रोजगार के लिए बांस रोपण को बढ़ावा मिले

यह भी ध्यान रखना होगा कि बांस की कौनसी किस्में ज्यादा सेलुलोस दे सकती हैं। उन्हीं का रोपण करना होगा। वन विभाग, कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर, आईएचबीटी पालमपुर और इच्छुक उद्योग एक मंच पर आकर इस कार्य को सुगमता से कर सकते हैं। इस कार्य में निवेश किसी के लिए भी घाटे का सौदा नहीं हो सकता क्योंकि एथनोल की मांग लगातार बढ़ती ही जाएगी और बनी रहेगी। इस वर्ष के बजट में बांस रोपण परियोजना को स्थान देकर शुरुआत की जानी चाहिए। साथ-साथ केंद्र सरकार से एथनोल प्लांट लगाने के लिए पक्ष प्रस्तुति करनी चाहिए ताकि समय आने पर बांस के उत्पादन को लाभकारी मूल्य पर खरीद की व्यवस्था बन सके…

भारतवर्ष में पेट्रोलियम मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2019-20 में पेट्रोलियम पदार्थों की खपत 21.41 करोड़ टन रही। इस पर भारी खर्च वहन करना पड़ता है। पेट्रोलियम आयात पर खर्च घटाने और स्वच्छ ईंधन को बढ़ावा देने की दोहरी चुनौती देश के सामने है। इसीलिए भारत सरकार पेट्रोल में पेट्रोलियम पदार्थों की खपत कम करने के लिए 5 फीसदी एथनोल मिला रही है। 2023 में यह मात्रा बढ़ा कर 10 फीसदी और 2030 तक 20 फीसदी करने का निर्णय हुआ है। इस मिश्रित ईंधन को फ्लेक्स ईंधन कहा जा रहा है। एथनोल जैविक ईंधन है जिसे वर्तमान में गन्ने के अवशेषों, खासकर शीरे से बनाया जा रहा है। इसके अतिरिक्त चुकंदर, मक्का से भी एथनोल बनाया जा रहा है। कोशिश की जा रही है कि एथनोल की मात्रा वाहन ईंधन में बढ़ते-बढ़ते 85 फीसदी और 100 फीसदी तक की जाए, किन्तु इसके लिए एथनोल उत्पादन को बहुत ज्यादा बढ़ाने की जरूरत होगी, जो गन्ने या अन्य फसलों से संभव नहीं होगा। अत: कृषि अवशेषों का प्रयोग करने के प्रयास हो रहे हैं।

धान का पुआल या वनों में बेकार पड़े ईंधन या अन्य अवशेषों का प्रयोग करके भारी मात्रा में एथनोल उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है, जिससे इन अवशेषों को जला कर छुटकारा पाने के कारण होने वाले प्रदूषण से भी मुक्ति मिलेगी और पेट्रोलियम आयात का खर्च भी कम होगा। एथनोल जैविक ईंधन है जिससे वायु प्रदूषण भी नहीं होता है और इससे किसानों को फसलों के बेकार अवशेषों से अच्छी आय भी प्राप्त हो सकेगी। हिमाचल प्रदेश और उत्तराखण्ड में इसी दिशा में एक और संभावना के द्वार भी खुलते हुए दिख रहे हैं। यह है बांस से एथनोल बनाना। एथनोल बनाने के लिए अधिक मात्रा में सेलुलोस की जरूरत होती है। बांस में 45 से 50 फीसदी तक सेलुलोस होता है। बांस से गन्ने और मक्का के मुकाबले आठ गुणा एथनोल बनाया जा सकता है और गन्ने के मुकाबले पानी की जरूरत चौथा हिस्सा ही होती है। हिमाचल और उत्तराखंड के तराई वाले जिलों में बांस किसानों द्वारा अपनी जरूरत के लिए उगाया भी जा रहा है, किन्तु एथनोल उत्पादन के लिए बड़े पैमाने पर बांस रोपण कार्य करने की जरूरत होगी। हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में बहुत सी चरागाहें लैंटाना जैसी घातक खरपतवारों की चपेट में आ चुकी हैं। इन खरपतवारों से पार पाना कठिन होता जा रहा है। यदि इन खरपतवार से त्रस्त वन भूमियों में बड़े पैमाने पर बांस रोपण किया जाए तो बांस खरपतवारों को दबा कर ऊपर बढ़ सकता है और पूरी फसल दे सकता है। इससे खरपतवार नियंत्रण के साथ एक नई आर्थिक रूप से लाभकारी गतिविधि शुरू की जा सकेगी जो बड़े स्तर पर रोजगार पैदा करेगी।

बांस बहु उद्देश्यीय पौधा है। इससे चारा भी मिलेगा, यह बढिय़ा भूसंरक्षण करेगा, एथनोल से पर्यावरण मित्र ईंधन मिलेगा, स्थानीय दस्तकारी के लिए कच्चा माल, लघु इमारती लकड़ी और आक्सीजन उत्पादन का लाभ भी मिलेगा। हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में कई इलाकों में बन्दर, सूअर आदि वन्यपशुओं द्वारा नुकसान के कारण या अन्य कई कारणों से बहुत सी जमीनें खाली पड़ी हैं जिनमें किसान खेती नहीं कर रहे हैं। ऐसी जमीनों को भी बांस रोपण के अधीन ला कर पर्याप्त कच्चा माल पैदा किया जा सकता है। एक अनुमान के अनुसार 1500 हेक्टेयर क्षेत्र में बांस उत्पादन करके 60000 टन बांस प्रति वर्ष पैदा किया जा सकता है जिससे 30000 लीटर प्रतिदिन एथनोल पैदा हो सकता है। महाराष्ट्र के गढ़ चिरौली और नन्दुवार जिलों में उपरोक्त क्षमता की बांस से एथनोल बनाने वाली इकाई की स्थापना की जा रही है। इससे किसानों को बेकार पड़ी जमीन से अच्छी आय प्राप्त हो सकती है। बांस को वन्यपशु भी कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकते हैं। केंद्र सरकार ने बांस को घास की श्रेणी में रख दिया है जिससे इसकी बिक्री में आने वाली बाधा भी अब नहीं है। केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय स्तर पर बम्बू मिशन शुरू किया है, किन्तु पर्वतीय क्षेत्रों ने इस योजना का पर्याप्त लाभ नहीं उठाया है। निजी क्षेत्र के उद्योगों को एथनोल उत्पादन इकाइयां लगाने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए बांस उत्पादन में भी निवेश करने के लिए जोड़ा जा सकता है। एथनोल कार्बन प्रचूषण के लिए भी बहुत उपयोगी सिद्ध होगा। स्वच्छ ईंधन और पेट्रोलियम आयात के महंगे धंधे से बचने का मार्ग भी इसी से निकलेगा।

वाहनों द्वारा फैलने वाले धुएं से निजात पाने के लिए सरकार फ्लेक्स ईंधन के लिए उपयुक्त इंजन विकसित करने के लिए वाहन उद्योग पर भी दबाव बना रही है। फ्लेक्स ईंधन एथनोल मिश्रित ईंधन को कहा जाता है। हिमाचल और उत्तराखंड की सरकारें इस दिशा में उद्योग नीति को सक्रिय करें तो चार-पांच सालों में एक बड़ा परिवर्तन लाया जा सकता है। बांस रोपण को बड़े पैमाने पर विशेष परियोजना बना कर बढ़ाने के लिए बांस की पौध की बड़ी मात्रा में जरूरत होगी। यह भी ध्यान रखना होगा कि बांस की कौनसी किस्में ज्यादा सेलुलोस दे सकती हैं। उन्हीं का रोपण करना होगा। वन विभाग, कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर, आईएचबीटी पालमपुर और इच्छुक उद्योग एक मंच पर आकर इस कार्य को सुगमता से कर सकते हैं। इस कार्य में निवेश किसी के लिए भी घाटे का सौदा नहीं हो सकता क्योंकि एथनोल की मांग लगातार बढ़ती ही जाएगी और बनी रहेगी। इस वर्ष के बजट में बांस रोपण परियोजना को स्थान देकर शुरुआत की जानी चाहिए। साथ-साथ केंद्र सरकार से एथनोल प्लांट लगाने के लिए पक्ष प्रस्तुति करनी चाहिए ताकि समय आने पर बांस के उत्पादन को लाभकारी मूल्य पर खरीद की व्यवस्था बन सके।

कुलभूषण उपमन्यु

अध्यक्ष, हिमालय नीति अभियान


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