसी दोष से उन्हें नरक की प्राप्ति हुई है। अब तुम मोक्षदा एकादशी को व्रत कर उसका फल अपने पिता को अर्पण करो तो उनकी मुक्ति हो सकती है।’ राजा ने मुनि के कथनानुसार ही मोक्षदा एकादशी का यथा नियम व्रत किया और ब्राह्मणों को भोजन करा दक्षिणा, वस्त्रादि अर्पण कर आशीर्वाद प्राप्त किया। इस उत्तम कर्म से उसने प्रत्यक्ष देखा कि आकाश में मंगल ध्वनि हो रही है और उसका पिता विमान में बैठ स्वर्ग को जा रहा है। उसके पिता ने कहा, ‘हे पुत्र! मैं थोड़े समय यह स्वर्ग का सुख भोग मोक्ष को प्राप्त कर जाऊंगा। तेरे व्रत के प्रभाव से मेरा नर्कवास छूट गया, तेरा कल्याण हो।’


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