शौर्य से लबरेज गोरखा सैन्य इतिहास

स्मरण रहे विश्व युद्धों में भाग लेने वाले भारतीय सैनिकों का मंजिल-ए-मकसूद भी अंग्रेजों की सफ्फाक हुक्मरानी से भारत की आजादी ही था। बहरहाल सेना दिवस के अवसर पर ‘कायर हुनु भन्दा मर्नु राम्रो’ जैसे ध्येय वाक्य को सार्थक करने वाले सैनिकों को नमन है…

‘कायर हुनु भन्दा मर्नु राम्रो’ अर्थात् कायर की तरह जीने से मरना बेहतर। यह ध्येय वाक्य भारतीय सेना की गोरखा राइफल्स का है। भारत के सैन्य इतिहास में गोरखा सैनिकों की दास्तान ए शुजात किसी तारूफ की मोहताज नहीं है। प्रथम विश्व युद्ध में दो व द्वितीय विश्व युद्ध में 10 विक्टोरिया क्रॉस तथा आजादी के बाद 3 परमवीर चक्र जैसे आलातरीन सैन्य पदक गोरखा सैन्य पराक्रम की तस्दीक करते हैं। इंग्लैंड के रक्षा मंत्रालय के ‘हार्स गार्डन’ में मौजूद गोरखा सैनिक का मुजस्म्मा गोरखाओं की बहादुरी को दर्शता है। कै. गुरबचन सिंह सलारिया यूएनओ मिशन में प्रथम व एकमात्र ‘परमवीर चक्र’ (मरणोपरांत), हिमाचली शूरवीर मे. धन सिंह थापा ‘परमवीर चक्र’ 1962 चीन युद्ध तथा कै. मनोज पांडे परमवीर चक्र (मरणोपरांत) कारगिल युद्ध गोरखा राइफल्स के तीनों परमवीरों के निर्भीक सैन्य नेतृत्व के पीछे गोरखा फौज की शूरवीरता मौजूद थी। सेना के सबसे सम्मानित जनरल व 1971 में नए मुल्क बांग्लादेश के नक्शे के मुख्य मुसव्विर फील्ड मार्शल ‘सैम मानेकशॉ’ का संबंध भी गोरखा राइफल्स से था। 1971 में पाकिस्तान की तकसीमी इबारत तथा ढाका में पाक सेना के सरेंडर की शतरंजी बिसात बिछाने के अहम किरदार ‘सगत सिंह राठौर’ व ‘गंधर्व नागरा’ जैसे जरनैलों का ताल्लुक भी गोरखा राइफल्स से ही था।

गोरखा राइफल्स की स्थापना अंग्रेजों ने 24 अप्रैल 1815 के दिन हिमाचल प्रदेश के सुबाथू में की थी। पहली जंगे अजीम के दौरान तीसरी गोरखा के नायक ‘कुलबीर थापा’ ने सन् 1915 में फ्रांस के महाज पर तथा सिपाही कर्ण बहादुर थापा ने अप्रैल 1918 को मिस्र के जंगे मैदान में असीम शौर्य का मजमून लिखा था। बर्तानिया बादशाही ने दोनों गोरखा शूरवीरों को विक्टोरिया क्रॉस से सरफराज किया था। द्वितीय विश्व युद्ध में ‘मिलिट्री क्रॉस’ से सम्मानित होने वाले प्रथम भारतीय सैनिक तथा आजादी के बाद ‘महावीर चक्र’ जैसे पदक से अलंकृत हिमाचली सपूत कर्नल ‘अनंत सिंह पठानिया’ का संबंध भी 5वीं गोरखा से था। कर्नल अनंत सिंह पठानिया की कयादत में गोरखा सैनिकों ने 11 नवंबर 1948 के दिन कश्मीर में पाक सेना की पेशकदमी को खाक में मिलाकर गुमरी नाले पर कब्जा कर लिया था। उसी युद्ध में नायक ‘राम प्रसाद गुरुंग’ ‘महावीर चक्र’ ने पाक सेना की पूरी तजवीज को नेस्तानाबूद करके 15 नंवबर 1948 को अपना बलिदान दिया था। आठवीं गोरखा के सैनिकों ने सन् 1948 में मेजर हरिचंद ‘महावीर चक्र’ के नेतृत्व में पाक सेना से लद्दाख को बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। हैदराबाद रियासत का भारत में विलय के लिए चलाए गए सैन्य आपरेशन ‘पोलो’ में ‘पांचवीं गोरखा’ के नायक ‘नर बहादुर थापा’ ने भारत के एकीकरण के लिए श्रेष्ठ सैन्य नेतृत्व की नजीर पेश करके 13 सितंबर 1948 को हैदराबाद में अपना सर्वोच्च बलिदान दिया था। शांतिकाल के सर्वोच्च सैन्य पदक ‘अशोक चक्र’ से नवाजे जाने वाले प्रथम सैनिक नर बहादुर थापा ही थे। गुरबचन सिंह सलारिया के नेतृत्व में 1961 के कांगो सैन्य मिशन में ‘एलिजाबेविले हवाई अड्डे’ पर कब्जा जमाए बैठे विद्रोहियों की किलेबंदी को तीसरी गोरखा के नायक ‘महावीर थापा’ व रण बहादुर थापा दोनों ‘महावीर चक्र’ (मरणोपरांत) ने अपनी खुखरियों से नेस्तानाबूद कर दिया था। दुनिया के सबसे बुलंद युद्धक्षेत्र सियाचिन ग्लेशियर को कब्जाने के लिए भारतीय सेना द्वारा चलाए गए आपरेशन ‘मेघदूत’ में चौथी गोरखा के हवलदार ‘नर बहादुर अल’ व प्रेम बहादुर गुरंग दोनों ‘महावीर चक्र’ (मरणोपरांत) ने कई पाक सैनिकों को हलाक करके सियाचिन में तिरंगा फहराने में अहम किरदार अदा किया था। 7 दिसंबर 1971 को 11वीं गोरखा के नायक धन बहादुर राय ‘वीर चक्र’ ने पश्चिमी मोर्चे पर पाक जंगी विमान को अपनी मशीनगन से मार गिरा कर पाक फिजाई हमले को नाकाम किया था।

पांचवीं गोरखा के कर्नल ‘इंद्र बल सिंह बावा’ ‘महावीर चक्र’ श्रीलंका में आपरेशन ‘पवन’ के तहत जाफना में लिट्टे के आतंकियों की मंसूबाबंदी को ध्वस्त करके 13 अक्तूबर 1987 को वीरगति को प्राप्त हो गए थे। जाफना की भीषण जंग में सूबेदार प्रेम बहादुर थापा ‘वीर चक्र’ ने असीम शौर्य का परिचय दिया था। कर्नल इंद्र बल सिंह बावा की आरंभिक शिक्षा शिमला में हुई थी। जंगे आजादी के योद्धा मेजर दुर्गामल व कै. दल बहादुर थापा तथा कै. राम सिंह ठाकुर तीनों हिमाचली सपूत ब्रिटिश इंडियन आर्मी में गोरखा राइफल्स का हिस्से थे लेकिन सुभाष चंद्र बोस के राष्ट्रवादी जज्बातों से मुतासिर होकर तीनों जांबाज ‘आजाद हिंद फौज’ में शामिल हो गए थे।

आईएनए के खुफिया विभाग में तैनात दुर्गामल को अंग्रेज सेना ने 27 मई 1944 के दिन कोहिमा के मोर्चे पर हिरासत में लेकर 25 अगस्त 1944 को लाल किले में फांसी पर लटका दिया था। कोहिमा के युद्ध में ही अंग्रेजों ने कै. दल बहादुर को गिरफ्तार करके 3 मई 1945 के दिन फांसी की सजा दी थी। यह वीरभूमि हिमाचल की राष्ट्रवादी तहजीब का मिजाज था कि मातृभूमि की आजादी के लिए दोनों जांबाजों ने फांसी के फंदे चूम लिए मगर फिरंगी हुकूमत से माजरत का इजहार तक नहीं किया। बलिदानी दुर्गामल की प्रतिमा भारत के संसद भवन में मौजूद है। वतनपरस्ती के तरानों की मौसिकी के जरिए आईएनए में शदीद जोश भरने वाले राम सिंह ठाकुर राष्ट्रगान जन-गण-मन की धुन के वास्तविक फनकार भी थे। जंग के मोर्चे पर शौर्य के शिलालेख लिखने वाले गोरखा सैनिकों ने अंतरराष्ट्रीय खेल पटल पर भारत का नेतृत्व भी किया है। 1962 के जकार्ता एशियन गेम्स में बॉक्सिंग में भारत के लिए पहला गोल्ड मेडल जीतने वाले कै. पदम बहादुर मल्ल ‘अर्जुन अवार्ड’ 8वीं गोरखा से हैं। 1980 के मॉस्को ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले चंबा के दिग्गज बाक्सर कै. बीएस थापा भी गोरखा राइफल्स से ही थे। मौजूदा ओलंपियन शूटर सूबेदार मेजर जीतू राय 11वीं गोरखा में तैनात हैं। स्मरण रहे विश्व युद्धों में भाग लेने वाले भारतीय सैनिकों का मंजिल-ए-मकसूद भी अंग्रेजों की सफ्फाक हुक्मरानी से भारत की आजादी ही था। बहरहाल सेना दिवस के अवसर पर ‘कायर हुनु भन्दा मर्नु राम्रो’ जैसे ध्येय वाक्य को सार्थक करने वाले सैनिकों की शूरवीरता को भारतीय सेना नमन करती है। सैनिकों की कुर्बानी के जज्बे को अनुभव करने की जरूरत है।

प्रताप सिंह पटियाल

लेखक बिलासपुर से हैं


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