सेना पर बेतुकी बयानबाजी रुकनी चाहिए

यदि सैन्य अभियानों के सबूत चाहिए तो सैन्य भर्ती की मापदंड प्रक्रिया पूरी करके सेना का हिस्सा बनकर कड़े सैन्य प्रशिक्षण से गुजर कर सियासत व परिवार से कोसों दूर देश की सरहदों पर संगीनों के साए में वर्षों तक सैनिक का वास्तविक किरदार अदा करना होगा। सेना पर बेतुकी बयानबाजी बंद करनी होगी, सैन्य बलों के प्रति नजरिया सम्मानजनक हो…

‘हमें अलग रहने दें’- यह शीर्षक भारतीय सेना के साबिक जनरल ‘वेद प्रकाश मलिक’ की पुस्तक ‘कारगिल : एक अभूतपूर्व विजय’ के एक अध्याय का है। सेना के शौर्य पर उठ रहे सवालों के मद्देनजर देश के लिए चार युद्धों में भाग ले चुके सेना के पूर्व जरनैल की ‘हमें अलग रहने दें’ वाली जज्बाती तहरीर सही साबित हो रही है। सन् 1999 की कारगिल जंग के दौरान वीपी मलिक भारतीय सेनाध्यक्ष थे। कारगिल की उसी शदीद जंग में भारतीय सेना ने अपने प्रचंड पराक्रम से 17 हजार फीट की बुलंदी पर मौजूद कारगिल के पहाड़ों पर घुसपैठ कर चुकी पाक फौज को अपनी कयामत की दुआ मांगने पर मजबूर कर दिया था। 29 अगस्त 1999 को कश्मीर में देश के लिए सर्वोच्च बलिदान देने वाले हिमाचल के शूरवीर मेजर ‘सुधीर वालिया’ ‘अशोक चक्र’ (मरणोपरांत) कारगिल युद्ध के समय जरनल वीपी मलिक के एडीसी थे। लेकिन युद्ध के दौरान ही सुधीर वालिया ने तत्कालीन सेनाध्यक्ष से एक योद्धा की तरह कारगिल जंग के महाज पर जाने की अनुमति मांग कर अपने मोहिब्ब-ए-वतन के जज्बात जाहिर कर दिए थे। कारगिल में 25 जुलाई 1999 को ‘जुलु टॉप’ की भीषण जंग में पाक सेना की मंसूबाबंदी को नेस्तनाबूद करके वहां कब्जा करने में मेजर सुधीर वालिया ने अहम भूमिका निभाई थी। भावार्थ यह है कि सामरिक विषयों की अधूरी जानकारी के बिना सेना पर बेतुकी बयानबाजी करने वाले सियासतदानों को भारतीय सैन्य पराक्रम के स्वर्णिम इतिहास का अध्ययन करके हिंदोस्तान की सैन्य हशमत से रूबरू होने की जरूरत है।

यदि दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाले देश भारत में विश्व की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक व्यवस्था महफूज है तो इसके पीछे हमारी सशस्त्र सेनाओं की मुस्तैदी है। मजबूत लोकतंत्र शक्तिशाली सैन्य तंत्र पर निर्भर करता है। सेना किसी सियासी दल या मजहबी जमात के लिए नहीं लड़ती। राष्ट्र सर्वप्रथम, राष्ट्र सर्वोपरि सेना की संस्कृति है। सेना की मुस्तैदी से ही देश के नागरिक जम्मू-कश्मीर जैसे संवेदनशील राज्य में भी सुरक्षित घूम रहे हैं। देश के तमाम इदारों पर हुक्मरानी करने वाले सियासी रहनुमाओं की सुरक्षा भी हमारे सशस्त्र बल ही सुनिश्चित करते हैं। 28 सितंबर 2016 को भारतीय सेना ने एलओसी के पार ‘लक्षित हमले’ को अंजाम देकर पीओके में मौजूद आंतकी लॉन्चपैड तबाह करके कई आंतकियों को जहन्नुम की परवाह पर भेजकर उड़ी हमले का इंतकाम लिया था। 29 फरवरी 2019 को भारतीय वायुसेना के जंगी विमानों ने नियंत्रण रेखा के पार पाकिस्तान के बालाकोट इलाके में स्थित आतंकी प्रशिक्षण शिवरों पर एयर स्ट्राइक करके सैकड़ों दहशतगर्दों का सफाया करके पुलवामा हमले में बलिदान हुए सीआरपीएफ के जवानों की शहादत का बदला लिया था। बालाकोट की एयर स्ट्राइक में भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान को जकात में मिले पाक जंगी विमान एफ-16 को भी मार गिराया था। भारतीय सेना द्वारा पीओके में की गई स्ट्राइक के खौफ की लर्जिश पाक सेना से लेकर उनके हुक्मरानों के चेहरे पर आज भी झलकती है।

आतंक परस्त पाक के नामुराद हुक्मरान अमन के पैरोकार बनकर भारत से मुजाकरात को आमादा हो रहे हैं। भारत को एटम बमों से तबाह करने के ख्वाब देखने वाला पाकिस्तान खुद बर्बादी के मुहाने पर पहुंच चुका है। यदि पाक हुक्मरान अपने दिल-ए-नाशाद के साथ कई मुल्कों की कदमबोसी करके खैरात मांगने को मजबूर हैं तो यह भारत की कुशल सैन्य रणनीति व कूटनीति का परिणाम है। देश रक्षा में तैनात सशस्त्र सेनाओं तथा अन्य सुरक्षा एजेंसियों के काम करने का ढंग अत्यंत गोपनीय तरीके से होता है। ज्ञात रहे युद्ध हो या कोई अन्य सैन्य ऑपरेशन, सेना केवल जीतने के लिए लड़ती है। जंग का नतीजा कभी भी दूसरे या तीसरे स्थान पर नहीं आता। जोखिम भरे सैन्य अभियानों की कीमत सैनिकों के परिवार चुकाते हैं। अत: सैन्य शौर्य पर सियासतदानों का बेवजह प्रलाप करना उन सैन्य परिवारों को आहत करता है जिनके सपूत देश के स्वाभिमान के लिए बलिदान हो चुके हैं। वोटों की फसल काटने या सियासी जमीन तराशने के लिए देश के समक्ष बेरोजगारी, महंगाई व भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर आम लोगों के हितों की पैरवी होनी चाहिए। 26 जनवरी 2023 को राजधानी दिल्ली के ‘कत्र्तव्य पथ’ पर 74वें गणतंत्र दिवस के अवसर पर सैन्यशक्ति संपन्न हिंदोस्तान ने दुश्मन के होश फाख्ता करने वाले हथियारों की नुमाईश के जरिए दुनिया को अपनी सैन्य कूवत का पैगाम देकर बता दिया कि विश्व की चौथी शक्तिशाली भारतीय सेना राष्ट्र की हिफाजत के लिए अपने इस विध्वंसक जखीरे की आजमाईश करने में गुरेज नहीं करेगी। राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध व राष्ट्रवाद की प्रबल प्रतीक भारतीय सेना को रणभूमि में शत्रु के समक्ष शौर्य पराक्रम की दास्तान-ए-शुजात का हुनर विरासत में मिला है।

यही कारण है कि दहशतगर्दी के मरकज पाकिस्तान की भारत के खिलाफ हर साजिश सरहद पर ही दम तोड़ रही है। कश्मीर में आतंक अपनी आखिरी सांसें गिन रहा है। चूंकि भारतीय सेना का आक्रामक मिजाज व लहजा दुश्मन को उसके घर में घुसकर सबक सिखाने वाला रहा है। अपनी फितरत कभी भी जाहिर नहीं करने वाला शातिर डै्रगन भी हिंदोस्तान की सैन्य ताकत के जोशीले अंदाज के आगे बेबस नजर आ रहा है। सशस्त्र सेनाओं की कार्यशैली युवाओं के लिए आदर्श व आकर्षक है। इसीलिए देश के करोड़ों युवा सैन्य वर्दी पहनने की हसरत रखते हैं। अत: पाकिस्तान जैसे आतंकी मुल्क की सरजमीं पर सफलतम सैन्य ऑपरेशन को अंजाम देने वाली विश्व की सर्वोत्तम भारतीय थलसेना के अदम्य साहस पर हर देशवासी को गर्व होना चाहिए। लाजिमी है सैन्यबलों के प्रति नज़रिया सम्मानजनक हो ताकि दुश्मन की हर हिमाकत को सरहद पर ही खल्लास करने वाली हिंद की सैन्य सलाहियत का इकबाल बुलंद रहे। लेकिन यदि सैन्य अभियानों के सबूत चाहिए तो सैन्य भर्ती की मापदंड प्रक्रिया पूरी करके सेना का हिस्सा बनकर कड़े सैन्य प्रशिक्षण से गुजर कर सियासत व परिवार से कोसों दूर देश की सरहदों पर संगीनों के साए में वर्षों तक सैनिक का वास्तविक किरदार अदा करना होगा।

प्रताप सिंह पटियाल

लेखक बिलासपुर से हैं


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