शिक्षक ट्रांसफर पॉलिसी : समस्या एवं समाधान

व्यक्तियों के प्रभाव से अपनी सुविधा के अनुसार नियमों में परिवर्तन न हो, अन्यथा व्यवस्था में अराजकता व व्यवधान पैदा होता है…

स्थानांतरण किसी भी अधिकारी-कर्मचारी के व्यावसायिक जीवन की एक सामान्य प्रक्रिया है। सरकार के अधीन किसी विभाग में कार्यरत अधिकारी या कर्मचारी का ही स्थानांतरण होता है अन्यथा अपना व्यक्तिगत काम-धंधा, दुकान, उद्योग तथा कारोबार करने वाले का तो स्थानांतरण नहीं हो सकता। किसी अधिकारी या कर्मचारी का तबादला या ट्रांसफर होना उसके व्यावसायिक जीवन तथा कार्यक्षेत्र का एक अंग है। तबादला, स्थानांतरण या ट्रांसफर कोई दंड या सज़ा नहीं है। स्थानांतरण या ट्रांसफर का स्वागत किया जाना चाहिए क्योंकि यह विभाग, सरकार या व्यवस्था का विशेषाधिकार है और कार्यरत व्यक्ति द्वारा अनुपालना करना कत्र्तव्य भी है। आश्चर्य है कि कर्मचारियों को अपनी सेवा शर्तों तथा कत्र्तव्यों का पता होते हुए भी स्थानांतरण के विरोध में हज़ारों मामले विभिन्न न्यायालयों में लंबित पड़े हैं। इससे विभागों की कार्यप्रणाली प्रभावित होती है। एक पद पर दो-दो व्यक्ति, माननीय न्यायालयों के स्थगन आदेश, विभागाध्यक्षों को मामले को सुलझाने के आदेश या वेतन निकासी के झंझट, न जाने कितनी प्रकार की प्रशासनिक जटिलताओं का सामना करना पड़ता है जिसमें बहुत सारा धन, समय तथा ऊर्जा नष्ट होती है। अंतत: इसका नुकसान व्यवस्था तथा हितधारकों को ही भुगतना पड़ता है। एक समय था कि अधिकारी अपने विभाग में स्थानांतरण करने के लिए पूरी तरह अधिकृत थे तथा वे विभाग के संचालन, स्थानांतरण तथा कुशल प्रबंधन के लिए पूर्ण रूप से अपनी शक्तियों का प्रयोग करते थे।

कर्मचारी अपने अधिकारियों के आदेशों का पालन कर कत्र्तव्य निर्वहन करते थे। कुछ दशकों से अब इस व्यवस्था तथा व्यवहार में परिवर्तित हो गया है और अधिकारियों की शक्तियों का अप्रत्यक्ष प्रयोग राजनेताओं द्वारा हो रहा है। कर्मचारियों का ईमानदारी से कत्र्तव्य निर्वहन न करना, अधिकारियों को प्रभावशाली व्यक्तियों का रौब दिखाना, अभद्र व्यवहार, कर्मचारी संघों का बढ़ता दखल, राजनेताओं की परिक्रमा करना भी इसका एक कारण है। सत्ता परिवर्तित होते ही कर्मचारी अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते अपनी सुविधा तथा इच्छानुसार स्थानों, पदों या ओएसडी के रूप में ग़लत तरीके से समायोजन करवा लेते हैं जिससे विभागीय संतुलन बिगड़ता है। काफी वर्षों से कोई भी सत्ता बदलने के पश्चात यह सब होता आया है। अपना प्रभाव दिखाने के लिए कुछ व्यक्तियों द्वारा सत्ता का दुरुपयोग किया जाता है। विभिन्न कारणों से चरमराती हुई व्यवस्था को ठीक करने के लिए बहुत आवश्यक है कि सभी ईमानदारी तथा जि़म्मेदारी से कार्य करें। कर्मचारियों को कत्र्तव्यनिष्ठ, उत्तरदायी तथा जवाबदेह बना कर कार्य संस्कृति को मजबूत बनाना होगा अन्यथा कार्य में गुणवत्ता को सुनिश्चित नहीं किया जा सकता। व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाते हुए सरकार की जनकल्याणकारी नीतियों को आम जनमानस तथा हितधारकों तक पहुंचाना सबसे आवश्यक है, न कि अपना प्रभाव जमाना। इसलिए एक सशक्त, टिकाऊ, पारदर्शी एवं भेदभाव रहित स्थानांतरण नीति आवश्यक है। कर्मचारियों के स्थानांतरण के लिए ‘स्वचलित तंत्र’ की स्थापना अति आवश्यक है जिसके साथ कोई भी छेड़छाड़ न कर सके। हिमाचल प्रदेश के शिक्षा विभाग में विगत कई वर्षों से स्थानांतरण नीति की चर्चा चल रही है, लेकिन बहुत प्रयासों के बावजूद अभी तक उसका कोई स्वरूप सामने नहीं आ पाया। वास्तविकता में अपनी सुविधा, स्थान तथा समय के अनुसार कार्य करने वाले ही नहीं चाहते कि इस प्रकार की कोई स्वचलित स्थानांतरण व्यवस्था हो। साधारणत: नियम, कायदे-कानून हमेशा प्रभावशाली व्यक्तियों द्वारा ही तोड़े जाते हैं तथा आम व्यक्ति की उसमें कोई भूमिका नहीं होती। हिमाचल प्रदेश सरकार का शिक्षा विभाग इस समय प्रभावी एवं स्थायी स्थानांतरण नीति पर विचार कर रहा है। हालांकि यह प्रयास पहले भी कई बार हो चुके हैं, लेकिन सफलता न मिलने की आशंका से यह नीति लागू नहीं हो पाई है। प्रदेश के शिक्षा मंत्री माननीय रोहित ठाकुर चाहते हैं कि शिक्षा विभाग की पहचान मात्र तबादलों के लिए नहीं होनी चाहिए, बल्कि कार्य संस्कृति से शिक्षा की गुणवत्ता को सुनिश्चित किया जाना चाहिए। प्रभावी, व्यावहारिक तथा स्थायी ट्रांसफर पॉलिसी बनाते समय यह बहुत ही आवश्यक है कि अति दुर्गम, कम दुर्गम, ग्रामीण, सामान्य तथा शहरी स्थानों का वर्गीकरण किया जाए तथा प्रत्येक शिक्षक को इन सभी वर्गीकृत स्थानों पर सेवाएं देना अनिवार्य हो। प्रत्येक कार्यस्थान पर शिक्षक की समयावधि निश्चित हो तथा समय पूरा होते ही उसको स्थानांतरण के लिए विभाग तथा न्यायालयों के चक्कर न लगाने पड़ें। यदि पति-पत्नी सरकारी सेवा में कार्यरत हों तो उन्हें एक ही स्थान या आसपास के क्षेत्र में तैनात करने के भी नियम निर्धारित हों। विशेष परिस्थिति, वृद्ध माता-पिता की सेवा या किसी कर्मचारी के परिजन गंभीर रूप से या शारीरिक रूप से अस्वस्थ होने की स्थिति में मानवीय आधार पर समायोजन किया जाना चाहिए, लेकिन इस बारे कर्मचारी द्वारा दी गई जानकारी बिल्कुल सत्य होनी चाहिए। ट्रांसफर सिस्टम में किसी भी प्रकार का भेदभाव, पक्षपात तथा भाई-भतीजावाद न हो।

जनजातीय, दुर्गम, पिछड़े तथा ग्रामीण क्षेत्रों के शिक्षण संस्थानों में बच्चों की संख्या तथा विषय की आवश्यकता अनुसार शिक्षकों की व्यवस्था हो। नौकरी में जनजातीय श्रेणी का लाभ लेने वाले कर्मचारियों को जनजातीय क्षेत्रों में कम से कम पांच से सात वर्ष तक कार्य करने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए। अपने प्रभाव से वर्षों से शहरी क्षेत्रों में डटे हुए शिक्षकों को स्थानांतरित किया जाना चाहिए। जनजातीय तथा दुर्गम स्थानों पर वर्षों से कार्य कर रहे शिक्षकों को उनकी इच्छा तथा सुविधानुसार उनके गृह क्षेत्रों में भेजा जाना चाहिए। स्थानांतरण नीति को प्रभावशाली व्यक्तियों से दूर रखा जाना चाहिए। शिक्षकों को राजनीति से दूर रख कर संस्थाओं में शिक्षण तथा कार्य संस्कृति के लिए प्रेरित करना होगा। शिक्षण संस्थानों में राजनीतिक हस्तक्षेप बिल्कुल नहीं होना चाहिए। स्थानांतरण नीति की सफलता तभी सुनिश्चित हो सकती है जब वह व्यावहारिक, उपयोगी, पारदर्शी एवं स्थायी हो। व्यक्तियों के प्रभाव से अपनी सुविधा के अनुसार नियमों में परिवर्तन न हो, अन्यथा व्यवस्था में अराजकता, अनुशासनहीनता तथा व्यवधान पैदा होता है। सरकार, प्रशासनिक अधिकारियों, शिक्षकों को गंभीरतापूर्वक इस पर विचार करना होगा ताकि यह ट्रांसफर पॉलिसी निष्पक्ष रूप से सभी के लिए सर्वहितकारी हो। वैसे स्थानांतरण नीति न केवल शिक्षकों के लिए बने, बल्कि प्रदेश सरकार को एक समान सर्वकर्मचारी स्थानांतरण नीति बनाने के लिए विचार करना चाहिए।

प्रो. सुरेश शर्मा

लेखक घुमारवीं से हैं


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