सहनशीलता का महत्त्व

By: Dec 3rd, 2022 12:20 am

बाबा हरदेव

गतांक से आगे…

एक दिन जब वह स्नान करके वापस आ रहे थे, तो रास्ते में एक सराय में रहने वाले एक ईष्र्यालु विद्यार्थी ने उन पर गंदा पानी डाल दिया। वह बिना कुछ बोले वापस नदी पर स्नान करने चले गए। स्नान कर उसी रास्ते से आ रहे थे, तो उस व्यक्ति ने फिर उन पर गंदा पानी फेंक दिया, फिर बिना कुछ कहे नदी पर स्नान करने चले गए।

इस प्रकार उस दिन 108 बार उन्होंने गोदावरी में स्नान किया। वह व्यक्ति क्रोध में लाना चाहता था परंतु वह उनकी सहनशीलता और क्षमा भाव के आगे हार गया और उनके चरणों में गिर कर रो-रो कर क्षमा मांगी। महात्मा ने उसे सत्य का ज्ञान दे कर उसके जीवन को सार्थक बना दिया। एक दार्शनिक और ब्रह्मज्ञानी महात्मा सुकरात की सत्य बातों को धर्म के ठेकेदार और राजसत्ता के अधिकारी सहन नहीं कर सके और उन्हें मृत्यु दंड देने के लिए विष बना दिया गया। विष पान से पहले अनेक प्रश्र प्रभु प्रेमियों और दूसरे लोगों ने उन से पूछे, जिन के उत्तर महात्मा ने शांत मन से दिए और उन्हें संतुष्ट किया।

यह उनकी सहनशीलता की चर्म सीमा थी। युगपुरुष बाबा अवतार सिंह जी दिल्ली पहाडग़ंज में रहते थे। एक दिन कुछ विरोधी इक_े हो कर आ गए और गाली गलोच करने लगे। मानवता से गिरे हुए शब्दों का भी इस्तेमाल उन्होंने किया। यह सुन कर बाबा जी के पास बैठे एक महात्मा उठे उन्हें कुछ कहने के लिए, तो बाबा जी ने उन्हें इशारे से बिठा दिया। कुछ देर के बाद बाबा जी ने एक महात्मा से कहा कि वे लोग गर्मी से परेशान होंगे उन्हें ठंडा पानी पिला दो। आज्ञा पा कर महात्मा ने उनको ठंडा पानी पिला दिया। पानी पी कर एक व्यक्ति बोला हमारे लिए यह पानी किसने भेजा है? महात्मा ने इस पर कहा, जिसे आप गालियां दे रहे हैं, यह पानी आपके लिए उन्होंने ही भेजा है। यह सुन कर सब विरोधी शर्मिंदा हुए और वापस चले गए। सद्गुरु स्वयं अपने आचरण से सहनशीलता का महत्त्व गुरसिख को समझाता है।

राजा भर्तृहरि नीति शतक में लिखते हैं कि सहनशील व्यक्ति के सामने अग्रि जल के समान शीतल हो जाती है। समुद्र नदी के समान, मेरू पर्वत शिलाखंड के समान, सर्प पुष्प माला के समान और विष अमृत के समान हो जाता है। शिवजी महाराज विष को कंठस्थ करने की क्षमता रखते हैं। महात्मा कहते हैं कि जो संसार की कटुता रूपी विष को कंठस्थ करता है, वह महादेव बनता है। बाबा जी कहते हैं कि दुव्र्यवहार और कटु वचनों को कोई सहनशील ही सहन कर सकता है। बाबा जी अकसर अवने प्रवचनों में उदाहरण देते हुए कहते हैं कि

खोद-खाद धरती सहे, काट कूट बनराय। कटु वचन साधु सहे, औरन ते सहे न जाए।।


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