दिल तो बच्चा है, जी!

By: Jan 26th, 2023 12:09 am

अडिय़ल, कडिय़ल या जिद्दी आदमी जीवन में अक्सर पिछड़ जाते हैं जबकि लोगों को साथ लेकर चलना जानने वाले लोग सफलता के शिखर छू लेते हैं। कभी-कभी दिल की बात मान लेना भी हमारे लिए अच्छा होता है और यह प्रेरणा का एक बड़ा कारण बन सकता है। मान लीजिए, आप कोई वस्तु खरीदना चाहते हैं जो आपको बहुत पसंद है तो बेहतर है कि उसे अपनी किसी उपलब्धि के साथ जोड़ लें। यानी, आप खुद से वायदा करें कि यदि आप फलां काम फलां समय तक सफलतापूर्वक पूरा कर लेंगे तो आप खुद को वह वस्तु खरीद देंगे। इससे दिल और दिमाग के बीच संतुलन बनाए रखने में आसानी होगी और आपकी उपलब्धियों की संख्या भी बढ़ेगी और दिल को अतिरिक्त संतोष भी मिलेगा…

विज्ञान कहता है कि हमारी जीभ पर लगा घाव सबसे पहले ठीक होता है और सांसारिक ज्ञान कहता है कि जीभ के कारण लगा घाव लंबे समय तक टीसता रहता है और कभी कभार तो सारा जीवन ठीक नहीं होता। जीभ जो कहती है, उसके पीछे हमारा दिल है या दिमाग, इससे ही यह सारा अंतर पड़ता है। विज्ञान यह भी कहता है कि हमारा मस्तिष्क दो मुख्य हिस्सों में बंटा हुआ है। हमें कम समझ में आने वाला और सर्वाधिक शक्तिशाली हिस्सा है हमारा अवचेतन मस्तिष्क जो हमारे मस्तिष्क का लगभग 90 प्रतिशत है। दूसरा हिस्सा है चेतन मस्तिष्क जो हमारे मस्तिष्क का केवल 10 प्रतिशत भाग है। हमारा अवचेतन मस्तिष्क खिलंदड़ा और मनोरंजन प्रिय है जबकि चेतन मस्तिष्क तर्कशील है और वह घटनाओं अथवा स्थितियों को तर्क की कसौटी पर कसता है और तद्नुसार निर्णय लेता है जबकि अवचेतन मस्तिष्क भावना-प्रधान होने के कारण तर्क के ढंग से नहीं चलता। चेतन और अवचेतन मस्तिष्क बहुत बार अलग तरह से सोचते हैं और उनमें रस्साकशी चलती रहती है। उदाहरण के लिए आप बाज़ार में घूम रहे हों और अचानक आपको किसी दुकान में कोई चीज़ बहुत पसंद आई तो आप उसे खरीदने को लालायित हो उठते हैं, लेकिन आपका तर्कशील मस्तिष्क आपको समझाता है कि आपको वह वस्तु सिर्फ पसंद है, उसकी आपको कोई ज़रूरत नहीं है।

आपका तर्कशील मस्तिष्क आपको चेतावनी देता है कि आपका बजट सीमित है और आपने अपना धन किसी और आवश्यक कार्य के लिए बचा कर रखा है जबकि अवचेतन मस्तिष्क आपको वह वस्तु खरीदने के लिए उकसा रहा होता है। दरअसल मोटी भाषा में जिसे हम ‘दिल’ कहते हैं वह खून को साफ करके शेष शरीर में पंप करने वाली मशीन नहीं है, बल्कि हमारा अवचेतन मस्तिष्क है। खून पंप करने वाला दिल सिर्फ एक मशीन है, वह सोचता नहीं है, वह सिर्फ अपना काम करता है और जो ‘सोचने वाला दिल’ है, वह असल में हमारा अवचेतन मस्तिष्क है। चेतन और अवचेतन मस्तिष्क अक्सर अलग-अलग ढंग से सोचते हैं, लेकिन बोलचाल की भाषा में हम उसे दिल और दिमाग के बीच की लड़ाई कहते हैं। अगर अवचेतन मस्तिष्क को ‘दिल’ मान लिया जाए तो हम पायेंगे कि दिमाग किसी वयस्क की तरह सोचता और व्यवहार करता है जबकि दिल, जो कि मनोरंजन प्रिय है, खिलंदड़ा है, वह छोटे बच्चों की तरह व्यवहार करता है। हमारे लिए यह समझना अत्यावश्यक है कि हमारा अवचेतन मस्तिष्क, जिसे हम ‘मन’ या ‘दिल’ कहकर पुकारते हैं, एक दुधारी तलवार है। यह हम पर निर्भर करता है कि हम उस पर नियंत्रण करके उसका प्रयोग अपने हित के लिए करें या उसके नियंत्रण में आकर उसे अपने हित के विपरीत निर्णय लेने की छूट दे दें।

जब आप किसी को अपने मन की बात कहते हैं और सामने वाला आपकी बात से सहमत होकर आपका मनचाहा काम कर दे तो आप खुश हो जाते हैं और प्रसन्नता के आवेग में उससे कोई ऐसा वायदा कर बैठते हैं या उसे कोई ऐसी सुविधा दे डालते हैं जो बाद में आपके गले की फांस बन जाती है। इसी प्रकार, यदि किसी कारणवश सामने वाला व्यक्ति आपकी बात से सहमत न हो या उसके लिए वह कार्य करना संभव न हो तो आप दुखी हो जाते हैं या उस व्यक्ति से नाराज़ हो जाते हैं। क्रोध में कभी-कभार आप सामने वाले व्यक्ति को कुछ ऐसा बोल जाते हैं जो आपके रिश्तों में खटास ला देता है। हर्ष और विषाद के क्षणों में स्वयं पर काबू रखना अभ्यास का विषय है।

हर क्रिया पर प्रतिक्रिया तो होती है, लेकिन प्रतिक्रिया क्या हो, कैसी हो, इसे हम नियंत्रित करना सीख सकते हैं। हमारा दिल एक दुधारी तलवार है और हम इस पर नियंत्रण करना सीख कर इसे अपने हित में प्रयोग कर सकते हैं या इसके नियंत्रण में आकर इसे बेकाबू होने की छूट दे सकते हैं। कार्यालय से बचे हुए समय का उपयोग हमारे हाथ में है। उस दौरान हम टीवी देख सकते हैं, बच्चों के साथ खेल सकते हैं, बीवी के साथ शॉपिंग पर जा सकते हैं, फिल्म देखने थियेटर जा सकते हैं, दोस्तों के साथ गप्पें मार सकते हैं, आराम करते हुए दिन भर की थकान उतार सकते हैं या फिर अपना कौशल (स्किल-सेट) बढ़ाने के लिए कोई कोर्स ज्वायन कर सकते हैं या अतिरिक्त आय कमाने के लिए कोई पार्ट टाइम काम कर सकते हैं, बच्चों को काबिल बनाने के लिए उनकी पढ़ाई में उनकी मदद कर सकते हैं, बीवी के काम में हाथ बंटा सकते हैं। यह भावनात्मक परिपक्वता की स्थिति है, जहां हम दिल पर काबू करके ऐसे कार्य करते हैं जिससे हमारा और हमारे परिवार का भला हो सकता हो। भावनात्मक परिपक्वता का ही दूसरा पहलू यह भी है कि हम दूसरों के साथ संयत व्यवहार करें, किसी की अनावश्यक आलोचना न करें, किसी के पीठ पीछे उसकी निंदा न करें, किसी पर इतने फिदा न हो जाएं कि उसे मनमानी करने दें और हर्ष या विषाद के आवेग में कुछ ऐसा न कर बैठें कि बाद में पछताना पड़े। भावनाओं पर नियंत्रण की कला भावनात्मक परिपक्वता लाती है जो हमारी सफलता का कारण बनती है। सन् 1995 में प्रकाशित अपनी विश्व प्रसिद्ध पुस्तक ‘इमोशनल इंटैलिजेंस’ में डेनियल गोलमैन ने इसी बात का खुलासा किया है कि भावनात्मक परिपक्वता क्या है और इसे कैसे पाया जा सकता है। बिना सोचे समझे दिल के कहने पर चलने वाले लोग अक्सर बड़ी मुसीबतों में फंस जाते हैं और दिल और दिमाग के बीच संतुलन बनाकर निर्णय लेने वाले लोग अक्सर सफलता की सीढिय़ां चढ़ जाते हैं। भावनात्मक परिपक्वता लोगों को आपके पीछे चलने की प्रेरणा देकर आपको बेहतरीन लीडर बना सकती है। दरअसल, लोगों को साथ लेकर चलने की कला किसी तकनीकी योग्यता से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है। अडिय़ल, कडिय़ल या जिद्दी आदमी जीवन में अक्सर पिछड़ जाते हैं जबकि लोगों को साथ लेकर चलना जानने वाले लोग सफलता के शिखर छू लेते हैं।

कभी-कभी दिल की बात मान लेना भी हमारे लिए अच्छा होता है और यह प्रेरणा का एक बड़ा कारण बन सकता है। मान लीजिए, आप कोई वस्तु खरीदना चाहते हैं जो आपको बहुत पसंद है तो बेहतर है कि उसे अपनी किसी उपलब्धि के साथ जोड़ लें। यानी, आप खुद से वायदा करें कि यदि आप फलां काम फलां समय तक सफलतापूर्वक पूरा कर लेंगे तो आप खुद को वह वस्तु खरीद देंगे। इससे दिल और दिमाग के बीच संतुलन बनाए रखने में आसानी होगी और आपकी उपलब्धियों की संख्या भी बढ़ेगी और दिल को अतिरिक्त संतोष भी मिलेगा। इस उदाहरण का एक ही आशय है कि दिल की बात मानिए, पर उसे बच्चों की तरह व्यवहार करने की छूट एक सीमा तक ही दीजिए। जैसे आप एक सीमा के बीद बच्चे को डांट देते हैं और उसे अनुशासन सिखाते हैं, वैसा ही दिल के साथ भी करना आवश्यक है। दिल को ‘साधने’ की कला आसान नहीं है, पर दिल को साध कर ही आप अपनी सफलता की गारंटी कर सकते हैं।                                  ई-मेल: indiatotal.features@gmail.com

पी. के. खुराना

राजनीतिक रणनीतिकार


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