स्कूल शिक्षा सुधारों पर काम हो

हमें अपने देश के स्कूल छात्रों को होलिस्टिक मतलब सम्पूर्ण शिक्षा मुहय्या करवानी है। इससे हमारे छात्र ज्यादा सामाजिक जिम्मेवार और देश हितों के प्रति संवेदनशील बन सकेंगे। इसके लिए बेहतर क्वालिटी की एकेडेमिक्स की भी जरूरत है। यह सब तब हो सकेगा जब हमारे अध्यापक बेहतरीन और अपडेटेड होंगे। टीचर ट्रेनिंग का सिलसिला कई राज्यों में ठंडे बस्ते में तो नहीं है? हमें उस शिक्षा से कोई फायदा नहीं होगा जो ज्यादा से ज्यादा नंबर लेने के दबाव तले छात्र के दिल-दिमाग को सिर्फ और सिर्फ मशीनी सोच वाला प्राणी मात्र बना देती है। स्कूल शिक्षा का उच्च शिक्षा के साथ बेहतर लिंकेज और समन्वय हो…

हाल ही मुझे 21 और 22 नवम्बर को राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसन्धान और प्रशिक्षण परिषद द्वारा स्कूल शिक्षा में सुधारों से जुड़ी दो दिवस की वर्कशॉप में देश के 22 से अधिक राज्यों के स्कूल शिक्षा बोर्ड के चेयरपर्सन और शीर्ष अधिकारियों से वांछित स्कूल शिक्षा सुधारों पर विचार-विमर्श का मौका मिला। राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसन्धान और प्रशिक्षण परिषद भारत सरकार द्वारा स्थापित संस्थान है जो विद्यालयी शिक्षा से जुड़े मामलों पर केन्द्रीय सरकार एवं प्रान्तीय सरकारों को सलाह देने के उद्देश्य से स्थापित की गई है। यह परिषद भारत में स्कूली शिक्षा संबंधी सभी नीतियों पर कार्य करती है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति -2020 के सन्दर्भ में यह राष्ट्रीय सत्र पर पर एक अच्छी कोशिश थी। इस अत्यंत महत्वपूर्ण सेशन में स्कूल शिक्षा में सुधार से जुड़े अनेक मुद्दों पर देश के राज्यों के विभिन्न स्कूल शिक्षा बोर्ड द्वारा की जा रही कोशिशों को जानना अनूठा अनुभव था।

इस समय देश की स्कूल शिक्षा में सुधार के अनेक मुद्दे हैं, लेकिन जिन बिन्दुओं पर सभी राज्यों को संजीदगी और आक्रामकता दिखानी चाहिए, वे कुछ इस प्रकार हैं : स्कूल शिक्षा में विषयों का चुनाव संबंधी छात्रों को सुविधा, परीक्षा सुधार, छात्रों का सम्पूर्ण आकलन, वोकेशनल शिक्षा को ठीक तरीके से स्थापित करनास सिलेबस के लोड को तर्कसंगत बनाना, चार वर्ष की सेकेंडरी शिक्षा के लिए प्लानिंग और स्कूल शिक्षा की उच्च शिक्षा से लिंकेज महत्वपूर्ण बिंदु हैं। आईये इन बिंदुओं का विश्लेषण करें। सबसे पहले करिकुलम, सादे शब्दों में एक छात्र ने कितना पाठ्यक्रम का भार उठाना है, इस पर बात करते हैं। इसमें हमें कोर सब्जेक्ट्स की पहचान करनी होगी और छात्रों पर जबदस्ती सब्जेक्ट थोपने पर विचार करना होगा। कई बार देखने में आता है कि कितने-कितने साल स्कूल, कॉलेज, यूनिवर्सिटीज के विद्यार्थी आउटडेटेड मटेरियल पढ़ते हैं और अकादमिक नजरिये से ग्लोबल चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार ही नहीं होते। एकेडेमिक रिसर्च पर भी अनेक राज्यों में बहुत कम ध्यान दिया जा रहा है। यहां हमें प्रोफेशनल तरीके से काम करने की जरूरत है। आउटसोर्सिंग के जरिये अकादमिक एक्सपट्र्स को शामिल किया जाना चाहिए। राज्यों में करिकुलम यानी सिलेबस को तर्कशील बनाने के लिए वर्कशॉप्स सहायक हो सकती हैं। हमें टेक्स्ट बुक्स लोकल फ्लेवर में विकसित करने की कवायद शुरू करनी चाहिए।

यह हमारे स्कूल छात्रों को मानसिक प्रताडऩा से निजात दिलवाने में मदद करेगी। हम समझें कि मानसिक दबाव में पढऩे-पढ़ाने की प्रक्रिया सिर्फ विद्यार्थी ही नहीं, हमारे अध्यापकों की मानसिक सेहत के लिए भी हानिकारक है। मैं मानता हूं कि हमारे अनेक आधे से अधिक अध्यापक मानसिक दबाव से परेशान होकर काम से वापिस आते हंै। दूसरा बिंदु वोकेशनल शिक्षा को मेन स्ट्रीम शिक्षा का अटूट हिस्सा बनाना है। यह हमारी कोशिशों के बावजूद एक चुनौती बना हुआ है। हमारी स्कूल शिक्षा में वोकेशनल शिक्षा हमारी इंडस्ट्री की जरूरतों के अनुसार प्रस्तावित चार साला सीनियर सेकेंडरी शिक्षा का हिस्सा बनाना ही होगा। इसके लर्निंग का माहौल बनाना होगा। हमें वोकेशनल शिक्षा आक्रामकता और संजीदगी दिखानी होगी ताकि हमारा देश और हमारे प्रदेश छात्रों को वल्र्ड ऑफ वर्क के लिए तैयार कर सके। कुल मिला कर वोकेशनल शिक्षा के प्रति रुझान प्रोत्साहित किया जाना चाहिए और कारगर नीतियां बनाने को पहल करनी होगी। परीक्षा प्रणाली सुधारों में यूं तो अनेक बिंदु हैं, परंतु कुछ खास बातें हैं, जैसे पेपर सेटर्स की कैपेसिटी कैसे बेहतर की जाए, ऑनलाइन मूल्यांकन के लिए सिस्टम विकसित किया जाए ताकि पारदर्शिता और कार्य कुशलता में वृद्धि हो। इस बिंदु पर डिजिटल टेक्नोलॉजी के शिक्षा में प्रयोग को लेकर अनेक राज्यों में कुछ अच्छा काम देखा जा रहा है। छात्रों के मूल्यांकन को लेकर स्तर सुधारने की सभी राज्यों को जरूरत है।

हमारा नतीजा 99 प्रतिशत है या छात्र के नंबर 99 परसेंट है, यह छात्र की सम्पूर्ण काबलियत के स्तर का अक्स कभी नहीं हो सकता है। और तो और हमारे सारे छात्र पास हो गए, यह भी स्कूल की कार्यक्षमता का कोई सॉलिड पैमाना नहीं है। यदि हमारी नतीजा प्रणाली कड़े मानदंड वाली होगी तो हमारे सामने उतनी ही बेहतर क्षमता वाला छात्र आएगा। मूल्यांकन शिक्षा पद्धति का एक छोटा हिस्सा है। ज्यादा महत्वपूर्ण बातें हैं कि क्या सिखाना है, कैसे सिखाना है, कौन सिखाएगा, सीखने वाले की क्या भूमिका होगी आदि। इस पर बहुत काम करने की जरूरत है। हमारी शिक्षा पद्धति में मूल्यांकन साल में एक बार वार्षिक परीक्षा में 3 घंटा के लिखित प्रश्न पत्र के उत्तरों के आधार पर किया जाता है। भले ही किसी विद्यार्थी ने रट्टा मारा हो, नकल की हो या पैसा खर्च करके नम्बर बढ़वाए हों। मतलब उस 3 घंटे का प्रदर्शन सब कुछ तय कर देता है। लिखने की क्षमता के अलावा विद्यार्थी के अन्य गुणों का कोई मूल्यांकन नहीं है। प्राथमिक शिक्षा में बहुत ज्यादा विषय नहीं होने चाहिए- गणित व विज्ञान, भाषाएं और आसपास के माहौल पर पढ़ाई होनी चाहिए। ज्यादा जोर होना चाहिए योग, ध्यान, खेलकूद पर ताकि स्वस्थ भारत की नींव मजबूत हो। याद रहे कि विंडो ड्रेसिंग से लिपे पुते शिक्षा के आंकड़े हमें बेहतर नहीं बता रहे होते हैं। याद रहे कि शिक्षा जगत की कड़वी सच्चाई तो कुछ और ही होती है। यह शिक्षा जगत की जमीं से जुड़ा कोई शिक्षाविद बेहतर बता सकता है।

आज सभी राज्यों को शिक्षा से जुडी संरचना को, कार्य शैली को, अच्छी प्रैक्टिसेज को, देश के दूसरे राज्यों से बहुत कुछ सीखने की जरूरत है। इस डिस्कशन में एक बात सामने आई कि एक वर्ष में छात्रों के ऊपर बार-बार परीक्षा का कोई अच्छा असर नहीं होता। इससे शिक्षा की आत्मिकता कमजोर होने लगती है। क्या छात्र द्वारा प्राप्त किए गए माक्र्स उसकी क़ाबलियत की असलियल को बता रहे होते हैं? हमें मार्किंग के यानी छात्रों को पास करने के फार्मूले की गुणवत्ता को छात्र की असली क़ाबलियत के लेवल पर लाना होगा। स्कूल लेवल पर इंटरनल और निरंतर मूल्यांकन का काफी महत्व होता है। हम अपने छात्रों को परीक्षा के दबाव से निकालने के लिए क्या कर रहे हैं, यह संजीदा मुद्दा है। हमें अपने देश के स्कूल छात्रों को होलिस्टिक मतलब सम्पूर्ण शिक्षा मुहय्या करवानी है। इससे हमारे छात्र ज्यादा सामाजिक जिम्मेवार और देश हितों के प्रति संवेदनशील बन सकेंगे। इसके लिए बेहतर क्वालिटी की एकेडेमिक्स की भी जरूरत है। यह सब तब हो सकेगा जब हमारे अध्यापक बेहतरीन और अपडेटेड होंगे। टीचर ट्रेनिंग का सिलसिला कई राज्यों में ठंडे बस्ते में तो नहीं है? हमें उस शिक्षा से कोई फायदा नहीं होगा जो ज्यादा से ज्यादा नंबर लेने के दबाव तले छात्र के दिल-दिमाग को सिर्फ और सिर्फ मशीनी सोच वाला प्राणी मात्र बना देती है। इसके अलावा अंत में हम ध्यान दें कि स्कूल शिक्षा की उच्च शिक्षा के साथ बेहतर लिंकेज और समन्वय हमारे स्कूल शिक्षा सुधारों को गति दे सकते हैं। क्यों न हम शिक्षा सुधारों में और आक्रामकता, निरंतरता और संजीदगी दिखाएँ और देश की युवा ताकत को शैक्षिक स्फूर्ति दें।

डा. वरिंदर भाटिया

कालेज प्रिंसीपल

ईमेल : hellobhatiaji@gmail.com


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