जागरूक मतदाता ही देश का भाग्य विधाता

हमारे एक वोट के न डालने से अच्छा उम्मीदवार हार और गलत उम्मीदवार जीत सकता है। अपने मत का मूल्य न पहचान कर यदि मतदाता चुनाव प्रक्रिया में हिस्सा न लें तो चुनाव एक खिलवाड़ बनकर रह जाएगा। सजग, सावधान और जागरूक मतदाता ही चुनावों को सार्थक बनाने की भूमिका निभा सकता है। अत: अपने मत का प्रयोग सभी को अवश्य और सोच-समझ कर करना चाहिए…

विश्व में अनेक प्रकार की शासन व्यवस्थाएं प्रचलित हैं। इनमें से लोकतंत्र एक ऐसी शासन व्यवस्था है जिसमें जनता शासन करने के लिए अपनी सरकार खुद चुनती है। भारत में भी ऐसी ही शासन व्यवस्था है। भारत को विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश होने का गौरव भी प्राप्त है। किसी भी लोकतांत्रिक देश की सबसे बड़ी खूबसूरती इस बात में है कि यदि चुनी हुई सरकार जनता के हित में नीति निर्माण नहीं करती तो पांच साल के बाद जनता अपने वोट की शक्ति से सरकार को बदल सकती है। पांच वर्षों में एक बार चुनाव करवाना लोकतांत्रिक प्रणाली की पहली और महत्वपूर्ण शर्त है। जब भी चुनाव की बात आती है तो चुनाव आयोग और मतदाता की भूमिका सबसे अहम हो जाती है। भारत में सभी वयस्कों यानी अठारह वर्ष से ऊपर के नागरिकों को मतदान का अधिकार प्राप्त है।

नए मतदाताओं को चुनावी प्रक्रिया में हिस्सा लेने के लिए प्रेरित करने और प्रत्येक मतदाता को अपने इस अधिकार के प्रति जागरूक करने के लिए प्रतिवर्ष 25 जनवरी को भारत में राष्ट्रीय मतदाता दिवस मनाया जाता है। मतदाता दिवस को मनाने की शुरुआत वर्ष 2011 में की गई। 25 जनवरी 1950 को भारत में निष्पक्ष चुनाव करवाने के लिए भारतीय चुनाव आयोग की स्थापना की गई थी। भारतीय चुनाव आयोग द्वारा पिछले लगभग 70 वर्षों में देश में 17 बार आम चुनाव करवाए जा चुके हैं। भारत एक बड़ी आबादी वाला देश है और इसमें देश की जनता से उनके मत का प्रयोग करवाना कोई आसान कार्य नहीं है। अपनी स्थापना से लेकर आज तक देश में चुनाव करवाने के लिए चुनाव आयोग लगातार अपनी कार्यप्रणाली में सुधार करता आ रहा है। भारतीय चुनाव आयोग द्वारा भारत में 25 अक्टूबर 1951 से लेकर 21 फरवरी 1952 के बीच 120 दिनों में पहले आम चुनाव करवाए गए थे। इन आम चुनावों में कुल वोट प्रतिशत महज 45 प्रतिशत था जबकि वर्ष 2019 में संपन्न हुए आम चुनावों को 39 दिनों में संपन्न करवा लिया गया और इन चुनावों में कुल मत प्रतिशत 67 प्रतिशत था। केवल ये आंकड़े ही नहीं बल्कि पारंपरिक चुनाव प्रणाली को बदल कर चुनावों में ईवीएम का प्रयोग भी चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली में आए बड़े बदलाव को दिखाता है। मतदाता पहचान पत्र के द्वारा मतदाता को पहचान देकर चुनाव आयोग एक बड़ा कार्य कर चुका है। इसके अलावा चुनावों में मतदाताओं को नोटा का विकल्प देकर चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों को भी आइना दिखाने की कोशिश की है। सशक्त एवं निष्पक्ष चुनाव आयोग ही देश में मतदाता के अधिकारों का सबसे बड़ा रक्षक होता है, इसीलिए भारतीय चुनाव आयोग के स्थापना दिवस को ही भारत में राष्ट्रीय मतदाता दिवस के रूप में मनाया जाता है। हर पांच वर्ष के बाद चुनी हुई सरकार और चुने हुए प्रतिनिधियों की नीतियों और कार्यों का आकलन करके उन्हें दोबारा चुनने या न चुनने का नाम ही चुनाव है। इसी वजह से एक लोकतांत्रिक देश में मतदाता का कार्य सबसे महत्वपूर्ण हो जाता है। लोकतंत्र की सफलता के लिए सही लोगों का चुनावी प्रक्रिया में आना और सही प्रत्याशियों का चुनाव जीतना अत्यंत आवश्यक हो जाता है। यदि एक लोकतांत्रिक देश के मतदाता ऐसा कर पाते हैं तो वे लोकतांत्रिक प्रणाली के साथ पूरा न्याय करते हैं और यदि वे ऐसा नहीं कर पाते हैं तो लोकतंत्र और चुनावों का कोई महत्व नहीं रह जाता है।

मतदाता का गलत निर्णय न केवल उसके खुद के लिए और उसके परिवार के लिए, बल्कि पूरे देश के लिए भी घातक सिद्ध हो सकता है। इसलिए मतदाता को देश का भाग्य विधाता कहा जाता है। वोट हमारा संवैधानिक अधिकार है और इस अधिकार का प्रयोग अधिकार नहीं, कत्र्तव्य समझकर करना चाहिए। लोकतंत्र में अब सभी राजनीतिक निर्णय वोट के संदर्भ में लिए जाने लगे हैं। मतदाता राजनीतिक दलों के टारगेट पर होता है। नीति निर्माण से लेकर उसके क्रियान्वयन तक वोटों की जमा-घटा की जाती है और कहां से वोटों को अपने पक्ष में किया जाए, इस बात पर सबसे ज्यादा मंथन किया जाता है। इसलिए मतदाता की जागरूकता और भी आवश्यक हो जाती है। अगर कोई इनसान अपने जीवन में बदलाव लाना चाहता है, उस बदलाव को वो अपने मत के प्रयोग से ला सकता है। देश की नीतियों और कानूनों को अपने पक्ष में करने के लिए वोट से बड़ी ताकत और कोई नहीं है। अमूमन चुनावों में बहुत से मुद्दों को जनता की अदालत में रखकर राजनीतिक दल जनता के मत को अपने पक्ष में करने की कोशिश करते हैं। मुद्दों और नीति निर्माण के आधार पर वोट मांगना एक साफ चुनाव और स्वस्थ लोकतांत्रिक प्रणाली की निशानी है जबकि धर्म, जाति और क्षेत्र के आधार पर मतदाताओं के ध्रुवीकरण की कोशिश लोकतंत्र से खिलवाड़ है। ये सारी कोशिशें लोकतंत्र के लिए खतरा बनती जा रही हैं। भले ही आज का मतदाता जागरूक और सजग हो चुका है, फिर भी कई बार राजनीतिक दलों या प्रत्याशियों के द्वारा चुनावों के दौरान दिखाए जाने वाले सब्जबागों का शिकार होकर अपने मत का गलत प्रयोग कर देता है। ऐसे प्रलोभनों और ऐसी कोशिशों के प्रति मतदाता को सावधान रहने की जरूरत है। अक्सर ऐसा भी देखा जाता है कि कुछ लोग यह सोचकर चुनावों के समय मत प्रयोग नहीं भी करते कि हमारे एक मत के न डलने से क्या बनने या बिगडऩे वाला है। ये लोग अपने मत के मूल्य को पहचान नहीं पाते हैं। आज तक बहुत से ऐसे चुनाव हो चुके हैं कि कई बार हार-जीत का निर्णय केवल एक या दो वोट से होता है। हमारे एक वोट के न डालने से अच्छा उम्मीदवार हार और गलत उम्मीदवार जीत सकता है। अपने मत का मूल्य न पहचान कर यदि मतदाता चुनाव प्रक्रिया में हिस्सा न लें तो तब चुनाव एक खिलवाड़ बनकर रह जाएगा। सजग, सावधान और जागरूक मतदाता ही चुनावों को सार्थक बनाने की भूमिका निभा सकता है। अत: अपने मत का प्रयोग सभी को अवश्य और सोच-समझकर करना चाहिए।

राकेश शर्मा

लेखक जसवां से हैं


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